Q. संवैधानिक आदेशों और कानूनी निषेधों के बावजूद भारत में मैनुअल स्कैवेंजिंग की जारी प्रथा की आलोचनात्मक जाँच कीजिए। मैनुअल स्कैवेंजर्स के रोजगार और उनके पुनर्वास अधिनियम, 2013 जैसे कानूनों को लागू करने में क्या चुनौतियाँ हैं? (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • भारत में मैनुअल स्कैवेंजिंग की प्रथा के लिए संवैधानिक आदेशों और कानूनी निषेधों पर प्रकाश डालिये।
  • संवैधानिक आदेशों और कानूनी निषेधों के बावजूद भारत में हाथ से मैला ढोने की प्रथा जारी रहने का परीक्षण कीजिए।
  • मैनुअल स्कैवेंजर्स के रोजगार और उनके पुनर्वास अधिनियम, 2013 जैसे कानूनों को लागू करने में चुनौतियों का उल्लेख कीजिए।
  • आगे की राह लिखिये।

उत्तर

मैनुअल स्कैवेंजिंग, शुष्क शौचालयों और सीवरों से मानव मल को हाथ से साफ करने की प्रथा, मैनुअल स्कैवेंजर के रूप में रोजगार के निषेध और उनके पुनर्वास अधिनियम, 2013 के तहत प्रतिबंधित कर दी गई थी। हालाँकि, संसद में पेश किए गए सरकारी आंकड़ों के अनुसार  पिछले पांच वर्षों में सीवर की सफाई करते समय 377 श्रमिकों की मौत हो गई है, जो प्रवर्तन में लगातार खामियों को उजागर करता है।

भारत में मैनुअल स्कैवेंजिंग के लिए संवैधानिक आदेश और कानूनी निषेध

  • मौलिक अधिकारों का उल्लंघन: मैनुअल स्कैवेंजिंग अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) और अनुच्छेद 17 (अस्पृश्यता का उन्मूलन) का उल्लंघन है, जो सभी नागरिकों के लिए सम्मान और समानता सुनिश्चित करता है।
    • उदाहरण के लिए: सफाई कर्मचारी आंदोलन बनाम भारत संघ (2014) वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने राज्यों को मैनुअल स्कैवेंजिंग पर रोक लगाने और प्रभावित श्रमिकों के पुनर्वास को सुनिश्चित करने का निर्देश दिया।
  • 1993 से कानूनी प्रतिषेध: मैनुअल स्कैवेंजरों का रोजगार और शुष्क शौचालयों का निर्माण (प्रतिषेध) अधिनियम, 1993 मैनुअल स्कैवेंजिंग और शुष्क शौचालयों पर प्रतिबंध लगाने वाला पहला कानून था।
    • उदाहरण के लिए: अधिनियम ने स्थानीय प्राधिकारियों और व्यक्तियों के लिए अस्वास्थ्यकर शौचालयों का निर्माण करना अवैध बना दिया, फिर भी हजारों शौचालय अभी भी मौजूद हैं, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में।
  • 2013 में मजबूत ढाँचा: मैनुअल स्कैवेंजर के रूप में रोजगार का निषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013 मैनुअल स्कैवेंजिंग को पांच साल तक के कारावास के साथ अपराध बनाता है।
    • उदाहरण के लिए: इस कानून के बावजूद, सीवर में मौतें जारी हैं, यहां तक कि सुरक्षा उपकरणों की कमी के कारण श्रमिकों की मौत होने पर भी कोई सजा नहीं होती है, जैसा कि दिल्ली के 2024 के सीवर मौत मामले में देखा गया है।
  • सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश: डॉ. बलराम सिंह बनाम भारत संघ (2024) वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने छह प्रमुख महानगरीय शहरों में मैनुअल सीवर सफाई पर प्रतिबंध लगा दिया और राज्यों को कार्रवाई रिपोर्ट दाखिल करने का आदेश दिया।
    • उदाहरण के लिए: न्यायालय ने दिल्ली, मुंबई, चेन्नई और अन्य स्थानों पर प्राधिकारियों को इस प्रथा को समाप्त करने का निर्देश दिया, लेकिन इसका क्रियान्वयन अपर्याप्त रहा।
  • मुआवजा और पुनर्वास: 2014 के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले में सीवर में हुई प्रत्येक मौत के लिए 10 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया गया था, लेकिन प्रशासनिक बाधाओं के कारण कई परिवारों को कोई सहायता नहीं मिल पाती है।

