Q. कड़े कानूनों और बढ़ती जागरूकता के बावजूद, भारत बलात्कार के मामलों की बढ़ती घटनाओं से जूझ रहा है। इस निरंतर समस्या में योगदान देने वाले कारकों का‌ आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए और इसे प्रभावी ढंग से संबोधित करने के लिए व्यापक उपाय सुझाएं। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य मांग:

  • परीक्षण कीजिए कि  कड़े कानूनों और बढ़ती जागरूकता के बावजूद भारत किस प्रकार से  बलात्कार की बढ़ती घटनाओं की समस्या से जूझ रहा है।
  • इस स्थाई समस्या के लिए उत्तरदाई कारकों का परीक्षण कीजिए।
  • इस समस्या का  प्रभावी ढंग से समाधान करने  हेतु व्यापक उपाय सुझाएँ।

 

उत्तर:

कड़े कानून और जागरूकता अभियानों के बावजूद, भारत में बलात्कार के मामलों की संख्या बढ़ती जा रही हैराष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों से पता चलता है कि 2022 में 31,000 से अधिक बलात्कार के मामले दर्ज किए गए  जो स्थिति की गंभीरता को दर्शाता है। यह  मुद्दा कानूनी संरचनाओं और ज़मीनी स्तर पर उनके प्रभावी कार्यान्वयन के बीच के अंतर को उजागर करता है।

कड़े कानूनों के बावजूद बलात्कार घटनाओं में बढ़ोत्तरी:

  • असंगत कानून प्रवर्तन: सशक्त कानूनों के अस्तित्व के बावजूद, कानून प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा इनका असंगत अनुप्रयोग,इन कानूनों की प्रभावशीलता को कमज़ोर करता है।
    उदाहरण के लिए : बलात्कार के मामलों में सज़ा की दर लगभग 27%-28% (NCRB) है जो अपराधियों के बीच कानूनी परिणामों के डर की कमी को दर्शाता है।
  • सामाजिक कलंक और घटना की रिपोर्टिंग मेंमी : पीड़ितों को अक्सर सामाजिक दबाव का सामना करना पड़ता है, जिसके कारण बलात्कार के मामलों की कम रिपोर्टिंग होती है।
    उदाहरण के लिए : NCRB के अनुसार , सामाजिक बहिष्कार के डर से कई मामले दर्ज नहीं किए जाते हैं विशेष रूप से ग्रामीण इलाकों में, जिससे यह समस्या बनी रहती है।
  • विलंबित न्याय: फास्ट-ट्रैक अदालतों में भी धीमी गति से सुनवाई के कारण समय पर न्याय नहीं मिल पाता, जिससे अपराधियों का हौसला बढ़ता है।
    उदाहरण के लिए : 2012 के निर्भया मामले में फास्ट-ट्रैक सुनवाई होने के बावजूद इसके निष्कर्ष पर पहुंचने में सात साल से अधिक का समय लग गया , जो सिस्टम की अक्षमता को दर्शाता है।
  • सांस्कृतिक मानदंड और पितृसत्ता: पितृसत्तात्मक मूल्य, लिंग आधारित हिंसा को सामान्य बनाने में योगदान करते हैं , जिससे कानूनों के प्रभावी प्रवर्तन में बाधा आती है।
    उदाहरण के लिए : भारत के कई हिस्सों में सांस्कृतिक प्रथाएँ अभी भी महिलाओं को अधीनस्थ बनाती हैं, जो यौन हिंसा को सहन करने या उसे तुच्छ समझने वाले दृष्टिकोण को कायम रखती हैं।
  • जागरूकता और शिक्षा में अंतराल: जागरूकता अभियानों में वृद्धि होने के बावजूद, सामाजिक दृष्टिकोण को बदलने के लिए लैंगिक समानता और सहमति पर व्यापक शिक्षा आवश्यक है।

इस समस्या के बने रहने में योगदान देने वाले कारक:

