प्रश्न की मुख्य माँग
- महत्त्वपूर्ण मेथेन उत्सर्जक होने के बावजूद भारत द्वारा वैश्विक मेथेन प्रतिज्ञा पर हस्ताक्षर न करने के कारणों का परीक्षण कीजिए।
- मेथेन उत्सर्जन की समस्या से निपटने के लिए भारत द्वारा अपनाई गई वैकल्पिक रणनीतियों का मूल्यांकन कीजिए।
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उत्तर
COP26 में शुरू की गई वैश्विक मेथेन प्रतिज्ञा (GMP) का लक्ष्य वर्ष 2030 तक वैश्विक मेथेन उत्सर्जन को वर्ष 2020 के स्तर से 30% कम करना है। विश्व का तीसरा सबसे बड़ा मेथेन उत्सर्जक (2024) होने के बावजूद, भारत ने अपनी कृषि अर्थव्यवस्था और लघु व सीमांत किसानों की आजीविका पर चिंताओं का हवाला देते हुए प्रतिज्ञा में शामिल होने से परहेज किया है।
भारत द्वारा वैश्विक मेथेन प्रतिज्ञा पर हस्ताक्षर न करने के कारण
- कृषि पर निर्भरता: भारत का कृषि क्षेत्र, विशेषकर चावल की खेती और पशुधन इसके मेथेन उत्सर्जन के 60% से अधिक के लिए जिम्मेदार है।
- आजीविका संबंधी चिंताएँ: मेथेन शमन उपायों से निर्वाह खेती और डेयरी फार्मिंग पर निर्भर लाखों लोगों की आजीविका को खतरा हो सकता है।
- उदाहरण: भारत में 80 मिलियन से अधिक डेयरी किसान हैं और पशुधन प्रबंधन में बदलाव से उनकी आय प्रभावित हो सकती है।
- व्यापारिक निहितार्थ: धान की खेती में मेथेन उत्सर्जन को कम करने से भारत की अग्रणी चावल निर्यातक की स्थिति प्रभावित हो सकती है, जिसकी विश्वव्यापी निर्यात में लगभग 40 प्रतिशत हिस्सेदारी है।
- उत्सर्जन वर्गीकरण: भारत अपने मेथेन उत्सर्जन को “सर्वाइवल उत्सर्जन” मानता है, जो विकसित देशों के ‘लक्जरी उत्सर्जन’ के विपरीत, जीविका के लिए आवश्यक है।
- जलवायु प्रतिबद्धताओं में संप्रभुता: भारत, बाह्य प्रतिज्ञाओं से बचते हुए UNFCCC और पेरिस समझौते के तहत प्रतिबद्धताओं का पालन करना पसंद करता है।
- उदाहरण: GMP, UNFCCC ढाँचे के बाहर काम करता है, जिसके कारण भारत भागीदारी में सावधानी बरतता है।
- CO2 में कमी पर ध्यान: यद्यपि मेथेन का एक अणु CO2 के एक अणु की तुलना में अधिक ऊष्मा अवशोषित करता है, फिर भी भारत कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) को कम करने को प्राथमिकता देता है, जिसका वातावरण में अवधिकाल सैकड़ों वर्ष या उससे अधिक होता है।
- तकनीकी और वित्तीय बाधाएँ: मेथेन न्यूनीकरण प्रौद्योगिकियों को लागू करने के लिए महत्त्वपूर्ण निवेश की आवश्यकता होती है। बुनियादी ढाँचे के समक्ष चुनौतियाँ खड़ी हो रही हैं।
मेथेन उत्सर्जन से निपटने के लिए भारत द्वारा अपनाई गई वैकल्पिक रणनीतियाँ
- राष्ट्रीय सतत् कृषि मिशन (NMSA): कृषि में मेथेन उत्सर्जन को कम करने के लिए जलवायु-अनुकूल प्रथाओं को बढ़ावा देता है।
- उदाहरण: चावल गहनता प्रणाली (SRI) को अपनाने से जल के उपयोग में 22-35% की कमी आई है और मेथेन उत्सर्जन कम हुआ है।
- जलवायु अनुकूल कृषि में राष्ट्रीय नवाचार (NICRA): खेती में मेथेन उत्सर्जन को कम करने के लिए प्रौद्योगिकियों का विकास करता है।
- उदाहरण: डॉयरेक्ट सीडेड राइस (DSR) तकनीक, पोखर बनाने और रोपाई की आवश्यकता को समाप्त करके मेथेन उत्सर्जन को कम करती है।
- राष्ट्रीय पशुधन मिशन: बेहतर आहार पद्धतियों के माध्यम से मेथेन उत्सर्जन को कम करते हुए पशुधन उत्पादकता को बढ़ाता है।
- उदाहरण: मवेशियों में आँतों के किण्वन को कम करने के लिए संतुलित राशनिंग और हरे चारे के उत्पादन को बढ़ावा देता है।
- हरित धारा फीड सप्लीमेंट: पशुधन से मेथेन उत्सर्जन को कम करने के लिए ICAR द्वारा विकसित एक एंटी-मेथेनोजेनिक फीड एडिटिव है।
- गोबर्धन (GOBARDHAN) योजना: मवेशियों के गोबर और जैविक अपशिष्ट को बायोगैस में परिवर्तित करने को प्रोत्साहित करती है, जिससे मेथेन उत्सर्जन में कमी आती है।
- अपशिष्ट प्रबंधन पहल: लैंडफिल से मेथेन उत्सर्जन को रोकने के लिए ठोस अपशिष्ट प्रबंधन प्रथाओं को लागू करना चाहिए।
- उदाहरण: शहरों ने सार्वजनिक परिवहन ईंधन के लिए जैविक अपशिष्ट प्रसंस्करण और बायोमेथेन उत्पादन को अपनाया है।
- फसल विविधीकरण कार्यक्रम: धान पर निर्भरता कम करने के लिए कम मेथेन उत्सर्जन वाली फसलों की खेती को बढ़ावा देता है।
- उदाहरण: किसानों को दालों, तिलहनों और बाजरा की खेती करने के लिए प्रोत्साहित करता है, जिनमें मेथेन उत्सर्जन कम होता है।
भारत द्वारा वैश्विक मेथेन प्रतिज्ञा से दूर रहने का निर्णय कृषि आजीविका और आर्थिक निहितार्थों पर चिंताओं से उपजा है। फिर भी, देश सतत् विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए सामाजिक-आर्थिक वास्तविकताओं के साथ पर्यावरणीय जिम्मेदारियों को संतुलित करते हुए मेथेन उत्सर्जन को कम करने के लिए घरेलू रणनीतियों को सक्रिय रूप से लागू कर रहा है।
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