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Q. भारत में आनुवंशिक रूप से संशोधित (जीएम) खाद्य फसलों के अंगीकरण से संबंधित संभावित लाभों और जोखिमों का आकलन कीजिए। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य मांग:

  • भारत में आनुवंशिक रूप से संशोधित (जीएम) खाद्य फसलों के  अंगीकरण  से संबंधित  संभावित लाभों का आकलन करें।
  • भारत में आनुवंशिक रूप से संशोधित (जीएम) खाद्य फसलों के  अंगीकरण  से संबंधित  संभावित जोखिमों का आकलन करना।
  • भारत में आनुवंशिक रूप से संशोधित (जीएम) खाद्य फसलों के  अंगीकरण  से संबंधित  जोखिमों को दूर करने के उपाय सुझाएँ।

 

उत्तर:

भारत में आनुवंशिक रूप से संशोधित (जीएम) खाद्य फसलें विवादास्पद बनी हुई हैं , जिसमें  जीएम कपास एकमात्र स्वीकृत जीएम फसल है । जीएम सरसों को प्रस्तुत  करने के प्रयासों के बावजूद , न्यायिक एवं  पर्यावरणीय परीक्षण जारी है। कृषि नवाचार के लिए प्रयासरत भारत को सुरक्षा, सततता  एवं  आर्थिक प्रभावों पर बहस का सामना करना पड़ रहा है । जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (जीईएसी) के अनुसार , फसल के उत्पादन में वृद्धि  एवं  आयात निर्भरता को कम करना प्रमुख प्रेरक हैं।

भारत में जीएम खाद्य फसलों के संभावित लाभ:

  • फसल उपज में वृद्धि: जी.एम. फसलों को कीट प्रतिरोध एवं बेहतर विकास दर जैसे गुणों से युक्त  करके उत्पादकता बढ़ाने के लिए डिज़ाइन किया गया है
    उदाहरण के लिए: बीटी कपास के उत्पादन  में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है और इसने भारत को वैश्विक स्तर पर सबसे बड़ा कपास उत्पादक बना दिया है, जो चावल एवं  सरसों जैसी अन्य फसलों के लिए जी.एम. प्रौद्योगिकी के संभावित लाभों को दर्शाता है ।
  • कीटनाशकों के उपयोग में कमी: कीट प्रतिरोध के लिए तैयार की गई जीएम फसलों से रासायनिक कीटनाशकों की आवश्यकता कम हो जाती है, जिससे उत्पादन लागत और पर्यावरणीय लाभ कम हो जाते हैं।
    उदाहरण के लिए: बीटी कपास की कीट प्रतिरोध क्षमता ने कीटनाशकों के उपयोग को काफी कम कर दिया है, जिससे रासायनिक अपवाह एवं मृदा के प्रदूषण में कमी के द्वारा किसानों एवं पारिस्थितिकी तंत्र दोनों को लाभ हुआ है ।
  • पोषण मूल्य में वृद्धि: आनुवंशिक संशोधन से फसलों की पोषण संबंधी विशेषताओं में सुधार हो सकता है, जिससे कुपोषण की समस्या दूर हो सकती है तथा सार्वजनिक स्वास्थ्य बेहतर  हो सकता है
    उदाहरण के लिए: विटामिन ए से समृद्ध गोल्डन राइस का उद्देश्य विकासशील देशों में विटामिन की कमी का समाधान करना  है , जो भारत में मुख्य फसलों को आवश्यक पोषक तत्वों से समृद्ध करने के लिए एक मॉडल प्रस्तुत करता है।
  • पर्यावरणीय तनाव के प्रति बेहतर प्रतिरोध: जीएम फसलों को चरम मौसम की स्थिति, जैसे सूखा एवं लवणता, का सामना करने के लिए विकसित किया जा सकता है, जिससे कृषि में लचीलापन बढ़ सकता है।
    उदाहरण के लिए: भारत में सूखा प्रतिरोधी जीएम फसलों पर परीक्षणों ने अनियमित मानसून प्रवृत्ति  के बावजूद उत्पादन  को बनाए रखने में अपनी क्षमता को प्रदर्शित किया है , जो जलवायु-प्रभावित क्षेत्रों में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है ।
  • आर्थिक लाभ: उच्च उत्पादन एवं  कम लागत से किसानों की लाभप्रदता बढ़ती है , जिससे आजीविका में वृद्धि होती  है तथा  ग्रामीण आर्थिक विकास में योगदान मिलता है
    उदाहरण के लिए: बीटी कपास के  अंगीकरण  से किसानों की आय में वृद्धि हुई है , जिससे सरसों एवं बैंगन जैसी अन्य खाद्य फसलों के लिए जीएम फसलों की आर्थिक क्षमता का पता चलता है , जो इसी प्रकार किसानों की आय को बढ़ा सकती है।

