Q. दुर्घटना पीड़ितों के लिए कैशलेस उपचार योजना सही दिशा में एक कदम था, लेकिन इसे परिचालन संबंधी बाधाओं का सामना करना पड़ा है। इसकी सीमाओं पर चर्चा कीजिए और इसके प्रभावी कार्यान्वयन के लिए उपाय भी सुझाएँ। (10 अंक, 150 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • दुर्घटना पीड़ितों के लिए कैशलेस उपचार योजनाओं की सीमाओं पर चर्चा कीजिए।
  • इसके प्रभावी कार्यान्वयन के लिए उपाय सुझाइए।

उत्तर

मई 2025 में शुरू की गई भारत की दुर्घटना पीड़ितों के लिए कैशलेस उपचार योजना दुर्घटना के बाद पहले सात दिनों के लिए ₹1.5 लाख तक की आपातकालीन चिकित्सा देखभाल प्रदान करती है। मोटर वाहन अधिनियम की धारा 162 के तहत शुरू की गई इस योजना का उद्देश्य दुर्घटना से संबंधित मृत्यु दर और जेब से होने वाले खर्च को कम करना है।

सड़क दुर्घटना पीड़ितों के लिए कैशलेस उपचार योजना के प्रावधान

  • वित्तीय कवरेज सीमा: यह योजना सड़क दुर्घटना के बाद सात दिनों तक 1.5 लाख रुपये तक का कैशलेस उपचार प्रदान करती है
  • नामित और गैर-नामित अस्पतालों में उपचार: पीड़ितों का इलाज योजना के तहत नामित अस्पतालों में किया जा सकता है। गैर-नामित अस्पताल मरीज को सूचीबद्ध सुविधा में स्थानांतरित करने से पूर्व प्रारंभिक स्थिरीकरण की पेशकश कर सकते हैं ।
  • राज्य एजेंसियों द्वारा अस्पतालों को सूचीबद्ध करना: राज्य सड़क सुरक्षा परिषदें (SRCs) , राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण (NHA) के समन्वय से, सार्वजनिक और निजी दोनों अस्पतालों को सूचीबद्ध करने के लिए जिम्मेदार हैं।
  • डिजिटल क्लेम पोर्टल: अस्पतालों को राज्य स्वास्थ्य एजेंसी (SHA) द्वारा प्रबंधित एक ऑनलाइन पोर्टल के माध्यम से क्लेम प्रस्तुत करने होंगे। प्रतिपूर्ति, पूर्व-निर्धारित उपचार पैकेज दरों के आधार पर की जाती है।
  • केंद्रीय निरीक्षण समिति: सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के सचिव की अध्यक्षता में 17 सदस्यीय संचालन समिति कार्यान्वयन की देख-रेख और प्रगति की निगरानी करती है।

कैशलेस उपचार योजना में बाधाएँ

  • राज्य स्तर पर क्रियान्वयन में देरी: कई राज्यों ने समय पर प्रक्रिया संबंधी दिशा-निर्देश जारी नहीं किए हैं या अस्पतालों को सूचीबद्ध नहीं किया है। 
    • उदाहरण के लिए, नोएडा और गाजियाबाद में, राज्य के निर्देशों की कमी के कारण अस्पताल जून 2025 में भी योजना की पेशकश करने में असमर्थ थे।
  • अस्पतालों की कम संख्या: भाग लेने वाले अस्पतालों की संख्या, विशेष रूप से निजी क्षेत्र में, कम बनी हुई है।
  • अव्यवहार्य प्रतिपूर्ति दरें: कम मुआवजा पैकेज निजी अस्पतालों की भागीदारी को हतोत्साहित करते हैं।
  • प्रशासनिक भ्रम: पुलिस, अस्पताल और बीमा कंपनियों के बीच अतिव्यापन करने वाली भूमिकाएँ क्लेम प्रक्रिया में भ्रम उत्पन्न करती हैं। 
    • उदाहरण के लिए, लॉन्च के एक महीने बाद भी, NCR के अस्पतालों ने बिलिंग प्रोटोकॉल और अस्पताल की भूमिकाओं पर स्पष्टता की कमी की सूचना दी।
  • पोर्टल और दस्तावेजीकरण संबंधी समस्याएँ: क्लेम प्रसंस्करण पोर्टल अक्षम बना हुआ है, जिसके कारण देरी हो रही है। 
    • उदाहरण के लिए, जुलाई 2024 तक, दस्तावेजीकरण त्रुटियों और पोर्टल की गड़बड़ियों के कारण 500 से अधिक हिट-एंड-रन के मामलों में किए गए क्लेम वैध नहीं थे।
  • कवरेज अपर्याप्तता: सात दिनों के लिए 1.5 लाख रुपये की सीमा अक्सर गंभीर चोटों को कवर करने में विफल रहती है, जिसके लिए लंबे समय तक अस्पताल में भर्ती रहने की आवश्यकता होती है। 
    • उदाहरण: सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि सीमित राशि गंभीर मामलों में पूर्ण आघात देखभाल के लिए आवश्यक राशि से कम है।
  • सार्वजनिक जागरूकता का अभाव: पीड़ितों और यहाँ तक कि अस्पताल के कर्मचारियों को भी अक्सर योजना के अस्तित्व तथा प्रक्रियाओं के बारे में जानकारी नहीं होती है।

