Q. राजनीतिक प्रतिनिधित्व और संसाधन आवंटन के संदर्भ में भारत के उत्तरी एवं दक्षिणी राज्यों के बीच जनसांख्यिकीय विभाजन से उत्पन्न चुनौतियों पर चर्चा कीजिए। इन जनसांख्यिकीय विविधताओं से उत्पन्न संभावित असमानताओं को दूर करने के उपाय सुझाएँ। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • राजनीतिक प्रतिनिधित्व और संसाधन आवंटन के संदर्भ में भारत के उत्तरी और दक्षिणी राज्यों के बीच जनसांख्यिकीय विभाजन पर प्रकाश डालिये।
  • राजनीतिक प्रतिनिधित्व और संसाधन आवंटन के संदर्भ में भारत के उत्तरी और दक्षिणी राज्यों के बीच जनसांख्यिकीय विभाजन से उत्पन्न चुनौतियों पर चर्चा कीजिये।
  • इन जनसांख्यिकीय विविधताओं से उत्पन्न संभावित असमानताओं को दूर करने के उपाय सुझाइये।

उत्तर

जनसांख्यिकी विभाजन उत्तरी और दक्षिणी राज्यों के बीच जनसंख्या वृद्धि दर में भारी अंतर को दर्शाता है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, अकेले उत्तर प्रदेश (200 मिलियन) की जनसंख्या तमिलनाडु, कर्नाटक और केरल की संयुक्त जनसंख्या से अधिक है। यह जनसंख्या असंतुलन संसद में राजनीतिक प्रतिनिधित्व को प्रभावित करता है और संसाधन आवंटन को जटिल बनाता है, जिससे संघीय समानता और आर्थिक स्थिरता पर बहस छिड़ जाती है ।

भारत के उत्तरी और दक्षिणी राज्यों के बीच जनसांख्यिकीय विभाजन

  • जनसंख्या वृद्धि असमानता: उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे उत्तरी राज्यों में प्रजनन दर अधिक है, जबकि केरल और तमिलनाडु जैसे दक्षिणी राज्यों में जनसंख्या स्थिरीकरण हासिल हो गया है ।
    • उदाहरण के लिए: बिहार की कुल प्रजनन दर (TFR) (2.98), केरल (1.79) की तुलना में बहुत अधिक है, जिसके कारण राजनीतिक प्रतिनिधित्व में जनसांख्यिकीय अनुपात असमान है।
  • राजनीतिक प्रतिनिधित्व असंतुलन: आगामी परिसीमन प्रक्रिया के कारण उत्तरी राज्यों को अधिक लोकसभा सीटें मिल सकती हैं जबकि बेहतर शासन के बावजूद दक्षिणी राज्यों का प्रतिनिधित्व कम हो सकता है।
    • उदाहरण के लिए: यदि सीट आवंटन पूरी तरह से जनसंख्या के आधार पर होता है, तो उत्तर प्रदेश को कई सीटें मिल सकती हैं जिससे कर्नाटक जैसे राज्यों का प्रभाव कम हो जाएगा ।
  • आर्थिक योगदान बनाम आवंटन: दक्षिणी राज्य भारत के सकल घरेलू उत्पाद और कर राजस्व में अधिक योगदान करते हैं, लेकिन उत्तरी राज्यों की तुलना में उन्हें केंद्रीय वित्तीय हस्तांतरण कम मिलता है। 
    • उदाहरण के लिए: तमिलनाडु और कर्नाटक कर राजस्व में पर्याप्त योगदान देते हैं , लेकिन बिहार और उत्तर प्रदेश को उनकी बड़ी आबादी के कारण प्रति व्यक्ति अधिक केंद्रीय धनराशि प्राप्त होती है।
  • मानव विकास असमानता: दक्षिणी राज्यों में साक्षरता, स्वास्थ्य सेवा और जीवन प्रत्याशा बेहतर है , फिर भी वित्तीय आवंटन कमजोर विकास सूचकांक वाले राज्यों के पक्ष में है।
    • उदाहरण के लिए: केरल का मानव विकास सूचकांक (HDI) बहुत अधिक है , उत्तर प्रदेश से काफी आगे है , लेकिन जनसंख्या के आधार पर उत्तर प्रदेश को अधिक धनराशि मिलती है।
  • शहरीकरण और प्रवासन प्रभाव: दक्षिणी राज्यों में शहरीकरण और प्रवासन अधिक है, जिससे आनुपातिक संसाधन आवंटन के बिना बुनियादी ढाँचे पर बोझ बढ़ रहा है।
    • उदाहरण के लिए: बेंगलुरु और हैदराबाद बड़ी संख्या में प्रवासी आबादी को आकर्षित करते हैं, फिर भी बुनियादी ढाँचे के लिए उन्हें मिलने वाला वित्तपोषण, उनकी बढ़ती शहरी माँगों के अनुरूप नहीं है।

