प्रश्न की मुख्य माँग
- नौकरशाही की ‘किराया-माँग’ किस प्रकार भारत के विकास लक्ष्यों में बाधा उत्पन्न करते है।
- धीमी कानूनी प्रक्रियाएँ भारत के विकास लक्ष्यों में किस प्रकार बाधा उत्पन्न करती हैं।
- पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए व्यावहारिक प्रशासनिक सुधार।
- पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए व्यावहारिक कानूनी सुधार।
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उत्तर
विकसित भारत (Viksit Bharat) का दृष्टिकोण स्वच्छ और पारदर्शी शासन पर आधारित है। नौकरशाही की रिश्वतखोरी और धीमी न्यायिक प्रक्रियाएँ नीति क्रियान्वयन को कमजोर करती हैं, जनविश्वास को क्षीण करती हैं और भारत की पारदर्शी, कुशल और समावेशी विकास की दिशा में प्रगति को बाधित करती हैं।
कैसे नौकरशाही की “रिश्वतखोरी” भारत के विकास लक्ष्यों में बाधा बनती है
- निवेशकों के विश्वास को कमजोर करती है: व्यापार संचालन के हर चरण में—कस्टम से लेकर स्थानीय परमिट तक—रिश्वत की माँग घरेलू व विदेशी निवेशकों को हतोत्साहित करती है, जिससे औद्योगिक वृद्धि धीमी पड़ती है।
- संसाधन आवंटन को विकृत करती है: परियोजनाएँ योग्यता के बजाय रिश्वत पर आधारित होती हैं, जिससे अक्षम कार्य, बढ़ी हुई लागत और निम्न गुणवत्ता का बुनियादी ढाँचा बनता है।
- सामाजिक कल्याण वितरण को कमजोर करती है: सब्सिडी योजनाओं और कल्याणकारी कार्यक्रमों में लीकेज, गरीबों तक लाभ नहीं पहुँचने देते, जिससे असमानता बनी रहती है।
- प्रशासनिक अक्षमता को बढ़ाती है: रिश्वतखोरी अधिकारियों का ध्यान सेवा प्रदाय से व्यक्तिगत लाभ की ओर मोड़ देती है, जिससे संस्थागत विश्वास घटता है।
- उदाहरण: बंगलूरू में FIR पंजीकरण और मृत्यु प्रमाण-पत्र जैसी बुनियादी सेवाओं के लिए रिश्वत लेने का मामला प्रणालीगत क्षय (systemic decay) को दर्शाता है।
कैसे धीमी न्यायिक प्रक्रियाएँ भारत के विकास लक्ष्यों को बाधित करती हैं
- विलंबित न्याय निवारक प्रभाव को कमजोर करता है: दशकों तक खिंचने वाले भ्रष्टाचार मामलों से अपराधियों का मनोबल बढ़ता है और जवाबदेही का भय घटता है।
- आर्थिक शासन में अवरोध: लंबी मुकदमेबाजी भूमि, पर्यावरण और अवसंरचना अनुमोदनों में देरी लाती है, जिससे परियोजना समय-सीमा और पूँजी प्रवाह प्रभावित होते हैं।
- नौकरशाही की दक्षता घटती है: ईमानदार अधिकारी झूठे आरोपों से बचने हेतु सावधानी से काम करते हैं, जबकि भ्रष्ट अधिकारी कानूनी छिद्रों और प्रक्रियागत देरी का लाभ उठाते हैं।
- संस्थाओं में जनविश्वास का ह्रास: लंबे मुकदमे और कम सजा दर नागरिकों के कानून के शासन (rule of law) और लोकतांत्रिक शासन में विश्वास को कमजोर करते हैं।
पारदर्शिता और जवाबदेही के लिए व्यावहारिक प्रशासनिक सुधार
- नियामक ढाँचे को सरल बनाना: भूमि, लाइसेंसिंग और कस्टम की प्रक्रियाओं को सरल बनाकर मानव विवेकाधिकार और रिश्वतखोरी को कम किया जाए।
- उदाहरण: “ईज ऑफ डूइंग बिजनेस” के तहत डिजिटल सिंगल-विंडो क्लियरेंस सिस्टम का उपयोग आमने-सामने भ्रष्टाचार को घटा सकता है।
- संपत्ति और आय का नियमित ऑडिट: नौकरशाहों की हर 10 वर्ष में संपत्ति का अनिवार्य ऑडिट हो तथा अघोषित संपत्ति मिलने पर स्वतः जाँच प्रारंभ हो।
- व्हिसलब्लोअर और सतर्कता तंत्र को सशक्त करना: आंतरिक सतर्कता इकाइयों को स्वायत्तता दी जाए और शिकायतकर्ताओं को प्रतिशोध से सुरक्षा मिले।
- प्रदर्शन-आधारित जवाबदेही: पदोन्नति और प्रोत्साहन को पारदर्शी सेवा वितरण और नागरिक प्रतिक्रिया से जोड़ा जाए।
पारदर्शिता और जवाबदेही हेतु व्यावहारिक कानूनी सुधार
- तेजी से भ्रष्टाचार न्यायालयों की स्थापना: समयबद्ध सुनवाई हेतु विशेष भ्रष्टाचार-निरोधक न्यायालय स्थापित किए जाएँ।
- उदाहरण: कर्नाटक की लोकायुक्त अदालतों ने तेज निपटान और निवारक प्रभाव दिखाया है।
- स्वतः अनुमोदन तंत्र: वरिष्ठ अधिकारियों पर अभियोजन के लिए पूर्व सरकारी अनुमति की आवश्यकता समाप्त की जाए।
- संपत्ति जब्ती और पारदर्शिता कानून: सार्वजनिक सेवकों के लिए कठोर संपत्ति प्रकटीकरण नियम लागू किए जाएँ और एजेंसियों को अनुपातहीन संपत्ति जब्त करने का अधिकार दिया जाए।
- न्यायिक प्रक्रियाओं का डिजिटलीकरण: ई-कोर्ट्स और एआई-आधारित ट्रैकिंग प्रणाली से प्रक्रियागत देरी घटाकर केस प्रबंधन में पारदर्शिता लाई जाए।
निष्कर्ष
विकसित भारत केवल आर्थिक तीव्रता से नहीं, बल्कि संस्थागत शुद्धता से भी संभव है। नौकरशाही की रिश्वतखोरी और न्यायिक अक्षमता को समाप्त कर भारत एक विश्वसनीय, निष्पक्ष और नवोन्मेषी शासन प्रणाली स्थापित कर सकता है, जहाँ शासन, पारदर्शिता और जवाबदेही के आधार पर दीर्घकालिक सामाजिक व आर्थिक परिवर्तन का सशक्त माध्यम बने।
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