प्रश्न की मुख्य माँग
- भारत-जर्मनी साझेदारी के संबंध में भारत की विविध बहुध्रुवीय भागीदारी के सकारात्मक पहलुओं पर चर्चा कीजिए।
- इस भारतीय दृष्टिकोण के समक्ष आने वाली चुनौतियों का उल्लेख कीजिए।
- भारत के भविष्य के दृष्टिकोण के लिए आगे की राह लिखिए।
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उत्तर
बहुध्रुवीय विश्व में, भारत स्वायत्तता और प्रभाव बनाए रखने के लिए रणनीतिक विविधीकरण का प्रयास करता है। 25 वर्षों की भारत-जर्मनी साझेदारी रक्षा, प्रौद्योगिकी, व्यापार और स्थिरता में सहयोग के माध्यम से इस रणनीति का उदाहरण प्रस्तुत करती है। अन्य प्रमुख शक्तियों के साथ-साथ जर्मनी के साथ संबंधों को मजबूत करके, भारत एक प्रत्यास्थ विदेश नीति सुनिश्चित करता है।
भारत की विविध बहुध्रुवीय भागीदारी के सकारात्मक पहलू
- बढ़ी हुई सामरिक स्वायत्तता: अमेरिका और रूस के साथ-साथ जर्मनी के साथ संबंध बनाने से किसी एक शक्ति पर अत्यधिक निर्भरता से बचा जा सकता है।
- प्रौद्योगिकी और कौशल हस्तांतरण: जर्मनी के अनुसंधान संस्थानों के साथ साझेदारी से हरित हाइड्रोजन, रेल प्रणाली और विनिर्माण के क्षेत्र में भारत की क्षमता मजबूत होगी।
- उदाहरण: डॉयचे बान द्वारा दिल्ली-मेरठ रैपिड रेल का संचालन, जर्मन सिग्नलिंग विशेषज्ञता को भारतीय रेलवे तक ले आया।
- आर्थिक लचीलापन: जर्मनी के माध्यम से यूरोपीय बाजारों तक पहुँच, भारत को क्षेत्रीय मंदी और व्यापार व्यवधानों से बचाती है।
- उदाहरण: भारतीय ऑटो कंपोनेंट्स में जर्मन निवेश, भारतीय आपूर्तिकर्ताओं को यूरोपीय संघ मूल्य शृंखलाओं में एकीकृत करता है।
- पीपुल–टू–पीपुल गहन संपर्क: जर्मनी में छात्र विनिमय और व्यावसायिक नियुक्तियाँ, दीर्घकालिक सद्भावना और सांस्कृतिक समझ को बढ़ावा देती हैं।
- उदाहरण: जर्मनी में अध्ययनरत 50,000 से अधिक भारतीय छात्र कौशल और नेटवर्क के साथ स्वदेश लौटते हैं, जिससे भारत-जर्मनी व्यापार को बढ़ावा मिलता है।
- हरित विकास की गति: 10 बिलियन यूरो की GSDP साझेदारी नवीकरणीय परियोजनाओं को वित्तपोषित करती है, जिससे भारत स्वच्छ ऊर्जा के क्षेत्र में अग्रणी बन जाता है।
इस दृष्टिकोण की चुनौतियाँ
- जटिल कूटनीतिक संतुलन: जर्मनी, अमेरिका, रूस और चीन के साथ गहरे संबंधों को बनाए रखने में रणनीतिक अतिशयता और मिश्रित संकेतों का जोखिम है।
- उदाहरण: रूस से एक साथ सैन्य खरीद और नाटो-संबद्ध जर्मनी के साथ सहयोग को विरोधाभासी माना जा सकता है।
- प्रौद्योगिकी हस्तांतरण संबंधी बाधाएँ: दोहरे उपयोग वाली प्रौद्योगिकियों पर यूरोपीय प्रतिबंध, भारत की अत्याधुनिक रक्षा और एयरोस्पेस अनुसंधान एवं विकास तक पहुँच को सीमित कर सकते हैं।
- उदाहरण: कुछ एवियोनिक्स घटकों पर जर्मन निर्यात नियंत्रण, संयुक्त एयरोस्पेस परियोजनाओं को धीमा कर देता है।
