प्रश्न की मुख्य मांग:
- समकालीन अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में “तीक्ष्ण शक्ति” की अवधारणा का परीक्षण करें।
- समकालीन अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में तीक्ष्ण शक्ति के समक्ष आने वाली चुनौतियों पर प्रकाश डालिए।
- विश्लेषण करें कि यह मृदु शक्ति और कठोर शक्ति की पारंपरिक धारणाओं से किस प्रकार भिन्न है।
- वैश्विक कूटनीति और भू-राजनीति के लिए इसके निहितार्थों का मूल्यांकन करें।
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उत्तर:
तीक्ष्ण शक्ति का तात्पर्य सत्तावादी शासन द्वारा प्रयोग की जाने वाली ऐसी रणनीतियाँ हैं जिनका प्रयोग अन्य राष्ट्रों में लोकतांत्रिक संस्थाओं तथा जनमत को प्रभावित करने के लिए किया जाता है । इंटरनेशनल फ़ोरम फ़ॉर डेमोक्रेटिक स्टडीज़ के अनुसार , तीक्ष्ण शक्ति रणनीति में भ्रामक सूचना , साइबर हमले तथा मीडिया नियंत्रण जैसी गतिविधियां मुख्य हैं , जो वैश्विक लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं और स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण चुनौतियाँ प्रस्तुत करते हैं।
समकालीन अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में “तीक्ष्ण शक्ति” की अवधारणा:
- भ्रामक प्रचार (Manipulative Propaganda): तीक्ष्ण शक्ति के अंतर्गत लक्षित देशों में जनमत एवं राजनीतिक परिणामों में हेरफेर करने के लिए भ्रामक सूचना तथा प्रचार को प्रसारित किया जाता है। उदाहरण के लिए: सोशल मीडिया अभियानों तथा हैकिंग ऑपरेशनों के माध्यम से 2016 के अमेरिकी चुनावों में रूस द्वारा हस्तक्षेप किया गया , जिसका उद्देश्य जनमत को प्रभावित करना साथ ही लोकतांत्रिक संस्थानों में विश्वास को कम करना था।
- साइबर हमले एवं जासूसी: साइबर हमलों का प्रयोग राजनीतिक प्रक्रियाओं को बाधित करने , संवेदनशील जानकारी चुराने तथा विरोधियों के तकनीकी संरचना को दुर्बल करने के लिए किया जाता है।
उदाहरण के लिए: विभिन्न राष्ट्रों के विरुद्ध चीन द्वारा साइबर जासूसी के आरोप रणनीतिक लाभ प्राप्त करने तथा राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता करने के लिए साइबर हमलों के प्रयोग को उजागर करते हैं ।
- मीडिया नियंत्रण एवं प्रभाव: सत्तावादी शासन घरेलू एवं अंतर्राष्ट्रीय धारणाओं को प्रभावित करने के लिए अनुकूल आख्यान का प्रसार करने तथा असहमति की आवाज़ों के दमन के लिए मीडिया नियंत्रण का उपयोग करती हैं।
उदाहरण के लिए: चीन के राज्य-नियंत्रित मीडिया एवं “50 सेंट आर्मी” का उपयोग सोशल मीडिया पर चीन समर्थक सामग्री का प्रसार करने , सार्वजनिक विमर्श को आकार देने तथा आलोचना को दबाने के लिए किया जाता है।
- कूटनीतिक दबाव: तीक्ष्ण शक्ति में आर्थिक दबाव एवं रणनीतिक गठबंधन जैसे कूटनीतिक उपाय के द्वारा अन्य देशों को अधिनायकवादी एजेंडे के अनुपालन के लिए मजबूर किया जाता है । उदाहरण के लिए: चीन की बेल्ट और रोड इनिशिएटिव को भाग लेने वाले देशों पर आर्थिक प्रभाव एवं राजनीतिक दबाव डालने का एक साधन माना जाता है।।
- सांस्कृतिक एवं शैक्षणिक प्रभाव: सत्तावादी शासन अनुकूल विचारों को प्रोत्साहित करने तथा लोकतांत्रिक मूल्यों को दुर्बल करने के लिए सांस्कृतिक एवं शैक्षणिक गतिविधियों में निवेश करते हैं ।
उदाहरण के लिए: चीन द्वारा वित्त पोषित कन्फ्यूशियस संस्थान विश्व के विश्वविद्यालयों में चीनी संस्कृति का प्रसार करने तथा शैक्षणिक विमर्श को प्रभावित करने के उद्देश्य से स्थापित किए गए हैं,जिसमे कभी-कभी शैक्षणिक स्वतंत्रता की अनदेखी की जाती है।
