Q. आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए घरेलू खनन को बढ़ावा देना आवश्यक माना जाता है, फिर भी यह गंभीर पर्यावरणीय और सामाजिक चुनौतियाँ प्रस्तुत करता है। सतत और समावेशी विकास सुनिश्चित करते हुए भारत की खनन क्षमता को उजागर करने के लिए आवश्यक नीतिगत सुधारों का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • भारत की खनन क्षमता को उजागर करने के लिए नीतिगत सुधारों की आवश्यकता।
  • नीतिगत सुधारों को लागू करने में चुनौतियाँ।
  • आगे की राह।

उत्तर

खनन भारत की औद्योगिक वृद्धि का एक प्रमुख चालक है और आत्मनिर्भर भारत पहल का आधार स्तंभ है, जो बुनियादी ढाँचे, ऊर्जा और विनिर्माण के लिए आवश्यक कच्चा माल उपलब्ध कराता है। किंतु घरेलू खनन को बढ़ावा देने में पर्यावरणीय, सामाजिक और संस्थागत चुनौतियाँ सामने आती हैं, जिन्हें दूर करने के लिए लक्षित नीतिगत सुधार आवश्यक हैं ताकि सतत् और समावेशी विकास सुनिश्चित हो सके।

भारत की खनन क्षमता को विकसित करने हेतु आवश्यक नीतिगत सुधार

  • खनिज अन्वेषण का आधुनिकीकरण: भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण को सुदृढ़ करना और उन्नत तकनीक का उपयोग कर संसाधनों की कुशल पहचान।
    • उदाहरण: राष्ट्रीय भूभौतिकीय अनुसंधान संस्थान (NGRI) द्वारा क्रिटिकल मिनरल्स की खोज हेतु जियोस्पेशियल मैपिंग अपनाना।
  • पारदर्शी नीलामी और लाइसेंसिंग: MMDR संशोधन अधिनियम, 2021 के तहत नीलामी प्रक्रिया सरल कर निजी निवेश आकर्षित करना।
    • उदाहरण: ओडिशा और कर्नाटक में लौह अयस्क व बॉक्साइट खदानों की ई-नीलामी सफल रही।
  • प्रौद्योगिकी अपनाकर दक्षता बढ़ाना: मशीनीकरण और स्वचालन से पर्यावरणीय प्रभाव कम करना और उत्पादन बढ़ाना।
    • उदाहरण: वेदांता के झारसुगुड़ा में मशीनीकृत संचालन से भूमि क्षरण कम हुआ और सुरक्षा बेहतर हुई।
  • नियामकीय सरलीकरण: पर्यावरण, वन और खनन अनुमति हेतु सिंगल विंडो क्लियरेंस लागू करना।
    • उदाहरण: खनन मंत्रालय की ईज ऑफ डूइंग बिजनिस पहल से परियोजना अनुमोदन समय घटा है।
  • निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ाना: प्रोत्साहन, PPP मॉडल और सरल निर्यात-आयात प्रक्रियाओं से निजी निवेश प्रोत्साहित करना।
    • उदाहरण: JSW स्टील ने कर्नाटक में PPP मॉडल के तहत लौह अयस्क की खदानें विकसित कीं।

नीतिगत सुधार लागू करने में चुनौतियाँ

  • पर्यावरणीय क्षरण: खनन से वन, जल संसाधन और जैव विविधता प्रभावित होती है।
    • उदाहरण: नियामगिरी हिल्स में बॉक्साइट खनन ने डोंगरिया कोंध जनजाति के पारिस्थितिकी तंत्र को खतरा पहुँचाया।
  • सामाजिक एवं जनजातीय विस्थापन: खनन विस्तार से समुदायों का विस्थापन और संघर्ष होता है।
    • उदाहरण: तमिलनाडु में स्टरलाइट कॉपर परियोजना विरोध।
  • नियामकीय एवं विधिक बाधाएँ: जटिल और परस्पर विरोधी कानूनों से स्वीकृतियाँ विलंबित।
    • उदाहरण: गोवा में पर्यावरण उल्लंघन के कारण SC ने लौह अयस्क खनन पर रोक लगाई।
  • कुशल जनशक्ति की कमी: मशीनीकृत खनन व तकनीक के लिए प्रशिक्षित कर्मियों का अभाव।
    • उदाहरण: ओडिशा और छत्तीसगढ़ में प्रमाणित भू-वैज्ञानिकों और खनन इंजीनियरों की कमी।
  • वित्तीय व निवेश जोखिम: उच्च पूँजी लागत और वस्तुओं की कीमत में उतार-चढ़ाव निजी निवेशकों को हतोत्साहित करता है।
    • उदाहरण: मध्य प्रदेश की अनेक छोटी खदानें बाजार अस्थिरता के कारण कम उपयोग में है ।

आगे की राह

  • सतत् खनन प्रथाएँ: पर्यावरण प्रबंधन योजनाएँ, प्रगतिशील खदान समापन और भूमि पुनर्वास को अनिवार्य करना।
    • उदाहरण: ओडिशा में हिंडाल्को की ग्रीन बेल्ट परियोजना।
  • समावेशी विकास: CSR और लाभ-साझाकरण से स्थानीय समुदायों की भागीदारी सुनिश्चित करना।
    • उदाहरण: वेदांता के झारसुगुड़ा में जनजातीय कल्याण कार्यक्रम
  • क्षमता निर्माण व कौशल विकास: खनन अभियंताओं व तकनीशियनों के लिए प्रशिक्षण संस्थान व व्यावसायिक कार्यक्रम स्थापित करना।
    • उदाहरण: राष्ट्रीय शैल यांत्रिकी संस्थान (NIRM) द्वारा विशेषीकृत पाठ्यक्रम।
  • प्रौद्योगिकी-आधारित दक्षता एवं नवाचार: स्वचालन, AI-आधारित निगरानी और अपशिष्ट प्रबंधन तकनीक को प्रोत्साहित करना।
    • उदाहरण: टाटा स्टील की जमशेदपुर स्मार्ट माइनिंग।

निष्कर्ष

घरेलू खनन को बढ़ावा देना आत्मनिर्भर भारत के लिए अत्यंत आवश्यक है, किंतु इसके लिए पर्यावरणीय, सामाजिक और संस्थागत चुनौतियों को दूर करना होगा। लक्षित नीतिगत सुधार, सतत खनन प्रथाएँ, समुदाय सहभागिता, तकनीकी अपनाना और नियामकीय सरलीकरण के माध्यम से भारत अपनी खनन क्षमता को खोल सकता है और आर्थिक विकास, पर्यावरणीय सुरक्षा व सामाजिक न्याय के बीच संतुलन स्थापित कर सकता है।

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