Q. भारत में भ्रष्टाचार ,जीवन का एक तरीका बन गया है‌ और लोगों ने इसे अब स्वीकार सा कर लिया है ।" इस कथन के प्रकाश में, देश में भ्रष्टाचार के प्रति सामाजिक दृष्टिकोण पर चर्चा करें। (15 अंक, 250 शब्द)

उत्तर:

दृष्टिकोण:

  • भूमिका : यह स्वीकार करते हुए शुरुआत करें कि भारत में भ्रष्टाचार बहुत गहराई तक व्याप्त है, एवं  कई लोग इसे एक नियति के रूप में स्वीकार करते हैं।
  • मुख्य भाग :
    • भ्रष्टाचार को स्वीकार करने में योगदान देने वाले कारकों पर चर्चा करें, जैसे दैनिक जीवन में सामान्यीकरण, सांस्कृतिक सहिष्णुता, जवाबदेही की कमी, आर्थिक प्रभाव और राजनीतिक प्रभाव।
    • सार्वजनिक सेवाओं (रिश्वतखोरी), सार्वजनिक खरीद (घोटालों), एवं  व्यावहारिक प्रथाओं (पक्षपात ) से वास्तविक दुनिया के उदाहरण प्रदान करें।
  • निष्कर्ष: भ्रष्टाचार का समाधान  करने के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता पर बल देते   हुए, सामाजिक दृष्टिकोण को नया आकार देने, के साथ भ्रष्टाचार विरोधी कानूनों को लागू करने एवं पारदर्शिता को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित करते हुए निष्कर्ष निकालें।

 

भूमिका :

भारत में भ्रष्टाचार बहुत गहराई तक व्याप्त हो गया है,जहां  लोगों ने  इसे नियति के रूप में स्वीकार कर लिया है । भ्रष्टाचार के प्रति यह स्वीकृति दर्शाती है कि सामाजिक दृष्टिकोण एवं विचार भ्रष्ट आचरण को बनाये रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

मुख्य भाग :

सामाजिक परिप्रेक्ष्य और दृष्टिकोण

भ्रष्टाचार का संबंध केवल व्यक्तिगत कदाचार से नहीं है बल्कि यह सामाजिक मानदंडों और प्रथाओं से भी गहराई से जुड़ा हुआ है।

  • भ्रष्टाचार का सामान्यीकरण:भ्रष्टाचार को विभिन्न क्षेत्रों जैसे शैक्षणिक क्षेत्र, व्यवसाय, बैंकिंग, कानूनी प्रवर्तन, और सार्वजनिक सेवाओं में सामान्यीकृत किया गया हैलोग इसे प्रायः दैनिक जीवन का सामान्य हिस्सा या कार्य को करने के लिए एक आवश्यक बुराई के रूप में देखते हैं।।
  • सांस्कृतिक स्वीकृति:पारिवारिक दायित्व एवं पदानुक्रमित सामाजिक संरचना जैसे सांस्कृतिक कारक भ्रष्टाचार की सहनशीलता में योगदान करते हैं। व्यक्ति अपने सांस्कृतिक अथवा पारिवारिक संबंधों के आधार पर भ्रष्ट आचरण को उचित ठहरा सकते हैं, जिससे एक ऐसा चक्र बन जाएगा जहां भ्रष्टाचार सामाजिक रूप से स्वीकार्य हो जाएगा।
  • उत्तरदायित्व की कमी:भ्रष्टाचार के बने रहने के पीछे एक महत्वपूर्ण कारण जवाबदेही की कमी है। भ्रष्टाचार विरोधी कानूनों का अप्रभावी प्रवर्तन और वित्तीय पारदर्शिता के मुद्दे इस समस्या को बढ़ाते हैं, जिससे दोषमुक्ति की संस्कृति का निर्माण होता है।
  • आर्थिक प्रभाव:भ्रष्टाचार का पर्याप्त आर्थिक प्रभाव पड़ता है,जिससे व्यावसायिक सत्यनिष्ठा कमजोर होती है, फलस्वरूप नागरिकों के लिए लागत में वृद्धि होती है एवं  सरकारी नीतियों की प्रभावशीलता कम हो जाती है। यह जनता में निराशा का भाव उत्पन्न कर सकता है, जिससे यह मान्यता मजबूत होती है कि भ्रष्टाचार अपरिहार्य  है।
  • राजनीतिक प्रभाव:राजनीति और भ्रष्टाचार का अंतर्संबंध एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। राजनीतिक शक्ति व्यक्तियों को परिणाम भुगतने से बचा सकती है, इस धारणा को मजबूत कर सकती है कि भ्रष्टाचार से बचा नहीं जा सकता।

भ्रष्टाचार की सामाजिक स्वीकृति को स्पष्ट करने के लिए, नीचे कुछ उदाहरण दिए गए हैं जहां भ्रष्टाचार प्रचलित है:

  • सार्वजनिक सेवाएं:ड्राइविंग लाइसेंस या संपत्ति पंजीकरण जैसे दस्तावेज़ प्राप्त करने के लिए रिश्वत देना सामान्य है।
  • सार्वजनिक खरीद:2जी स्पेक्ट्रम मामले जैसे भ्रष्टाचार घोटाले व्यक्तिगत लाभ के लिए राजनीतिक शक्ति के दुरुपयोग को स्प्ष्ट करते हैं।
  • व्यावहारिक प्रथाएं: पक्षपात एवं भाई-भतीजावाद के रूप में भ्रष्टाचार निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा को प्रभावित करता है तथा योग्यता-आधारित प्रथाओं को कमजोर करता है।

निष्कर्ष:

भारत में भ्रष्टाचार का समाधान करने के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता है। इसमें सामाजिक दृष्टिकोण को नया आकार देना, भ्रष्टाचार विरोधी कानूनों को लागू करना और पारदर्शिता को बढ़ावा देना शामिल है। जन जागरूकता अभियान सामाजिक दृष्टिकोण को भ्रष्टाचार की स्वीकृति से दूर और अधिक नैतिक ढांचे की ओर स्थानांतरित करने में भी मदद कर सकते हैं। भ्रष्टाचार एक जटिल मुद्दा है और इसके समाधान के लिए सरकार, नागरिक समाज और व्यक्तियों के सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता होगी।

 

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