Q. कृषि फसल अपशिष्ट/जैवभार के उपयोग के महत्त्व का समालोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए। फसल जैवभार (बायोमास) अवशेषों के बेहतर उपयोग के लिए कौन-सी रणनीतियाँ अपनाई जा सकती हैं? (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • कृषि फसल अपशिष्ट/बायोमास के उपयोग के महत्त्व का उल्लेख कीजिये।
  • कृषि फसल अपशिष्ट/बायोमास के उपयोग की चुनौतियों का उल्लेख कीजिये।
  • फसल अवशेष बायोमास के बेहतर उपयोग के लिए अपनाई जा सकने वाली रणनीतियों का सुझाव दीजिए।

उत्तर

भारत प्रतिवर्ष 500 मिलियन टन से अधिक कृषि अवशेष (Agricultural Residues) उत्पन्न करता है, जिनमें से लगभग 140 मिलियन टन अधिशेष  के रूप में बिना उपयोग के रह जाते हैं। यह अधिशेष अवशेष प्रत्यक्ष रूप से वायु प्रदूषण, पराली जलाने (जो कि इंडो-गंगेटिक मैदान में शीतकालीन प्रदूषण का लगभग 40% तक कारण बनती है) तथा ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में योगदान करता है। सरकारी पहलें जैसे समर्थ मिशन (SAMARTH Mission) तथा राष्ट्रीय जैव-ऊर्जा मिशन (National Bio-Energy Mission), इस समस्या को अवसर में बदलने की दिशा में प्रयासरत हैं। इनका उद्देश्य कृषि अवशेषों के बेहतर उपयोग को प्रोत्साहित करना है, ताकि उन्हें स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन, ग्रामीण आय में वृद्धि तथा रोजगार सृजन से जोड़ा जा सके।

कृषि फसल अपशिष्ट/बायोमास के उपयोग का महत्त्व

  • वायु प्रदूषण और जलवायु प्रभाव में कमी: फसल अवशेषों का उपयोग पराली जलाने की समस्या को घटाता है, जिससे PM2.5 जैसे सूक्ष्म कण प्रदूषकों और ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी आती है।
    • उदाहरण के लिए: समर्थ मिशन (SAMARTH Mission) के अंतर्गत थर्मल पावर प्लांट्स में 5% बायोमास को-फायरिंग अनिवार्य की गई है, जिससे प्रति यूनिट विद्युत उत्पादन में 15–20% तक CO₂ उत्सर्जन घटने की संभावना है।
  • पूरक ग्रामीण आय: फसल अवशेषों को जलाने के विपरीत उन्हें बेचने से किसानों को अतिरिक्त आय का स्रोत प्राप्त होता है। यह कृषि को केवल अनाज उत्पादन तक सीमित न रखकर बहुआयामी आर्थिक गतिविधियों को प्रोत्साहित करता है।
    • उदाहरण के लिए: किसान फसल  अवशेषों को बेचकर प्रति एकड़ ₹3,000–₹6,000 तक धन का उपार्जन क्र सकते हैं। यदि अधिशेष का केवल एक-तिहाई भी बाजारीकरण हो तो यह प्रतिवर्ष ₹6,000–24,000 करोड़ तक का राजस्व उत्पन्न कर सकता है।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार सृजन: बायोमास आधारित पेलेट (Pellet) निर्माण, संग्रहण और परिवहन जैसी गतिविधियों से ग्रामीण क्षेत्रों में नए रोजगार और उद्यमशीलता  को बढ़ावा मिलता है।
    • उदाहरण के लिए: राष्ट्रीय जैव-ऊर्जा मिशन के अनुसार, यदि बायोमास का पूर्ण स्तर  पर उपयोग हो तो ग्रामीण क्षेत्र में 50,000 से अधिक प्रत्यक्ष नौकरियाँ उत्पन्न की जा सकती हैं।
  • ऊर्जा परिवर्तन और कोयले पर निर्भरता में कमी: बायोमास को-फायरिंग नवीकरणीय ऊर्जा की दिशा में संक्रमण (Transition) के सेतु के रूप में कार्य करती है और कोयले पर निर्भरता को कम करती है।
    • उदाहरण के लिए: स्वीडन और ब्रिटेन जैसे देशों में विद्युत संयंत्र (जैसे UK का Drax Plant) अपनी 80% विद्युत का उत्पादन बायोमास से उत्पन्न करते हैं; इंडोनेशिया ने अपने 52 कोयला संयंत्रों में 10% बायोमास मिश्रण का लक्ष्य निर्धारित किया है।
  • अपशिष्ट से धन दृष्टिकोण और सर्कुलर इकोनॉमी: कृषि अवशेषों को ऊर्जा और औद्योगिक उत्पादों में बदलना न केवल अपशिष्ट प्रबंधन को सशक्त करता है बल्कि सर्कुलर इकोनॉमी के सिद्धांतों से भी मेल खाता है। इससे उत्पादन–उपभोग–पुनः उपयोग की सतत् श्रृंखला स्थापित होती है।
  • मृदा गुणवत्ता और संसाधन दक्षता में सुधार: पराली जलाने से मृदा उर्वरता घटती है और सूक्ष्मजीव नष्ट हो जाते हैं। वहीं अवशेषों का वैज्ञानिक उपयोग मृदा की गुणवत्ता को बनाए रखता है और संधारणीय कृषि (Sustainable Farming) को बढ़ावा देता है।