भारत में जीएम खाद्य फसलों के संभावित जोखिम:

  • पर्यावरणीय प्रभाव: जी.एम. फसलें पर्यावरण को अनपेक्षित क्षति पहुंचा सकती हैं, जिससे  गैर-लक्षित प्रजातियों पर संभावित प्रभाव एवं  जैव विविधता का ह्रास हो सकता  है
    उदाहरण के लिए:  जी.एम. सरसों के संबंध  में प्रमुख चिंताओं में मधुमक्खियों जैसे परागणकों पर इसका संभावित प्रभाव मुख्य है , जो पारिस्थितिक संतुलन एवं  कृषि उत्पादकता को बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण हैं ।
  • स्वास्थ्य संबंधी चिंताएँ: जीएम खाद्य पदार्थों के सेवन के दीर्घकालिक स्वास्थ्य प्रभावों का समुचित रूप से आकलन नहीं किया गया है , जिससे उपभोक्ताओं एवं  विशेषज्ञों के मध्य  सुरक्षा संबंधी चिंताओं में वृद्धि हो रही हैउदाहरण के लिए: बीटी बैंगन के प्रति संशय के कारण भारत में इस पर रोक लगा दी गई, क्योंकि नियामक आश्वासनों के बावजूद इसके द्वारा  एलर्जी और विषाक्तता के प्रसार  की आशंका थी।
  • जीन प्रवाह एवं संदूषण: जी.एम. फसलें गैर-जी.एम. फसलों के साथ परागण कर सकती हैं , जिससे आनुवंशिक संदूषण होता है तथा  फसल की शुद्धता बनाए रखने में चुनौतियाँ उत्पन्न होती हैं
    उदाहरण के लिए: बीटी कपास से गैर-जी.एम. किस्मों में अनपेक्षित जीन प्रवाह के उदाहरण संदूषण को रोकने के लिए सख्त प्रबंधन प्रथाओं की आवश्यकता को उजागर करते हैं ।
  • आर्थिक निर्भरता: जीएम बीजों के अंगीकरण से प्रायः  किसान विशिष्ट कृषि रसायन कंपनियों से सम्बद्ध हो  जाते हैं , जिससे संभावित रूप से आर्थिक निर्भरता एवं  बीज संप्रभुता में कमी आती है
    उदाहरण के लिए: बहुराष्ट्रीय निगमों के पेटेंट प्राप्त बीटी कपास बीजों पर निर्भरता ने किसानों की स्वायत्तता एवं  समय के साथ बढ़ती इनपुट लागत के संबंध  में चिंताएं उत्पन्न  कर दी हैं
  • विनियामक और नैतिक मुद्दे: जीएम फसलों के लिए नियामक ढांचा जटिल नैतिक विचारों और सार्वजनिक अविश्वास को शामिल करता है, जिससे पारदर्शी और समावेशी निर्णय लेने की प्रक्रियाओं की आवश्यकता होती है।
    उदाहरण के लिए: भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जीएम सरसों पर दिया गया विभाजित निर्णय जीएम फसल अनुमोदन की विवादास्पद प्रकृति एवं  मजबूत विनियामक तंत्र की आवश्यकता को रेखांकित करता है।

