Q. आर्कटिक क्षेत्र जलवायु पैटर्न में बदलाव के साथ एक नए भू-राजनीतिक हॉटस्पॉट के रूप में उभर रहा है। पर्यावरणीय चिंताओं को संतुलित करते हुए और वैश्विक शक्तियों द्वारा उत्पन्न भू-राजनीतिक चुनौतियों का सामना करते हुए आर्कटिक में अवसरों का दोहन करने में भारत की संभावित भूमिका पर चर्चा कीजिए। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • परीक्षण कीजिए कि क्यों आर्कटिक क्षेत्र, जलवायु पैटर्न में परिवर्तन के साथ एक नए भू-राजनीतिक हॉटस्पॉट के रूप में उभर रहा है।
  • आर्कटिक में अवसरों का दोहन करने में भारत की संभावित भूमिका पर चर्चा कीजिए।
  • चर्चा कीजिए कि भारत पर्यावरणीय चिंताओं को संतुलित करते हुए और वैश्विक शक्तियों द्वारा उत्पन्न भू-राजनीतिक चुनौतियों का सामना करते हुए आर्कटिक में अवसरों का किस प्रकार दोहन कर सकता है।

उत्तर

आर्कटिक वैश्विक दर से दोगुनी गति से गर्म हो रहा है जिससे नए शिपिंग मार्ग और संसाधन अवसर सामने आ रहे हैं परंतु भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा भी बढ़ रही है। वर्ष 2013 से आर्कटिक परिषद पर्यवेक्षक भारत ने इस क्षेत्र में सतत भागीदारी को बढ़ावा देते हुए अपनी वैज्ञानिक, ऊर्जा और कूटनीतिक उपस्थिति बढ़ाने के लिए एक व्यापक रणनीति तैयार की है।

आर्कटिक के नए भू-राजनीतिक हॉटस्पॉट बनने के पीछे कारण

  • बर्फ पिघलने से नौवहन मार्ग का खुलना: आर्कटिक में समुद्री बर्फ के कम होने से उत्तरी समुद्री मार्ग (NSR) और उत्तर-पश्चिमी मार्ग नौवहन योग्य हो रहे हैं, जिससे एशिया-यूरोप यात्रा का समय 40% तक कम हो रहा है, जिससे राष्ट्र इन रणनीतिक कॉरिडोर पर नियंत्रण हासिल करने के लिए प्रयास कर रहे हैं।
  • विशाल हाइड्रोकार्बन भंडार: अनुमान है कि आर्कटिक में 90 बिलियन बैरल तेल और 1,670 ट्रिलियन क्यूबिक फीट प्राकृतिक गैस है जिससे इसके ऊर्जा संसाधनों के लिए तीव्र प्रतिस्पर्धा होती है। 
    • उदाहरण के लिए: वर्ष 2010 के USGS अध्ययन ने कई आर्कटिक के अप्रयुक्त संसाधनों का खुलासा किया।
  • सामरिक सैन्य रुख: आर्कटिक राष्ट्र बर्फ में नौगमन करने में सक्षम जहाजों, हवाई अड्डों की तैनाती और निगरानी के जरिए सैन्य क्षमताओं का विस्तार कर रहे हैं जिससे क्षेत्र का सैन्य महत्त्व बढ़ रहा है।
  • जलवायु-सुरक्षा संबंध: आर्कटिक के गर्म होने से पर्माफ्रॉस्ट पिघल रहा है, जिससे ग्रीनहाउस गैसें निकल रही हैं और वैश्विक मौसम प्रणालियां बाधित हो रही हैं, जिससे भारत की खाद्य सुरक्षा और जलवायु पैटर्न प्रभावित हो रहा है।
  • ध्रुवीय शासन शून्यता: ग्लोबल कॉमन्स के रूप में, आर्कटिक में स्पष्ट कानूनी ढांचे का अभाव है, जिससे संसाधनों और भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा के प्रबंधन के लिए नए शासन मॉडल की माँग बढ़ रही है। 
    • उदाहरण के लिए: भारत की वर्ष 2022 आर्कटिक नीति संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून सम्मेलन (UNCLOS) के तहत नियम-आधारित व्यवस्था की वकालत करती है, जिसमें आर्कटिक और गैर-आर्कटिक राज्यों के बीच बहुपक्षीय सहयोग का आह्वान किया गया है।

