Q. भारत में गैर-सब्सिडी वाले उर्वरकों को विनियमन से मुक्त करने के संभावित लाभों और कमियों का विश्लेषण कीजिए। (10 अंक, 150 शब्द)

प्रश्न की मुख्य मांग:

  • भारत में गैर-सब्सिडी वाले उर्वरकों को विनियमन मुक्त करने के संभावित लाभों का विश्लेषण करें।
  • भारत में गैर-सब्सिडी वाले उर्वरकों के विनियमन की कमियों का विश्लेषण करें।

 

उत्तर:

भारत में उर्वरक सब्सिडी के अंतर्गत  सरकार उर्वरक उत्पादकों को वित्तीय सहायता प्रदान करती है , जिससे किसान बाज़ार से कम कीमत पर उर्वरक खरीद पाते हैं । सब्सिडी उत्पादन या आयात की लागत एवं  किसानों द्वारा भुगतान की गई वास्तविक कीमत के मध्य  के अंतर को समायोजित  करती है।सरकारी वित्तीय सहायता के बिना बाजार मूल्य पर बेचे जाने वाले गैर-सब्सिडी वाले उर्वरकों को नियंत्रण मुक्त करने का उद्देश्य बाजार-संचालित मूल्य निर्धारण को प्रोत्साहित करना, उर्वरक प्रौद्योगिकियों एवं वितरण में नवाचार को बढ़ावा देना है।

भारत में गैर-सब्सिडी वाले उर्वरकों को नियंत्रण मुक्त करने के संभावित लाभ:

  • बाजार संचालित मूल्य निर्धारण : सरकारी हस्तक्षेप के बिना, गैर-सब्सिडी वाले उर्वरकों की कीमतें आपूर्ति , मांग एवं प्रतिस्पर्धा जैसी बाजार शक्तियों द्वारा निर्धारित की जाती हैं
    उदाहरण के लिए : बाजार संचालित मूल्य निर्धारण से संसाधनों का अधिक कुशल आवंटन हो सकता है तथा किसानों के लिए लागत कम हो सकती है ।
  • प्रतिस्पर्धा में वृद्धि :विनियमन मुक्त बाजार में अधिक प्रतिस्पर्धा उत्पन्न हो सकती है क्योंकि कंपनियां स्वतंत्र रूप से उर्वरक प्रदान करने के लिए बाजार में प्रवेश कर सकती हैं, जिससे कीमतें कम हो सकती हैं
    उदाहरण के लिए :बाज़ार में अधिक कंपनियों के प्रवेश के परिणामस्वरूप किसानों के लिए बेहतर गुणवत्ता वाले उत्पाद और बेहतर सेवाएँ उपलब्ध हो सकती हैं।
  • उर्वरक प्रौद्योगिकी में नवाचार : विनियमन से उर्वरक प्रौद्योगिकी एवं वितरण विधियों में नवाचार को बढ़ावा मिल सकता है, जिससे संभावित रूप से दक्षता तथा  उपलब्धता में सुधार हो सकता है
    उदाहरण के लिए : कंपनियाँ नैनो यूरिया जैसे उन्नत उर्वरक विकसित कर सकती हैं जो अधिक कुशल तथा  पर्यावरण के अनुकूल हैं।
  • उत्पाद पंजीकरण में तीव्रता : पंजीकरण आवश्यकताओं को आसान बनाने से नए उर्वरकों की शुरूआत में तेज़ी आ सकती है , जिससे किसानों को नवीन उत्पादों तक शीघ्र  पहुँच मिल सकती है।
    उदाहरण के लिए : कुछ मानकों को पूरा करने वाले उर्वरकों के लिए स्वचालित पंजीकरण देरी को कम कर सकता है तथा  नए उत्पादों को तेज़ी से बाज़ार में ला सकता है।
  • उन्नत पोषक तत्व प्रबंधन : विनियमन मुक्त उर्वरक लक्षित पोषक वितरण प्रदान कर सकते हैं, जो फसल के उत्पादन में सुधार कर सकते हैं तथा  पर्यावरणीय प्रभाव को कम कर सकते हैं
    उदाहरण के लिए : जल में घुलनशील उर्वरक (WSF) सटीक पोषक तत्व प्रबंधन प्रदान करते हैं, जिससे फसल का प्रदर्शन बेहतर होता है तथा   उर्वरक का अपवाह कम होता है

भारत में गैर-सब्सिडी वाले उर्वरकों के विनियमन की कमियाँ::

