Q. विपक्षी दलों द्वारा चुनाव आयोग की निष्पक्षता और पारदर्शिता के संबंध में हाल ही में लगाए गए आरोपों के आलोक में, स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने में निर्वाचन आयोग की भूमिका का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए। चुनाव प्रक्रिया में इसकी विश्वसनीयता और जनता के विश्वास को मजबूत करने के लिए सुधारों का सुझाव दीजिए। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • पक्षपात और अपारदर्शिता के आरोपों के बीच ECI की भूमिका का उल्लेख कीजिये।
  • स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने में ECI की चुनौतियों का परीक्षण कीजिए।
  • विश्वसनीयता और सार्वजनिक विश्वास को मजबूत करने के लिए सुधारों का सुझाव दीजिए।

उत्तर

स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव किसी भी लोकतंत्र की आधारशिला होते हैं। भारतीय संविधान के अनुच्छेद-324 के तहत गठित भारतीय निर्वाचन आयोग (ECI) को इस दायित्व को संभालने का कार्य सौंपा गया है। हालाँकि, विपक्षी नेताओं द्वारा हाल ही में लगाए गए आरोपों विशेष रूप से वर्ष 2024 के चुनावों के बाद, इसकी निष्पक्षता, पारदर्शिता और दक्षता पर सवाल खड़े कर रहे हैं, जिससे इस संस्था की साख और जनता के विश्वास पर प्रभाव पड़ा है।

पक्षपात और अस्पष्टता के आरोपों के बीच ECI की भूमिका

  • संवैधानिक दायित्व: चुनाव आयोग को संसद और राज्य विधानसभाओं के चुनावों के अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण के पूर्ण अधिकार प्राप्त हैं। 
    • उदाहरण: इसके बावजूद, विपक्षी दलों ने आरोप लगाया कि चुनाव आयोग सत्तारूढ़ दल के नेताओं के घृणास्पद भाषणों और आदर्श आचार संहिता के उल्लंघनों को रोकने में विफल रहा है।
  • मतदाता सूची का निर्माण व संशोधन: जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 15-23 के अनुसार, भारत निर्वाचन आयोग को समावेशी, त्रुटिरहित मतदाता सूची का निर्माण करना चाहिए।
  • आदर्श आचार संहिता (MCC) का प्रवर्तन: आदर्श आचार संहिता, कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं है लेकिन यह निष्पक्ष चुनाव प्रचार सुनिश्चित करने के लिए मार्गदर्शिका के रूप में कार्य करती है। 
    • उदाहरण के लिए: यह आरोप कि चुनाव आयोग ने सत्तारूढ़ दल के शीर्ष नेताओं के भड़काऊ भाषणों को नजरअंदाज़ किया, इसकी निष्पक्षता पर सवाल उठाता है।
  • मतगणना और EVM-VVPAT का उपयोग: ECI VVPAT सत्यापन (एन. चंद्रबाबू नायडू बनाम भारत संघ में सुप्रीम कोर्ट का वर्ष 2019 का निर्णय) सहित पारदर्शी मतगणना की निगरानी करता है।
  • चुनावी खर्च की निगरानी: चुनाव आयोग को काले धन और अनुचित लाभ के प्रयोग पर अंकुश लगाना होगा। 
    • उदाहरण के लिए: सत्तारूढ़ दलों द्वारा संसाधनों का असमान उपयोग और चुनाव आयोग की निष्क्रियता की धारणा ने इसकी छवि को नुकसान पहुँचाया।
  • जन शिकायत निवारण और उत्तरदायित्व: चुनाव आयोग को लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 77 (चुनाव व्यय के संबंध में) के अंतर्गत शिकायतों का पारदर्शी ढंग से समाधान करना चाहिए।
    • उदाहरण: विपक्ष द्वारा दी गई कई लिखित शिकायतों पर चुनाव आयोग की चुप्पी को पक्षपात के रूप में देखा गया जिससे जन विश्वास कम हुआ। 

