Q. चर्चा कीजिए कि क्रिटिकल मिनरल पर चीन का रणनीतिक नियंत्रण वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं को कैसे प्रभावित करता है और अपनी क्रिटिकल मिनरल विकास रणनीति के माध्यम से भारत की नीति प्रतिक्रिया का विश्लेषण कीजिए। घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय दोनों आयामों को संबोधित करते हुए इस क्षेत्र में भारत की स्थिति को मजबूत करने के उपाय सुझाएँ। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • चर्चा कीजिए कि महत्त्वपूर्ण खनिजों पर चीन का रणनीतिक नियंत्रण, वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं को किस प्रकार प्रभावित करता है।
  • महत्त्वपूर्ण खनिज विकास रणनीति के माध्यम से भारत की नीति प्रतिक्रिया का विश्लेषण कीजिए।
  • घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दोनों आयामों पर ध्यान देते हुए इस क्षेत्र में भारत की स्थिति को मजबूत करने के उपाय सुझाइए।

उत्तर

चीन वैश्विक रेयर अर्थ उत्पादन के 60% से अधिक, महत्त्वपूर्ण खनिज उत्पादन के 60% और प्रसंस्करण क्षमता के 80% पर अपना प्रभुत्व रखता है, जो हरित प्रौद्योगिकियों और रक्षा क्षेत्रों के लिए प्रमुख हैं। IEA की वर्ष 2023 की रिपोर्ट,  इस प्रभुत्व को वैश्विक आपूर्ति शृंखला स्थिरता के लिए एक महत्त्वपूर्ण जोखिम के रूप में उजागर करती है। जवाब में, भारत की महत्त्वपूर्ण खनिज विकास रणनीति, 2023 बढ़ते भू-राजनीतिक तनावों के बीच सुभेद्यताओं को कम करने के लिए स्रोतों में विविधता लाने और खनिज आत्मनिर्भरता हासिल करने पर केंद्रित है।

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महत्त्वपूर्ण खनिजों पर चीन का रणनीतिक नियंत्रण: वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं पर प्रभाव

  • आपूर्ति पर एकाधिकार: चीन का महत्त्वपूर्ण खनिजों के खनन और शोधन पर प्रभुत्व स्थापित हो चुका है और उच्च तकनीक उद्योगों के लिए वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं को बाधित करने हेतु अपनी स्थिति का लाभ उठाता है। 
    • उदाहरण के लिए: चीन, रेयर अर्थ खनिजों के 60% से अधिक वैश्विक उत्पादन को नियंत्रित करता है, जो अर्द्धचालक और नवीकरणीय ऊर्जा के लिए महत्त्वपूर्ण है।
  • आर्थिक/निर्यात हथियारीकरण: महत्त्वपूर्ण खनिजों पर रणनीतिक निर्यात प्रतिबंध, उन्नत प्रौद्योगिकियों हेतु इन संसाधनों पर निर्भर देशों के लिए आपूर्ति शृंखला सुभेद्यताएँ उत्पन्न करते हैं। 
    • उदाहरण के लिए: वर्ष 2023 में, चीन ने गैलियम और जर्मेनियम निर्यात को प्रतिबंधित कर दिया, जिससे वैश्विक अर्द्धचालक और इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण प्रभावित हुआ।
  • तकनीकी निर्भरता: कच्चे माल के लिए चीन पर निर्भर देशों को देरी और कीमतों में वृद्धि का सामना करना पड़ता है, जिससे बैटरी और एयरोस्पेस जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में नवाचार धीमा हो जाता है। 
    • उदाहरण के लिए: वर्ष 2010 में रेयर अर्थ तत्त्वों के निर्यात पर चीन के प्रतिबंध के कारण अमेरिका को रक्षा प्रौद्योगिकियों के लिए बढ़ी हुई लागत का सामना करना पड़ा।
  • आपूर्ति शृंखला में व्यवधान: वैश्विक विनिर्माण उद्योगों को आपूर्तिकर्ताओं में विविधता लाने या परिचालन को स्थानांतरित करने के लिए मजबूर होना पड़ता है, जिससे लागत बढ़ती है और दक्षता कम होती है। 
    • उदाहरण के लिए: यूरोपीय संघ ने चीनी दुर्लभ मृदा तत्त्वों पर निर्भरता कम करने के लिए यूरोपियन क्रिटिकल रॉ मैटेरियल्स एक्ट की शुरुआत की।
  • धीमी गति से हरित परिवर्तन: सौर पैनल, पवन टरबाइन और इलेक्ट्रिक वाहनों जैसी नवीकरणीय ऊर्जा प्रौद्योगिकियों के लिए, महत्त्वपूर्ण खनिज आवश्यक हैं। निर्यात प्रतिबंध, नवीकरणीय ऊर्जा आपूर्ति शृंखलाओं में अड़चनें उत्पन्न करके स्वच्छ ऊर्जा के लिए होने वाले वैश्विक परिवर्तन में देरी करते हैं।

