Q. "भारत की समग्र सतत विकास लक्ष्य रैंकिंग में सुधार के बावजूद, सतत विकास लक्ष्य 3 (उत्तम स्वास्थ्य और कल्याण) के लक्ष्यों को प्राप्त करने में महत्त्वपूर्ण चुनौतियाँ बनी हुई हैं। इन अंतरालों के प्रमुख कारणों पर चर्चा कीजिए। इस संदर्भ में, एक स्वस्थ जनसंख्या सुनिश्चित करने हेतु दीर्घकालिक रणनीति के रूप में स्कूलों में अनिवार्य स्वास्थ्य शिक्षा की भूमिका का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए, जो 'विकसित भारत' के लिए एक आवश्यक कदम है।" (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • सतत् विकास लक्ष्य 3 के अंतर्गत लक्ष्यों को प्राप्त करने में आने वाली चुनौतियों के प्रमुख कारणों पर चर्चा कीजिए।
  • दीर्घकालिक रणनीति के रूप में स्कूलों में अनिवार्य स्वास्थ्य शिक्षा की भूमिका पर सकारात्मक विचार कीजिए।
  • स्कूलों में स्वास्थ्य शिक्षा की चुनौतियाँ लिखिए।
  • विकसित भारत के लिए एक स्वस्थ जनसंख्या सुनिश्चित करने हेतु आगे की राह।

उत्तर

भूमिका

भारत की SDG रैंकिंग वर्ष 2025 में 167 देशों में 99वीं रही, जो बुनियादी सेवाओं और अवसंरचना में प्रगति को दर्शाती है। किंतु, मातृ एवं शिशु मृत्यु दर जैसे प्रमुख स्वास्थ्य संकेतक अभी भी लक्ष्यों से नीचे हैं, जिससे अंतराल स्पष्ट होता है। इस परिप्रेक्ष्य में, स्कूल आधारित अनिवार्य स्वास्थ्य शिक्षा बच्चों में रोकथामकारी आदतें और जागरूकता उत्पन्न कर दीर्घकालीन रूप से स्वस्थ समाज की नींव रख सकती है।

मुख्य भाग

SDG 3 के लक्ष्यों में निरंतर चुनौतियों के प्रमुख कारण

  • गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाओं की सीमित पहुँच: अपर्याप्त अवसंरचना, चिकित्सा कार्मिकों की कमी और ग्रामीण–शहरी विषमता।
    • उदाहरण:  भारत में मातृ मृत्यु दर (MMR) 97 प्रति 1 लाख जीवित जन्म है, जो वर्ष 2030 के लक्ष्य 70 से अधिक है।
  • उच्च आउट ऑफ पॉकेट खर्च (OOP): परिवारों को स्वास्थ्य देखभाल पर काफी खर्च उठाना पड़ता है, जिससे उपचार की माँग सीमित हो जाती है।
    • उदाहरण:  कुल घरेलू उपभोग में जेब से किया जाने वाला व्यय लगभग 13% है, जो 7.83% के लक्ष्य से लगभग दोगुना है।
  • कुपोषण और जीवनशैली कारक: कुपोषण, अपर्याप्त स्वच्छता और अस्वास्थ्यकर आदतें बीमारियों के बोझ को बढ़ा देती हैं।
    • उदाहरण:  पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर प्रति 1,000 जीवित जन्मों पर 32 बनी हुई है, जो वर्ष 2030 के लक्ष्य 25 से अधिक है।
  • सांस्कृतिक बाधाएँ और जागरूकता की कमी: पारंपरिक मान्यताएँ 2 और स्वास्थ्य साक्षरता का अभाव स्वास्थ्य सेवाओं के प्रभावी उपयोग में बाधा डालते हैं।
  • रोकथामकारी उपायों की कमी: टीकाकरण, स्वच्छता और रोग-निवारण के प्रति अपर्याप्त जागरूकता है।
    • उदाहरण: टीकाकरण कवरेज 93.23% है, जो 100% के सार्वभौमिक लक्ष्य से कम है।

