Q. क्या भारत में मतदान की आयु 18 वर्ष से घटाकर 16 वर्ष कर दी जानी चाहिए? नागरिक और राजनीतिक आंदोलनों में युवाओं की भागीदारी के आलोक में, मतदान की आयु कम करने के तर्क का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • नागरिक आंदोलनों में युवाओं की भागीदारी के आलोक में, मतदान की आयु कम करने के तर्क का परीक्षण कीजिए।
  • राजनीतिक आंदोलनों में युवाओं की भागीदारी के मद्देनजर, मतदान की आयु कम करने के तर्क का परीक्षण कीजिए।

उत्तर

युवाओं की राजनीतिक भागीदारी बढ़ाने के लिए 61वें संविधान संशोधन (1988) के माध्यम से मतदान की आयु 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष कर दी थी। हाल के वर्षों में, युवाओं के नेतृत्व वाले नागरिक एवं डिजिटल आंदोलनों के बढ़ने के साथ इसे और घटाकर 16 वर्ष करने की माँग उठी है। हालाँकि, इस विचार पर लोकतांत्रिक, मनोवैज्ञानिक और व्यावहारिक दृष्टिकोण से गहन समीक्षा की आवश्यकता है।

मतदान की आयु 16 वर्ष करने के पक्ष में तर्क

  • युवा राजनीतिक रूप से जागरूक एवं सक्रिय हो रहे हैं: वर्तमान समय में 16 वर्ष के युवा भी डिजिटल रूप से एक दूसरे से जुड़े हुए हैं और सामाजिक आंदोलनों में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं।
  • अन्य अधिकारों और जिम्मेदारियों के साथ संगति: 16 वर्ष की आयु में आज के युवा वाहन चला सकते हैं, कर (अप्रत्यक्ष) का भुगतान कर सकते हैं, तथा कार्य कर सकते हैं, जो मतदान के लिए परिपक्वता का संकेत है।
    • उदाहरण: मोटर वाहन अधिनियम के तहत, 16 वर्ष की आयु के बच्चे 50cc तक के दोपहिया वाहनों के लिए लाइसेंस प्राप्त कर सकते हैं।
  • लोकतांत्रिक समावेशन और प्रतिनिधित्व: एक विशाल युवा मतदाता लोकतंत्र को ऊर्जावान बना सकता है और युवा मुद्दों के प्रति संवेदनशीलता बढ़ा सकता है।
  • वैश्विक उदाहरण शीघ्र मतदान का समर्थन करते हैं: कई प्रगतिशील लोकतंत्र स्थानीय/राष्ट्रीय चुनावों में 16 वर्ष की आयु में मतदान की अनुमति देते हैं।
    • उदाहरण: जर्मनी, ऑस्ट्रिया, माल्टा, एस्टोनिया, अर्जेंटीना, निकारागुआ और स्कॉटलैंड एवं वेल्स में 16 वर्ष की आयु में मतदान होता है; ब्रिटेन की योजना 16-17 वर्ष के बच्चों को पंजीकृत करने की है।
  • नागरिक सहभागिता से जिम्मेदार नागरिक बनते हैं:  प्रारंभिक मतदान के प्रति जागरूकता से नागरिक कर्तव्य और दीर्घकालिक राजनीतिक भागीदारी विकसित हो सकती हैं।

मतदान की आयु कम करने के विरुद्ध तर्क

  • भावनात्मक और संज्ञानात्मक परिपक्वता का अभाव: मनोवैज्ञानिकों का तर्क है कि कई 16 वर्षीय किशोरों में जटिल राजनीतिक मुद्दों का आकलन करने की परिपक्वता का अभाव होता है। 
    • उदाहरण: भारतीय किशोरों पर किए गए अध्ययनों से पता चलता है कि 14-17 आयु वर्ग में आवेगशीलता और साथियों के प्रति संवेदनशीलता अधिक होती है।
  • राजनीतिक परिवर्तन का जोखिम: युवा मतदाता गलत सूचना, दुष्प्रचार या लोकलुभावन कहानियों के प्रति अधिक सुभेद्य हो सकते हैं।
  •  वास्तविक दुनिया का कम अनुभव या हिस्सेदारी: कई 16 वर्षीय बच्चे इस उम्र में स्कूल में ही होते हैं और आर्थिक या नागरिक जीवन से पूरी तरह परिचित नहीं होते हैं।
  • परिचालन और प्रशासनिक बोझ: 16 वर्ष से अधिक आयु की आबादी के लिए मतदाता सूची का रखरखाव और सत्यापन, चुनाव आयोग की प्रणाली पर बोझ डालेगा।
  • बिना सहमति या माँग संबंधी व्यवधान: कुछ पश्चिमी लोकतंत्रों के विपरीत, भारत में इस तरह के कदम की सामाजिक या राजनीतिक माँग सीमित है। 
    • उदाहरण के लिए: किसी भी प्रमुख राजनीतिक दल ने औपचारिक रूप से अपने घोषणापत्र या सुधार एजेंडे में 16 वर्ष की आयु में मतदान को शामिल नहीं किया है ।
  • वास्तविक युवा सशक्तिकरण की बजाय दिखावा: यदि युवा-केंद्रित नीतियों या प्रतिनिधित्व के साथ सामंजस्य स्थापित नहीं हुआ, तो मताधिकार प्रतीकात्मक बन सकता है। 
    • उदाहरण: 18 वर्ष की आयु से ही मताधिकार मिलने के बावजूद, बेरोजगारी और शिक्षा सुधार जैसे युवाओं से संबंधित मुद्दे अक्सर अनसुलझे रह जाते हैं।

निष्कर्ष

यद्यपि राजनीतिक आंदोलनों में युवाओं की भागीदारी बढ़ती जागरूकता को दर्शाती है पर मतदान की आयु को 16 वर्ष तक कम करना परिपक्वता, संस्थागत तत्परता और लोकतांत्रिक प्रभाव पर सावधानीपूर्वक विचार करने की माँग करती है। बदलाव में जल्दबाजी करने के बजाय, भारत को सबसे पहले नागरिक शिक्षा सुधारों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, युवाओं की भागीदारी के लिए संरचित मंच तैयार करने चाहिए और वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं का मूल्यांकन करना चाहिए। सच्चा सशक्तिकरण केवल मताधिकार में नहीं, बल्कि यह सुनिश्चित करने में निहित है कि युवा वर्ग नीतियों को सार्थक रूप से आकार दे।

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