Q. मैंग्रोव वन, जलवायु और आर्थिक लचीलेपन के लिए महत्त्वपूर्ण हैं। इस महत्त्व के बावजूद, मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्रों के समक्ष आने वाली चुनौतियों पर चर्चा कीजिए और विश्लेषण कीजिए कि नीति-निर्माता और समुदाय इन पारिस्थितिकी तंत्रों को सतत विकास के सक्रिय प्रेरक के रूप में कैसे पुनर्कल्पित कर सकते हैं। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • जलवायु और आर्थिक प्रत्यास्थता के लिए मैंग्रोव के महत्त्व का उल्लेख कीजिए।
  • मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र के समक्ष आने वाली चुनौतियों पर चर्चा कीजिए।
  • सतत विकास के सक्रिय वाहक के रूप में मैंग्रोव की पुनर्कल्पना का विश्लेषण कीजिये।

उत्तर

मैंग्रोव, ब्लू कार्बन पारिस्थितिकी तंत्र का एक अभिन्न हिस्सा होते हुए, जलवायु पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभावों को कम करने, जैव विविधता को बनाए रखने और तटीय अर्थव्यवस्थाओं को सहारा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अपने पारिस्थितिक और आर्थिक महत्त्व के बावजूद, मैंग्रोव मुख्यधारा की नीतियों में हाशिये पर ही बने रहते हैं, जिससे उनका निम्नीकरण और उपेक्षा बढ़ती है।

जलवायु और आर्थिक प्रत्यास्थता में मैंग्रोव का महत्त्व

  • प्राकृतिक तटीय अवरोध: मैंग्रोव तूफानों और अपरदन के प्रभावों को कम करते हैं, जिससे तटीय समुदायों को प्राकृतिक आपदाओं से सुरक्षा मिलती है। 
    • उदाहरण: चक्रवात अम्फान के दौरान, ओडिशा और पश्चिम बंगाल में मैंग्रोव से सुरक्षित क्षेत्रों को, खुले क्षेत्रों की तुलना में कम क्षति हुई।
  • ब्लू कार्बन सिंक: ये अत्यधिक प्रभावी कार्बन सिंक हैं, जो दीर्घकालिक कार्बन पृथक्करण के माध्यम से जलवायु परिवर्तन शमन में सहायक होते हैं। 
    • उदाहरण के लिए: सुंदरबन में अकेले कार्बन पृथक्करण का मूल्य प्रति वर्ष ₹462 मिलियन आंका गया है, जो इस आवास के पारिस्थितिक और आर्थिक महत्त्व को दर्शाता है।
  • तटीय अर्थव्यवस्थाओं की सहायता: मैन्ग्रोव मछलियों के प्रजनन स्थलों को पोषित करते हैं तथा मछलीपालन, मधुमक्खी पालन और इको-टूरिज्म जैसी आजीविकाओं को सहारा देते हैं। 
    • उदाहरण: पिचावरम और भितरकनिका के तटीय समुदाय केकड़ा संग्रहण और शहद उत्पादन से अच्छी-खासी आय प्राप्त करते हैं।
  • जैव विविधता के भंडार: इनमें प्रवासी पक्षी, मछली, मोलस्क और संकटग्रस्त प्रजातियों सहित उच्च जैव विविधता पाई जाती है।
  • भूजल और लवणता विनियमन: मैन्ग्रोव की जड़ों का जाल, खारे पानी के मीठे पानी में प्रवेश को रोकता है।
    • उदाहरण के लिए, गुजरात के तट पर स्थित मैंग्रोव, भूजल लवणता को नियंत्रित करते हैं जिससे अंतर्देशीय कृषि प्रभावित होती है।
  • आपदा जोखिम न्यूनीकरण अवसंरचना: ये अवसंरचनाएँ जलवायु प्रत्यास्थता योजनाओं में प्रकृति-आधारित समाधान प्रदान करती हैं, जिससे ‘ग्रे इन्फ्रास्ट्रक्चर’ पर निर्भरता कम होती है। 
    • उदाहरण: महाराष्ट्र की जलवायु कार्य योजना में बाढ़ नियंत्रण तंत्र के रूप में मैंग्रोव संरक्षण को शामिल किया गया है।
  • आपदा के दौरान प्राकृतिक संसाधन बफर: समुदाय चरम मौसम या फसल विफलता के दौरान मैंग्रोव पर निर्भर रहते हैं।

मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र के समक्ष चुनौतियाँ

  • नीति और नियोजन में हाशियाकरण: मैंग्रोव, अक्सर मुख्य विकास और बुनियादी ढांचे की नीतियों में शामिल नहीं किये जाते हैं।
  • तेजी से शहरीकरण और प्रदूषण: शहरी विस्तार के कारण अक्सर मैन्ग्रोव पर अतिक्रमण और उनका निम्नीकरण होता है।  
    • उदाहरण: मुंबई और चेन्नई में मैंग्रोव संकटग्रस्त और प्रदूषित हैं, जिससे उनकी जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र की कार्यक्षमता कम हो रही है।
  • अपर्याप्त आर्थिक मूल्यांकन: मैन्ग्रोव की पारिस्थितिकी सेवाओं का आर्थिक मूल्यांकन अपर्याप्त रहता है, जिससे संरक्षण के प्रोत्साहन कमजोर होते हैं।
  • बाधित जल प्रवाह प्रणालियाँ: नदियों के प्रवाह में परिवर्तन से मैंग्रोव का स्वास्थ्य, जैव विविधता और प्रत्यास्थता प्रभावित होती है।
  • निगरानी और आकलन उपकरणों का अभाव: मानकीकृत उपकरणों के अभाव में मैंग्रोव निम्नीकरण का प्रारंभिक रूप से पता लगाना मुश्किल हो जाता है। 
    • उदाहरण के लिए: मैंग्रोव क्षेत्र परिवर्तन, मछली विविधता और मीठे पानी के प्रवाह जैसे संकेतकों की नियमित निगरानी नहीं होती।
  • सामुदायिक भागीदारी की कमी: स्थानीय समुदायों को अक्सर निर्णय प्रक्रियाओं से बाहर रखा जाता है, भले ही वे मैंग्रोव पर निर्भर हों।

सतत विकास के वाहक के रूप में मैंग्रोव की पुनर्कल्पना

  • प्राकृतिक पूंजी लेखांकन के लिए प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना: जियोस्पेशल AI और उपग्रह तकनीक से मैन्ग्रोव का सटीक मानचित्रण और मूल्यांकन किया जा सकता है।
  • सामुदायिक नेतृत्व वाले संरक्षण मॉडल: स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाने से प्रबंधन और पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य में सुधार होता है। 
    • उदाहरण के लिए: मछुआरों की भागीदारी से शहरी मैंग्रोव संरक्षण के लिए संयुक्त वन प्रबंधन समितियों (JFMCs) को अपनाया जा सकता है।
  • वैकल्पिक आजीविका को बढ़ावा देना: मैंग्रोव स्थायी आय के स्रोत के रूप में पारिस्थितिक पर्यटन, जलीय कृषि और मधुमक्खी पालन को बढ़ावा देते हैं। 
    • उदाहरण के लिए: इको-टूरिज्म में सहभागिता तटीय समुदायों को दोहन-आधारित कार्यों से पुनरुत्पादक गतिविधियों की ओर ले जा सकती है।
  • नागरिक विज्ञान और जन सहभागिता: मैंग्रोव की निगरानी और संरक्षण के लिए शहरी और ग्रामीण नागरिकों को संगठित करने से जवाबदेही बढ़ती है। 
    • उदाहरण: ‘मैंग्रोव मित्र’ जैसी पहल जैव विविधता की निगरानी और संरक्षण में नागरिकों को शामिल करती है।
  • एकीकृत पारिस्थितिकी तंत्र निगरानी ढाँचा: बहुआयामी संकेतक अनुकूली प्रबंधन और नीतिगत निर्णयों का मार्गदर्शन कर सकते हैं।
  • जलवायु अवसंरचना नियोजन में मैंग्रोव को शामिल करना: मैंग्रोव को जलवायु अवसंरचना के रूप में स्थापित करने से निवेश और नीतिगत प्राथमिकताएँ बढ़ सकती हैं।
    • उदाहरण के लिए: समुद्र-स्तर वृद्धि और चरम मौसम के विरुद्ध सुरक्षा कवच के रूप में मैन्ग्रोव की पहचान इन्हें आपदा जोखिम न्यूनीकरण योजनाओं में शामिल कर सकती है।

यदि मैंग्रोव को जीवंत अवसंरचना के रूप में पुनर्कल्पित किया जाए, तो वे जलवायु अनुकूलन, जैव विविधता और आजीविका के लिए महत्त्वपूर्ण हो सकते हैं। उनका संरक्षण न केवल एक पारिस्थितिक दायित्व नहीं है, बल्कि एक सामाजिक-आर्थिक अवसर भी है। इन अमूल्य पारिस्थितिक तंत्रों की निष्क्रिय उपेक्षा से सक्रिय संरक्षण की ओर संक्रमण के लिए विज्ञान, समुदाय और व्यवसाय को शामिल करते हुए एक समन्वित दृष्टिकोण अति आवश्यक है।

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