जनसांख्यिकीय विभाजन से उत्पन्न चुनौतियाँ

  • संघीय तनाव और राजनीतिक असंतोष: दक्षिणी राज्य ऐसा महसूस करते हैं जैसे कि सफल जनसंख्या नियंत्रण के लिए  उन्हें दंडित किया जा रहा है जिससे प्रतिनिधित्व में संघीय निष्पक्षता पर चिंताएँ बढ़ रही हैं। 
    • उदाहरण के लिए: तमिलनाडु और केरल ने संसदीय प्रभाव कम होने के भय से परिसीमन प्रक्रिया का विरोध किया है।
  • निधि आवंटन में आर्थिक असमानताएँ: दक्षिणी राज्यों से होने वाला उच्च कर योगदान न्यायसंगत वित्तीय प्रतिफल में परिवर्तित नहीं होता है जिससे बुनियादी ढाँचे और कल्याणकारी कार्यक्रम प्रभावित होते हैं।
    • उदाहरण के लिए: कर्नाटक का GST योगदान सबसे अधिक है, फिर भी बिहार को प्रति व्यक्ति अधिक केंद्रीय अनुदान मिलता है।
  • शासन प्रोत्साहन और हतोत्साहन: उच्च जनसंख्या वृद्धि वाले राज्यों को लाभ मिलने से जनसांख्यिकीय प्रबंधन करने वाले राज्य हतोत्साहित हो जाते हैं, जिससे उच्च विकास वाले उत्तरी राज्यों में विकास अंतराल और भी बढ़ जाता है।
    • उदाहरण के लिए: केरल जैसे कम प्रजनन दर वाले राज्यों को कोई वित्तीय लाभ नहीं मिलता  जबकि उच्च विकास दर वाले राज्यों को केंद्रीय निधि आवंटन से लाभ मिलता है।
  • प्रतिनिधित्व बनाम विकास प्रदर्शन: जनसंख्या आधारित सीट आवंटन में शासन दक्षता पर विचार नहीं किया जाता है जिसका अर्थ है कि बेहतर नीतियों के बावजूद अच्छी तरह से प्रबंधित राज्यों को कम सांसद मिलते हैं।
    • उदाहरण के लिए: उत्तर प्रदेश की तुलना में उच्च साक्षरता और बेहतर स्वास्थ्य सेवा वाले राज्य केरल का संसदीय प्रभाव कम हो सकता है।
  • दक्षिणी शहरों में सार्वजनिक सेवाओं पर दबाव: आर्थिक अवसरों के कारण बढ़ते प्रवास से शहरी बुनियादी ढाँचे पर बोझ पड़ता है, जिससे सेवा की गुणवत्ता में असमानताएँ उत्पन्न होती हैं।
    • उदाहरण के लिए: चेन्नई और बेंगलुरु, कम विकसित उत्तरी राज्यों से होने वाले भारी प्रवास के कारण आवास और परिवहन समस्याओं से जूझ रहे हैं।

