Q. भारत के मौसम अवलोकन नेटवर्क में मौजूदा कमियों की जाँच कीजिये। इन कमियों को दूर करके चरम मौसम के लिए पूर्व चेतावनी प्रणालियों की प्रभावशीलता में कैसे सुधार किया जा सकता है? (10अंक, 150 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • भारत के मौसम अवलोकन नेटवर्क में मौजूदा कमियों  का परीक्षण कीजिए।
  • चर्चा कीजिए कि इन कमियों को संबोधित करने से चरम मौसम के लिए पूर्व चेतावनी प्रणालियों की प्रभावशीलता में किस प्रकार सुधार होता है।

उत्तर

भारत का मौसम अवलोकन नेटवर्क, चरम मौसम के प्रभाव को कम करने तथा उनका पूर्वानुमान लगाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस संबंध में देश ने 39 ‘डॉपलर वेदर रडारों’ (DWR) की स्थापना और अवलोकन प्रणालियों के बढ़ते नेटवर्क के साथ प्रगति तो की है, फिर भी कई सारी कमियाँ बनी हुई हैं। ये कमियाँ प्रारंभिक चेतावनी क्षमताओं को सीमित करती हैं, जिससे कई सुभेद्य क्षेत्र गंभीर मौसमी घटनाओं से प्रभावित हो जाते हैं।

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भारत के मौसम अवलोकन नेटवर्क में कमियाँ

  • डॉपलर मौसम रडार का सीमित कवरेज: वर्तमान में, भारत में केवल 39 डॉपलर मौसम रडार हैं। विशेष रूप से पश्चिमी तट और प्रमुख शहरी केंद्रों जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में इनकी संख्या अत्यधिक कम है। 
    • उदाहरण के लिए: पश्चिमी तट के चक्रवात प्रवण क्षेत्रों (अहमदाबाद और बेंगलुरु) में अपर्याप्त रडार कवरेज है, जिससे तूफान के प्रभावी पूर्वानुमान की संभावना कम हो जाती है।
  • अपर्याप्त बाढ़ कवरेज: भारत में बाढ़-प्रवण आबादी का केवल एक तिहाई हिस्सा ही पूर्व चेतावनी प्रणालियों द्वारा कवर किया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप कई सुभेद्य क्षेत्रों की पर्याप्त कवरेज नहीं हो पाती है।
    • उदाहरण के लिए: पूर्वी उत्तर प्रदेश और असम (जो मानसूनी बाढ़ के प्रति अत्यधिक संवेदनशील हैं) जैसे क्षेत्रों में अक्सर समय पर पूर्व चेतावनी संकेत नहीं मिल पाते हैं।
  • शहरी क्षेत्र की भेद्यता: मुंबई और चेन्नई जैसे प्रमुख शहर अक्सर बाढ़ की चपेट में रहते हैं परंतु स्थानीय मौसम पूर्वानुमान उपकरणों की अनुपस्थिति उनकी भेद्यता को बढ़ा देती है।
  • मौसम डेटा तक सीमित पहुँच: भारत में मौसम डेटा की उपलब्धता सीमित है जिसके परिणामस्वरूप शोधकर्ता और नवप्रवर्तक, स्थानीय पूर्वानुमान मॉडल और तकनीक नहीं विकसित कर पाते हैं। 
    • उदाहरण के लिए: अमेरिका में जहाँ मौसम डेटा तक खुली पहुँच ने नवाचार को बढ़ावा दिया है वहीं भारत में मौसम डेटा की पहुँच से संबंधित प्रतिबंध, बेहतर पूर्वानुमान उपकरणों के विकास को रोकते हैं।
  • उन्नत तकनीकों का सीमित उपयोग: भारत की मौसम पूर्वानुमान प्रणाली में मशीन लर्निंग और AI जैसी उन्नत तकनीकों का कम उपयोग किया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप परिणामों में देरी या गलत पूर्वानुमान होते हैं। 
    • उदाहरण के लिए: वर्ष 2019 की बिहार बाढ़  के पूर्वानुमान में देरी के कारण हालात और भी बदतर हो गये थे, जिसे AI-संचालित मॉडल का उपयोग करके सुधारा जा सकता था ।
  • पुराने संचार चैनल: IMD के मौसम संबंधी जानकारी देने वाले ऐप और वेबसाइट, यूजरफ्रेंडली नहीं हैं, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों के लिए, जिससे तत्काल चेतावनी देने में उनकी प्रभावशीलता कम हो जाती है।
  • ‘लास्टमाइल कनेक्टिविटी’ का अभाव: कई दूरदराज या अविकसित क्षेत्रों, विशेष रूप से बाढ़-प्रवण क्षेत्रों में, सही समय पर प्रारंभिक चेतावनी नहीं मिलती है, जिससे सुभेद्य आबादी खतरे में पड़ जाती है।

