Q. "भारत में शिक्षा का उपनिवेशीकरण पाठ्यक्रम सुधारों से आगे बढ़ना चाहिए।" भारतीय शैक्षणिक संस्थानों में औपचारिक संगठनों जैसी प्रतीकात्मक प्रथाओं के संदर्भ में इस कथन का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिए। (10 अंक, 150 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • भारतीय शैक्षणिक संस्थानों में प्रतीकात्मक प्रथाओं एवं उनकी औपनिवेशिक विरासत पर प्रकाश डालिए।
  • औपचारिक परिधानों जैसी प्रतीकात्मक प्रथाओं के संदर्भ में भारत में शिक्षा को उपनिवेश से मुक्त करने की आवश्यकता का विश्लेषण कीजिए। 
  • पाठ्यक्रम सुधारों से परे भारत में शिक्षा को उपनिवेश मुक्त करने के उपाय प्रदान कीजिए।

उत्तर

शिक्षा के उपनिवेशीकरण में उन औपनिवेशिक प्रभावों को समाप्त करना शामिल है, जो प्रणालियों एवं प्रथाओं में बने रहते हैं। भारत में, यह प्रयास अक्सर पाठ्यक्रम सुधारों पर केंद्रित होता है, लेकिन भारतीय शैक्षणिक संस्थानों में औपचारिक संगठनों जैसी प्रतीकात्मक प्रथायें औपनिवेशिक विरासत को भी दर्शाते हैं। उदाहरण के लिए, दीक्षांत समारोहों में अकादमिक राजचिह्न अभी भी ब्रिटिश परंपराओं को प्रतिबिंबित करते हैं, जो शैक्षणिक संस्थानों की गहरी सांस्कृतिक स्वायत्तता पर प्रश्न उठाते हैं। इसके लिए ऐसी प्रथाओं के व्यापक पुनर्मूल्यांकन की आवश्यकता है।

Enroll now for UPSC Online Course

भारतीय शैक्षणिक संस्थानों में प्रतीकात्मक प्रथाएँ एवं उनकी औपनिवेशिक विरासत

  • सफलता के प्रतीक के रूप में पश्चिमी राजचिह्न: स्नातक टोपी एवं गाउन, एक पश्चिमी परंपरा, भारत में शैक्षणिक उपलब्धि का प्रतीक बनी हुई है, जो स्वदेशी पोशाक पर हावी है। 
    • उदाहरण के लिए: दिल्ली विश्वविद्यालय जैसे भारतीय विश्वविद्यालय स्नातक स्तर की पढ़ाई के दौरान पश्चिमी राजचिह्न का उपयोग करना जारी रखते हैं, जो औपनिवेशिक प्रभाव को दर्शाता है।
  • एकरूपता थोपना: पश्चिमी शैक्षणिक पोशाक एकरूपता लागू करती है, एक विलक्षण वैश्विक मानक के पक्ष में भारत की सांस्कृतिक विविधता को दरकिनार करती है। 
  • पहचान पर औपनिवेशिक प्रभाव: शैक्षणिक सफलता के पश्चिमी प्रतीक छात्रों के दिमाग में छा गए हैं, जो उपलब्धि के भारतीय सांस्कृतिक प्रतीकों पर भारी पड़ रहे हैं। 
    • उदाहरण के लिए: छात्र अक्सर साड़ी जैसी पारंपरिक पोशाक के बजाय गाउन को अधिक औपचारिक एवं विद्वतापूर्ण मानते हैं।
  • स्वदेशी परंपराओं का उन्मूलन: पगड़ी एवं साड़ी जैसे पारंपरिक शैक्षणिक प्रतीकों को पश्चिमी राजशाही के पक्ष में नजरअंदाज कर दिया गया है, जिससे भारत का सांस्कृतिक प्रतिनिधित्व कम हो गया है। 
    • उदाहरण के लिए: भारतीय विश्वविद्यालय शैक्षणिक समारोहों के लिए क्षेत्रीय पोशाक विकल्पों की अनदेखी करते हुए मुख्य रूप से पश्चिमी शैली के गाउन का उपयोग करते हैं।
  • सांस्कृतिक समरूपीकरण: भारतीय संस्थानों में पश्चिमी पोशाक का व्यापक उपयोग एकरूपता को बढ़ावा देता है जो क्षेत्रीय एवं सांस्कृतिक भेदों को समाप्त देता है। 
    • उदाहरण के लिए: प्रीस्कूलों में, बच्चों को मिनी वेस्टर्न गाउन पहनाया जाता है, जिससे औपनिवेशिक शैक्षणिक परंपराओं को शुरुआत में ही मजबूती मिलती है।

