Q. केंद्रीय बजट 2025-26 ने सतत शहरी विकास को बढ़ावा देने के लिए ₹1 लाख करोड़ का अर्बन चैलेंज फण्ड प्रस्तुत किया है। भारतीय शहरों में भीड़भाड़ और अप्रभावी बुनियादी ढाँचे से जूझते हुए, इन चुनौतियों का समाधान करने में शहरी प्रशासन की भूमिका की जाँच कीजिए। शहरों को जलवायु के प्रति अधिक लचीला और रहने योग्य कैसे बनाया जा सकता है? (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • भारतीय शहरों में भीड़भाड़ और खराब बुनियादी ढाँचे  की समस्या पर प्रकाश डालिये।
  • इन चुनौतियों से निपटने में शहरी प्रशासन की भूमिका का परीक्षण कीजिए।
  • चर्चा कीजिए कि शहरों को जलवायु के प्रति अधिक प्रत्यास्थ और रहने योग्य कैसे बनाया जा सकता है?

उत्तर

शहरी प्रत्यास्थता,  शहर की विभिन्न चुनौतियों को आत्मसात करने, उनसे उबरने और उनके अनुकूल ढलने की क्षमता को दर्शाता है जिससे सतत विकास और जीवन की बेहतर गुणवत्ता सुनिश्चित होती है। वर्ष 2025-26 वित्तीय वर्ष में, भारत सरकार ने शहरी चुनौती कोष के लिए ₹1 लाख करोड़ आवंटित किए, जिसका उद्देश्य शहरों को विकास केंद्रों में बदलना, रचनात्मक पुनर्विकास को बढ़ावा देना और जल व स्वच्छता बुनियादी ढाँचे  को उन्नत करना है। यह पहल सतत और समावेशी शहरी विकास को बढ़ावा देने की प्रतिबद्धता को रेखांकित करती है

भारतीय शहरों में भीड़भाड़ और खराब बुनियादी ढाँचे से संघर्ष

  • अनियोजित शहरीकरण: शहरों की ओर तेज़ी से हो रहे पलायन ने नियोजन क्षमता को पीछे छोड़ दिया है, जिसके कारण झुग्गियाँ, यातायात की भीड़ और अपर्याप्त आवास की स्थिति उत्पन्न हो गई है, जिससे जल और स्वच्छता जैसी बुनियादी सुविधाओं पर दबाव पड़ रहा है। 
    • उदाहरण के लिए: मुंबई की धारावी झुग्गी बस्ती, जिसमें 10 लाख से अधिक लोग रहते हैं, में उचित सीवेज और जल की आपूर्ति का अभाव है, जो अनियमित शहरी विस्तार को दर्शाता है।
  • यातायात भीड़भाड़: खराब सार्वजनिक परिवहन एकीकरण और निजी वाहनों के बढ़ते उपयोग के परिणामस्वरूप गंभीर भीड़भाड़ होती है, उत्पादकता कम होती है और वायु प्रदूषण बढ़ता है। 
    • उदाहरण के लिए: बेंगलुरु की औसत अधिकतम यातायात गति 18 किमी/घंटा है जो आर्थिक दक्षता को प्रभावित करती है और कार्बन उत्सर्जन को बढ़ाती है।
  • जल एवं अपशिष्ट प्रबंधन संकट: वर्तमान समय में शहर, जल की कमी, भूजल में कमी और खराब अपशिष्ट निपटान की समस्या से पीड़ित हैं, जिससे प्रदूषण और सार्वजनिक स्वास्थ्य संबंधी खतरे बढ़ रहे हैं। 
    • उदाहरण के लिए: बेंगलुरु की बेलंदूर झील में अक्सर अनुपचारित औद्योगिक और घरेलू अपशिष्ट के निर्वहन के कारण आग लग जाती है।
  • वायु और ध्वनि प्रदूषण: औद्योगिक उत्सर्जन, वाहनों से निकलने वाला धुआँ और निर्माणकार्य की धूल वायु की गुणवत्ता को खराब करते हैं और शहरी शोर का स्तर सुरक्षित सीमा से अधिक होता जा रहा है। 
    • उदाहरण के लिए: दिल्ली में PM2.5 का स्तर WHO की सीमा से अधिक है, जिससे श्वसन संबंधी बीमारियाँ और आर्थिक नुकसान होता है।
  • अपर्याप्त सामाजिक अवसंरचना: शहरी क्षेत्रों में किफायती आवास, अस्पताल और स्कूलों की कमी के कारण निम्न आय वर्ग के लोग रहने लायक नहीं रह पाते हैं। 
    • उदाहरण के लिए: मुंबई में आवास की कमी के कारण 40% से अधिक निवासी अनौपचारिक बस्तियों में रहने को मजबूर हैं, जहाँ रहने की स्थिति खराब है।