भारत में जीएम खाद्य फसलों के जोखिम को दूर करने के उपाय:

  • मज़बूत विनियामक ढाँचा: कठोर सुरक्षा आकलन एवं पारदर्शी स्वीकृति प्रक्रियाओं के साथ विनियामक ढाँचे को बेहतर करने से संभावित जोखिमों को कम किया जा सकता है।
    उदाहरण के लिए: जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (जीईएसी) को  सख्त जैव सुरक्षा प्रोटोकॉल लागू करने तथा  डेटा के सार्वजनिक प्रकटीकरण को सुनिश्चित करने की आवश्यकता है ताकि विश्वास का निर्माण हो सके एवं  सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।
  • जन जागरूकता और शिक्षा: जीएम फसलों के विज्ञान एवं लाभों के संबंध  में जनता को शिक्षित करने से  भ्रांतियों को दूर किया जा  सकता है तथा  सूचित आम सहमति बनाई जा सकती है
    उदाहरण के लिए: सरकार द्वारा बीटी कपास के लिए किए गए जागरूकता अभियानों के समान जीएम फसलों की सुरक्षा एवं लाभों को स्पष्ट करने वाले जागरूकता अभियान सार्वजनिक  समर्थन प्राप्त  में मदद कर सकते हैं।
  • जैव सुरक्षा एवं रोकथाम के उपाय:  बफर जोन एवं निगरानी जैसी सख्त नियंत्रण रणनीतियों को लागू करके जीन प्रवाह एवं  पर्यावरणीय प्रदूषण को रोका जा सकता है।
    उदाहरण के लिए: जीएम सरसों के लिए नियंत्रित क्षेत्र परीक्षण एवं स्थानिक पृथक्करण की स्थापना गैर-जीएम फसलों के साथ क्रॉस-परागण के जोखिम को कम कर सकती है।
  • किसानों के लिए आर्थिक सहायता: सब्सिडी एवं वित्तीय सहायता प्रदान करके किसानों को जीएम फसलों के प्रयोग में मदद की जा सकती है, जिससे आर्थिक दबाव के बिना न्यायसंगत पहुंच सुनिश्चित की जा सकती है।
    उदाहरण के लिए: जीएम बीजों के लिए सब्सिडी एवं  सतत कृषि पद्धतियों के लिए सहायता प्रदान करने वाले सरकारी कार्यक्रम छोटे किसानों पर वित्तीय दबाव  को कम कर सकते हैं ।
  • सहयोगात्मक अनुसंधान एवं विकास: सार्वजनिक संस्थानों तथा निजी संस्थाओं को सम्मिलित  करते हुए सहयोगात्मक अनुसंधान को प्रोत्साहित करने  से नवाचार को बढ़ावा मिल सकता है साथ ही  सुरक्षा संबंधी चिंताओं का समाधान हो सकता है । उदाहरण के लिए:
    भारतीय कृषि विश्वविद्यालयों एवं  बायोटेक फर्मों के मध्य  संयुक्त अनुसंधान पहल से स्थानीय आवश्यकताओं और पर्यावरणीय परिस्थितियों के अनुरूप जीएम फसलें विकसित की जा सकती हैं ।

भारत में जीएम खाद्य फसलों का भविष्य तकनीकी प्रगति एवं  पर्यावरण एवं स्वास्थ्य सुरक्षा के मध्य  संतुलन बनाने पर निर्भर करता है। मजबूत विनियामक तंत्र  को लागू करने के साथ  , जन जागरूकता को बढ़ावा देते  हुए एवं अंतर-एजेंसी समन्वय सुनिश्चित करके , भारत जी.एम. फसलों के लाभों का दोहन कर सकता है। इससे संबंधित जोखिमों में कमी आएगी, तथा सतत  कृषि प्रगति एवं  खाद्य सुरक्षा को बढ़ावा मिलेगा ।

 

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