प्रतीकात्मक प्रथाओं के संबंध में भारत में शिक्षा को उपनिवेश से मुक्त करने की आवश्यकता

  • सांस्कृतिक पहचान को पुनः प्राप्त करना: उपनिवेशवाद से मुक्ति की शिक्षा में भारत की विविध सांस्कृतिक विरासत को प्रतिबिंबित करने के लिए स्वदेशी पोशाक को अपनाना शामिल है। 
    • उदाहरण के लिए: विश्वविद्यालयों को दीक्षांत समारोह के दौरान छात्रों को साड़ी या कुर्ता जैसी क्षेत्रीय पोशाक पहनने की अनुमति देनी चाहिए।
  • स्थानीय उद्योगों को सशक्त बनाना: अकादमिक राजचिह्न में हथकरघा एवं पारंपरिक कपड़ों को बढ़ावा देना स्थानीय कारीगरों का समर्थन करता है तथा पश्चिमी कपड़ा उद्योगों पर निर्भरता कम करता है। 
    • उदाहरण के लिए: स्नातक स्तर की पढ़ाई में हथकरघा कपड़ों को अपनाने से भारत के कपड़ा कारीगरों को सशक्त बनाने एवं साटन गाउन पर निर्भरता कम करने में मदद मिलती है।
  • सफलता को पुनर्परिभाषित करना: स्थानीय पोशाक के साथ शैक्षणिक सफलता का जश्न मनाने से सफलता की धारणा पश्चिमी आदर्शों से भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों की ओर स्थानांतरित हो सकती है। 
    • उदाहरण के लिए: विश्वविद्यालय स्नातक स्तर की पढ़ाई के दौरान क्षेत्रीय पोशाक को प्रोत्साहित कर सकते हैं ताकि यह दिखाया जा सके कि सफलता का जश्न सांस्कृतिक गौरव के साथ मनाया जा सकता है।
  • औपनिवेशिक विरासत को चुनौती देना: शैक्षणिक समारोहों में पश्चिमी पोशाक से दूर जाने से शिक्षा में औपनिवेशिक पैटर्न को तोड़ने में मदद मिलती है। 
    • उदाहरण के लिए: MIT-WP विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोहों में पगड़ी एवं कुर्ते का उपयोग अकादमिक समारोहों को उपनिवेश से मुक्त करने का एक उदाहरण है।
  • कम उम्र से ही सांस्कृतिक गौरव को बढ़ावा देना: स्कूली स्नातक स्तर पर पारंपरिक पोशाक को प्रोत्साहित करना कम उम्र से ही सांस्कृतिक विरासत पर गर्व को बढ़ावा देता है। 
    • उदाहरण के लिए: स्कूली स्नातक स्तर की पढ़ाई में क्षेत्रीय पोशाक का परिचय बाद के शैक्षिक चरणों में सांस्कृतिक गौरव को अपनाने के लिए एक मिसाल कायम करता है।

