Q. राष्ट्रीय सिकल सेल एनीमिया उन्मूलन मिशन (2023) के शुभारंभ के बावजूद, सिकल सेल एनीमिया भारत में एक प्रमुख स्वास्थ्य समस्या बनी हुई है। भारत में सिकल सेल रोग के निदान एवं उपचार में प्रमुख चुनौतियों पर चर्चा कीजिये और इन मुद्दों से निपटने के लिए व्यापक उपाय सुझाएँ। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • भारत में सिकल सेल रोग के निदान में प्रमुख चुनौतियों पर चर्चा कीजिए। 
  • भारत में सिकल सेल रोग के उपचार में प्रमुख चुनौतियों पर चर्चा कीजिए। 
  • भारत में सिकल सेल रोग से निपटने के लिए व्यापक उपाय सुझाएँ।

 

उत्तर:

केंद्रीय बजट 2023-24 में राष्ट्रीय सिकल सेल एनीमिया उन्मूलन मिशन (2023) की घोषणा की गई थी। इसका लक्ष्य सस्ती स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने एवं जागरूकता बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करते हुए वर्ष 2047 तक सिकल सेल रोग (SCD) को खत्म करना है। इस पहल के बावजूद, भारत SCD जन्मों के मामले में विश्व स्तर पर तीसरे स्थान पर है, अनुमानित 15,000 से 25,000 बच्चे सालाना पैदा होते हैं, मुख्य रूप से आदिवासी क्षेत्रों में। इन भौगोलिक एवं सामाजिक-आर्थिक बाधाओं ने SCD को लगातार स्वास्थ्य समस्या बना रखा है, जिससे व्यापक देखभाल प्राप्त करने के लिए निदान तथा उपचार में एवं प्रयासों की आवश्यकता होती है।

भारत में सिकल सेल रोग के निदान में चुनौतियाँ

  • निगरानी एवं डायग्नोस्टिक सुविधाओं तक सीमित पहुँच: कई ग्रामीण एवं आदिवासी क्षेत्रों में पर्याप्त स्वास्थ्य देखभाल बुनियादी ढाँचे का अभाव है। हीमोग्लोबिन इलेक्ट्रोफोरेसिस या HPLC जैसे नैदानिक ​​परीक्षण अक्सर उपलब्ध नहीं होते हैं।
    • उदाहरण के लिए: मध्य प्रदेश के आदिवासी क्षेत्रों में, केवल कुछ प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र ही नैदानिक ​​सुविधाओं से सुसज्जित हैं, जिससे शीघ्र पता लगाने में देरी होती है।
  • प्रशिक्षित स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों की कमी: ग्रामीण क्षेत्रों में कई स्वास्थ्य कर्मियों को सिकल सेल रोग के लक्षणों को पहचानने के लिए प्रशिक्षित नहीं किया जाता है, जिसके कारण कम निदान या गलत निदान होता है।
    • उदाहरण के लिए: ओडिशा में, कई स्वास्थ्य कार्यकर्ता SCD के लक्षणों को मलेरिया जैसी अन्य सामान्य स्थितियों के साथ भ्रमित करते हैं, जिससे उचित निदान एवं उपचार में देरी होती है।
  • सांस्कृतिक एवं सामाजिक बाधाएँ: कुछ समुदायों में, आधुनिक चिकित्सा में सामाजिक कलंक या विश्वास की कमी के कारण चिकित्सा सहायता लेने में अनिच्छा है, जिससे निगरानी कार्यक्रमों की पहुँच सीमित हो गई है।
    • उदाहरण के लिए: महाराष्ट्र के आदिवासी इलाकों में, परिवार अक्सर आधुनिक निदान विधियों के बजाय पारंपरिक चिकित्सकों पर भरोसा करते हैं, जिससे निदान में देरी होती है।
  • नैदानिक ​​परीक्षणों की उच्च लागत: हालाँकि बुनियादी रक्त परीक्षण किफायती हैं, सिकल सेल रोग की पुष्टि के लिए उन्नत नैदानिक ​​प्रक्रियाएँ, जैसे आनुवंशिक परीक्षण, कम आय वाले परिवारों के लिए महंगी हो सकती हैं।
    • उदाहरण के लिए: झारखंड में, निजी प्रयोगशालाओं में हीमोग्लोबिन वैद्युत कण संचलन परीक्षण की लागत कई आदिवासी परिवारों की पहुँच से बाहर है, जिससे कई लोग निदान नहीं कर पाते हैं।
  • असंगत डेटा संग्रह एवं रिपोर्टिंग: भारत के कई हिस्सों में सिकल सेल प्रसार और निदान पर व्यापक डेटा की कमी है, जिससे संसाधनों को प्रभावी ढंग से आवंटित करना एवं हस्तक्षेप की योजना बनाना मुश्किल हो जाता है।
    • उदाहरण के लिए: छत्तीसगढ़ में, SCD मामलों के लिए एक केंद्रीकृत रजिस्ट्री की अनुपस्थिति के परिणामस्वरूप खंडित डेटा होता है, जिससे लक्षित स्क्रीनिंग कार्यक्रमों को लागू करने की राज्य की क्षमता में बाधा आती है।