महत्त्वपूर्ण खनिज विकास रणनीति के माध्यम से भारत की नीतिगत प्रतिक्रिया

  • महत्त्वपूर्ण खनिजों की पहचान: भारत ने अन्वेषण और उत्पादन प्रयासों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए आवश्यक 30 महत्त्वपूर्ण खनिजों को वर्गीकृत किया।
    • उदाहरण के लिए: लीथियम और कोबाल्ट को घरेलू खनन और KABIL के माध्यम से विदेश में अधिग्रहण के लिए प्राथमिकता दी गई ।
  • नियामक सुधार: खान और खनिज (विकास और विनियमन) संशोधन अधिनियम, 2023 ने दुर्लभ मृदा तत्त्वों पर प्रतिबंधात्मक वर्गीकरण को हटा दिया, जिससे इस क्षेत्र में निजी और विदेशी निवेश की सुविधा मिल गई।
    • उदाहरण के लिए: अन्वेषण लाइसेंस शुरू किए गए, जिससे जम्मू और कश्मीर में लीथियम भंडारों की खोज करने की अनुमति मिल गई।
  • KABIL की स्थापना: सरकार ने विदेशी निवेश को सुरक्षित करने और महत्त्वपूर्ण खनिजों की स्थिर आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए खनिज विदेश इंडिया लिमिटेड की स्थापना की।
    • उदाहरण के लिए: KABIL ने लीथियम और कोबाल्ट की खोज के लिए अर्जेंटीना और ऑस्ट्रेलिया के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए।
  • अन्वेषण प्रोत्साहन: अन्वेषण व्यय के लिए 50% प्रतिपूर्ति नीति का उद्देश्य प्रारंभिक चरण के संचालन में निजी कंपनियों को आकर्षित करना है। 
    • उदाहरण के लिए: NMDC ने खनन के बाद वित्तीय प्रतिपूर्ति के आश्वासन के साथ दुर्लभ मृदा तत्त्वों की खोज शुरू की।
  • प्रौद्योगिकी साझेदारी पर ध्यान केंद्रित करना: तकनीकी विशेषज्ञता और संसाधन-साझाकरण के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सहयोग करने के प्रयास इस क्षेत्र को मजबूत करने के लिए महत्त्वपूर्ण हैं। 
    • उदाहरण के लिए: भारत ने वर्ष 2022 में भारत-ऑस्ट्रेलिया महत्त्वपूर्ण खनिज निवेश साझेदारी के तहत ऑस्ट्रेलिया के साथ साझेदारी की ।

महत्त्वपूर्ण खनिज विकास में भारत के समक्ष आने वाली चुनौतियाँ

  • अपर्याप्त भू-वैज्ञानिक डेटा: उन्नत भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षणों की कमी से संसाधनों का उचित वर्गीकरण नहीं हो पाता है, जिससे संभावित खनन ब्लॉक निवेशकों के लिए जोखिमपूर्ण हो जाते हैं और बोलीदाताओं की रुचि कम हो जाती है।
  • सीमित निजी और विदेशी भागीदारी: सुधारों के बावजूद, अस्पष्ट नीतियों और भारत के संसाधन वर्गीकरण व अन्वेषण ढाँचे से संबंधित जोखिमों के कारण विदेशी और निजी फर्म निवेश करने से बचते हैं। 
    • उदाहरण के लिए: वर्ष 2023 के संशोधनों के बाद से, लीथियम और दुर्लभ मृदा तत्त्वों के लिए बहुत कम अन्वेषण लाइसेंस जारी किए गए हैं। अधिकांश लाइसेंस सार्वजनिक क्षेत्र की फर्मों को ही जारी किए गए हैं।
  • नीति कार्यान्वयन में देरी: हालाँकि सुधार शुरू किए गए हैं, लेकिन सुस्त कार्यान्वयन और प्रशासनिक बाधाओं ने महत्त्वपूर्ण खनिज अन्वेषण और उत्पादन में प्रगति को बाधित किया है। 
    • उदाहरण के लिए: जम्मू और कश्मीर के रियासी जिले में वर्ष 2023 में पाए जाने वाले लीथियम भंडार, उद्योग की भागीदारी और परिचालन स्पष्टता की कमी के कारण अप्रयुक्त रह गए हैं।
  • महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों के लिए आयात पर निर्भरता: भारत, अन्वेषण और निष्कर्षण हेतु आवश्यक उन्नत प्रौद्योगिकियों के आयात पर निर्भर है, जिससे महत्त्वपूर्ण खनिजों को संसाधित करने की घरेलू क्षमता सीमित हो जाती है। 
    • उदाहरण के लिए: लीथियम-आयन बैटरी निर्माण के लिए प्रौद्योगिकी की कमी ने भारत को चीन और अन्य देशों से होने वाले आयात पर निर्भर रखा है।