पाठ्यचर्या सुधारों से परे भारत में शिक्षा को उपनिवेश मुक्त करने के उपाय

  • अकादमिक पोशाक कोड को नया रूप देना: भारतीय संस्थान सांस्कृतिक विविधता को प्रतिबिंबित करने के लिए पश्चिमी राजचिह्न को साड़ी या हथकरघा कपड़े जैसे स्वदेशी पोशाक से बदल सकते हैं। 
    • उदाहरण के लिए: स्नातक स्तर की पढ़ाई के दौरान खादी गाउन या क्षेत्रीय पोशाक के विकल्प पेश करना भारतीय सांस्कृतिक विरासत का सम्मान करता है।
  • सांस्कृतिक जागरूकता कार्यशालाएँ: शैक्षणिक संस्थान पारंपरिक पोशाक के महत्त्व पर कार्यशालाएँ आयोजित कर सकते हैं, जिससे छात्रों को समारोहों के दौरान सांस्कृतिक पोशाक अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके। 
  • दैनिक शैक्षणिक सेटिंग्स में विविध पोशाक को बढ़ावा देना: दैनिक शिक्षा सेटिंग्स में क्षेत्रीय पोशाक की अनुमति देने के लिए ड्रेस कोड में ढील देना सांस्कृतिक अभिव्यक्ति को बढ़ावा देता है। 
  • सांस्कृतिक आदान-प्रदान कार्यक्रमों को प्रोत्साहित करना: अंतर-सांस्कृतिक आदान-प्रदान कार्यक्रम भारत की क्षेत्रीय पोशाक एवं परंपराओं को उजागर कर सकते हैं, विविधता के लिए सराहना को बढ़ावा दे सकते हैं। 
    • उदाहरण के लिए: सांस्कृतिक आदान-प्रदान कार्यक्रम जहां छात्र क्षेत्रीय परिधान साझा करते हैं, विविधता के माध्यम से एकता को बढ़ावा देने में मदद करते हैं।
  • शैक्षणिक कार्यक्रमों में स्थानीय शिल्प को शामिल करना: क्षेत्रीय शिल्प एवं वस्त्रों को शैक्षणिक कार्यक्रमों में एकीकृत करना भारत की कलात्मक विरासत को प्रदर्शित कर सकता है। 
    • उदाहरण के लिए: अकादमिक राजचिह्न में मधुबनी कला जैसे स्थानीय शिल्प का उपयोग समारोहों के दौरान भारत की समृद्ध सांस्कृतिक परंपराओं को उजागर करता है।

Check Out UPSC CSE Books From PW Store

भारत में वास्तव में उपनिवेशमुक्त शिक्षा प्रणाली एक ऐसे भविष्य की कल्पना करती है, जहाँ पाठ्यक्रम से लेकर औपचारिक प्रथाओं तक हर पहलू देश की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है। शैक्षणिक राजचिह्न जैसे प्रतीकों को फिर से परिभाषित करके, संस्थान स्वदेशी परंपराओं में गर्व को प्रेरित कर सकते हैं, पहचान एवं अपनेपन की भावना को बढ़ावा दे सकते हैं जो पीढ़ियों को वैश्विक प्रामाणिकता के साथ नेतृत्व करने के लिए सशक्त बनाता है।

To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.

Need help preparing for UPSC or State PSCs?

Connect with our experts to get free counselling & start preparing

To Download Toppers Copies: Click here

Aiming for UPSC?
Begin Your |

Download Our App

      
Quick Revise Now !
AVAILABLE FOR DOWNLOAD SOON
UDAAN PRELIMS WALLAH
Comprehensive coverage with a concise format
Integration of PYQ within the booklet
Designed as per recent trends of Prelims questions
हिंदी में भी उपलब्ध
Quick Revise Now !
UDAAN PRELIMS WALLAH
Comprehensive coverage with a concise format
Integration of PYQ within the booklet
Designed as per recent trends of Prelims questions
हिंदी में भी उपलब्ध

<div class="new-fform">






    </div>

    Subscribe our Newsletter
    Sign up now for our exclusive newsletter and be the first to know about our latest Initiatives, Quality Content, and much more.
    *Promise! We won't spam you.
    Yes! I want to Subscribe.