उत्तर:
दृष्टिकोण:
- प्रस्तावना: भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू की महत्वपूर्ण भूमिकाओं को स्वीकार करते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिए।
- मुख्य विषयवस्तु:
- दोनों नेताओं के विचारधाराओं और आंदोलन की रणनीतियों और लक्ष्यों को आकार देने में उनकी भूमिका व संयुक्त प्रभाव का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
- असहयोग आंदोलन और नमक सत्याग्रह जैसे उदाहरणों के साथ महात्मा गांधी के अहिंसा और सविनय अवज्ञा के दर्शन पर चर्चा कीजिए। रचनात्मक कार्य और सांप्रदायिक सद्भाव पर उनके जोर पर प्रकाश डालिए।
- नेहरू के आधुनिकतावादी और समाजवादी दृष्टिकोण पर ध्यान केंद्रित कीजिए, जो औद्योगीकरण और वैज्ञानिक प्रकृति के लिए उनके प्रयास को दर्शाता है। राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय एकीकरण के प्रति उनके प्रयासों और धर्मनिरपेक्षता के मत में उनके विचारों का वर्णन कीजिए।
- विश्लेषण कीजिए कि उनके संयुक्त प्रयासों ने आंदोलन पर कैसे सहक्रियात्मक प्रभाव डाला।
- पूर्ण स्वराज की घोषणा और संस्थाओं के निर्माण में उनकी भूमिकाओं पर चर्चा कीजिए।
- निष्कर्ष: संक्षेप में प्रस्तुत करते हुए निष्कर्ष निकालें कि गांधी और नेहरू का नेतृत्व भारत के स्वतंत्रता संग्राम में और स्वतंत्रता के बाद के भारत की नींव रखने में कैसे सहायक था।
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प्रस्तावना:
भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन, भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण युग को दर्शाता है। गौरतलब है कि भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में दो सबसे प्रभावशाली नेताओं – महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू का उदय हुआ। उनकी विचारधाराओं, रणनीतियों और योगदानों ने न केवल आंदोलन की रूपरेखा को आकार दिया, बल्कि भारत की स्वतंत्रता की खोज में भी महत्वपूर्ण भूमिका भी निभाई।
मुख्य विषयवस्तु:
महात्मा गांधी: रणनीति और लक्ष्य
- अहिंसक प्रतिरोध: गांधी का अहिंसा का विचार और सविनय अवज्ञा का दर्शन स्वतंत्रता संग्राम की आधारशिला बन गया। असहयोग आंदोलन (1920-22) और नमक सत्याग्रह (1930) में उनका नेतृत्व इसके प्रमुख उदाहरण हैं। इन आंदोलनों ने वर्ग और जाति की बाधाओं को पार करते हुए जनता को संगठित किया और इस प्रकार राष्ट्रीय आंदोलन को एक जन आंदोलन में बदल दिया।
- रचनात्मक कार्य: गांधीजी ने राष्ट्रीय उत्थान के लिए रचनात्मक कार्य – खादी, ग्रामोद्योग और राष्ट्रीय शिक्षा को बढ़ावा देने पर जोर दिया। यह उपागम भारतीयों में आत्मनिर्भरता और सामाजिक-आर्थिक उत्थान की भावना जागृत करने में महत्वपूर्ण था।
- सांप्रदायिक सद्भाव: हिंदू-मुस्लिम एकता को बढ़ावा देने में गांधी के प्रयासों, जैसा कि खिलाफत आंदोलन (1919-24) में प्रदर्शित हुआ, ने सांप्रदायिक सद्भाव के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को प्रदर्शित किया, जो राष्ट्रीय एकजुटता के लिए महत्वपूर्ण था।
जवाहरलाल नेहरू: रणनीति और लक्ष्य
- आधुनिकतावादी और समाजवादी दृष्टिकोण: समाजवादी सिद्धांतों से प्रभावित नेहरू ने वैज्ञानिक और तर्कसंगत दृष्टिकोण वाले स्वतंत्र भारत की कल्पना की। राष्ट्र-निर्माण के लिए औद्योगीकरण और आधुनिक प्रौद्योगिकी पर उनके जोर ने उनके विचार को गांधी से अलग मत करार दिया।
- राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय एकता: 1930 के दशक में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की समाजवादी शाखा के गठन में नेहरू की भूमिका और स्वतंत्रता के बाद गुटनिरपेक्ष आंदोलन जैसी पहलों के माध्यम से उनका अंतर्राष्ट्रीयवादी दृष्टिकोण, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय एकीकरण दोनों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करता है।
- धर्मनिरपेक्षता का समर्थन: धर्मनिरपेक्षता को भारत के लिए अपरिहार्य मानते हुए उन्होंने देश के संवैधानिक और कानूनी ढांचे को आकार देने, सभी धार्मिक समुदायों के लिए समानता और स्वतंत्रता सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
सहयोगात्मक योगदान:
- औपनिवेशिक शासन के खिलाफ संयुक्त मोर्चा: अपने वैचारिक मतभेदों के बावजूद, गांधी और नेहरू स्वतंत्रता संग्राम में एक-दूसरे के पूरक थे। नेहरू के आधुनिकतावादी दृष्टिकोण के साथ मिलकर गांधी की जन लामबंदी रणनीतियों ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक व्यापक-आधारित आंदोलन बनाने में मदद की।
- पूर्ण स्वराज (पूर्ण स्वतंत्रता): गांधी के नेतृत्व में 1930 में पूर्ण स्वराज की घोषणा, जिसे बाद में नेहरू ने जोरदार समर्थन दिया, ने आंदोलन के लक्ष्य में प्रभुत्व की स्थिति से पूर्ण स्वतंत्रता तक एक महत्वपूर्ण बदलाव को चिह्नित किया।
- संस्था निर्माण: संस्था निर्माण में उनके संयुक्त प्रयासों ने, स्वतंत्रता के बाद लोकतांत्रिक शासन की नींव रखी।
निष्कर्ष:
भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन की रणनीति और लक्ष्यों को आकार देने में महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू की भूमिकाएँ पूरक थीं। अहिंसा, जमीनी स्तर पर लामबंदी और नैतिक उत्थान पर गांधी के जोर के साथ-साथ आधुनिकीकरण, धर्मनिरपेक्षता और अंतर्राष्ट्रीयता पर नेहरू के विचार ने एक बहुमुखी नेतृत्व प्रदान किया, जिसने न केवल स्वतंत्रता के लिए भारत के संघर्ष को गति दी, बल्कि एक आधुनिक, लोकतांत्रिक भारत की नींव भी रखी। उनकी विरासत देश को न्याय, स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे के आदर्शों को साकार करने की दिशा में चल रही यात्रा में प्रेरित और मार्गदर्शन करती रहती है।
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