उत्तर:
दृष्टिकोण:
- भूमिका
- ‘ग्रे ज़ोन’ युद्ध के बारे में संक्षेप में लिखें।
- मुख्य भाग
- चीन और पाकिस्तान से उत्पन्न होने वाले ‘ग्रे ज़ोन’ युद्ध से निपटने के लिए भारत द्वारा क्षमताएँ विकसित करने की आवश्यकता लिखें।
- विभिन्न सुरक्षा बलों और एजेंसियों द्वारा प्रभावी ढंग से निभाई जा सकने वाली महत्वपूर्ण भूमिका के बारे में लिखिए।
- निष्कर्ष
- इस संबंध में उचित निष्कर्ष दीजिए।
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भूमिका
‘ग्रे ज़ोन’ युद्ध उन गतिविधियों को संदर्भित करता है जो शांति और युद्ध के बीच की रेखा को धुंधला कर देती हैं, जिसमें पारंपरिक सैन्य संघर्ष की सीमा से नीचे बलपूर्वक कार्रवाई शामिल होती है। भारत के संदर्भ में, इसमें अक्सर साइबर हमले, दुष्प्रचार अभियान और सीमा पार झड़पें शामिल होती हैं, मुख्य रूप से पाकिस्तान और चीन जैसे विरोधियों से।
मुख्य भाग
भारत के लिए चीन और पाकिस्तान से उत्पन्न होने वाले ‘ग्रे ज़ोन’ युद्ध से निपटने के लिए क्षमताएँ विकसित करने की आवश्यकता
- प्रति-दुष्प्रचार: दोनों विरोधी भारत को अस्थिर करने के लिए दुष्प्रचार का उपयोग करते हैं। इसका मुकाबला करने के लिए मजबूत तथ्य-जाँच तंत्र की आवश्यकता है। उदाहरण: पाकिस्तान से निकलने वाले कई फर्जी समाचार अभियानों का पता चला है।
- सीमा घुसपैठ और अतिक्रमण से निपटने के लिए: इसके लिए, भारत को भारत-चीन सीमा पर चीन की क्षेत्रीय आक्रामकता को प्रभावी ढंग से रोकने और जवाब देने की क्षमता विकसित करने की आवश्यकता है। उदाहरण- 2017 में डोकलाम गतिरोध ने चीन की ‘ग्रे ज़ोन’ रणनीति का प्रदर्शन किया।
- अंतरिक्ष क्षमताएँ: चीन और पाकिस्तान दोनों सैन्य उद्देश्यों के लिए अपनी अंतरिक्ष क्षमताओं का विस्तार कर रहे हैं । भारत को संभावित ‘ग्रे ज़ोन’ खतरों को रोकने के लिए इन प्रगतियों से प्रतियोगिता करने की आवश्यकता है, जैसा कि भारत के एंटी-सैटेलाइट मिसाइल परीक्षण, मिशन शक्ति में दिखता है।
- आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान: फार्मास्यूटिकल्स और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसी महत्वपूर्ण आपूर्ति श्रृंखलाओं में चीन के प्रभुत्व का जबरदस्ती इस्तेमाल किया जा सकता है। भारत को जोखिमों को कम करने के लिए इन क्षेत्रों में आत्मनिर्भरता विकसित करनी चाहिए।
- जनसांख्यिकीय युद्ध: कश्मीर जैसे क्षेत्रों में जनसांख्यिकीय प्रोफ़ाइल को बदलने के लिए जबरन प्रवासन हेतु पाकिस्तान के कथित समर्थन को एक ग्रे ज़ोन रणनीति के रूप में देखा जा सकता है। भारत को समावेशी विकास नीतियों और प्रभावी सीमा प्रबंधन के माध्यम से इसका समाधान करने की आवश्यकता है।
- समुद्री लेन घुसपैठ: हिंद महासागर क्षेत्र (आईओआर) में चीनी नौसैनिक गतिविधियों का उद्देश्य, भारत के प्रभाव को बाधित करना है। इसलिए, समुद्री निगरानी और रक्षा क्षमताओं को मजबूत करना महत्वपूर्ण है।
- कूटनीतिक जोड़-तोड़: चीन और पाकिस्तान दोनों ने भारत को कूटनीतिक रूप से अलग-थलग करने की कोशिश की है , खासकर कश्मीर के मुद्दे पर। भारत को प्रभावी राजनयिक जुड़ाव और गठबंधन के माध्यम से इसका प्रतिकार करने की आवश्यकता है।
- तकनीकी जासूसी: चीन से संदिग्ध तकनीकी जासूसी के मामलों के लिए भारत में सुरक्षित संचार नेटवर्क और कड़े डेटा सुरक्षा कानूनों के विकास की आवश्यकता है ।