समकालीन अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में तीक्ष्ण शक्ति के समक्ष आने वाली चुनौतियाँ:
- लोकतांत्रिक संस्थाओं का ह्रास: सत्ता की तीक्ष्ण रणनीति लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की विश्वसनीयता को कमजोर करती है , जिससे सार्वजनिक विश्वास कम होता है साथ ही शासन संरचना दुर्बल होती है ।
उदाहरण के लिए: चुनावों के दौरान फर्जी समाचारों एवं गलत सूचनाओं का प्रसार , जैसा कि विभिन्न देशों में देखा गया है, जो मतदाताओं को भ्रमित करके लोकतंत्र की नींव को कमजोर करता है ।
- तकनीकी कमज़ोरियाँ: डिजिटल तकनीकों पर बढ़ती निर्भरता देशों को साइबर हमलों तथा जासूसी के लिए भेद्य बनाती हैं , जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा एवं आर्थिक स्थिरता से समझौता होता है ।
उदाहरण के लिए : असहमति के दमन एवं निगरानी के लिए सऊदी अरब द्वारा कथित पेगासस जैसे स्पाइवेयर का उपयोग व्यक्तिगत गोपनीयता तथा राज्य की सुरक्षा के लिए एक गंभीर ख़तरा बन गया है।
- ध्रुवीकरण एवं सामाजिक विभाजन: तीक्ष्ण शक्ति सामाजिक एवं राजनीतिक विभाजन का लाभ उठाती है , तथा विभिन्न अराजक समूहों के निर्माण को उत्तेजित करती है साथ ही सामाजिक ध्रुवीकरण को गहरा करती है ।
उदाहरण के लिए: बाह्य तत्वों द्वारा विभाजनकारी मुद्दों को बढ़ाने के लिए सोशल मीडिया का उपयोग विभिन्न लोकतंत्रों में देखा गया है, जिससे राजनीतिक एवं सामाजिक तनाव बढ़ जाते हैं।
- अंतर्राष्ट्रीय तनाव एवं संघर्ष: तीक्ष्ण शक्ति रणनीतियां अंतर्राष्ट्रीय विवादों को जन्म दे सकती हैं , राजनयिक संबंधों में तनाव उत्पन्न कर सकती हैं तथा संभावित रूप से संघर्षों को उत्तेजित कर सकती हैं ।
उदाहरण के लिए: अमेरिका एवं रूस के मध्य घरेलू मामलों में हस्तक्षेप के आरोप तनाव एवं भू-राजनीतिक अस्थिरता को बढ़ाने में योगदान करते हैं।
- नैतिक और कानूनी चुनौतियाँ: तीक्ष्ण शक्ति का सामना करने के लिए जटिल नैतिक और कानूनी परिदृश्यों को नेविगेट करना, तथा नागरिक स्वतंत्रता के साथ सुरक्षा उपायों को संतुलित करना आवश्यक है ।
उदाहरण के लिए: व्यक्तिगत अधिकारों एवं स्वतंत्रता की सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए मजबूत साइबर सुरक्षा कानूनों को लागू करना लोकतंत्रों के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती है।
तीक्ष्ण शक्ति, मृदु शक्ति एवं कठोर शक्ति की पारंपरिक धारणाओं से किस प्रकार भिन्न है:
- गुप्त बनाम प्रत्यक्ष प्रभाव: तीक्ष्ण शक्ति चालाकी एवं धोखे के माध्यम से गुप्त रूप से कार्य करती है , जबकि मृदु शक्ति आकर्षण एवं अनुनय पर निर्भर करती है ।
उदाहरण के लिए: जहां अमेरिका अपने मूल्यों को बढ़ावा देने के लिए सांस्कृतिक कूटनीति (मृदु शक्ति) का उपयोग करता है ,वहीं रूस अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए गलत सूचना अभियानों (तीक्ष्ण शक्ति) का उपयोग करता है ।
- हेरफेर बनाम अनुनय (Manipulation vs. Persuasion) : तीक्ष्ण शक्ति जानकारी में हेरफेर एवं उसे विकृत करने का प्रयास करता है , जबकि मृदु शक्ति का उद्देश्य सांस्कृतिक एवं वैचारिक विमर्श के माध्यम से वास्तव में सहमत करना है । उदाहरण के लिए: चीन का राज्य-नियंत्रित मीडिया अनुकूल आख्यान (तीक्ष्ण शक्ति) प्रसारित करता है , जबकि बीबीसी ब्रिटिश संस्कृति एवं मूल्यों ( मृदु शक्ति) को बढ़ावा देता है ।
- गैर-सैन्य बलप्रयोग : जहां कठोर शक्ति के अंतर्गत सैन्य एवं आर्थिक दबाव का प्रयोग किया जाता है , वहीं तीक्ष्ण शक्ति के अंतर्गत रणनीतिक उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए गैर-सैन्य साधनों का उपयोग किया जाता है। उदाहरण के लिए: चुनावी प्रक्रियाओं को बाधित करने के लिए आर्थिक प्रतिबंध (कठोर शक्ति) बनाम साइबर हमले (तीक्ष्ण शक्ति)।