आर्कटिक में भारत की संभावित भूमिका

  • वैज्ञानिक अनुसंधान नेतृत्व: भारत का राष्ट्रीय ध्रुवीय और महासागर अनुसंधान केंद्र (NCPOR), आर्कटिक डेटा को भारतीय जलवायु मॉडल से जोड़ते हुए ग्लेशियरों, समुद्र विज्ञान और वायुमंडलीय स्थितियों पर महत्वपूर्ण अनुसंधान कर रहा है।
  • ऊर्जा और खनिज अन्वेषण: भारत कठोर पर्यावरणीय दिशानिर्देशों के तहत आर्कटिक के अपतटीय ऊर्जा अन्वेषण में सहयोग करने के लिए गहरे समुद्र में ड्रिलिंग और भूभौतिकीय सर्वेक्षण में अपनी विशेषज्ञता का लाभ उठा सकता है।
  • समुद्री संपर्क का समर्थन: भारत व्यवहार्य आर्कटिक-एशिया समुद्री कॉरिडोरों के अध्ययन का नेतृत्व कर सकता है और कोल्ड-चेन लॉजिस्टिक्स को बढ़ावा दे सकता है व शिपिंग बुनियादी ढाँचे में सुधार कर सकता है। 
    • उदाहरण के लिए: भारत के विदेश मंत्रालय (MEA) ने वर्ष 2024 में भारत और यूरोपीय संघ के बीच व्यापार मार्गों को अनुकूलित करने के लिए आइस-क्लास जहाजों को तैनात करने के लिए फिनलैंड के साथ पहल पर चर्चा की।
  • जलवायु कूटनीति सेतु-निर्माता: भारत, ग्लोबल साउथ देशों और आर्कटिक राज्यों के बीच मध्यस्थता में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है व जलवायु अनुकूलन निधि और अनुसंधान पहलों की वकालत कर सकता है। 
    • उदाहरण के लिए: COP28 में भारत ने लॉस एंड डैमेज फण्ड का समर्थन करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई जिससे भारत ने स्वयं को सुभेद्य देशों के लिए जलवायु न्याय के चैंपियन के रूप में स्थापित किया।
  • बहुपक्षीय शासन योगदानकर्ता: भारत विज्ञान-नीति संबंधों को बढ़ाकर और स्वदेशी अधिकारों व सतत विकास की वकालत करके आर्कटिक परिषद को मजबूत करने में योगदान दे सकता है। 
    • उदाहरण के लिए: भारत, ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन (ORF) के साथ नई दिल्ली में वर्ष 2025 आर्कटिक सर्कल फोरम की मेजबानी करेगा, जिसका उद्देश्य बहुपक्षीय वार्ता के लिए आर्कटिक और एशियाई विशेषज्ञों को एक साथ लाना है।

विकास, पर्यावरण और भूराजनीति में संतुलन

  • संधारणीय मानकों को अपनाना: भारत को सभी आर्कटिक परिचालनों के लिए शून्य-उत्सर्जन प्रोटोकॉल पर जोर देना चाहिए और क्षेत्र में किसी भी शिपिंग या अन्वेषण गतिविधियों के लिए पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) को बढ़ावा देना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: भारत की आर्कटिक नीति, IMO ध्रुवीय संहिता को अपनाने की वकालत करती है  जो बर्फीले पानी में जहाजों के लिए परिचालन मानकों को नियंत्रित करती है।
  • निगरानी के लिए प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना: भारत, समुद्री प्रदूषण और समुद्री बर्फ की स्थिति की निगरानी के लिए सैटेलाइट और मानव रहित हवाई वाहन (UAV) प्रौद्योगिकी का उपयोग कर सकता है जिससे रियलटाइम  डेटा ट्रैकिंग सुनिश्चित हो सके।
  • साझेदारी में विविधता लाना: भारत सुरक्षा और शासन मानदंडों पर अमेरिका और यूरोपीय संघ के साथ सहयोग करते हुए रूस (ऊर्जा और शिपिंग) और नॉर्डिक देशों (हरित प्रौद्योगिकियों) के साथ अपने संबंधों को संतुलित कर सकता है।
  • कानूनी ढाँचे को मजबूत करना: भारत को UNCLOS में अद्यतनीकरण की वकालत करनी चाहिए जो गहरे समुद्र में खनन और संसाधन निष्कर्षण को नियंत्रित करता हो तथा समान संसाधन-साझाकरण और पर्यावरण संरक्षण सुनिश्चित करता हो।
  • समुदाय-केंद्रित दृष्टिकोण: भारत को स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाने के लिए स्वदेशी ज्ञान के एकीकरण में सहायता करनी चाहिए और आर्कटिक शासन में
    समान लाभ-साझाकरण सुनिश्चित करना चाहिए।

आर्कटिक क्षेत्र में भारत की भागीदारी को वैज्ञानिक नवाचार, कूटनीतिक निपुणता और पर्यावरणीय संधारणीयता के प्रति प्रतिबद्धता द्वारा समर्थित होना चाहिए। बहुपक्षीय सहयोग को आगे बढ़ाकर, हरित प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देकर और वैश्विक साझा संसाधनों की रक्षा करके, भारत एक स्थिर, नियम-आधारित आर्कटिक व्यवस्था को बढ़ावा देते हुए अपना प्रभाव बढ़ा सकता है।

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