प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों में सुधार के लिए कमियों को दूर करना

  • रडार नेटवर्क का विस्तार: डॉप्लर मौसम रडारों की संख्या में बढ़ोत्तरी करने से ‘स्थानीय स्तर पर मौसम की ट्रैकिंग’ में सुधार होगा जिससे चरम मौसमी घटनाओं के लिए बेहतर प्रारंभिक चेतावनी प्रदान करना संभव हो पायेगा। 
    • उदाहरण के लिए: चक्रवात-प्रवण क्षेत्रों में रडारों की संख्या बढ़ाने से तूफानों के पूर्वानुमान की सटीकता में सुधार होगा।
  • बाढ़ चेतावनी कवरेज में सुधार: सभी बाढ़-प्रवण क्षेत्रों में पूर्व चेतावनी प्रणाली स्थापित करने से तत्परता में सुधार हो सकता है और समुदायों पर बाढ़ का प्रभाव कम हो सकता है।
    • उदाहरण के लिए: बेहतर बाढ़ चेतावनी प्रणाली लागू करने से मौसमी मानसून से होने वाले नुकसान को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
  • शहरी पूर्वानुमान प्रणालियों को मजबूत करना: शहरी क्षेत्रों में बाढ़ संबंधित पूर्वानुमानों की सटीकता में सुधार करने और आपातकालीन प्रतिक्रिया को तेज करने के लिए अधिक स्थानीयकृत मौसम अवलोकन स्टेशनों की आवश्यकता है। 
    • उदाहरण के लिए: मुंबई में स्थानीयकृत मौसम स्टेशन स्थापित करके समय से पहले ही बाढ़ की चेतावनी देते हुये, वर्ष 2005 की भयावह बाढ़ जैसी घटनाओं को रोका जा सकता है।
  • नवाचार के लिए ओपेन डेटा शेयरिंग: मौसम संबंधी डेटा तक खुली पहुँच की अनुमति देने से शोधकर्ताओं और अन्वेषकों को स्थानीयकृत प्रारंभिक चेतावनियों के लिए अधिक प्रभावी उपकरण विकसित करने हेतु प्रोत्साहित किया जा सकता है। 
    • उदाहरण के लिए: अमेरिका में ओपेन एक्सेस मौसम संबंधी डेटा सिस्टम ने ऐसे ऐप्स का विकास करने में सहायता की है जो हाइपर-लोकलाइज्ड मौसम पूर्वानुमान प्रदान करते हैं। 
  • उन्नत पूर्वानुमान प्रौद्योगिकियों को शामिल करना:  पूर्वानुमानित मॉडलिंग के लिए AI और मशीन लर्निंग का उपयोग, मौसम पूर्वानुमान की सटीकता और समयबद्धता को बढ़ाएगा।
    • उदाहरण के लिए: भारत की पूर्वानुमान प्रणाली में AI मॉडल को एकीकृत करने से, पूर्वानुमान में होने वाली देरी को रोका जा सकता है।
  • चेतावनियों के लिए यूजर एक्सपीरियंस को बेहतर बनाना: मौसम संबंधी ऐप्स और वेबसाइटों के यूजर इंटरफेस में सुधार करके यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि चेतावनियों को आसानी से समझा जा सके और उन पर कार्रवाई की जा सके, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में। 
    • उदाहरण के लिए: जापान में, लोगों को आसानी से समझ आ सकने वाली प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियाँ, सुनामी के दौरान त्वरित निकासी सुनिश्चित करने में अत्यधिक प्रभावी साबित हुई हैं।
  • ‘लास्टमाइलकनेक्टिवटी’ को मजबूत करना: दूरदराज के क्षेत्रों में प्रारंभिक चेतावनी प्रदान करने के लिए बेहतर बुनियादी ढाँचे का विकास करना आवश्यक है जो यह सुनिश्चित करेगा कि सुभेद्य  आबादी को समय पर अलर्ट प्राप्त हो

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भारत के मौसम अवलोकन नेटवर्क की कमियों को दूर करके चरम मौसम के लिए पूर्व चेतावनी प्रणालियों की प्रभावशीलता में उल्लेखनीय वृद्धि की जा सकती है। रडार कवरेज का विस्तार करके, डेटा पहुँच में सुधार करके और उन्नत तकनीकों का लाभ उठाकर, भारत एक ऐसा भविष्य बना सकता है जहाँ उसके नागरिक बार-बार होने वाली चरम मौसम की घटनाओं से सुरक्षित रहें।

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