जनसांख्यिकीय असमानताओं को दूर करने के उपाय

  • संतुलित प्रतिनिधित्व का फार्मूला: स्थिर जनसंख्या वाले राज्यों के लिए निष्पक्ष संसदीय प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने हेतु निरपेक्ष संख्या के बजाय जनसंख्या घनत्व पर विचार करना चाहिए। 
    • उदाहरण के लिए: सिक्किम जैसे पूर्वोत्तर राज्यों (घनत्व ~ 86/किमी²) में पहले से ही विशेष प्रावधान हैं  जिन्हें नियंत्रित आबादी वाले दक्षिणी राज्यों में भी लागू किया जा सकता है।
  • जनसांख्यिकीय प्रदर्शन महत्त्व: जनसांख्यिकीय प्रगति के आधार पर लोकसभा सीटों और वित्तीय हस्तांतरण का आवंटन करना चाहिए और कम प्रजनन क्षमता व बेहतर प्रशासन वाले राज्यों को पुरस्कृत करना चाहिए
    • उदाहरण के लिए: 15वें वित्त आयोग ने जनसांख्यिकीय प्रदर्शन के लिए एक वेटेज (Weightage) की शुरुआत की।
  • आर्थिक योगदान-आधारित आवंटन: उच्च कर-भुगतान वाले राज्यों के लिए राजकोषीय प्रोत्साहन में वृद्धि करना चाहिए ताकि उनके योगदान पर समान रिटर्न सुनिश्चित किया जा सके।
    • उदाहरण के लिए: महाराष्ट्र और तमिलनाडु जैसे राज्यों को उनके GST योगदान के अनुपात में अधिक अवसंरचना वित्तपोषण मिल सकता है।
  • क्षेत्रीय विकास समकरण निधि: बेहतर प्रदर्शन करने वाले राज्यों को नुकसान पहुंचाये बिना बिना पिछड़े क्षेत्रों को सहायता देने के लिए एक विशेष निधि की स्थापना करना।
    • उदाहरण के लिए: पिछड़ा क्षेत्र अनुदान निधि (BGRF) को संतुलित दृष्टिकोण के साथ विस्तारित किया जा सकता है, ताकि दक्षिणी राज्यों को नुकसान पहुंचाए बिना उत्तरी राज्यों की मदद की जा सके।
  • प्रवासी केन्द्रों के लिए शहरी अवसंरचना समर्थन: उच्च आप्रवासन का सामना कर रहे शहरों के लिए प्रवास प्रभाव निधि की शुरुआत करनी चाहिए ताकि संधारणीय शहरी विकास सुनिश्चित हो सके।
    • उदाहरण के लिए: हैदराबाद, बेंगलुरु और चेन्नई जैसे शहरों को बढ़ती शहरी माँगों के आधार पर अतिरिक्त केंद्रीय सहायता मिल सकती है।

भारत के जनसांख्यिकीय विभाजन को संबोधित करने के लिए राजकोषीय संघवाद, समान संसाधन वितरण और जनसंख्या वृद्धि से राजनीतिक प्रतिनिधित्व को अलग करना आवश्यक है। एक बहु-हितधारक दृष्टिकोण जो मानव पूंजी में निवेश को बढ़ावा देता हो और क्षेत्रीय अर्थव्यवस्थाओं को मजबूत करता हो, यह सुनिश्चित करेगा कि जनसांख्यिकीय परिवर्तन विवाद के बजाय राष्ट्रीय प्रगति को बढ़ावा दें।

To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.

Need help preparing for UPSC or State PSCs?

Connect with our experts to get free counselling & start preparing

To Download Toppers Copies: Click here

Aiming for UPSC?

Download Our App

      
Quick Revise Now !
AVAILABLE FOR DOWNLOAD SOON
UDAAN PRELIMS WALLAH
Comprehensive coverage with a concise format
Integration of PYQ within the booklet
Designed as per recent trends of Prelims questions
हिंदी में भी उपलब्ध
Quick Revise Now !
UDAAN PRELIMS WALLAH
Comprehensive coverage with a concise format
Integration of PYQ within the booklet
Designed as per recent trends of Prelims questions
हिंदी में भी उपलब्ध

<div class="new-fform">






    </div>

    Subscribe our Newsletter
    Sign up now for our exclusive newsletter and be the first to know about our latest Initiatives, Quality Content, and much more.
    *Promise! We won't spam you.
    Yes! I want to Subscribe.