Q. राजनीतिक दलों में आंतरिक लोकतंत्र का अभाव भारत में लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कमजोर करता है। राजनीतिक दलों में आंतरिक लोकतंत्र सुनिश्चित करने में चुनौतियों का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिए तथा उन्हें अधिक पारदर्शी और सहभागी बनाने के उपाय भी सुझाएँ। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • चर्चा कीजिए कि राजनीतिक दलों के भीतर आंतरिक लोकतंत्र का अभाव, भारत में लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कैसे कमजोर करता है।
  • राजनीतिक दलों में आंतरिक लोकतंत्र सुनिश्चित करने में आने वाली चुनौतियों का विश्लेषण कीजिए।
  • इन्हें अधिक पारदर्शी एवं सहभागी बनाने के उपाय सुझाइये।

उत्तर

सहभागितापूर्ण प्रकृति सुनिश्चित करने के लिए राजनीतिक दलों के भीतर आंतरिक लोकतंत्र आवश्यक है। आंतरिक लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की कमी, पारदर्शिता, जवाबदेही और व्यवस्था में नागरिकों के विश्वास को कम करती है। भारतीय चुनाव आयोग और एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) जैसी संस्थाओं की रिपोर्ट आंतरिक चुनावों की चिंताजनक कमी को उजागर करती है, जिससे पार्टियों के भीतर केंद्रीकृत शक्ति का निर्माण होता है, जो लोकतांत्रिक प्रथाओं को बाधित करता है।

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राजनीतिक दलों में आंतरिक लोकतंत्र का अभाव, भारत में लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कमजोर करता है

  • केंद्रीकृत शक्ति: आंतरिक लोकतंत्र यह सुनिश्चित करता है कि नेतृत्व जवाबदेह हो, परंतु परिवार संचालित पार्टियां सत्ता को केंद्रित कर लेती हैं, जिससे नए नेतृत्व का मार्ग अवरुद्ध हो जाता है।
  • भाई-भतीजावाद और पक्षपात: आंतरिक चुनावों का अभाव, पक्षपात को बढ़ावा देता है और भ्रष्टाचार व अयोग्य नेतृत्व को जन्म देता है।
  • जवाबदेही में कमी: पारदर्शी निर्णय प्रक्रिया के बिना, नेता जवाबदेह नहीं होते, जिससे शासन अप्रभावी हो जाता है।
  • पार्टियों का विखंडन: वैचारिक स्पष्टता और आंतरिक एकता की कमी के परिणामस्वरूप विभाजन होता है, जिससे पार्टी की नींव कमजोर होती है।
  • जनता का अविश्वास: जब पार्टियाँ लोकतांत्रिक ढंग से कार्य नहीं करतीं हैं, तो राजनीतिक व्यवस्था पर नागरिकों का भरोसा खत्म हो जाता है, जिससे मतदान प्रतिशत प्रभावित होता है।

