Q. राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 द्वारा संचालित प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल एवं शिक्षा (ECCE) में प्रमुख संरचनात्मक बदलावों का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए। आंगनवाड़ियों से सरकारी स्कूलों में बच्चों के स्थानांतरण और आंगनवाड़ी प्रणाली के पुनर्विन्यास से जुड़े संभावित अवसरों और चुनौतियों पर चर्चा कीजिए। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 द्वारा संचालित प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा (ECCE) में प्रमुख संरचनात्मक परिवर्तन।
  • भारत में प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा (ECCE) में चुनौतियाँ।
  • आंगनवाड़ियों से सरकारी स्कूलों में बच्चों के स्थानांतरण से जुड़े संभावित अवसर और चुनौतियाँ।
  • आंगनवाड़ी प्रणाली के पुनर्विन्यास से जुड़े संभावित अवसर और चुनौतियाँ।

उत्तर

भारत में लगभग 14 लाख आंगनवाड़ी केंद्र लगभग 8 करोड़ बच्चों को सेवाएँ प्रदान करते हैं, जिससे व्यापक ECCE कवरेज प्राप्त होता है, परंतु शिक्षण परिणाम अपेक्षाकृत कमजोर रहते हैं। राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 ने इस स्थिति को सुधारने के लिए ECCE को 5+3+3+4 मॉडल में समाहित किया है, जिसका लक्ष्य वर्ष 2030 तक सार्वभौमिक पहुँच और गुणवत्तापूर्ण प्रारंभिक शिक्षा सुनिश्चित करना है।

NEP 2020 द्वारा ECCE में प्रमुख संरचनात्मक परिवर्तन 

  • नई 5+3+3+4 संरचना: पूर्व-प्राथमिक (3-6 वर्ष) तथा कक्षा 1 और 2 को मिलाकर फाउंडेशनल स्टेज में सम्मिलित करता है, जिसका केंद्र बिंदु खेल-आधारित शिक्षा है।
  • स्कूलों में बाल वाटिकाओं की शुरुआत: सरकारी स्कूलों में 3-6 वर्ष के बच्चों के लिए खेल-आधारित प्री-प्राइमरी कक्षाएँ शुरू हो रही हैं। 
    • उदाहरण: राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में वर्ष 2030 तक सभी 3-6 वर्ष के बच्चों के लिए ECCE तक सार्वभौमिक पहुँच की परिकल्पना की गई है, मुख्य रूप से मौजूदा स्कूल बुनियादी ढाँचे में एकीकृत बाल वाटिकाओं के माध्यम से।
  • विविध फोकस: NEP ने स्वास्थ्य और पोषण जैसी अन्य ECCE सेवाओं की तुलना में शिक्षा पर अधिक बल दिया है।
  • ECCE के प्रभार को MWCD से शिक्षा मंत्रालय में स्थानांतरित करना: प्रारंभिक बाल्यावस्था शिक्षा को मूलभूत साक्षरता लक्ष्यों के साथ संरेखित करता है। 
    • उदाहरण: NCERT ने निपुण भारत मिशन के तहत कक्षा 1 के विद्यार्थियों के लिए विद्या प्रवेश नामक एक नया खेल-आधारित पाठ्यक्रम विकसित किया है।
  • 0-3 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए गृह-आधारित शिक्षा की भूमिका में वृद्धि: आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को घर-घर भ्रमण करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। 
    • उदाहरण: प्रथम के सहयोग से ओडिशा में किए गए येल विश्वविद्यालय के एक अध्ययन में प्रारंभिक बाल विकास कार्यक्रमों में गृह भ्रमण की महत्त्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित किया गया है।

हालाँकि, NEP-2020 के परिवर्तनकारी दृष्टिकोण को जमीनी स्तर पर गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जो न्यायसंगत और प्रभावी ECCE वितरण में बाधा बन सकती हैं।

ECCE कार्यान्वयन में चुनौतियाँ

  • ECCE शिक्षकों का अपर्याप्त प्रशिक्षण: अधिकांश आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को शिक्षणशास्त्र में औपचारिक प्रशिक्षण का अभाव होता है।
  • राज्य-स्तरीय असमानताएँ: विभिन्न क्षेत्रों में असमान कार्यान्वयन, राष्ट्रीय प्रगति में बाधा डालता है। 
    • उदाहरण: उत्तर प्रदेश और बिहार ने बाल वाटिका निधि का कम उपयोग किया तथा बाल जनसंख्या अधिक होने के बावजूद वे इसके क्रियान्वयन में पीछे रह गए।
  • सरकारी स्कूलों में बुनियादी ढाँचे की कमी: कई स्कूलों में सुरक्षित और रोचक प्री-स्कूलिंग हेतु सुविधाओं का अभाव है। 
    • उदाहरण के लिए: UDISE 2023–24 के अनुसार, बिहार के लगभग पाँचवें हिस्से के स्कूलों में बिजली नहीं है।
  • आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं पर अत्यधिक भार: आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं पर बिना किसी अतिरिक्त सहायता के पोषण और शिक्षा की दोहरी जिम्मेदारी रहती है।