स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने में चुनौतियाँ

  • पारदर्शी नियुक्ति प्रक्रिया का अभाव: वर्तमान में, चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति चयन समिति द्वारा की जाती है जिसमें प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता (लोकसभा) और केंद्रीय मंत्री शामिल होते हैं। इससे कार्यपालिका के प्रभाव की आशंका बनी रहती है 
    • उदाहरण: इस मुद्दे को सुप्रीम कोर्ट ने अनूप बरनवाल बनाम भारत संघ (वर्ष 2023) वाद में आंशिक रूप से संबोधित किया था, जहाँ उसने नियुक्तियों के लिए एक अस्थायी तीन-सदस्यीय पैनल (प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता, मुख्य न्यायाधीश) का निर्देश दिया था।
  • EVM-VVPAT पर विश्वास की कमी: EVM की संपूर्ण सत्यापन क्षमता के अभाव ने उनकी विश्वसनीयता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। 
    • उदाहरण के लिए: सुब्रमण्यम स्वामी बनाम चुनाव आयोग (वर्ष 2013) वाद के बाद पारदर्शिता बढ़ाने के लिए VVPAT की शुरुआत की गई थी, लेकिन निरंतर अविश्वास के कारण पूर्ण सत्यापन की माँग अभी भी बनी हुई है।
  • असमान प्रचार अवसर: मीडिया पूर्वाग्रह, वित्तीय विषमताएँ और आदर्श आचार संहिता के असमान प्रवर्तन ने एक असमान प्रतिस्पर्धा का माहौल बना दिया है। 
    • उदाहरण के लिए: सत्तारूढ़ दल द्वारा सार्वजनिक रूप से वित्त पोषित विज्ञापनों और सोशल मीडिया में हेराफेरी पर कथित रूप से कोई रोक नहीं लगाई गई, जिससे निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा की भावना का उल्लंघन हुआ।
  • संस्थागत स्वतंत्रता का अभाव: ECI में वित्तीय और परिचालन स्वतंत्रता का अभाव है क्योंकि यह कर्मचारियों और बजट अनुमोदन के लिए विधि मंत्रालय पर निर्भर है।
  • कमजोर दंडात्मक शक्तियाँ: आदर्श आचार संहिता कानूनी रूप से लागू करने योग्य नहीं है, और ECI उल्लंघन के लिए उम्मीदवारों को अयोग्य नहीं ठहरा सकता है जब तक कि वह वैधानिक कानून के अंतर्गत न हो।
  • EPIC कार्ड में त्रुटि: कुछ मौजूदा मतदाताओं को ये जारी नहीं किए गए हैं और कुछ को एक ही मतदाता को कई EPIC जारी किए गए हैं जिससे चुनावी प्रक्रिया पर चिंताएँ बढ़ रही हैं।

विश्वसनीयता और सार्वजनिक विश्वास को मजबूत करने के लिए सुधार

  • चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति और निष्कासन हेतु संवैधानिक तंत्र: विधि आयोग की 255वीं रिपोर्ट (वर्ष 2015) द्वारा सुझाए गए और अनूप बरनवाल बनाम भारत संघ (वर्ष 2023) वाद में यथावत, एक द्विदलीय और पारदर्शी नियुक्ति तंत्र सुनिश्चित करना चाहिए।
    • उदाहरण: एक स्थायी कॉलेजियम प्रणाली कार्यपालिका के हस्तक्षेप को रोक सकती है और स्वतंत्रता को बढ़ा सकती है।
  • आदर्श आचार संहिता को वैधानिक समर्थन: आदर्श आचार संहिता को संहिताबद्ध करके उसे कानूनी रूप से बाध्यकारी बनाया जाए और चुनाव आयोग को उल्लंघनों पर दंड लगाने का अधिकार दिया जाए। 
    • उदाहरण के लिए: द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग रिपोर्ट  में भी समान अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए आदर्श आचार संहिता को वैधानिक दर्जा देने की सिफारिश की गई है।
  • 100% VVPAT सत्यापन या जोखिम-सीमित ऑडिट (RLA): पारदर्शिता बढ़ाने के लिए, पूर्ण VVPAT सत्यापन या RLA के माध्यम से वैज्ञानिक रूप से मान्य सैंपलिंग को अपनाया जाना चाहिए। 
    • उदाहरण: जर्मनी और अमेरिका जैसे देश चुनावी विश्वसनीयता के लिए इसी तरह की ऑडिट प्रणाली का उपयोग करते हैं।
  • स्वतंत्र सचिवालय और वित्तीय स्वायत्तता: ECI को CAG या UPSC की तरह एक स्वतंत्र सचिवालय दिया जाना चाहिए, और भारत के समेकित कोष पर प्रभारित बजट दिया जाना चाहिए।
  • रियलटाइम पारदर्शी संचार: शिकायतों और की गई कार्रवाई के लिए एक सार्वजनिक पोर्टल स्थापित करना चाहिए और समय पर उसका अद्यतन सुनिश्चित करना चाहिए।
  • मतदान पश्चात समीक्षा और नागरिक समाज की निगरानी: नागरिक समाज की भागीदारी के साथ एक औपचारिक चुनाव पश्चात समीक्षा प्रक्रिया शुरू करनी चाहिए।

चुनाव आयोग चुनावी लोकतंत्र का संवैधानिक संरक्षक है, लेकिन वास्तविक और कथित पूर्वाग्रहों के कारण इसकी विश्वसनीयता अब खतरे में है। जनता का विश्वास बनाए रखने के लिए, इस संस्था को प्रक्रियात्मक तटस्थता से आगे बढ़कर पारदर्शिता, जवाबदेही और संरचनात्मक सुधारों को अपनाना होगा। जैसा कि डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने कहा था कि यदि चुनाव कराने वाली संस्था पर भरोसा नहीं किया जा रहा हो तो उसके बिना लोकतंत्र स्वयं ही नष्ट हो जाता है।

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