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महत्त्वपूर्ण खनिज क्षेत्र में भारत की स्थिति मजबूत करने के उपाय

  • अन्वेषण तकनीकों का आधुनिकीकरण: अनिश्चितता को कम करने और महत्त्वपूर्ण खनिजों के अन्वेषण में निजी क्षेत्र की भागीदारी को आकर्षित करने के लिए उन्नत भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षणों में निवेश करना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: उपग्रह आधारित मिनरल मैपिंग कार्यक्रम, संभावित संसाधन भंडारों की पहचान की सटीकता को बढ़ा सकते हैं।
  • अग्रिम वित्तीय सहायता प्रदान करना: अन्वेषण चरण के दौरान प्रत्यक्ष वित्तीय सहायता, उच्च प्रारंभिक लागतों की भरपाई कर सकती है और निजी व विदेशी निवेश को प्रोत्साहित कर सकती है। 
    • उदाहरण के लिए: सेमीकंडक्टर विनिर्माण के समान, अग्रिम पूँजी सहायता लीथियम और ग्रेफाइट खनन परियोजनाओं के जोखिम को कम कर सकती है।
  • घरेलू उत्पादन क्षमता को बढ़ावा देना: मूल्य संवर्द्धन और तैयार माल के उत्पादन के लिए आयात पर निर्भरता कम करने के लिए प्रसंस्करण और शोधन इकाइयाँ स्थापित करनी चाहिए। 
    • उदाहरण के लिए: घरेलू और आयातित लीथियम को संसाधित करने के लिए गुजरात में एक लीथियम रिफाइनरी की योजना बनाई जा रही है।
  • अंतरराष्ट्रीय सहयोग का विस्तार: खनिज आपूर्ति को बनाए रखने और आपूर्ति शृंखला व्यवधानों के जोखिम को कम करने के लिए संसाधन संपन्न देशों के साथ द्विपक्षीय समझौतों को मजबूत करना चाहिए। 
    • उदाहरण के लिए: भारत-चिली मुक्त व्यापार समझौते में लीथियम पर ध्यान केंद्रित करते हुए महत्त्वपूर्ण खनिजों के व्यापार के लिए प्रावधान किए गए हैं।
  • रणनीतिक भंडार विकसित करना: आपूर्ति समस्याओं को कम करने और वैश्विक व्यवधानों के दौरान संसाधनों की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए महत्त्वपूर्ण खनिजों के भंडार का निर्माण करना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: दुर्लभ मृदा तत्त्वों और लीथियम जैसे महत्त्वपूर्ण खनिजों के लिए, भारत के रणनीतिक पेट्रोलियम रिजर्व मॉडल जैसे मॉडल को अपनाया जा सकता है।

चीन पर निर्भरता कम करने के लिए, भारत को घरेलू अन्वेषण सुनिश्चित करना चाहिए, वैश्विक साझेदारी (जैसे, ऑस्ट्रेलिया और जापान के साथ) को मजबूत करना चाहिए और महत्त्वपूर्ण खनिजों में निजी निवेश को प्रोत्साहित करना चाहिए। KABIL (2023) जैसी पहल और खनिज सोर्सिंग पर अंतरराष्ट्रीय मानदंडों का पालन भारत की वैश्विक स्थिति को मजबूत कर सकता है, साथ ही हरित और रक्षा प्रौद्योगिकियों के लिए आपूर्ति शृंखला लचीलापन का भी निर्माण कर सकता है।

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