Q. यद्यपि मसौदा बीज विधेयक, 2025 का उद्देश्य बीजों की गुणवत्ता सुनिश्चित करना और 'व्यापार में सुगमता' को बढ़ावा देना है, इसने बीज संप्रभुता और किसानों के अधिकारों के संबंध में गंभीर चिंताएँ उत्पन्न की हैं। भारत की कृषि आवश्यकताओं के संदर्भ में विधेयक के प्रावधानों का समालोचनात्मक विश्लेषण कीजिए। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • बीज की गुणवत्ता और ईज ऑफ डूइंग बिजनेस को बढ़ावा देना।
  • बीज संप्रभुता और किसानों के अधिकारों पर चिंताएँ।
  • दीर्घकालिक कृषि स्थिरता सुनिश्चित करना।

उत्तर

अतिरिक्त बीज उपलब्धता और बढ़ती निजी भागीदारी के साथ, भारत को वर्ष 1966 की बीज विनियमन संबंधी व्यवस्था से आगे आधुनिक विनियमन की आवश्यकता है। मसौदा बीज विधेयक, 2025 बेहतर बीज गुणवत्ता और व्यावसायिक दक्षता की माँग करता है, फिर भी यह निगमीकरण, मूल्य नियंत्रण और भारत के विविध कृषि परिदृश्य में किसानों के पारंपरिक अधिकारों के हनन को लेकर गहरी चिंताएँ पैदा करता है।

बीज की गुणवत्ता और ईज ऑफ डूइंग बिजनेस को बढ़ावा देना

  • अच्छी गुणवत्ता के बीजों के लिए नियामक तंत्र : बीजों के आयात, उत्पादन और आपूर्ति में  गुणवत्ता सुनिश्चित करता है, जिससे उत्पादकता बेहतर होती है।
    • उदाहरण: अंकुरण और भौतिक शुद्धता के लिए अनिवार्य मानक बेहतर फसल परिणाम सुनिश्चित करते हैं।
  • केंद्रीय एवं राज्य बीज समितियाँ: क्षेत्र-विशिष्ट किस्मों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए विशेषज्ञ-आधारित निगरानी।
    • उदाहरण: राज्य बीज समितियाँ बीज उत्पादकों और नर्सरियों के पंजीकरण पर सलाह देती हैं।
  • अनुपालन बोझ को कम करने के लिए मान्यता प्रणाली: योग्यता-आधारित केंद्रीय मान्यता प्राप्त प्रणाली कंपनियों के लिए बहु-राज्यस्तरीय संचालन को सक्षम बनाती है।
  • मजबूत बीज परीक्षण ढाँचा: केंद्रीय और राज्य प्रयोगशालाएँ “सूखा प्रतिरोधी बीज” जैसे दावों की विश्वसनीयता बढ़ाती हैं।
  • अपराधों पर रोक और रोकथाम: मिलावट और गलत ब्रांडिंग के लिए कठोर दंड, किसान सुरक्षा को मजबूत करता है।
    • उदाहरण: बड़े उल्लंघनों के लिए ₹30 लाख तक का जुर्माना और 3 साल तक की कैद।

बीज संप्रभुता और किसानों के अधिकारों पर चिंताएँ

  • बीज क्षेत्र के निगमीकरण का जोखिम: केंद्रीकृत नियंत्रण छोटे उत्पादकों की तुलना में बड़ी बीज कंपनियों को लाभ पहुँचा सकता है।
    • उदाहरण: किसान संघों को बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा अत्यधिक मूल्य निर्धारण का डर है।
  • बीज संरक्षण पर सशर्त अधिकार: किसान बीजों को संरक्षित/विनिमय कर सकते हैं, लेकिन ब्रांड नामों से नहीं बेच सकते → आजीविका सीमित करता है।
  • किसान-केंद्रित कानूनी सुरक्षा का कमजोर होना: देशज बीज अधिकारों की रक्षा करने वाले पीपीवीएफआर (PPVFR) अधिनियम के सुरक्षा संबंधी प्रावधानों के साथ अंतर्द्वंद हो सकता है।
    •  उदाहरण: किसान समूह जैव विविधता और आनुवंशिक संसाधन संधियों के साथ संरेखण की माँग करते हैं।
  • एकसमान मानक कृषि-पारिस्थितिकी विविधता की अनदेखी कर सकते हैं: कड़े गुणवत्ता मानदंड प्रयोगशाला-आधारित मानदंडों पर खरे न उतरने वाली स्थानीय प्रजातियों को बाहर कर सकते हैं।
  • केंद्रीकृत नियामक ढाँचा: स्थानीय बीज प्रशासन में राज्यों की कम भूमिका जमीनी स्तर के किसानों की जरूरतों को बाधित कर सकती है।
    • उदाहरण: लाइसेंसिंग और परीक्षण छोटे किसानों की वास्तविकताओं की तुलना में राष्ट्रीय प्राथमिकताओं द्वारा अधिक निर्देशित होते हैं।

दीर्घकालिक कृषि स्थिरता सुनिश्चित करना

  • पीपीवीएफआर (PPVFR) और जैव विविधता कानूनों के साथ समन्वय स्थापित करना: नीति निर्माण में किसानों के ऐतिहासिक बीज-संरक्षण अधिकारों को संरक्षित करना ताकि स्वदेशी बीज संरक्षण का अधिकार स्थापित रहें।
  • एकाधिकार के विरुद्ध लागत सुरक्षा: बड़े निगमों द्वारा बाजार पर प्रभुत्व को रोकने के लिए पारदर्शी मूल्य निर्धारण मानदंड।
  • सहभागी बीज शासन: बीज समितियों और राज्य-स्तरीय निर्णयों में किसान संगठनों का प्रतिनिधित्व।
  • स्थानीय बीज किस्मों को प्रोत्साहित करना: जलवायु परिवर्तन के प्रति सहनशील सामुदायिक बीज बैंकों और पारंपरिक किस्मों को बढ़ावा देना।
    • उदाहरण: अर्द्ध-शुष्क क्षेत्रों में सूखा-सहिष्णु प्रजातियों को बढ़ावा देना।
  • छोटे उत्पादकों के लिए विभेदित मानक: सुरक्षा से समझौता किए बिना पारंपरिक बीज प्रसंस्करणकर्ताओं के लिए लचीला अनुपालन स्थापित करना।

निष्कर्ष

बीज विधेयक, 2025 का मसौदा एक महत्त्वपूर्ण आधुनिकीकरण सुधार है, लेकिन यह सुनिश्चित करना होगा कि गुणवत्ता वृद्धि और व्यापार में आसानी से भारत की बीज संप्रभुता, किसान स्वायत्तता और दीर्घकालिक कृषि लचीलेपन से समझौता न हो।

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