आंगनवाड़ी से सरकारी स्कूलों में स्थानांतरण के अवसर और चुनौतियाँ

अवसर

  • ECCE पहुँच में समानता: निजी और सार्वजनिक प्रणालियों के बीच शिक्षण में व्याप्त अंतर को कम करना।
  • व्यावसायिक शिक्षण संसाधन: स्कूल, आँगनवाड़ियों की तुलना में बेहतर प्रशिक्षित शिक्षक प्रदान कर सकते हैं।
    • उदाहरण के लिए, NEP-2020 स्कूलों में बेहतर शिक्षण पद्धति के लिए निपुण भारत के अंतर्गत शिक्षकों के लिए ECCE प्रशिक्षण अनिवार्य करता है।
  • बेहतर शिक्षण निरंतरता: पूर्व-प्राथमिक से प्राथमिक कक्षाओं तक सहज प्रगति को सक्षम बनाता है। 
    • उदाहरण: 3–8 वर्ष की फाउंडेशनल स्टेज से कक्षा 1 में अचानक होने वाले परिवर्तन की चुनौती कम होती है, जिससे नामांकन और साक्षरता दर बढ़ती है।
  • अभिभावकों का बढ़ता विश्वास: औपचारिक स्कूलों को आंगनवाड़ियों की तुलना में शैक्षणिक रूप से अधिक सशक्त माना जाता है। 
    • उदाहरण: ASER 2024 के अनुसार, 3 वर्षीय बच्चों के नामांकन में वृद्धि (वर्ष 2018 में 68.1% से बढ़कर 77.4%) औपचारिक पूर्व-प्राथमिक संस्थानों में माता-पिता के बढ़ते विश्वास को दर्शाती है।

चुनौतियाँ

  • ‘स्कूलिफिकेशन का जोखिम: प्री-स्कूलों में कठोर शिक्षण, खेल-आधारित शिक्षा की भावना को कमजोर कर सकता है।
  • 0-3 आयु वर्ग की उपेक्षा: आंगनवाड़ियों के मात्र पोषण केंद्र बनकर रह जाने का खतरा है, जिससे शिशुओं की समग्र देखभाल प्रभावित हो सकती है।
  • संसाधन असंतुलन: आंगनवाड़ियों को पर्याप्त बजट और स्टॉफ की कमी का सामना करना पड़ सकता है।

आंगनवाड़ी प्रणाली के पुनर्विन्यास से जुड़े संभावित अवसर और चुनौतियाँ।

अवसर

  • केंद्रित प्रारंभिक मध्यक्षेप: आंगनवाड़ियों को 0-3 वर्ष की आयु की देखभाल पर केंद्रित करने से प्रथम 1,000 दिनों में लक्षित देखभाल संभव हो पाती है।
    •  उदाहरण के लिए: शोध से पता चलता है कि 80% मस्तिष्क का विकास 3 वर्ष की आयु से पूर्व ही हो जाता है, जिससे प्रारंभिक मध्यक्षेप महत्त्वपूर्ण हो जाता है।
  • बेहतर मातृ सहायता: घर-घर भ्रमण से गर्भवती और स्तनपान कराने वाली माताओं को पोषण और स्वच्छता से संबंधित व्यक्तिगत परामर्श दिया जा सकता है। 
    • उदाहरण: ब्राजील के ‘क्रिआंचा फेलिज’  कार्यक्रम ने घर-घर भ्रमण करके परामर्श दिए जाने के माध्यम से मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य में सुधार किया।
  • केंद्रों पर कम कार्यभार: 3-6 वर्ष के बच्चों को स्कूलों में स्थानांतरित करने से आंगनवाड़ी केंद्रों को शिशु देखभाल और मातृ स्वास्थ्य में विशेषज्ञता हासिल करने की स्वतंत्रता मिलती है।

चुनौतियाँ

  • कार्यबल प्रशिक्षण की आवश्यकता: आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को गृह आधारित परामर्श और शिशु विकास तकनीकों के लिए व्यापक प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है।
  • लॉजिस्टिक्स तंत्र और निगरानी संबंधी मुद्दे: विविध ग्रामीण क्षेत्रों में नियमित गृह-भ्रमण और गुणवत्ता की निगरानी सुनिश्चित करना जटिल है।
  • 3-6 आयु वर्ग की संभावित उपेक्षा: यदि स्कूल बाल वाटिकाओं के पास पर्याप्त संसाधन नहीं हैं, तो 0-3 वर्ष पर ध्यान केंद्रित करने से 3-6 वर्ष के बच्चों का वर्ग हाशिये पर जा सकता है।

निष्कर्ष

राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 द्वारा प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल एवं शिक्षा का परिवर्तन, समानता एवं समग्र विकास की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है। आगे चलकर पर्याप्त वित्तीय संसाधन, केंद्र-राज्य समन्वय और ECCE कार्मिकों का क्षमता निर्माण ही इस महत्त्वाकांक्षी दृष्टि को साकार करने की कुंजी होंगे।

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