मैनुअल स्कैवेंजिंग की निरंतर प्रथा के पीछे कारण

  • कानून में खामियाँ: PEMSR अधिनियम ‘सुरक्षात्मक उपकरण’ के साथ सफाई की अनुमति देता है लेकिन श्रमिकों को अपर्याप्त उपकरण मिलते हैं, जिससे नियोक्ता उत्तरदायित्व से बच निकलते हैं।
  • सख्त प्रवर्तन का अभाव: वर्ष 1993-2020 के बीच 1013 मौतों के बावजूद शून्य दोषसिद्धि हुई, क्योंकि मामले अक्सर आकस्मिक मौतों के रूप में दर्ज किए जाते हैं । 
    • उदाहरण के लिए: केवल 465 FIR दर्ज की गईं, और उनमें से अधिकांश सख्त प्रावधानों को लागू करने के बजाय धारा 304 A (लापरवाही से मौत) के तहत दर्ज की गईं ।
  • जाति-आधारित शोषण: यह प्रथा जातिगत उत्पीड़न से गहराई से जुड़ी हुई है, जो सामाजिक भेदभाव के कारण हाशिए पर स्थित समुदायों को इन नौकरियों में जाने के लिए मजबूर करती है।
    • उदाहरण के लिए: संसद में पेश सरकारी आंकड़ों के अनुसार, शहरी सीवरों, सेप्टिक टैंकों की सफाई करने वाले 92% कर्मचारी SC, ST, OBC समूहों से हैं।
  • प्रशासनिक उदासीनता: कई स्थानीय प्राधिकारी सीवर सफाई के लिए अनौपचारिक रूप से श्रमिकों को काम पर रखते हैं, तथा मशीनी सफाई जैसे तकनीकी विकल्पों की अनदेखी करते हैं।
  • पुनर्वास के खराब प्रयास: मैनुअल स्कैवेंजरों के लिए पुनर्वास योजनाएँ कौशल प्रशिक्षण और वैकल्पिक नौकरी के अवसरों की कमी के कारण विफल हो जाती हैं।

मैनुअल स्कैवेंजरों के रोजगार और उनके पुनर्वास अधिनियम, 2013 को लागू करना

  • श्रमिकों में सीमित जागरूकता: कई मैनुअल स्कैवेंजर अपने कानूनी अधिकारों से अनभिज्ञ हैं जिसके कारण उनका बिना किसी प्रतिरोध के शोषण जारी रहता है।
    • उदाहरण के लिए: राजस्थान में वर्ष 2021 में किए गए एक सर्वेक्षण में पाया गया कि 70% मैनुअल स्कैवेंजरों को अधिनियम के तहत पुनर्वास कार्यक्रमों की कोई जानकारी नहीं थी।
  • पुनर्वास में नौकरशाही विलंब: मुआवजा और वैकल्पिक रोजगार योजनाएं भ्रष्टाचार और अकुशलता से ग्रस्त हैं, जिससे परिवार असहाय हो जाते हैं।
  • प्रौद्योगिकी का व्यापक रूप से उपयोग नहीं किया जाना: मशीनीकृत विकल्पों के बावजूद, नगर निकाय धन या प्रशिक्षित कर्मियों की कमी का हवाला देते हुए मैनुअल स्कैवेंजरों को काम पर रखना जारी रखते हैं।

आगे की राह 

  • सख्त कानूनी प्रवर्तन: मैनुअल स्कैवेंजिंग में लगे नियोक्ताओं के लिए PEMSR अधिनियम के तहत अनिवार्य सजा सुनिश्चित करनी चाहिए, तथा उल्लंघन के लिए फास्ट-ट्रैक अदालतें स्थापित करनी चाहिए।
  • प्रौद्योगिकी का व्यापक उपयोग: सभी शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में मशीनीकृत सीवर सफाई को अनिवार्य बनाया जाए  तथा इसका पालन न करने पर दंड का प्रावधान किया जाए।
    • उदाहरण के लिए: मुंबई (वर्ष 2022) में, रोबोटिक सीवर क्लीनर पेश किए गए जिससे खतरनाक स्थितियों में मैनुअल हस्तक्षेप काफी कम हो गया।
  • व्यापक पुनर्वास कार्यक्रम: कौशल प्रशिक्षण, वित्तीय सहायता और वैकल्पिक नौकरियों की गारंटी प्रदान करनी चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि मैला ढोने वाले लोग खतरनाक काम पर वापस न लौटें।
  • सामुदायिक जागरूकता और सामाजिक समर्थन: श्रमिकों को उनके अधिकारों के बारे में सूचित करने और इस प्रथा को सामाजिक रूप से अस्वीकार करने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए देशव्यापी जागरूकता अभियान चलाना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: दलित अधिकार कार्यकर्ताओं द्वारा “स्टॉप किलिंग अस” अभियान ( 2021) ने राज्य सरकारों पर सख्त कार्रवाई करने का दबाव डाला।
  • मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति और जवाबदेही: स्थानीय निकायों और ठेकेदारों को सीधे तौर पर जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए और नगरपालिका के वित्तपोषण को मैनुअल स्कैवेंजिंग कानूनों के अनुपालन से जोड़ा जाना चाहिए।

मैला ढोने की प्रथा को खत्म करने के लिए कानूनी अनिवार्यताओं से कहीं अधिक की जरूरत है – इसके लिए मज़बूत प्रवर्तन, सामाजिक सशक्तिकरण और तकनीकी हस्तक्षेप की जरूरत है। जवाबदेही तंत्र को मजबूत करना, पुनर्वास प्रयासों को बढ़ाना और कौशल विकास के ज़रिए गरिमा को बढ़ावा देना समावेशी, जाति-मुक्त भविष्य का मार्ग प्रशस्त कर सकता है, जिससे न्याय संवैधानिक आदर्शों के साथ संरेखित हो सके।

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