प्रश्न की मुख्य माँग
- कानून ने विधायकों की स्वतंत्रता को कैसे बाधित किया है।
- कानून ने संसद के विचार-विमर्शपूर्ण कामकाज को कैसे प्रभावित किया है।
- आगे की राह: विधायकों की उचित स्वतंत्रता बहाल करना।
- आगे की राह: संसद के विचार-विमर्शपूर्ण कामकाज को बेहतर बनाना।
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उत्तर
दलबदल विरोधी कानून (दसवीं अनुसूची, 1985) विधायकों को दल बदलने से हतोत्साहित करने और सरकारी स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए लाया गया था। लेकिन व्यवहार में, इसने अक्सर विधायकों की स्वतंत्रता को सीमित किया है और संसद को स्वतंत्र बहस के बजाय दल-आधारित मतदान के मंच में बदल दिया है।
मुख्य भाग
विधायकों की स्वतंत्रता को कानून ने किस प्रकार सीमित किया
- व्हिप-बंधन: विधायकों को लगभग सभी मुद्दों पर दल का व्हिप मानना होता है, चाहे वह उनके विवेक या मतदाताओं के हित के विपरीत क्यों न हो।
- मतभेद का दमन: अयोग्यता के भय से सांसद/विधायक अपनी ही पार्टी की आलोचना या विरोधी विचार व्यक्त करने से बचते हैं।
- दल सर्वोपरि, व्यक्तिगत विचार गौण: उनकी जवाबदेही मतदाताओं से हटकर दल नेतृत्व की ओर शिफ्ट हो जाती है, जिससे प्रतिनिधिक लोकतंत्र कमजोर होता है।
- अध्यक्ष का विवेक: अयोग्यता का निर्णय अध्यक्ष या पीठ के हाथ में होता है, जो अक्सर किसी दल से संबद्ध होते हैं, जिससे पक्षपात की आशंका बढ़ती है।
- स्वतंत्र विधायकों की सीमाएँ: स्वतंत्र विधायक यदि किसी दल में शामिल हों तो उनकी सदस्यता समाप्त हो जाती है, जिससे राजनीतिक स्वतंत्रता बाधित होती है।
संसद की विचार-विमर्श क्षमता पर प्रभाव
- रबर-स्टैंप विधानमंडल: दल-आदेश के कारण संसद प्रायः बिना वास्तविक विमर्श के प्रस्तावों को मंजूरी देने वाली संस्था बन जाती है।
- रचनात्मक विपक्ष का क्षरण: विधायक उन मुद्दों को भी नहीं उठाते हैं, जो दल-की विचारधारा से टकराव रखते हों, जिससे विरोधी आवाजें दब जाती हैं।
- विधेयक-परीक्षण में कमी: व्यक्तिगत स्वायत्तता कम होने से विस्तृत जाँच और अंतर-दलीय सहमति कम हो जाती है।
- वक्तव्य-स्वतंत्रता पर प्रतिकूल प्रभाव: तकनीकी या नैतिक मुद्दों पर भी सांसद/विधायक अयोग्यता के भय से खुलकर बोलने से हिचकते हैं।
- कार्रवाई में विलंब: दलबदल मामलों का महीनों/वर्षों तक लंबित रहना जवाबदेही को कमजोर करता है और विचार-विमर्श की गुणवत्ता को क्षीण करता है।
आगे की राह: विधायकों की युक्तिसंगत स्वतंत्रता बहाल करना
- व्हिप का सीमित उपयोग: अविश्वास, विश्वास, बजट जैसे विश्वास-संबंधी मतों तक ही दलबदल विरोधी कानून लागू हो, सामान्य विधेयकों या नैतिक मुद्दों पर नहीं।
- स्वतंत्र निर्णय-प्राधिकारी: अयोग्यता के निर्णय अधिकार को अध्यक्ष से हटाकर एक निष्पक्ष संस्था (जैसे- निर्वाचन आयोग) को सौंपा जाए, ताकि पक्षपात का जोखिम कम हो।
- समयबद्ध निर्णय: दलबदल याचिकाओं पर निर्णय के लिए विधिक समय-सीमा निर्धारित हो, ताकि अनिश्चित विलंब न हों और विश्वसनीयता बनी रहे।
आगे की राह: संसद की विचार-विमर्श क्षमता सशक्त करना
- विवेक-आधारित मत प्रयोग को बढ़ावा: विश्वास-मत के अतिरिक्त अन्य मामलों में सांसदों को अपने विवेक से मतदान की अनुमति देकर वास्तविक विमर्श और प्रतिनिधित्व बढ़ाया जाना चाहिए।
- दल-अंतर्गत लोकतंत्र: दलों के भीतर लोकतंत्र सशक्त किया जाए, ताकि दल-स्थिति शीर्ष-निर्देश के बजाय व्यापक विचार-प्रक्रिया का परिणाम हो।
- स्वतंत्र विचारों का संरक्षण: तकनीकी/सामाजिक मुद्दों पर स्वतंत्र और विविध विचारों को महत्त्व देकर चर्चा को समृद्ध किया जाए।
निष्कर्ष
दलबदल विरोधी कानून ने अवसरवादी दल-बदल को नियंत्रित करने में अवश्य सहायता की है, परंतु इसके व्यापक प्रयोग ने विधायकों की स्वायत्तता और संसदीय विचार-विमर्श दोनों को कमजोर किया है। व्हिप-मतों का सीमित उपयोग, निष्पक्ष निर्णय-प्रक्रिया और दल-अंतर्गत लोकतंत्र को बढ़ावा देकर प्रतिनिधिक एवं विचार-प्रधान लोकतंत्र को पुनर्जीवित करना आवश्यक है।
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