इन चुनौतियों से निपटने में शहरी प्रशासन की भूमिका

  • एकीकृत शहरी नियोजन: दीर्घकालिक नियोजन, मिश्रित भूमि उपयोग और पारगमन-उन्मुख विकास वाले स्मार्ट सिटी मॉडल,  संधारणीय शहरी स्थान बना सकते हैं। 
    • उदाहरण के लिए: दिल्ली RRTS (रीजनल रैपिड ट्रांजिट सिस्टम) ने भीड़भाड़ को कम करते हुए गतिशीलता में सुधार किया है।
  • नगर प्रशासन को मजबूत बनाना: सशक्त स्थानीय निकायों के साथ शहरी प्रशासन का विकेंद्रीकरण कुशल सेवा वितरण और जवाबदेही सुनिश्चित करता है। 
    • उदाहरण के लिए: कोलकाता की वार्ड समितियाँ स्थानीय स्तर पर अपशिष्ट प्रबंधन और स्वच्छता सेवाओं की निगरानी में मदद करती हैं।
  • सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP): निजी क्षेत्र के साथ सहयोग से बुनियादी ढाँचे  और प्रौद्योगिकी-संचालित शहरी समाधानों में निवेश बढ़ाया जा सकता है। 
    • उदाहरण के लिए: हैदराबाद मेट्रो एक सफल PPP परियोजना है, जो उच्च गुणवत्ता वाली जन परिवहन प्रणाली प्रदान करती है।
  • स्मार्ट प्रौद्योगिकी एकीकरण: शासन में AI, IoT और GIS मैपिंग का उपयोग यातायात प्रबंधन, अपशिष्ट निपटान और संसाधन वितरण में सुधार करता है। 
    • उदाहरण के लिए: इंदौर की स्मार्ट कचरा संग्रहण प्रणाली कुशल कचरा निपटान के लिए RFID प्रौद्योगिकी का उपयोग करती है।
  • वित्तीय स्थिरता: शहरों को दीर्घकालिक शहरी बुनियादी ढाँचे के वित्तपोषण के लिए संपत्ति कर, भीड़भाड़ मूल्य निर्धारण और उपयोगकर्ता शुल्क के माध्यम से राजस्व सृजन बढ़ाने की आवश्यकता है। 
    • उदाहरण के लिए: पुणे नगर निगम के संपत्ति कर संग्रह में वृद्धि से शहरी विकास परियोजनाओं को वित्त पोषण मिलता है।

शहरों को जलवायु-अनुकूल और रहने योग्य बनाना

  • हरित शहरी अवसंरचना: ग्रीन रूफ्स, शहरी वन और आर्द्रभूमि का विस्तार करने से तापमान को नियंत्रित करने और जलवायु जोखिमों को कम करने में मदद मिलती है। 
    • उदाहरण के लिए: सिंगापुर की ग्रीन कॉरिडोर परियोजना, पार्कों और ग्रीन स्पेसेज को जोड़ती है जिससे वायु गुणवत्ता में सुधार होता है।
  • बाढ़ प्रतिरोधी योजना: बेहतर जल निकासी व्यवस्था, स्पॉन्ज सिटी मॉडल और वर्षा जल संचयन शहरी बाढ़ को कम करने में मदद करते हैं। 
    • उदाहरण के लिए: चेन्नई की अड्यार नदी के जीर्णोद्धार ने मानसून के दौरान शहरी बाढ़ के जोखिम को कम किया है।
  • संधारणीय परिवहन: इलेक्ट्रिक बसों, साइकिल लेन और मेट्रो नेटवर्क का विस्तार उत्सर्जन को कम कर सकता है और गतिशीलता में सुधार कर सकता है। 
    • उदाहरण के लिए: दिल्ली की ई.वी. नीति इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाने को बढ़ावा देती है, जिससे परिवहन उत्सर्जन में कमी आती है।
  • शून्य-अपशिष्ट शहर: चक्रीय अर्थव्यवस्था के सिद्धांतों, खाद बनाने और प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाने से शहरी अपशिष्ट चुनौतियों का समाधान हो सकता है। 
    • उदाहरण के लिए: इंदौर का अपशिष्ट-से-ऊर्जा संयंत्र कचरे को बिजली में परिवर्तित करता है जिससे लैंडफिल पर बोझ कम होता है।
  • हीटवेव की तैयारी: कूल रूफ्स, छायादार रास्तों और गर्मी से निपटने की कार्ययोजनाओं को लागू करने से जलवायु सुभेद्यताओं को कम किया जा सकता है। 
    • उदाहरण के लिए: अहमदाबाद के हीट एक्शन प्लान से हीट वेव से संबंधित मृत्यु दर में उल्लेखनीय कमी आई है।

सशक्त शहरी शासन, संधारणीय शहरों की आधारशिला है। प्रौद्योगिकी-संचालित नियोजन, विकेंद्रीकृत प्रशासन और सामुदायिक भागीदारी को एकीकृत करके शहर, कुशल तथा समावेशी और जलवायु-प्रतिरोधी केंद्रों में बदल सकते हैं। ₹1 लाख करोड़ के शहरी चुनौती कोष का उपयोग हरित अवसंरचना, पारगमन-उन्मुख विकास और स्मार्ट समाधानों को प्रोत्साहित करने के लिए होना चाहिए। नीति, वित्त और नवाचार का तालमेल शहरी भारत के भविष्य को फिर से परिभाषित करेगा।

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