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Q. भारत के स्वतंत्रता संग्राम के संदर्भ में भगत सिंह और महात्मा गांधी के वैचारिक दृष्टिकोण की तुलना करते हुए उनके बीच विचारों में अंतर को स्पष्ट कीजिए। अहिंसा, राजनीतिक सक्रियता और स्वतंत्र भारत के प्रति दोनों के दृष्टिकोण का विश्लेषण कीजिए। (250 शब्द, 15 अंक)

उत्तर:

दृष्टिकोण:

  • परिचय: भारत के स्वतंत्रता संग्राम में दोनों नेताओं के महत्व का उल्लेख करते हुए संदर्भ लिखिए।
  • मुख्य विषयवस्तु:
    • अहिंसामें गांधीजी के अटल विश्वास का उदाहरण देकर परिचय लिखिए।
    • प्रासंगिक घटना के साथ हिंसा और उसका समर्थन करने के संबंध में भगत सिंह के दृष्टिकोण का उल्लेख कीजिए।
    • गांधी के जन-केंद्रित दृष्टिकोण का विस्तार से वर्णन कीजिए और उनके किसी एक आंदोलन का उपयोग करके उदाहरण प्रस्तुत करें।
    • भगत सिंह की भूख हड़ताल का हवाला देते हुए उनके कट्टरपंथ और उनकी युवा संचालित रणनीतियों की व्याख्या कीजिए।
    • ग्राम स्वराजऔर खादी को बढ़ावा देने में गांधीजी के दृष्टिकोण को स्पष्ट कीजिए।
    • भगत सिंह के लेखन और मान्यताओं का संदर्भ देते हुए उनके आधुनिकतावादी और समाजवादी सिद्धांतों का वर्णन कीजिए।
  • निष्कर्ष: भारत की स्वतंत्रता संग्राम की कहानी की बहुलता और समृद्धि को स्वीकार करते हुए निष्कर्ष निकालें।

परिचय:

भगत सिंह और महात्मा गांधी दो सर्वश्रेष्ठ  नेता थे जिन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। दोनों के पास अद्वितीय वैचारिक दृष्टिकोण थे, जो लाखों लोगों को संगठित करने वाले तरीकों और दर्शन से लोगों का प्रतिनिधित्व करते थे। इन दोनों नायकों का अंतिम उद्देश्य भारत की स्वतंत्रता ही था किन्तु उनकी रणनीतियाँ, विश्वास और दृष्टिकोण एक दूसरे से बिलकुल अलग-अलग थे।

मुख्य विषयवस्तु:

अहिंसा के प्रति दृष्टिकोण:

  • महात्मा गांधी:
    • परिप्रेक्ष्य: गांधीजी दृढ़ता से अहिंसाया अपरिग्रह में विश्वास करते थे। उन्होंने जोर देकर कहा कि अहिंसा सिर्फ एक रणनीति नहीं बल्कि एक सिद्धांत है।
    • उदाहरण के लिए, उनके कई सत्याग्रह आंदोलन, जैसे दांडी मार्च और असहयोग आंदोलन, हिंसा का सहारा लिए बिना सविनय अवज्ञा के इर्द-गिर्द घूमते थे।
  • भगत सिंह:
    • परिप्रेक्ष्य: भगत सिंह ने अहिंसा के महत्व को स्वीकार किया लेकिन यह भी माना कि परिस्थितियों के कारण बड़े उद्देश्यों के लिए हिंसा की आवश्यकता हो सकती है।
    • उदाहरण के लिए, 1929 में असेंबली में बम की घटना प्रतीकात्मक थी। उनका इरादा किसी को नुकसान पहुंचाने का नहीं था, यह दमनकारी ब्रिटिश शासन के खिलाफ जोरदार प्रतिकार करने का एक तरीका था।

राजनीतिक सक्रियतावाद:

  • महात्मा गांधी:
    • परिप्रेक्ष्य: गांधीजी का दृष्टिकोण जन-केंद्रित था। वह आम लोगों को शामिल करने, खुद पर नियंत्रण और शक्ति की भावना पैदा करने में विश्वास करते थे। उनके आंदोलन आम तौर पर व्यापक आधार वाले थे और समाज के विभिन्न वर्गों को शामिल करने का प्रयास करते थे।
    • उदाहरण के लिए, खिलाफत आंदोलन में हिंदुओं और मुसलमानों को एक ही मंच पर एकजुट होते देखा गया, जो समावेशी राजनीतिक सक्रियता के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
  • भगत सिंह:
    • परिप्रेक्ष्य: भगत सिंह की राजनीतिक सक्रियता अधिक कट्टरपंथी थी और एक उत्साही युवा आंदोलन से जुड़ी थी। वह ब्रिटिश व्यवस्था को झटका देने के साथ अन्याय के प्रति सरकार का ध्यानाकर्षित करना चाहते थे ।
    • उदाहरण के लिए, जेल में उनकी भूख हड़ताल ने भारतीय कैदियों की दयनीय स्थिति और उनके यूरोपीय समकक्षों की तुलना में उनके साथ होने वाले भेदभाव का विरोध किया।

स्वतंत्र भारत का सपना:

  • महात्मा गांधी:
    • परिप्रेक्ष्य: गांधी ने ग्राम स्वराजया ग्राम गणराज्य की अवधारणा के आधार पर एक आत्मनिर्भर भारत की परिकल्पना की थी। उन्होंने सांप्रदायिक सद्भाव, सादगी और कुटीर उद्योगों के महत्व पर जोर दिया।
    • उदाहरण के लिए, खादी कातने पर उनका जोर न केवल आत्मनिर्भरता का प्रतीक था, बल्कि भारत के गांवों में निहित एक आर्थिक मॉडल का दृष्टिकोण भी था।
  • भगत सिंह:
    • परिप्रेक्ष्य: भगत सिंह की दृष्टि अधिक आधुनिकतावादी थी। वह समाजवादी सिद्धांतों से प्रेरित थे और एक ऐसे भारत की इच्छा रखते थे जहां उत्पादन के साधनों पर जनता का स्वामित्व हो और आर्थिक समानता सुनिश्चित हो।
    • उदाहरण के लिए, उनके लेखन, जैसे “मैं नास्तिक क्यों हूं”, उनके प्रगतिशील विचारों में अंतर्दृष्टि देते हैं, विज्ञान, तर्क और पुराने हठधर्मिता से प्रस्थान पर जोर देते हैं।

निष्कर्ष:

भगत सिंह और महात्मा गांधी, अपनी अलग विचारधाराओं के बावजूद, भारत के स्वतंत्रता संग्राम के दो स्तंभ बने हुए हैं। अहिंसा और जन लामबंदी पर गांधी के जोर और भगत सिंह के कट्टरपंथी दृष्टिकोण दोनों का ब्रिटिश राज को उखाड़ने पर गहरा प्रभाव पड़ा। उनकी विरासतें हमें सिखाती हैं कि एक सामान्य लक्ष्य की यात्रा के कई रास्ते हो सकते हैं। गौरतलब है कि कार्यप्रणाली में विरोधाभास होते हुए भी, दोनों नेता भारत के प्रति अपने अटूट प्रेम और इसकी स्वतंत्रता के प्रति अपनी अटूट प्रतिबद्धता में एकजुट थे।

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