- आर्थिक दबाव: चीन ने भारत पर दबाव बनाने के लिए अपनी आर्थिक ताकत का इस्तेमाल किया है, जिसका उदाहरण चुनिंदा व्यापार प्रतिबंध हैं। भारत को ऐसी रणनीति का मुकाबला करने के लिए अपने व्यापार संबंधों में विविधता लाने और चीन पर आर्थिक निर्भरता कम करने की जरूरत है ।
ऐसी रणनीति का प्रभावी ढंग से मुकाबला करने में विभिन्न सुरक्षा बलों और एजेंसियों द्वारा महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जा सकती है
- भारतीय सशस्त्र बल: वे सीमा पर झड़पों जैसी भौतिक ‘ग्रे ज़ोन’ गतिविधियों का मुकाबला करने और साइबर युद्ध के लिए क्षमता विकसित करने में नेतृत्व कर सकते हैं। सहयोगियों के साथ संयुक्त सैन्य अभ्यास से तैयारियों को मजबूत किया जा सकता है।
- इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) और रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ): वे विदेशी और घरेलू खतरों पर खुफिया जानकारी इकट्ठा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। विशेष साइबर खतरे की खुफिया जानकारी के लिए राष्ट्रीय साइबर समन्वय केंद्र (एनसीसीसी) को उनके अधीन रखा जा सकता है ।
- भारतीय नौसेना और तटरक्षक: पानी के भीतर और समुद्री ‘ग्रे ज़ोन’ गतिविधियों का मुकाबला करने में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण है। उन्नत खतरे का पता लगाने के लिए एआई-आधारित जल के भीतर निगरानी की तैनाती पर विचार किया जा सकता है।
- केंद्रीय और राज्य पुलिस बल: वे सामुदायिक पुलिसिंग, जमीनी स्तर पर मीडिया साक्षरता को बढ़ावा देने के माध्यम से दुष्प्रचार अभियानों का मुकाबला करने में सहायक हो सकते हैं । प्रत्येक पुलिस विभाग के भीतर एक समर्पित दुष्प्रचार प्रतिकार इकाई पर विचार किया जा सकता है।
- सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) और भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी): ड्रोन निगरानी और एआई-आधारित चेहरे की पहचान जैसी उन्नत तकनीकों का उपयोग करके संवेदनशील सीमाओं पर निगरानी क्षमताओं को मजबूत करने से घुसपैठ और तस्करी का मुकाबला करने में मदद मिल सकती है।
- रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ): अंतरिक्ष और साइबर युद्ध के लिए अत्याधुनिक तकनीक विकसित करने में इसकी भूमिका महत्वपूर्ण है। नवाचार के लिए शिक्षा जगत और निजी क्षेत्र के साथ साझेदारी से तकनीकी बढ़त बनाए रखने में मदद मिल सकती है।
- विदेश मंत्रालय (एमईए): इसके राजनयिक प्रयास अंतरराष्ट्रीय गठबंधन को मजबूत करके ‘ग्रे जोन’ युद्ध का मुकाबला करने में मदद कर सकते हैं। विदेश मंत्रालय के भीतर ‘ग्रे ज़ोन’ खतरों पर ध्यान केंद्रित करने वाला एक समर्पित प्रभाग, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिक्रियाओं का समन्वय कर सकता है।
निष्कर्ष
‘ग्रे ज़ोन’ युद्ध की गुप्त, अपरंपरागत प्रकृति को देखते हुए भारत को पारंपरिक सुरक्षा प्रतिमानों से परे नवाचार और अनुकूलन की आवश्यकता है। बहुआयामी, समन्वित दृष्टिकोण के साथ विभिन्न सुरक्षा बलों और एजेंसियों की शक्ति का लाभ उठाना और नवाचार और सहयोग को बढ़ावा देना, इन रणनीति के खिलाफ भारत के प्रतिरोध को काफी बढ़ा सकता है।
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