Q. सस्ते श्रम पर निर्भरता और तकनीकी नवाचार की कमी के कारण, भारत के विनिर्माण क्षेत्र के समक्ष आने वाली चुनौतियों पर चर्चा कीजिए। यह अति-निर्भरता वैश्विक बाजार में भारतीय उद्योगों की प्रतिस्पर्धात्मकता को कैसे प्रभावित करती है? (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • सस्ते श्रम पर निर्भरता एवं तकनीकी नवाचार की कमी के कारण भारत के विनिर्माण क्षेत्र के सामने आने वाली चुनौतियों पर चर्चा कीजिए। 
  • विश्लेषण कीजिए कि यह अति-निर्भरता वैश्विक बाजार में भारतीय उद्योगों की प्रतिस्पर्धात्मकता को कैसे प्रभावित करती है। 
  • आगे की राह  सुझाएँ। 

उत्तर

भारत का विनिर्माण क्षेत्र सकल घरेलू उत्पाद में 17% का योगदान देता है, लेकिन सस्ते श्रम पर बहुत अधिक निर्भर करता है, जिसमें 70% से अधिक श्रमिक छोटे, अपंजीकृत उद्यमों (PLFS 2023-24) में काम करते हैं। इस बीच, कम R&D खर्च (GDP का 0.7%) तकनीकी नवाचार को सीमित करता है, जिससे वैश्विक प्रतिस्पर्धा में बाधा आती है।

सस्ते श्रम पर निर्भरता एवं तकनीकी नवाचार की कमी के कारण भारत के विनिर्माण क्षेत्र के सामने चुनौतियाँ

  • लंबे समय तक काम करना एवं कम उत्पादकता: भारतीय कर्मचारी अपने वैश्विक समकक्षों की तुलना में अधिक समय तक काम करते हैं, लेकिन पुरानी तकनीक एवं अकुशल प्रबंधन के कारण कम उत्पादक बने रहते हैं।
    • उदाहरण के लिए: ILO (2024) के अनुसार, भारतीय कर्मचारी औसतन प्रति सप्ताह 46.7 घंटे काम करते हैं, जो संयुक्त राज्य अमेरिका (38 घंटे) एवं जापान (36.6 घंटे) की तुलना में काफी अधिक है, फिर भी उनकी उत्पादकता कम है।
  • छोटी फर्मों में स्थिरता: 70% से अधिक विनिर्माण कर्मचारी छोटे, अपंजीकृत उद्यमों में कार्यरत हैं, जिनके पास उन्नत मशीनरी एवं वित्तीय सहायता तक पहुँच नहीं है, जिससे विकास की संभावना सीमित है।
    • उदाहरण के लिए: लुधियाना एवं कोयंबटूर में, छोटी फैक्ट्रियाँ ऑटो पार्ट्स तथा मशीनरी घटक बनाती हैं, लेकिन मालिक बड़ी फर्मों से भुगतान में देरी से जूझते हैं, जिससे तकनीकी निवेश सीमित हो जाता है।
  • ठेका श्रमिकों का शोषण: चूंकि वर्ष 2011-12 के बाद कारखानों में नियुक्त 56% श्रमिक ठेका श्रमिक हैं, इसलिए उन्हें कम वेतन, नौकरी की असुरक्षा एवं सामाजिक सुरक्षा का अभाव रहता है, जिसके कारण उनमें प्रेरणा कम होती है तथा पढ़ाई छोड़ देने की दर अधिक होती है।
    • उदाहरण के लिए: भारत के कपड़ा उद्योग में, परिधान श्रमिकों, जिनमें से अधिकांश प्रवासी हैं, को न्यूनतम मजदूरी से कम भुगतान किया जाता है, जिससे उन्हें निर्यात माँगों को पूरा करने के लिए अत्यधिक ओवरटाइम करने के लिए मजबूर होना पड़ता है। 
  • अनुसंधान एवं विकास के लिए सरकारी सहायता का अभाव: विनिर्माण में भारत का अनुसंधान एवं विकास निवेश कम बना हुआ है, जिससे उद्योग स्वदेशी नवाचार तथा स्वचालन को बढ़ावा देने के बजाय आयातित प्रौद्योगिकी पर निर्भर हो रहे हैं। 
    • उदाहरण के लिए: चीन अपने सकल घरेलू उत्पाद का 2.4% अनुसंधान एवं विकास पर खर्च करता है, जिससे Huawei तथा BYD जैसी फर्म नवाचार में अग्रणी हो जाती हैं, जबकि भारत केवल 0.7% खर्च करता है, जिससे प्रगति सीमित हो जाती है। 
  • कम कौशल वाली नौकरियों पर निर्भरता: उद्योग स्वचालन या AI-संचालित प्रक्रियाओं के लिए श्रमिकों को अपस्किल करने के बजाय कम कौशल, श्रम-गहन उत्पादन पर ध्यान केंद्रित करते हैं, जिससे दीर्घकालिक औद्योगिक प्रगति बाधित होती है। 
    • उदाहरण के लिए: वियतनाम के विपरीत, जिसने उच्च तकनीक वाले इलेक्ट्रॉनिक विनिर्माण में श्रमिकों को अपस्किल किया, भारतीय फर्म ऑटोमोबाइल एवं वस्त्र जैसे क्षेत्रों में मैनुअल असेंबली पर निर्भर हैं, जिससे वैश्विक प्रतिस्पर्धा कम हो रही है।