प्रभावी कार्यान्वयन के उपाय

  • राज्य स्तर पर तुरंत निर्देश जारी करना: अस्पतालों को सूचीबद्ध करने और बिलिंग के बारे में स्पष्ट दिशा-निर्देश राज्य स्तर पर जारी किए जाने चाहिए। 
    • उदाहरण के लिए, इंदौर में अस्पतालों को जून 2025 में योजना के तहत पंजीकरण के लिए तीन दिन की समय सीमा दी गई थी।
  • अस्पतालों की भागीदारी बढ़ाना: आयुष्मान भारत और अन्य निजी अस्पतालों को इस योजना के अंतर्गत शामिल करना चाहिए। 
    • उदाहरण के लिए, हरियाणा सरकार ने पहुँच बढ़ाने के लिए गैर-आयुष्मान अस्पतालों को शामिल करने के लिए सूची का विस्तार किया।
  • प्रतिपूर्ति दरों में संशोधन: भुगतान पैकेज को वास्तविक उपचार लागतों को दर्शाने के लिए समायोजित किया जाना चाहिए। 
    • उदाहरण के लिए, एसोसिएशन ऑफ हेल्थकेयर प्रोवाइडर्स (इंडिया) ने गुणवत्तापूर्ण निजी देखभाल को आकर्षित करने के लिए दरों में संशोधन की माँग की है।
  • एजेंसियों के बीच समन्वय में सुधार: ओवरलैपिंग से बचने के लिए राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण, सड़क सुरक्षा परिषदों और बीमा कंपनियों के लिए भूमिकाएँ तय करनी चाहिए।
    • उदाहरण के लिए, सड़क सचिव के नेतृत्व में 17 सदस्यीय संचालन समिति अब राष्ट्रीय स्तर पर कार्यान्वयन की निगरानी करती है।
  • क्लेम प्रोसेसिंग पोर्टल को अपग्रेड करना: डिजिटल प्लेटफॉर्म तीव्र, पारदर्शी और उपयोगकर्ता के अनुकूल होने चाहिए। 
    • उदाहरण के लिए, जनरल इंश्योरेंस काउंसिल को पोर्टल की अक्षमताओं को दूर करने और वर्कफ़्लो को सुव्यवस्थित करने का काम सौंपा गया है।
  • अंतरिम स्थिरीकरण सक्षम करना: पीड़ितों को किसी भी अस्पताल में स्थिरीकरण उपचार मिलना चाहिए, भले ही वह पैनल में शामिल न हो।
  • जागरूकता अभियान को मजबूत करना: नागरिकों और चिकित्सा कर्मचारियों दोनों को सूचित करने के लिए बड़े पैमाने पर आउटरीच आवश्यक है। 
    • उदाहरण के लिए, हरियाणा में राहवीर योजना के तहत सरकार योजना जागरूकता को बढ़ावा देने के लिए एफएम रेडियो और पोस्टर का उपयोग करती है तथा दुर्घटना पीड़ितों को अस्पताल पहुँचने में मदद करने के लिए ₹25,000 की मदद करती है।

भारत की कैशलेस उपचार योजना में दुर्घटना से संबंधित मौतों और परिवारों के लिए वित्तीय तनाव को काफी हद तक कम करने की क्षमता है। इसकी सफलता अब राज्य स्तरीय समन्वय, उचित प्रतिपूर्ति, बुनियादी ढाँचे की तत्परता और व्यापक जागरूकता पर निर्भर करती है , जो समावेशी एवं कुशल आपातकालीन स्वास्थ्य सेवा के लक्ष्य के साथ संरेखित होती है।

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