कृषि फसल अपशिष्ट/बायोमास के उपयोग में चुनौतियाँ

  • अपर्याप्त आपूर्ति श्रृंखला और रसद: बायोमास एकत्रीकरण  के लिए मजबूत अवसंरचना और किफायती परिवहन का अभाव सबसे बड़ी बाधा है। उच्च परिवहन लागत और संग्रहण केन्द्रों की अनुपस्थिति के कारण फसल अवशेषों को व्यवस्थित रूप से उपयोग तक पहुँचाना कठिन हो जाता है।
  • किसानों में जागरूकता की कमी और अनिच्छा: कई किसान बायोमास बाजार की संभावनाओं से अनजान रहते हैं या भुगतान में देरी जैसी समस्या का सामना करते हैं। उनकी प्राथमिकता शीघ्र  खेत खाली करना होती है ताकि अगली फसल को समय पर बोया जा सके।
    • उदाहरण के लिए: पंजाब और हरियाणा के किसान, आर्थिक प्रोत्साहन की कमी और समय की कमी के कारण, अब भी बड़े स्तर पर पराली जलाने को मजबूर हैं।
  • पेलेट्स की लागत और गुणवत्ता संबंधी चिंताएंँ: पेलेट निर्माण में मानकीकरण की कमी और उच्च मूल्य, बड़े स्तर पर इसके प्रयोग में बाधा उत्पन्न करते हैं।
    • उदाहरण के लिए: कैलोरी मान और आर्द्रता सामग्री में भिन्नता, को-फायरिंग एफिशिएंसी को प्रभावित करती है।
  • कमजोर नीति प्रवर्तन और अनुपालन अंतराल: कई राज्यों में बायोमास से संबंधित सरकारी दिशा-निर्देश केवल सलाहकारी  स्वरूप में रह जाते हैं, जिनमें कठोर दंडात्मक व्यवस्था का अभाव होता है। 
    • उदाहरण के लिए: समर्थ मिशन (SAMARTH Mission) के लक्ष्यों के बावजूद, निजी विद्युत उत्पादक कंपनियाँ बायोमास को-फायरिंग अपनाने में अभी भी आगे नहीं आई हैं।
  • पेलेट इकाइयों के लिए ऋण और प्रौद्योगिकी तक सीमित पहुंँच: सूक्ष्म उद्यमियों और ग्रामीण इकाइयों के लिए पेलेट निर्माण हेतु मशीनरी व वित्तीय सहायता प्राप्त करना कठिन है।
    • उदाहरण के लिए: संपार्श्विक आवश्यकताओं के कारण मौजूदा योजनाओं के तहत ऋण की प्राप्ति में कम बनी हुई है।

