Q. प्रति व्यक्ति जल आपूर्ति मानक भारत में क्षेत्रीय अंतरों को ध्यान में रखने में कैसे विफल रहता है? शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच समान जल वितरण पर इसके परिणामों पर चर्चा कीजिए और प्रभावी जल संरक्षण के लिए उपचारात्मक उपाय सुझाएँ। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • स्पष्ट कीजिए कि किस प्रकार से भारत में स्वच्छंद रूप से निर्धारित किया जाने वाला प्रति व्यक्ति जल आपूर्ति मानक, भारत में क्षेत्रीय अंतरों को ध्यान में रखने में विफल रहता है।
  •  प्रति व्यक्ति जल आपूर्ति मानक के कारण शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच समान जल वितरण पर पड़ने वाले परिणामों पर चर्चा कीजिए।
  • प्रभावी जल संरक्षण के लिए उपचारात्मक उपाय सुझाइये।

उत्तर

भारत का घरेलू जल आवंटन प्रति व्यक्ति जल आपूर्ति मानक (lpcd) का पालन करता है, जिसे वैज्ञानिक आधार या अनुभवजन्य आवश्यकता विश्लेषण के बिना परिभाषित किया गया है। बुनियादी ढाँचे और निवेश निर्णयों पर इसके प्रभाव के बावजूद, यह क्षेत्रीय विविधता को नजरअंदाज करता है, जिससे असमान पहुँच और अप्रभावी सेवा वितरण होता है।

प्रति व्यक्ति स्वच्छंद रूप से निर्धारित किया जाने वाला जल आपूर्ति मानक, किस प्रकार से क्षेत्रीय अंतरों को ध्यान में रखने में विफल रहता है

  • जलवायु और भौगोलिक आधार का अभाव: वास्तविक माँग भिन्नताओं को नजरअंदाज करते हुए, व्यापक जलवायु विविधताओं के बावजूद पूरे देश में एक ही मानक मूल्य लागू किया जाता है। 
    • उदाहरण: केंद्रीय सार्वजनिक स्वास्थ्य और पर्यावरण इंजीनियरिंग संगठन (CPHEEO), आर्द्र कोलकाता या शुष्क जोधपुर जैसे क्षेत्रों की भिन्न आवश्यकताओं को अनदेखा करते हुए  बड़े शहरों के लिए 150 lpcd और अन्य के लिए 135 lpcd निर्धारित करता है।
  • सामाजिक-आर्थिक और सांस्कृतिक भिन्नता की उपेक्षा: यह आजीविका, उपभोग पैटर्न या स्वच्छता आवश्यकताओं के आधार पर अंतर करने में विफल रहता है।
  • कई विरोधाभासी मानक लागू होते हैं: शहर, परियोजना की फंडिंग आवश्यकताओं के आधार पर परस्पर विरोधी lpcd मानों का उपयोग करते हैं, न कि वास्तविक माँग के आधार पर। 
    • उदाहरण: वर्ष 2012 में, मुंबई ने गरगई बांध विस्तृत परियोजना रिपोर्ट के लिए 150 lpcd का उपयोग किया, लेकिन फंडिंग एजेंसी के मानदंडों को पूरा करने के लिए अन्य परियोजनाओं हेतु 240 lpcd का उपयोग किया।
  • शहर के आकार और सीवरेज सिस्टम को उचित रूप से अनदेखा करना: एकसामान मानक, मौजूदा सीवरेज बुनियादी ढाँचे या शहर-विशिष्ट चुनौतियों को ध्यान में नहीं रखते हैं। 
    • उदाहरण: CPHEEO ने नियोजित सीवरेज वाले सभी शहरों के लिए 135 lpcd की सिफारिश की है हालांकि विभिन्न शहरों में जल संबंधी वास्तविक उपयोग और आवश्यकताएं काफी भिन्न हैं।
  • वास्तविक उपभोग आंकड़ों पर आधारित नहीं: ये मानक क्षेत्र सर्वेक्षणों के बिना तैयार किये गये हैं, जिससे व्यावहारिक कार्यान्वयन हेतु इन्हें स्वच्छंद बनाया जा सकता है।

शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच समान जल वितरण पर परिणाम

  • संसाधन आवंटन में गड़बड़ी: निश्चित मानदंड, शहरों के अत्यधिक नियोजन का कारण बनते हैं, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों से जल का प्रवाह कम हो जाता है। 
    • उदाहरण: बढ़े हुए lpcd मूल्यों पर आधारित शहरी घरेलू जल माँग के अनुमान बड़े बांध परियोजनाओं को उचित ठहराते हैं, जिससे ग्रामीण जल उपलब्धता प्रभावित होती है।
  • बुनियादी ढाँचे में निवेश में कमी: मानक-आधारित अनुमानों के कारण शहरों को असंगत निधि मिलती है, जिससे ग्रामीण योजनाएं हाशिए पर चली जाती हैं। 
    • उदाहरण: AMRUT और स्मार्ट सिटी के तहत परियोजनाएं CPHEEO मानदंडों पर निर्भर करती हैं, जिससे ग्रामीण समकक्षों से केंद्रीय सहायता दूर हो जाती है।
  • ग्रामीण अधिकारों को कमजोर करना: JJM का 55 lpcd मानक स्थिर बना हुआ है, भले ही कार्यात्मक शौचालयों ने गांवों में पानी की माँग बढ़ा दी हो। 
    • उदाहरण: स्वच्छ भारत मिशन ने घरेलू जल उपयोग को बढ़ाया, फिर भी JJM के तहत पुराना 55 lpcd मानक अपरिवर्तित रहा।
  • वास्तविक वितरण अंतराल को अस्पष्ट करता है: मानकों का उपयोग नियोजन में किया जाता है, लेकिन सेवा वितरण में लागू या मापा नहीं जाता है।
  • तकनीकी मध्यस्थता को सक्षम बनाता है: सलाहकार ऐसे मानक चुनते हैं जो स्वीकृति को आसान बनाते हैं, जमीनी हकीकत को नहीं दर्शाते, जिससे ग्रामीण-शहरी असमानताएँ और गहरी होती हैं। 
    • उदाहरण: DPR में कम lpcd अपनाने से समुदाय-विशिष्ट आवश्यकताओं की परवाह किए बिना CPHEEO अनुमोदन सुरक्षित करने में मदद मिलती है।

प्रभावी जल संरक्षण के लिए उपचारात्मक उपाय

  • साक्ष्य-आधारित मानदंड विकसित करना: विभिन्न क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति मानदंडों को अद्यतन करने के लिए जमीनी सर्वेक्षण और घरेलू मीटरिंग का उपयोग करना चाहिए।
    • उदाहरण: MoHUA समर्थित निगरानी प्रणाली रियलटाइम उपयोग और माँग विविधता को दर्शाने के लिए मानदंडों को संशोधित कर सकती है।
  • मीटर से संचालित और निगरानी की गई आपूर्ति सुनिश्चित करना: उपयोग का पता लगाने और अपव्यय की पहचान करने के लिए बल्क और उपभोक्ता मीटर स्थापित करना चाहिए। 
    • उदाहरण: बल्क मीटर के बिना शहर जल के प्रवाह को ट्रैक नहीं कर सकते हैं, देश भर में बहुत कम घरों में कार्यात्मक मीटर हैं।
  • क्षेत्र-विशिष्ट नियोजन अपनाना: राष्ट्रीय औसत को जलवायु-संवेदनशील, सांस्कृतिक रूप से प्रासंगिक मानकों से बदलना चाहिए।
    • उदाहरण: डिजाइन अनुमोदन के लिए भविष्य की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट में स्थानीय वर्षा और उपयोग डेटा को एकीकृत करना चाहिए।
  • ग्रामीण-शहरी नियोजन को समान बनाना: असमानताओं से बचने के लिए JJM और शहरी योजनाओं को समान डेटा-संचालित तर्क के साथ संरेखित करना चाहिए। 
    • उदाहरण: शौचालय और स्वच्छता बुनियादी ढाँचे के विस्तार के बाद जल की गहन आवश्यकताओं के आधार पर ग्रामीण lpcd को बढ़ाना चाहिए।
  • मूल्य निर्धारण के माध्यम से संरक्षण को प्रोत्साहित करना चाहिए: दक्षता को पुरस्कृत करने और अपव्यय को कम  करने के लिए स्लैब-आधारित टैरिफ लागू करनी चाहिए।
    • उदाहरण: फंडिंग को मंजूरी देने से पहले दक्षता को ट्रैक करने के लिए रियलटाइम डेटा के साथ MoHUA के सेवा बेंचमार्क का उपयोग करना चाहिए।

भारत के प्रति व्यक्ति जल आपूर्ति मानकों में अनुभवजन्य आधार का अभाव है, और ये क्षेत्रीय तथा ग्रामीण-शहरी असमानताओं को बनाए रखते हैं। डेटा-संचालित तरीकों ,रियलटाइम निगरानी और क्षेत्र-विशिष्ट नियोजन के माध्यम से मानदंडों में सुधार न्यायसंगत, सतत और जवाबदेह जल प्रशासन सुनिश्चित करने के लिए महत्त्वपूर्ण है।

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