भारत में सिकल सेल रोग के उपचार में चुनौतियाँ

  • नियमित स्वास्थ्य देखभाल तक सीमित पहुँच: SCD वाले मरीजों को दर्द प्रबंधन एवं रक्त आधान सहित चिकित्सा देखभाल तक निरंतर पहुँच की आवश्यकता होती है। दूरदराज तथा आदिवासी इलाकों में स्वास्थ्य सुविधाएँ कम हैं, जिससे नियमित इलाज मुश्किल हो जाता है।
    • उदाहरण के लिए: मध्य प्रदेश के सुदूर आदिवासी जिलों में, कई रोगियों को रक्त आधान सुविधाओं तक पहुँचने के लिए 50 किलोमीटर से अधिक की यात्रा करनी पड़ती है, जिसके कारण इलाज में देरी होती है या छूट जाती है।
  • प्रशिक्षित स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं की कमी: SCD के प्रबंधन के लिए रोग के विशेष ज्ञान की आवश्यकता होती है। ग्रामीण भारत में कई स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं के पास उचित देखभाल प्रदान करने के लिए आवश्यक प्रशिक्षण का अभाव है, विशेषकर जटिलताओं के प्रबंधन में।
    • उदाहरण के लिए: गुजरात के दाहोद जिले में, विशेष देखभाल में अपर्याप्त प्रशिक्षण के कारण स्वास्थ्य कर्मियों ने एक्यूट चेस्ट सिंड्रोम जैसी SCD जटिलताओं के प्रबंधन में कठिनाई की सूचना दी है।
  • उपचार की उच्च लागत: हाइड्रोक्सीयूरिया (दर्द की घटनाओं को कम करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली दवा) एवं अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण (एक संभावित इलाज) जैसे उपचार कई रोगियों के लिए अत्यधिक महंगे हो सकते हैं, जिससे उचित देखभाल तक पहुँच सीमित हो जाती है।
  • ट्रांसफ्यूजन के लिए रक्त की खराब उपलब्धता: रक्त ट्रांसफ्यूजन SCD के लिए एक प्रमुख उपचार है, लेकिन सुरक्षित रक्त की उपलब्धता, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, अक्सर अविश्वसनीय होती है, जिससे उपचार में देरी होती है एवं लक्षण गंभीर हो जाते हैं।
  • जागरूकता एवं रोगी शिक्षा का अभाव: कई मरीज एवं परिवार इस बात से अनभिज्ञ हैं कि बीमारी का ठीक से प्रबंधन कैसे किया जाए, जिसके कारण उपचार योजनाओं का खराब पालन होता है, लक्षण बिगड़ते हैं तथा मृत्यु दर अधिक होती है।

भारत में सिकल सेल रोग से निपटने के उपाय

  • जागरूकता अभियान का विस्तार करना: आदिवासी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर जन जागरूकता अभियान शुरू करने से शीघ्र निदान में सुधार हो सकता है।
    • उदाहरण के लिए: सरकार SCD की रोकथाम एवं उपचार के बारे में समुदायों को शिक्षित करने के लिए स्थानीय गैर सरकारी संगठनों के साथ सहयोग कर सकती है।
  • निगरानी कार्यक्रमों को बढ़ाना: उच्च प्रसार वाले क्षेत्रों में सार्वभौमिक नवजात निगरानी कार्यक्रम लागू करने से शीघ्र पहचान एवं उपचार में सुधार हो सकता है।
  • उपचार एवं दवाओं पर सब्सिडी: हाइड्रोक्सीयूरिया जैसी रियायती दवाओं की पेशकश एवं सार्वजनिक स्वास्थ्य योजनाओं के माध्यम से मुफ्त उपचार से परिवारों पर वित्तीय बोझ कम हो सकता है।
    • उदाहरण के लिए: आयुष्मान भारत को SCD-विशिष्ट उपचारों को कवर करने के लिए बढ़ाया जा सकता है, जिससे कमजोर समुदायों को सस्ती देखभाल प्रदान की जा सके।
  • स्वास्थ्य देखभाल के बुनियादी ढाँचे में सुधार: ग्रामीण एवं आदिवासी क्षेत्रों में अधिक SCD उपचार केंद्र स्थापित करने से देखभाल की बेहतर पहुँच सुनिश्चित हो सकती है तथा शहरों में रोगी भार कम हो सकता है।
    • उदाहरण के लिए: झारखंड बेहतर चिकित्सा सहायता प्रदान करने के लिए दूरदराज के जिलों में विशेष SCD केंद्र बना रहा है।
  • आनुवंशिक परामर्श को बढ़ावा देना: आनुवंशिक परामर्श सेवाएँ प्रदान करने से परिवारों को SCD की आनुवंशिक प्रकृति को समझने एवं निवारक उपायों की योजना बनाने में मदद मिल सकती है।
    • उदाहरण के लिए: केरल में पायलट कार्यक्रमों से पता चला है कि आनुवंशिक परामर्श जोखिम वाले परिवारों में SCD के संचरण को कम करता है।
  • अनुसंधान एवं विकास को प्रोत्साहित करना: जीन-संपादन उपचार विकसित करने में वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) का समर्थन करना दीर्घकालिक समाधान प्रदान कर सकता है।
  • सार्वजनिक-निजी भागीदारी को एकीकृत करना: निजी स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र के साथ सहयोग करने से उन्नत उपचार एवं स्वास्थ्य देखभाल बुनियादी ढाँचे तक पहुँच में सुधार हो सकता है।

वर्ष 2047 तक सिकल सेल एनीमिया को सफलतापूर्वक खत्म करने के लिए, भारत को जागरूकता, शीघ्र जाँच एवं किफायती उपचार के संयोजन के समग्र दृष्टिकोण पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। जनजातीय क्षेत्रों में स्वास्थ्य देखभाल के बुनियादी ढाँचे को मजबूत करना, जीन थेरेपी में अनुसंधान का विस्तार करना तथा सामाजिक आर्थिक बाधाओं को दूर करना राष्ट्रीय सिकल सेल एनीमिया उन्मूलन मिशन के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए महत्त्वपूर्ण है।

 

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