Q. मतदाता सूचियों के राष्ट्रव्यापी विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के संचालन में शामिल चुनौतियों पर चर्चा कीजिए। सटीकता और समावेशिता सुनिश्चित करने के उपाय सुझाएँ, खासकर प्रवासी श्रमिकों के लिए। (10 अंक, 150 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • मतदाता सूचियों का राष्ट्रव्यापी SIR आयोजित करने में आने वाली चुनौतियों का उल्लेख कीजिए।
  • सटीकता और समावेशिता के उपायों का उल्लेख कीजिए, विशेष रूप से प्रवासियों के लिए।

उत्तर

भारत निर्वाचन आयोग (ECI) ने जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 के अनुच्छेद-324 और धारा 21 के अनुसार, मतदाता सूचियों से अशुद्धियों, डुप्लिकेट और अयोग्य प्रविष्टियों को हटाने के लिए, बिहार से शुरू करते हुए, मतदाता सूचियों का एक विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) शुरू किया है। चुनावी सत्यनिष्ठा को बनाए रखने के उद्देश्य से, यह अभूतपूर्व अभ्यास परिचालन और समावेशन-संबंधी गंभीर चुनौतियाँ प्रस्तुत करता है।

राष्ट्रव्यापी SIR के संचालन में चुनौतियाँ

  • मौजूदा मतदाताओं के लिए दस्तावेजीकरण बाधा: वर्ष 2003 के बाद नामांकित मतदाताओं को नागरिकता दस्तावेजों (जैसे, जन्म प्रमाण पत्र, माता-पिता का प्रमाण) के साथ नए गणना फॉर्म जमा करने होंगे; मानक पहचान प्रमाण (आधार, राशन कार्ड) अक्सर अस्वीकार कर दिए जाते हैं।
  • अवास्तविक समय सीमा: नागरिकों को दस्तावेज जमा करने के लिए लगभग एक महीने (25 जुलाई तक) का समय (मानसून और बाढ़ के दौरान) दिया जाता है, जिससे विशेष रूप से ग्रामीण तथा सुभेद्य समूहों के लिए बाधाएँ उत्पन्न होती हैं।
  • BLO पर भारी बोझ और सीमित स्टाफ: बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) को राज्य में लगभग 1.5 करोड़ घरों में घर-घर जाकर सत्यापन के लिए स्थानांतरित किया जा रहा है, लेकिन उन्हें संसाधनों की कमी, तकनीकी बाधाओं और स्थानीय भाषा/बोली की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
  • राजनीतिक तनाव और वैधानिकताओं से मुक्ति: बिहार में SIR प्रक्रिया को ADR, PUCL द्वारा अनुच्छेद-14, 19, 21, 325, 326 के संभावित उल्लंघन के आधार पर सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई है; आलोचकों ने इस पद्धति को मनमाना और बहिष्कार-प्रवण बताया है।
  • चुनावी प्रक्रियाओं में व्यवधान: बिहार ने हाल ही में एक विशेष सारांश संशोधन पूरा किया था; SIR ने स्थापित समय सीमा को बाधित किया, जिससे प्रक्रियात्मक नियमितता कमजोर हुई।

सटीकता और समावेशिता के उपाय, विशेष रूप से प्रवासियों के लिए

  • विस्तारित एवं लचीली समय-सीमा: मानसून के चरम पर पहुँचने तक सबमिशन की अंतिम तिथि बढ़ानी चाहिए व दूरस्थ/प्रवासी क्षेत्रों के लिए अलग-अलग समय-सीमाएँ निर्धारित करनी चाहिए।
  • वैकल्पिक प्रमाणों की स्वीकृति: प्रवासियों के लिए वैध पते के प्रमाण के रूप में आधार, राशन कार्ड, मनरेगा जॉब कार्ड, नियोक्ता प्रमाण-पत्र को अनुमति दी जानी चाहिए।
  • कार्यस्थलों पर मोबाइल एवं पॉप-अप कैंप: निर्माण स्थलों, कारखानों, प्रवासी केंद्रों, रेलवे स्टेशनों पर सत्यापन दल एवं मोबाइल नामांकन बूथ तैनात करना।
  • नागरिक समाज और नियोक्ताओं के साथ सहयोग करना: दस्तावेज एकत्र करने और सुभेद्य प्रवासियों की सहायता करने के लिए गैर-सरकारी संगठनों, नियोक्ताओं और ट्रेड यूनियनों के साथ साझेदारी करनी चाहिए।
  • पोर्टेबल नामांकन के लिए अंतर-राज्यीय समन्वय: रोलिंग अपडेट के लिए e-ECI प्लेटफॉर्म का उपयोग करना चाहिए व‌ प्रवासियों को राज्यों में इलेक्ट्रॉनिक रूप से पते अपडेट करने में सक्षम बनाना चाहिए।
  • कानूनी सहायता एवं जागरूकता अभियान: हेल्पलाइन, कानूनी सहायता डेस्क स्थापित करना तथा स्थानीय मीडिया, स्थानीय रेडियो, सामुदायिक समूहों के माध्यम से जन-जन तक पहुँच स्थापित करनी चाहिए।
  • BLO प्रशिक्षण एवं सहायता: प्रवासी चुनौतियों में BLO को प्रशिक्षित करना चाहिए; उन्हें परिवहन, स्थानीय भाषा सहायता और अतिरिक्त कार्मिकों से सुसज्जित करना चाहिए।
  • मजबूत अपील और सुधार प्रक्रिया: दावों/आपत्तियों के लिए पारदर्शी, डिजिटल तंत्र सुनिश्चित करना चाहिए, जिसमें वास्तविक मतदाताओं के लिए विस्तारित समय-सीमा और निःशुल्क सुधार शामिल हो।

निष्कर्ष

चुनावी सत्यनिष्ठा के लिए एक राष्ट्रव्यापी SIR आवश्यक है, लेकिन इससे नागरिकों, विशेषकर प्रवासी और सुभेद्य आबादी, के मताधिकार का ह्रास नहीं होना चाहिए। प्रक्रियात्मक मानदंडों में ढील देकर, जमीनी स्तर पर समर्थन को मजबूत करके, पोर्टेबिलिटी को सक्षम बनाकर और समावेश-केंद्रित प्रथाओं को अपनाकर, चुनाव आयोग सटीकता तथा सार्वभौमिक मताधिकार का सामंजस्य स्थापित कर सकता है। भारत के बदलते चुनावी परिदृश्य में लोकतांत्रिक वैधता को बनाए रखने के लिए अधिकार-आधारित, सहभागी मतदाता पुनरीक्षण आवश्यक है।

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