प्रश्न की मुख्य माँग
- बताइये कि हाल ही में लागू किया गया GST (सरलीकरण एवं पुनर्गठन) भारतीय अर्थव्यवस्था को किस प्रकार मजबूत करेगा।
- भारतीय अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में GST सुधारों की सीमाएँ।
- ऐसे उपाय सुझाइए, जिनसे भारत की आर्थिक वृद्धि को और बढ़ावा मिल सके।
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उत्तर
हाल ही में वस्तु एवं सेवा कर (GST) व्यवस्था में किए गए सरलीकरण को एक महत्त्वपूर्ण सुधार माना जा रहा है, जिसका उद्देश्य कर अनुपालन को सरल बनाना और कार्यकुशलता को बढ़ाना है। वर्ष 2017 में एकीकृत अप्रत्यक्ष कर प्रणाली के रूप में लागू किए गए GST से जुड़े सभी निर्णय संविधान के अनुच्छेद-279A के अंतर्गत गठित GST परिषद द्वारा लिए जाते हैं। नवीनतम सुधारों में टैक्स स्लैब्स का तर्कसंगत बनाना प्रमुख है, जो एक ओर आर्थिक वृद्धि को सुदृढ़ करने की क्षमता रखता है, वहीं दूसरी ओर राजकोषीय संतुलन और संघीय सौहार्द से जुड़े प्रश्न भी उठाता है।
GST सुधार भारतीय अर्थव्यवस्था को कैसे मजबूत कर सकते हैं
- घरेलू उपभोग को बढ़ावा देना: कर दरों का सरलीकरण और GST स्लैब्स की संख्या घटाने से आम लोगों की उपलब्ध आय में वृद्धि हो सकती है। जब उपभोक्ताओं पर अप्रत्यक्ष करों का बोझ कम होगा तो उनकी क्रय शक्ति बढ़ेगी, जिससे घरेलू बाजार में माँग को नया जीवन मिलेगा और उपभोग-आधारित विकास को प्रोत्साहन मिलेगा।
- व्यवसाय करने में सुगमता बढ़ाना: GST सुधारों के तहत जटिल वर्गीकरण और बहु-स्तरीय अनुपालन को सरल बनाना, कारोबार करने की लागत को कम करता है। इससे लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs) से लेकर बड़े उद्योगों तक सभी के लिए व्यावसायिक वातावरण अधिक अनुकूल बनता है और निवेश को प्रोत्साहन मिलता है।
- अर्थव्यवस्था के औपचारिकीकरण को प्रोत्साहित करना: GST की एकीकृत कर संरचना अनौपचारिक क्षेत्र के कारोबारियों को औपचारिक क्षेत्र में पंजीकरण करने के लिए प्रेरित करती है। इससे न केवल कर आधार व्यापक होता है, बल्कि सरकार को अधिक स्थिर और पारदर्शी राजस्व स्रोत भी उपलब्ध होते हैं।
- राजकोषीय संघवाद में सुधार: संशोधित क्षतिपूर्ति तंत्र राज्यों के राजस्व संबंधी हितों और केंद्र की वित्तीय प्राथमिकताओं के बीच संतुलन स्थापित करता है। इससे संघीय ढाँचे में सहयोग की भावना बनी रहती है और केंद्र-राज्य संबंध मजबूत होते हैं।
- निर्यात प्रतिस्पर्द्धा को सुविधाजनक बनाना: रिफंड प्रक्रियाओं को तर्कसंगत और सरल बनाना तथा कर उलटफेर की समस्या का समाधान करना, निर्यातकों के लिए इनपुट लागत को कम करता है। इससे भारतीय उत्पाद अंतरराष्ट्रीय बाजार में अधिक प्रतिस्पर्द्धी बनते हैं और विदेशी मुद्रा आय में वृद्धि होती है।
- अवसंरचना निवेश को प्रोत्साहित करना: अप्रत्यक्ष करों में कमी से निर्माण सामग्रियों की लागत घटती है। इसका सीधा लाभ बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं की वहनीयता और गति को मिलता है, जिससे देश में सड़क, परिवहन, ऊर्जा और आवास जैसे क्षेत्रों में तीव्र विकास संभव होता है।
वर्तमान GST सुधारों की सीमाएँ
- राजस्व में कमी का जोखिम: कर दरों में कटौती से राजकोषीय घाटा बढ़ने की आशंका रहती है, विशेषकर तब जब समानांतर रूप से नए संसाधनों की व्यवस्था न हो।
- उदाहरण के लिए: हाल ही में किए गए कर कटौतियों से लगभग ₹48,000 करोड़ का राजस्व नुकसान अनुमानित है, जिससे 4.4% के राजकोषीय घाटे के लक्ष्य पर दबाव बढ़ गया है।