- विश्वास को कमजोर करना बनाम विश्वास का निर्माण: तीक्ष्ण शक्ति संस्थाओं एवं सूचना में विश्वास को कमजोर करता है , जबकि मृदु शक्ति विश्वास एवं सकारात्मक संबंधों का निर्माण करती है। उदाहरण के लिए:
लोकतांत्रिक संस्थाओं को बदनाम करने के लिए प्रचार अभियान (तीक्ष्ण शक्ति) बनाम आपसी समझ को बढ़ावा देने वाले शैक्षिक आदान-प्रदान कार्यक्रम (मृदु शक्ति)।
- सूचना परिवेश पर ध्यान केंद्रित करना : तीक्ष्ण शक्ति विशेष रूप से सूचना वातावरण को लक्षित करती है ताकि आख्यान एवं धारणाएँ नियंत्रित की जा सकें, जबकि मृदु एवं कठोर शक्ति के दृष्टिकोण व्यापक होते हैं।
उदाहरण के लिए: रूस द्वारा जनमत को प्रभावित करने के लिए सोशल मीडिया बॉट्स का उपयोग किया जाता है जो कि पारंपरिक कूटनीति या सैन्य रणनीतियों के विपरीत है।
वैश्विक कूटनीति एवं भूराजनीति पर प्रभाव:
- सत्ता की गतिशीलता में परिवर्तन : तीक्ष्ण शक्ति वैश्विक शक्ति गतिशीलता को परिवर्तित कर देती है जिससे अधिनायकवादी व्यवस्थाएँ प्रत्यक्ष संघर्ष के बिना प्रभाव डाल सकती हैं।
उदाहरण के लिए: अफ्रीका एवं एशिया में चीन के प्रभावपूर्ण संचालन ने पारंपरिक पश्चिमी प्रभुत्व को चुनौती देते हुए गठबंधनों एवं निर्भरताओं को नया आकार दिया है।
- भू-राजनीतिक तनाव में वृद्धि: तीक्ष्ण शक्ति का उपयोग भू-राजनीतिक तनाव को बढ़ा सकता है , जिससे संघर्ष एवं प्रतिद्वंद्विता उत्पन्न हो सकती है ।
उदाहरण के लिए: साइबर जासूसी एवं प्रभाव संचालन के आरोपों से यू.एस.-चीन प्रतिद्वंद्विता में वृद्धि हुई है।
- लोकतांत्रिक मानदंडों के लिए चुनौतियाँ: तीक्ष्ण शक्ति लोकतांत्रिक मानदंडों एवं मूल्यों को कमजोर करती है , जिससे वैश्विक लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए खतरा उत्त्पन्न होता है । उदाहरण के लिए:
यूरोपीय चुनावों में रूसी हस्तक्षेप लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं एवं संस्थानों की विश्वसनीयता को चुनौती देता है।
- सुरक्षा उपायों को मजबूत करने की आवश्यकता: लोकतंत्रों को सत्ता की तीक्ष्ण रणनीतियों का सामना करने के लिए साइबर सुरक्षा एवं सूचना प्रामाणिकता उपायों को बेहतर करना चाहिए । उदाहरण के लिए: यूरोपीय संघ के सामान्य डेटा संरक्षण विनियमन (जीडीपीआर) का उद्देश्य नागरिकों के डेटा एवं गोपनीयता को बाह्य अतिक्रमण से बचाना है।
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता: तीक्ष्ण शक्ति का सामना करने के लिए वैश्विक सुरक्षा एवं स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए समन्वित अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों की आवश्यकता है ।
उदाहरण के लिए: नाटो के सहकारी साइबर रक्षा उत्कृष्टता केंद्र (CCDCOE) जैसी बहुपक्षीय पहल सामूहिक साइबर सुरक्षा क्षमताओं को बेहतर करती है।
तीक्ष्ण शक्ति का सामना करने के लिए उन्नत तकनीकी सुरक्षा , मजबूत लोकतांत्रिक लचीलापन एवं अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता है । लोकतंत्रों को गुप्त प्रभाव के विकसित हो रहे परिदृश्य के अनुकूल होना चाहिए तथा पारदर्शिता, सुरक्षा एवं नैतिक शासन सुनिश्चित करना चाहिए। वैश्विक सहयोग एवं नवाचार को बढ़ावा देकर , हम तीक्ष्ण शक्ति की चुनौतियों के बीच लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा कर सकते हैं साथ ही भू-राजनीतिक स्थिरता बनाए रख सकते हैं।
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