फसल अवशेष बायोमास के बेहतर उपयोग के लिए रणनीतियाँ

  • नीतिगत अधिदेशों और निगरानी को मजबूत करना: बायोमास को-फायरिंग के लक्ष्यों को केवल सलाहकारी न रखकर कानूनी रूप से बाध्यकारी  बनाना चाहिए। इसके लिए रियलटाइम ट्रैकिंग तंत्र और राज्यों की जवाबदेही सुनिश्चित करनी होगी।
  • एक मजबूत आपूर्ति श्रृंखला अवसंरचना विकसित करना: ग्रामीण क्षेत्रों में बायोमास संग्रहण केन्द्र (Collection Hubs) स्थापित कर, स्थानीय स्तर पर नेटवर्क और लॉजिस्टिक्स को प्रोत्साहित करना चाहिए। इससे किसानों को सीधी पहुँच मिलेगी और परिवहन लागत घटेगी।
  • पेलेट निर्माण इकाइयों के लिए वित्तीय और तकनीकी सहायता प्रदान करना: पेलेट निर्माण इकाइयों के लिए  आसान ऋण पहुंँच और मानकीकृत गुणवत्ता मानदंड सुनिश्चित करना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: राष्ट्रीय जैव ऊर्जा कार्यक्रम (National Bio-Energy Mission) ने पेलेट निर्माताओं को सॉफ्ट लोन देने का प्रस्ताव रखा है, जिससे सूक्ष्म  उद्यमियों की भागीदारी बढ़ सकती है।
  • किसानों में जागरूकता और प्रोत्साहन को बढ़ावा देना: किसानों को सुनिश्चित ख़रीद मूल्य (Assured Procurement Price) और त्वरित भुगतान प्रणाली उपलब्ध कराई जानी चाहिए। इससे वे पराली जलाने के बजाय अवशेष बेचने के लिए प्रेरित होंगे।
  • कार्बन क्रेडिट और नवीकरणीय योजनाओं में बायोमास को एकीकृत करना: बायोमास को-फायरिंग को कार्बन बाजारों  और नवीकरणीय ऊर्जा प्रमाणपत्रों (Renewable Energy Certificates – RECs) से जोड़ा जा सकता है।
    • उदाहरण के लिए: इससे अनुपालन करने वाले थर्मल प्लांट्स को अतिरिक्त राजस्व स्रोत प्राप्त होंगे और वे पर्यावरणीय मानकों का पालन करने के लिए प्रेरित होंगे।
  • अंतर्राष्ट्रीय सर्वोत्तम प्रथाओं और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण का लाभ प्राप्त करना: यूरोपीय संघ (EU), जापान और इंडोनेशिया के को-फायरिंग मॉडल को अपनाया जा सकता है, जहाँ अवसंरचना, दीर्घकालिक खरीद समझौते और सब्सिडी के स्तर पर काफी सफलता प्राप्त हुई है।
    • उदाहरण के लिए: ब्रिटेन के ड्रेक्स पावर स्टेशन (Drax Power Station) ने 15-वर्षीय सप्लाई कॉन्ट्रैक्ट और सरकारी सब्सिडी की मदद से कोयले से बायोमास संक्रमण सफलतापूर्वक किया।
  • अवशेषों के उपयोग में अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देना: बायो-CNG, द्वितीय पीढ़ी (Second-generation) इथेनॉल और बायोचार जैसे वैकल्पिक उत्पादों पर अनुसंधान व विकास को प्रोत्साहित करना चाहिए। इससे बायोमास की उपयोगिता केवल ऊर्जा तक सीमित न रहकर औद्योगिक और कृषि नवाचार से भी जुड़ सकेगी।

निष्कर्ष

भारत के अधिशेष बायोमास को यदि समर्थ मिशन के सुदृढ़ लक्ष्यों, लॉजिस्टिक्स, किसान प्रोत्साहन और नेट-जीरो लक्ष्यों के साथ जोड़ा जाए, तो यह अवशेष अपशिष्ट केवल बोझ न रहकर स्वच्छ ऊर्जा, ग्रामीण आय और बेहतर वायु गुणवत्ता का प्रमुख साधन बन सकता है। इस दिशा में ठोस कदम उठाकर भारत न केवल पराली जलाने और प्रदूषण जैसी चुनौतियों को कम कर सकता है, बल्कि ऊर्जा आत्मनिर्भरता, ग्रामीण रोजगार वृद्धि और जलवायु परिवर्तन शमन में भी अग्रणी भूमिका निभा सकता है। इस प्रकार फसल अवशेष प्रबंधन, भारत की सतत् विकास यात्रा और विकसित भारत 2047 के दृष्टिकोण का अभिन्न अंग सिद्ध हो सकता है।

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