स्कूलों में अनिवार्य स्वास्थ्य शिक्षा की सकारात्मक भूमिका

  • प्रारंभिक जागरूकता और आदत निर्माण: बच्चों को पोषण, स्वच्छता, मानसिक स्वास्थ्य और प्रजनन स्वास्थ्य पर शिक्षा दी जा सकती है।
    • उदाहरण:  फिनलैंड में 1970 के दशक में लागू स्कूल आधारित स्वास्थ्य सुधारों से बाद के दशकों में हृदय रोगों में कमी आई।
  • मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य पर दीर्घकालिक प्रभाव: शिक्षित बालिकाएँ जागरूक माताएँ बनती हैं, जिससे मातृ मृत्यु दर और शिशु मृत्यु दर में कमी आती है।
    • उदाहरण:  जापान में स्कूल आधारित स्वास्थ्य कार्यक्रमों ने स्वच्छता प्रथाओं और जीवन प्रत्याशा में सुधार किया।
  • रोकथामकारी स्वास्थ्य को बढ़ावा: यह कम उम्र से ही टीकाकरण, संतुलित आहार और शारीरिक गतिविधियों को प्रोत्साहित करता है।
  • समुदाय पर प्रभाव: छात्र अपने परिवारों और समुदायों को स्वस्थ आदतें अपनाने के लिए प्रेरित करते हैं।
    • उदाहरण: केरल जैसे राज्यों में स्कूल पाठ्यक्रम में शामिल जागरूकता अभियानों से स्वच्छता और पोषण में सुधार हुआ।

स्वास्थ्य शिक्षा लागू करने में चुनौतियाँ

  • पाठ्यक्रम एकीकरण: मौजूदा पाठ्यक्रम में स्वास्थ्य विषय जोड़ना छात्रों पर बोझ बढ़ाए बिना कठिन है।
    • उदाहरण: कई स्कूलों में मानसिक स्वास्थ्य और प्रजनन स्वास्थ्य पर संरचित सामग्री का अभाव है।
  • शिक्षकों की तैयारी: प्रभावी स्वास्थ्य शिक्षा देने के लिए शिक्षकों के पास अक्सर प्रशिक्षण का अभाव होता है।
    • उदाहरण: मध्य प्रदेश के ग्रामीण विद्यालयों में स्वास्थ्य विषयों पर शिक्षक प्रशिक्षण की कमी रिपोर्ट की गई है।
  • संसाधन और अवसंरचना की बाधाएँ: प्रयोगशालाओं, शिक्षण साधनों और डिजिटल प्लेटफॉर्म तक सीमित पहुँच।
    • उदाहरण: ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में डिजिटल स्वास्थ्य निगरानी उपकरण समान रूप से उपलब्ध नहीं हैं।
  • सांस्कृतिक संवेदनशीलता और सामुदायिक विरोध: कुछ विषय पारंपरिक मान्यताओं और सामाजिक रूढ़ियों के कारण विरोध का सामना कर सकते हैं।

‘विकसित भारत’ हेतु स्वस्थ जनसंख्या सुनिश्चित करने में आगे की राह

  • सर्वजन स्वास्थ्य कवरेज और प्राथमिक देखभाल सुदृढ़ करना: प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों का विस्तार और डिजिटल स्वास्थ्य समाधानों का एकीकरण।
    • उदाहरण: राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन अविकसित जिलों में PHC अवसंरचना को मजबूत कर रहा है।
  • व्यापक स्कूल स्वास्थ्य कार्यक्रम: पोषण, स्वच्छता, प्रजनन, मानसिक स्वास्थ्य और सुरक्षा शिक्षा के साथ पाठ्यक्रम का मानकीकरण।
    • उदाहरण: स्कूलों में टेलीमेडिसिन और डिजिटल स्वास्थ्य रिकार्ड्स का एकीकरण।
  • समुदाय और अभिभावकों की भागीदारी: परिवारों को स्कूल में सीखी स्वास्थ्य प्रथाओं को सुदृढ़ करने हेतु प्रेरित करना।
  • निगरानी और मूल्यांकन: स्वास्थ्य परिणामों और पाठ्यक्रम की प्रभावशीलता की निगरानी हेतु डेटा-आधारित दृष्टिकोण अपनाना।
    • उदाहरण: टीकाकरण कवरेज और स्कूल स्वास्थ्य मानकों की निगरानी के लिए डिजिटल डैशबोर्ड का प्रयोग।

निष्कर्ष

स्वास्थ्य संबंधी अंतरालों को पाटने के लिए प्रणालीगत सुधारों और व्यक्तिगत जागरूकता दोनों की आवश्यकता है। स्कूलों में संरचित स्वास्थ्य शिक्षा का एकीकरण, सार्वभौमिक स्वास्थ्य सेवाओं और मजबूत प्राथमिक स्वास्थ्य तंत्र के साथ मिलकर भावी पीढ़ियों को ऐसी आदतें प्रदान करेगा जो रोग बोझ को कम करेंगी। यह SDG 3 के लक्ष्यों की प्राप्ति में सहायक होगा और एक स्वस्थ, लचीला ‘विकसित भारत’ सुनिश्चित करेगा।

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