- उपकरों और अधिभारों का बने रहना: विभिन्न उपकरों और अधिभारों की मौजूदगी ‘एक राष्ट्र–एक कर’ (One Nation, One Tax) की अवधारणा को कमजोर करती है। इससे कर प्रणाली में विकृति (distortion) आती है और पारदर्शिता घटती है।
- MSME पर अनुपालन का बोझ: यद्यपि GST को सरल बनाने की दिशा में कदम उठाए गए हैं, लेकिन लगातार संशोधन, दंड और कठोर प्रावधान लघु उद्यमों को हतोत्साहित करते हैं।
- उदाहरण के लिए: 800 से अधिक व्यावसायिक कानूनों में अभी भी कारावास की धाराएँ हैं, जो विनियामक बाधाओं को बढ़ाती हैं।
- अनुसंधान एवं विकास प्रोत्साहनों का धीमा वितरण: केवल GST राहत, नवाचार को बढ़ावा देने के लिए पर्याप्त नहीं है। सरकार द्वारा आवंटित किए गए R&D फंड का पूर्ण उपयोग नहीं हो पाया है, जिससे अनुसंधान गतिविधियाँ बाधित रहती हैं।
- निर्यात शुल्क भेद्यता: केवल GST स्लैब तर्कसंगतीकरण से निर्यात प्रतिस्पर्द्धा नहीं बढ़ सकती, जब तक कि प्रमुख बाजारों में रणनीतिक व्यापार सुधार न किए जाएँ।
- उदाहरण के लिए: भारत के $48–60 अरब मूल्य के निर्यात पर अब भी अमेरिका 50% तक का शुल्क लगाता है, जबकि वियतनाम को वरीयतापूर्ण पहुँच प्राप्त है।
भारत की आर्थिक वृद्धि को बढ़ाने के उपाय
- संपत्ति मुद्रीकरण और विनिवेश: सरकारी हिस्सेदारी और परिसंपत्तियों का उपयोग करके बुनियादी ढाँचे के निर्माण तथा GST से उत्पन्न राजस्व अंतर को पूरा किया जा सकता है।
- उदाहरण के लिए: नीति आयोग ने अपनी नई मुद्रीकरण योजना से ₹6 लाख करोड़ जुटाने का लक्ष्य रखा है, जबकि केंद्रीय बजट 2025 में सरकार ने ₹10 लाख करोड़ तक की अनुमानित राशि का उल्लेख किया है।
- विकास के लिए संप्रभु धन कोष: सार्वजनिक उपक्रमों (PSUs) की अतिरिक्त हिस्सेदारी को एकत्र कर दीर्घकालिक सुधारों के लिए पूँजी जुटाई जा सकती है। इससे बुनियादी निवेश ढाँचा और आर्थिक सुधारों को स्थिर वित्तीय आधार मिलेगा।
- श्रम एवं कौशल सुधार: अप्रयुक्त श्रम कल्याण कोष (labour welfare funds) को पुनर्निर्देशित करके श्रमिकों को पुनः कौशल विकास और नई वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा के लिए तैयार किया जा सकता है।
- उदाहरण के लिए: श्रम कल्याण के लिए उपयोग नहीं किये गए 70,000 करोड़ रुपये से कौशल विकास कार्यक्रमों को बढ़ावा दिया जा सकता है।
- व्यावसायिक कानूनों का अपराधमुक्तीकरण: व्यावसायिक कानूनों में दंडात्मक प्रावधानों को हटाने से उद्यमियों के बीच भय-आधारित अनुपालन की प्रवृत्ति कम होगी और उद्यमशीलता को बढ़ावा मिलेगा।
- उदाहरण के लिए: आर्थिक सर्वेक्षण 2024 में कारावास की धाराओं वाले 800 से अधिक कानूनों में संशोधन का आह्वान किया गया।
- अनुसंधान एवं विकास तथा विनिर्माण पैमाने को प्रोत्साहित करना: अनुसंधान-प्रधान उद्योगों को लक्षित राजकोषीय सहायता प्रदान करने से भारत वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी ब्रांड तैयार कर सकता है। इससे न केवल घरेलू नवाचार को गति मिलेगी बल्कि निर्यात क्षमता भी मजबूत होगी।
निष्कर्ष
केलकर टास्क फोर्स, पंद्रहवें वित्त आयोग और अन्य विशेषज्ञ समितियों ने राजस्व वृद्धि सुनिश्चित करने के लिए एक स्थिर GST व्यवस्था, व्यापक कर आधार और कम से कम छूट की सिफारिश की है। यदि इन सुझावों को नीति आयोग की संपत्ति मुद्रीकरण योजना और आर्थिक सर्वेक्षण 2024 में प्रस्तावित विनियमन-शिथिलीकरण के साथ जोड़ा जाए, तो GST न केवल राजकोषीय संयम बनाए रखते हुए बल्कि उपभोग-आधारित विकास को भी गति देने वाला उत्प्रेरक सिद्ध हो सकता है।
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