सस्ते श्रम पर अत्यधिक निर्भरता का भारत की वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता पर प्रभाव

  • निर्यात में कमज़ोर प्रदर्शन: पिछले दो दशकों में भारत की वैश्विक परिधान निर्यात हिस्सेदारी 3.1% पर स्थिर बनी हुई है, क्योंकि फर्म अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने के लिए तकनीक एवं स्वचालन को अपग्रेड करने से बचती हैं।
    • उदाहरण के लिए: बांग्लादेश एवं वियतनाम, कम श्रम लागत के बावजूद, आधुनिक कारखानों तथा कुशल आपूर्ति श्रृंखलाओं में निवेश करके परिधान निर्यात में भारत से आगे निकल गए हैं।
  • उद्योगों को बढ़ाने में विफलता: छोटी, अपंजीकृत फ़र्मों का प्रभुत्व भारत को बड़े पैमाने पर, उच्च तकनीक वाले उद्योगों का निर्माण करने से रोकता है, जिससे पैमाने की अर्थव्यवस्था एवं लागत प्रतिस्पर्धात्मकता कम हो जाती है।
    • उदाहरण के लिए: चीन का इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र बड़ी फ़र्मों को एकीकृत करके बढ़ा, जबकि भारत की खंडित आपूर्ति श्रृंखला वैश्विक इलेक्ट्रॉनिक्स बाज़ारों में प्रतिस्पर्धा में बाधा डालती है।
  • उच्च तकनीक वाले क्षेत्रों में प्रतिस्पर्धा करने में असमर्थता: स्वचालन, AI एवं रोबोटिक्स में निवेश की कमी के कारण, भारत सेमीकंडक्टर, एयरोस्पेस तथा इलेक्ट्रिक वाहनों जैसे उच्च मूल्य वाले विनिर्माण क्षेत्रों में पिछड़ गया है।
    • उदाहरण के लिए: टेस्ला एवं सैमसंग ने बेहतर तकनीकी क्षमताओं के कारण विनिर्माण के लिए वियतनाम तथा चीन को चुना, जबकि भारत में कार्यबल बहुत अधिक है।
  • घरेलू माँग में कमी: कम वेतन के कारण क्रय शक्ति कमजोर होती है, औद्योगिक वस्तुओं एवं उपभोक्ता उत्पादों की माँग सीमित होती है, जिससे घरेलू आर्थिक विस्तार पर रोक लगती है।
    • उदाहरण के लिए: भारत का ऑटोमोबाइल क्षेत्र चीन की तुलना में कमज़ोर प्रदर्शन करता है, जहाँ बढ़ती मज़दूरी ने वाहनों की मज़बूत घरेलू माँग को बढ़ावा दिया, जिससे उद्योग की वृद्धि को समर्थन मिला।
  • दीर्घकालिक वृद्धि की तुलना में अल्पकालिक लाभ: भारतीय फ़र्म कम मज़दूरी के ज़रिए अल्पकालिक लाभ को अधिकतम करती हैं, लेकिन दक्षता में सुधार के लिए निवेश करने में विफल रहती हैं, जिससे वे वैश्विक व्यवधानों एवं प्रतिस्पर्धा के प्रति कमज़ोर हो जाती हैं।
    • उदाहरण के लिए: भारत के कपड़ा निर्यात में गिरावट आई क्योंकि पश्चिमी खरीदारों ने तुर्की एवं बांग्लादेश जैसे देशों में सतत तथा स्वचालित कारखानों को प्राथमिकता दी, जिन्होंने आधुनिक उत्पादन तकनीकों में निवेश किया।