राजनीतिक दलों में आंतरिक लोकतंत्र सुनिश्चित करने में चुनौतियों का विश्लेषण 

  • वंशवादी राजनीति: परिवार-केंद्रित नेतृत्व खुले चुनावों और विविध सदस्यों की भागीदारी को रोकता है, जिससे नेतृत्व प्रतिस्पर्धा कम हो जाती है। 
    • उदाहरण के लिए: DMK में उत्तराधिकार का संघर्ष, अक्सर नए नेतृत्वकर्ताओं को उभरने से रोकता है, क्योंकि परिवार के सदस्य ही पार्टी के महत्त्वपूर्ण पदों पर प्रभावी रहते हैं।
  • केंद्रीकृत वित्तीय नियंत्रण: परिवार-प्रधान पार्टियाँ पार्टी के फंड को नियंत्रित करती हैं, जिससे वित्तीय पारदर्शिता और जवाबदेही सीमित हो जाती है। 
    • उदाहरण के लिए: TMC की केंद्रीकृत वित्तीय संरचना, पार्टी कार्यकर्ताओं को स्वतंत्र रूप से धन जुटाने से रोकती है, तथा निर्णय लेने का कार्य कुछ लोगों के हाथों में केंद्रित कर देती है।
  • पार्टी चुनाव विनियमनों का अभाव: अपर्याप्त कानूनी ढाँचा, राजनीतिक दलों को अनिवार्य आंतरिक चुनावों के बिना कार्य करने की अनुमति देता है, जिससे सुधार मुश्किल हो जाता है। 
    • उदाहरण के लिए: सुधारों के बावजूद, CPI (M) में नियमित नेतृत्व चुनावों को अनिवार्य करने वाले कानूनी ढाँचे की कमी के कारण गैरलोकतांत्रिक आंतरिक नियुक्तियाँ की जा रही हैं ।
  • परिवर्तन के प्रति आंतरिक प्रतिरोध: सुस्थापित नेता और परिवार के सदस्य, नियंत्रण खोने के डर से सुधारों का विरोध करते हैं।
    • उदाहरण के लिए: चुनावी सुधारों के प्रति NCP का आंतरिक प्रतिरोध अक्सर युवा सदस्यों को नेतृत्व की भूमिकाएँ संभालने से रोकता है, जिससे वंशवादी नियंत्रण बरकरार रहता है।
  • कम जन भागीदारी: मतदाताओं की भावहीनता और पार्टी की गतिशीलता के बारे में जागरूकता की कमी, पार्टियों पर आंतरिक लोकतंत्रीकरण के दबाव को कम करती है। 
    • उदाहरण के लिए: बिहार में, स्थानीय चुनावों में मतदाताओं की भागीदारी कम रहती है, क्योंकि कई लोग पार्टी नेतृत्व को योग्यता के बजाय पारिवारिक संबंधों से तय हुआ मानते हैं।

उन्हें अधिक पारदर्शी और सहभागी बनाने के उपाय सुझाएँ

  • अनिवार्य आंतरिक चुनाव: लोकतांत्रिक नेतृत्व चयन सुनिश्चित करने के लिए राजनीतिक दलों में नियमित आंतरिक चुनाव की आवश्यकता वाले कानूनी अधिदेश लागू करना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: कांग्रेस पार्टी को उभरते नेताओं के लिए रास्ते खोलने तथा वंशवादी नियंत्रण को कम करने हेतु नियमित नेतृत्व चुनाव लागू करना चाहिए।
  • वित्तीय पारदर्शिता: राजनीतिक दलों को पारदर्शिता को बढ़ावा देने के लिए वार्षिक वित्तीय रिपोर्ट प्रकाशित करनी चाहिए और वित्तपोषण के सभी स्रोतों का खुलासा करना चाहिए।
  • सत्ता का विकेंद्रीकरण: राज्य और जिला स्तर के नेताओं को महत्त्वपूर्ण निर्णय लेने के लिए सशक्त बनाना, केंद्रीकरण को कम करना और व्यापक भागीदारी सुनिश्चित करना चाहिए।
  • पार्टियों के लिए एक स्वतंत्र चुनाव आयोग का गठन: राजनीतिक दलों के भीतर चुनावों की निगरानी के लिए एक स्वतंत्र निकाय की स्थापना करना चाहिए, ताकि निष्पक्षता सुनिश्चित हो सके। 
    • उदाहरण के लिए: भारत का निर्वाचन आयोग अपनी भूमिका का विस्तार करके दलीय चुनावों को भी इसमें शामिल कर सकता है, जिससे आंतरिक हेरफेर में कमी आएगी और लोकतांत्रिक मूल्यों को बढ़ावा मिलेगा।
  • निर्णय लेने में जनता की भागीदारी: पार्टी के सदस्यों और जनता को ऑनलाइन प्लेटफॉर्म या सार्वजनिक परामर्श के माध्यम से महत्त्वपूर्ण निर्णयों में भाग लेने में सक्षम बनाना चाहिये।

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आंतरिक लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए, नियमित आंतरिक चुनाव और पार्टी फंडिंग में पारदर्शिता की आवश्यकता वाले कानूनों को लागू करना महत्त्वपूर्ण है। पार्टी की निर्णय लेने की प्रक्रियाओं का सार्वजनिक खुलासा, राजनीतिक दलों में RTI अधिनियम को लागू करना और चुनावी सुधारों को बढ़ाना जैसे उपाय राजनीतिक दलों को लोकतांत्रिक आदर्शों के साथ संरेखित करते हुए अधिक समावेशी और जवाबदेह बना सकते हैं। इस मामले में चुनाव आयोग का मध्यक्षेप महत्त्वपूर्ण होगा।

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