  • छोटे किसानों पर प्रभाव : गैर-सब्सिडी वाले उर्वरक महंगे होते हैं , तथा  उनके विनियमन से छोटे किसानों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है, जिससे बड़े और छोटे पैमाने की कृषि के मध्य
    का अंतर बढ़ सकता है। उदाहरण के लिए : छोटे किसानों को विनियमन रहित उर्वरकों की उच्च लागत वहन करने में कठिनाई का सामना करना पड़ सकता  है, जिससे उनकी उत्पादकता एवं  लाभप्रदता प्रभावित हो सकती  है।
  • मुख्य फसलों के लिए सीमित लाभ : किसान मुख्य फसलों के लिए उर्वरकों का सर्वाधिक उपयोग करते हैं, जो बहुत लाभकारी  नहीं होते  हैं, जिसके कारण वे महंगे उर्वरकों का उपयोग करने में संकोच करते  हैं  उदाहरण के लिए :विनियमन मुक्त उर्वरकों की उच्च लागत किसानों को चावल एवं  गेहूं जैसी मुख्य फसलों पर उनका उपयोग करने से बाधित कर सकती है।
  • सूचना की विषमता : विनियमन मुक्त बाजार में किसानों के लिए उर्वरक के अधिक विकल्प उपलब्ध हो सकते हैं, जिसके दुरुपयोग को रोकने के लिए उचित मार्गदर्शन और शिक्षा की आवश्यकता होती है। उदाहरण के लिए : पर्याप्त जानकारी के बिना, किसान अनुपयुक्त उर्वरकों का चयन कर सकते हैं, जिससे फसल के उत्पादन में कमी आ सकती है।
  • कीमतों में अस्थिरता : किसानों को बाजार की स्थितियों के आधार पर उर्वरक की कीमतों में उतार-चढ़ाव का सामना करना पड़ सकता है , जिससे उनकी उत्पादन लागत तथा लाभप्रदता प्रभावित हो सकती है।
  • पर्यावरण संबंधी चिंताएँ : उर्वरकों के अनियंत्रित उपयोग से उनका अत्यधिक उपयोग अथवा दुरुपयोग हो सकता है , जिससे पर्यावरण को क्षति पहुँच सकती  है
    उदाहरण के लिए : कुछ उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग से मृदा एवं  जल प्रदूषण हो सकता है , जिससे दीर्घकालिक कृषि संपोषणीयता  प्रभावित हो सकती है

आगे की दिशा :

  • संतुलित दृष्टिकोण : चरणबद्ध विनियमन-मुक्ति रणनीति को लागू करना, साथ ही  छोटे किसानों के लिए लक्षित सब्सिडी के साथ बाजार-संचालित मूल्य निर्धारण को संतुलित करना ताकि वहनीयता सुनिश्चित हो सके
  • शिक्षा और प्रशिक्षण : किसानों के लिए नए उर्वरक उत्पादों तथा सतत कृषि पद्धतियों के उपयोग पर व्यापक प्रशिक्षण एवं  शिक्षा कार्यक्रम प्रदान करना
  • नवाचार के लिए समर्थन : लागत प्रभावी एवं पर्यावरण अनुकूल विकल्प बनाने के लिए उर्वरक प्रौद्योगिकियों में अनुसंधान और विकास को प्रोत्साहित करना।
  • उन्नत आधारभूत संरचना : नवीन उर्वरकों के वितरण तथा  अनुप्रयोग को समर्थन देने के लिए कृषि बुनियादी ढांचे में निवेश करें ।
  • निगरानी और विनियमन : दुरुपयोग को रोकने और पर्यावरण संरक्षण सुनिश्चित करने के लिए एक बेहतर  निगरानी तथा  नियामक तंत्र  स्थापित करना
  • सार्वजनिक-निजी भागीदारी : उर्वरक बाजार में नवाचार और सुलभता को बढ़ावा देने के लिए सरकार, निजी क्षेत्र तथा अनुसंधान संस्थानों के मध्य  सहयोग को बढ़ावा देना।

गैर-सब्सिडी वाले उर्वरकों को विनियमन मुक्त करने से नवोन्मेषी उत्पादों तक पहुँच में तेज़ी आ सकती है, लेकिन इससे छोटे किसानों एवं  मुख्य फसलों की खेती पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। लक्षित सब्सिडी, शिक्षा, एवं  नवाचार के समर्थन सहित एक संतुलित दृष्टिकोण इन चुनौतियों को कम करने में मदद कर सकता है। सतत  कृषि पद्धतियों तथा  सार्वजनिक-निजी भागीदारी को बढ़ावा देकर , भारत यह सुनिश्चित कर सकता है कि विनियमन मुक्त करने से सभी हितधारकों को लाभ मिले, जिससे बढ़ती प्रतिस्पर्धा वाले वैश्विक बाज़ार में उत्पादकता तथा खाद्य सुरक्षा बेहतर हो ।

 

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