भारत के विनिर्माण क्षेत्र को मजबूत करने के लिए आगे की राह

  • स्वचालन एवं AI को अपनाना: स्वचालन, AI एवं रोबोटिक्स को प्रोत्साहित करने से कार्यकुशलता बढ़ सकती है तथा श्रम निर्भरता कम हो सकती है।
    • उदाहरण के लिए: चीन की मेड इन चाइना वर्ष 2025 नीति ने फ़ॉक्सकॉन जैसी फर्मों को स्वचालन के साथ आगे बढ़ने में मदद की।
  • छोटे उद्यमों को औपचारिक बनाना: वित्तीय सहायता, आसान ऋण एवं कर प्रोत्साहन छोटी फर्मों को आधुनिक बनाने तथा आपूर्ति श्रृंखलाओं में एकीकृत करने में मदद कर सकते हैं।
    • उदाहरण के लिए: जापान का कीरेत्सु मॉडल छोटे आपूर्तिकर्ताओं को टोयोटा जैसी कंपनियों से जोड़ता है, जिससे स्थिरता एवं उन्नयन सुनिश्चित होता है।
  • कार्यबल को अपस्किल करना: व्यावसायिक प्रशिक्षण, STEM शिक्षा एवं इंटर्नशिप का विस्तार करके एक उच्च तकनीक वाला कार्यबल बनाया जा सकता है।
    • उदाहरण के लिए: NEP 2020 व्यावहारिक शिक्षा एवं छात्र रोजगार क्षमता को बढ़ाने के लिए प्रशिक्षुता तथा उद्योग-अकादमिक साझेदारी पर जोर देते हुए विशेषज्ञ सहयोग के माध्यम से पाठ्यक्रम को उद्योग की जरूरतों के साथ जोड़ता है।
  • अनुसंधान एवं विकास तथा नवाचार को बढ़ावा देना: सार्वजनिक-निजी अनुसंधान एवं विकास निवेश में वृद्धि से स्वदेशी नवाचार को बढ़ावा मिल सकता है तथा आयात निर्भरता कम हो सकती है। 
    • उदाहरण के लिए: दक्षिण कोरिया सकल घरेलू उत्पाद का 4.5% अनुसंधान एवं विकास में निवेश करता है, जिससे सैमसंग तथा हुंडई जैसी कंपनियाँ वैश्विक स्तर पर अग्रणी बन सकती हैं। 
  • श्रम सुधार एवं सामाजिक सुरक्षा: संतुलित श्रम कानून उत्पादकता बढ़ा सकते हैं एवं वैश्विक निवेशकों को आकर्षित कर सकते हैं। 
    • उदाहरण के लिए: वियतनाम के श्रम सुधारों ने कर्मचारी-नियोक्ता संबंधों में सुधार करके नाइकी एवं सैमसंग जैसी कंपनियों को आकर्षित किया।

भारत के विनिर्माण क्षेत्र को सशक्त बनाने के लिए श्रम-प्रधान से प्रौद्योगिकी-संचालित विकास की ओर बदलाव की आवश्यकता है। अनुसंधान एवं विकास, कौशल विकास एवं स्वचालन में निवेश से उत्पादकता में वृद्धि हो सकती है, जबकि सस्ते श्रम पर निर्भरता कम हो सकती है। सार्वजनिक-निजी भागीदारी तथा नीतिगत प्रोत्साहनों को नवाचार को बढ़ावा देना चाहिए, जिससे वैश्विक प्रतिस्पर्धा सुनिश्चित हो सके। एक मजबूत, तकनीक-एकीकृत पारिस्थितिकी तंत्र भारत को उन्नत विनिर्माण में अग्रणी के रूप में स्थापित करेगा, जिससे दीर्घकालिक आर्थिक लचीलापन सुनिश्चित होगा।

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