  • कमज़ोर पुलिस व्यवस्था और भ्रष्टाचार: खराब पुलिस व्यवस्था, जो अक्सर भ्रष्टाचार की‌ समस्या से ग्रसित होती है ,केस के परिणामों पर प्रभाव डालती  है।
    उदाहरण के लिए : 2020 के हाथरस मामले ने पुलिस व्यवस्था में खामियों को उजागर किया, जिसमें देरी से कार्रवाई और सबूतों को गलत तरीके से पेश करने की बातें सामने आई जिससे  लोगों में आक्रोश बढ़ गया।
  • सामाजिक दृष्टिकोण: पीड़ित को दोषी ठहराने का दृष्टिकोण और बलात्कार को अपराध के बजाय
    र्व का मामला मानना, इस समस्या को और बढ़ाता है। उदाहरण के लिए : कई मामलों में, पीड़ितों को सामाजिक अस्वीकृति का सामना करना पड़ता है , जिससे उन्हें न्याय मांगने के बजाय चुप रहना पड़ता है।
  • व्यापक यौन शिक्षा का अभाव: स्कूलों में यौन शिक्षा का अभाव अज्ञानता को बढ़ावा देता है और लिंग आधारित हिंसा को बढ़ावा देता है
    उदाहरण के लिए : कई राज्यों में, यौन शिक्षा या तो न्यूनतम है या है ही नहीं, जिससे महिलाओं की सहमति और उनकी गरिमा संबंधी समझ में कमी आती है ।
  • आर्थिक असमानताएँ: गरीबी और आर्थिक अवसरों की कमी व्यक्तियों को यौन हिंसा सहित अन्य आपराधिक गतिविधियों की ओर प्रेरित कर सकती है।
  • पीड़ितों के लिए अपर्याप्त सहायता प्रणाली: पीड़ितों के लिए काउंसलिंग और कानूनी सहायता सहित सशक्त सहायता प्रणालियों की गैर-मौजूदगी, रिपोर्टिंग और अभियोजन की प्रक्रिया को हतोत्साहित करती है।
    उदाहरण के लिए : कई बलात्कार पीड़ितों को पर्याप्त मनोवैज्ञानिक या कानूनी सहायता नहीं मिलती है, जिससे न्याय पाने की प्रक्रिया और भी कठिन हो जाती है।

समस्या के समाधान के लिए व्यापक उपाय:

  • कानून प्रवर्तन को सशक्त करना: बलात्कार के मामलों की प्रभावी
    जांच और अभियोजन सुनिश्चित करने के लिए कानून प्रवर्तन एजेंसियों के लिए प्रशिक्षण और संसाधनों को बढ़ाना। उदाहरण के लिए : यौन हिंसा के मामलों को संभालने और फोरेंसिक क्षमताओं में सुधार करने हेतु पुलिस के लिए नियमित प्रशिक्षण कार्यक्रमों को लागू करना बेहतर परिणाम ला सकता है।
  • न्यायिक सुधार: सजा सुनाने में न्यायिक विवेकाधिकार की अनुमति देने के लिए सुधार लागू करना, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि दोषसिद्धि दरों से समझौता किए बिना न्याय किया जाए।
  • लिंग संवेदनशीलता को बढ़ावा देना: महिलाओं और यौन हिंसा के प्रति
    सामाजिक दृष्टिकोण को चुनौती देने और उसमें बदलाव लाने के लिए व्यापक लिंग संवेदनशीलता कार्यक्रम आयोजित करना। उदाहरण के लिए : सामुदायिक स्तर पर व्यापक रूप से लिंग संवेदनशीलता को शामिल करने हेतु बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ जैसे राष्ट्रीय अभियानों का विस्तार करना चाहिए ।
  • पीड़ित सहायता सेवाओं का विस्तार: बलात्कार पीड़ितों के लिए कानूनी सहायता, परामर्श और पुनर्वास सहित व्यापक सहायता सेवाओं की स्थापना की जानी चाहिए।
    उदाहरण के लिए : सरकार ,देश भर में पीड़ितों को समग्र सहायता प्रदान करने के लिए वन स्टॉप सेंटरों के दायरे का विस्तार कर सकती है।
  • अनिवार्य यौन शिक्षा लागू करना: कम उम्र से ही
    स्कूली पाठ्यक्रमों में  यौन शिक्षा को शामिल करना चाहिए। उदाहरण के लिए : राज्य, युवाओं को लैंगिक समानता और यौन अधिकारों के बारे में शिक्षित करने के लिए किशोर शिक्षा कार्यक्रम (AEP) को अधिक व्यापक रूप से लागू कर सकते हैं ।

भारत में बलात्कार की बढ़ती घटनाओं की समस्या का समाधान करने के लिए कानून प्रवर्तन, न्यायिक सुधार, शिक्षा और सामुदायिक सहभागिता सहित कई आयामों पर समग्र एवं निरंतर प्रयासों की आवश्यकता है। सम्मान और जवाबदेही की संस्कृति को बढ़ावा देकर, भारत एक ऐसे भविष्य की ओर बढ़ सकता है जहाँ महिलाएँ सुरक्षित हों और न्याय शीघ्रता से तथा निष्पक्ष रूप से किया जाये। वर्तमान समय में एक ठोस और समावेशी दृष्टिकोण की आवश्यकता है जो यह  सुनिश्चित कर सके कि कानूनी सुरक्षा सभी को वास्तविक रूप से उपलब्ध हो।

 

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