- विनियामक और सांस्कृतिक बाधाएँ: व्यावसायिक विनियमों, श्रम कानूनों और कार्यस्थल संस्कृति में अंतर सुचारू संयुक्त उद्यम में बाधा डाल सकते हैं।
- उदाहरण: जटिल स्थानीय कर अनुपालन और परमिट प्रक्रियाओं के कारण जर्मन SME, भारत में विस्तार करने में डरते हैं।
- घरेलू क्षमता संबंधी बाधाएँ: हरित प्रौद्योगिकी और रेल परियोजनाओं को बढ़ाने के लिए तीव्र कौशल विकास और संस्थागत सुधार की आवश्यकता है, जो कूटनीतिक महत्त्वाकांक्षाओं को पीछे कर सकता है।
- आर्थिक निर्भरता जोखिम: प्रमुख क्षेत्रों में जर्मन निवेश पर भारी निर्भरता भारत को यूरोपीय संघ के आर्थिक चक्रों और नीतिगत बदलावों के प्रति संवेदनशील बना सकती है।
- उदाहरण: जर्मनी में विनिर्माण क्षेत्र में मंदी के कारण भारत के ऑटोमोटिव और मशीनरी उद्योगों में निवेश धीमा हो सकता है।
इस विविधीकरण को और अधिक गहन बनाने के लिए आगे की राह
- यूरोपीय संघ-भारत FTA को तेजी से आगे बढ़ाना: एशिया-प्रशांत और पश्चिमी संबंधों में संतुलन के लिए सेवाओं और प्रौद्योगिकी के लिए सुरक्षित बाजार पहुँच प्रदान करनी चाहिए।
- उदाहरण: भारतीय IT और जर्मन ऑटो घटकों पर टैरिफ कटौती को प्राथमिकता देनी चाहिए।
- रक्षा सह-उत्पादन का विस्तार: प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के तहत ड्रोन और नौसेना प्रणालियों के लिए संयुक्त विनिर्माण लाइनें स्थापित करना चाहिए।
- उदाहरण: KPMG के द्विपक्षीय अध्ययन से एयरोस्पेस में जर्मन-भारतीय संयुक्त उद्यमों का पता लगाया जा सकता है।
- हरित वित्तपोषण का स्तर बढ़ाना: नवीकरणीय ऊर्जा और सर्कुलर अर्थव्यवस्था में भारतीय स्टार्ट-अप को बढ़ावा देने के लिए GSDP का लाभ उठाना चाहिए।
- उदाहरण: भारत के हरित हाइड्रोजन कॉरिडोर के लिए रियायती ऋण की पेशकश करना।
- शिक्षा साझेदारी को गहन बनाना: भारत में इंडो-जर्मन डुअल डिग्री कार्यक्रमों और जर्मन भाषा शिक्षण को बढ़ाना चाहिए।
- उदाहरण: भारतीय विश्वविद्यालयों में 100 नए जर्मन-सांस्कृतिक केंद्र स्थापित करना।
- डिजिटल सहयोग को बढ़ावा देना: संयुक्त रूप से AI, सेमीकंडक्टर और साइबर सुरक्षा ढाँचे का विकास करना।
- उदाहरण: बंगलूरू में उभरती प्रौद्योगिकियों के लिए भारत-जर्मन उत्कृष्टता केंद्र का शुभारंभ।
भारत -जर्मन गठबंधन संबंधों को संतुलित करने और निर्भरता जोखिमों को कम करने की भारत की क्षमता को दर्शाता है। सुरक्षा, नवाचार और हरित विकास में संयुक्त पहल भारत की वैश्विक पहुँच और क्षमताओं का विस्तार करती है। इक्कीसवीं सदी में एक स्थिर, प्रभावशाली राष्ट्र के रूप में भारत के उदय के लिए ऐसी विविध साझेदारियाँ आवश्यक हैं।
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