उत्तर:
प्रश्न हल करने का दृष्टिकोण:
- भूमिका: अनुशासन के बारे में लिखिए।
- मुख्य भाग:
- उदाहरणों की उचित पुष्टि के साथ उल्लेख कीजिए कि भारतीय संदर्भ में अत्यधिक अनुशासन किस प्रकार प्रति-उत्पादक हो सकता है।
- इस पर नियंत्रण पाने के लिए क्या किया जा सकता है?
- निष्कर्ष: आगे की राह लिखते हुए उचित निष्कर्ष निकालिए।
|
भूमिका:
संगठनात्मक संदर्भ में अनुशासन का तात्पर्य आम तौर पर आदेशों का पालन करना और प्राधिकरण के अधीन रहना है। हालाँकि किसी भी संगठन में एक निश्चित स्तर का अनुशासन बनाए रखना आवश्यक है, अत्यधिक अनुशासन कभी-कभी प्रति-उत्पादक(counter-productive) हो सकता है।
मुख्य भाग:
यहाँ कुछ उदाहरण दिए गए हैं कि भारतीय संदर्भ में अत्यधिक अनुशासन किस प्रकार प्रति-उत्पादक हो सकता है:
- भारतीय विद्यालय: कई भारतीय विद्यालयों में, अनुशासन को सख्त नियमों और विनियमों के माध्यम से लागू किया जाता है, जिसमें ड्रेस कोड, विद्यालयों में बच्चों की आवश्यक उपस्थिति और मामूली उल्लंघन के लिए दंड शामिल हैं। हालांकि इससे कक्षा में व्यवस्था बनाए रखने में मदद मिल सकती है, लेकिन यह रचनात्मकता और व्यक्तित्व को भी प्रभावित कर सकता है, जिससे नवाचार और आलोचनात्मक सोच की कमी हो सकती है।
- भारतीय नौकरशाही: भारतीय नौकरशाही अपने कठोर पदानुक्रम और नियमों एवं विनियमों के पालन के लिए कुख्यात है। इसके परिणामस्वरूप अक्सर नौकरशाही में देरी और अक्षमताएं विकसित होती हैं क्योंकि अधिकारी समस्याओं का रचनात्मक समाधान खोजने के बजाय नियमों का पालन करने पर अधिक ध्यान केंद्रित करते हैं।
- भारतीय सेना: भारतीय सेना में अनुशासन का अत्यधिक महत्व है और सैनिकों से अपेक्षा की जाती है कि वे बिना किसी सवाल के आदेशों का पालन करें। हालाँकि, अत्यधिक अनुशासन कभी-कभी बदलती परिस्थितियों के सामने लचीलेपन और अनुकूलनशीलता की कमी का कारण बन सकता है।
- भारतीय विनिर्माण क्षेत्र: कई भारतीय विनिर्माण कंपनियों में, नियमों और विनियमों का कड़ाई से पालन पर बल दिया जाता है, अक्सर रचनात्मकता और नवीनता की कीमत पर। इसके परिणामस्वरूप वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धा की कमी हो सकती है, क्योंकि भारतीय कंपनियां नवीनतम तकनीकी प्रगति के साथ तालमेल बिठाने में विफल रहती हैं।
निष्कर्ष:
निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि किसी भी संगठन में व्यवस्था और उत्पादकता बनाए रखने के लिए अनुशासन आवश्यक है, अत्यधिक अनुशासन कभी-कभी प्रति-उत्पादक भी हो सकता है। भारत में, इसे अक्सर नियमों और विनियमों के कठोर पालन के रूप में देखा जाता है, जो रचनात्मकता और नवीनता को दबा सकता है तथा नौकरशाही की अक्षमताओं को जन्म दे सकता है।
इसलिए, उत्पादकता को अधिकतम करने और अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए संगठनों के लिए अनुशासन बनाए रखने और रचनात्मकता तथा लचीलेपन को प्रोत्साहित करने के बीच संतुलन बनाना महत्वपूर्ण है।
To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.
Latest Comments