Q. चर्चा कीजिए कि "राईट टू रिमेंबर" (Right to Remember) की अवधारणा "राईट टू रिपेयर" (Right to Repair) से किस प्रकार अंतर्निहित रूप से जुड़ी हुई है और भारत की नवाचार एवं मितव्ययिता की संस्कृति के संरक्षण के लिए आवश्यक है। (10 अंक, 150 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • “राईट टू रिमेम्बर” की अवधारणा आंतरिक रूप से “राईट टू रिपेयर” से कैसे जुड़ी हुई है।
  • भारत की नवाचार और मितव्ययिता की अनूठी संस्कृति को संरक्षित करने के लिए “राईट टू रिमेम्बर”  की अनिवार्यता।

उत्तर

राईट टू रिमेम्बर” पारंपरिक रिपेयर कौशल को संरक्षित करता है, जबकि “राईट टू रिपेयर” आवश्यक उपकरणों और सूचनाओं तक पहुँच सुनिश्चित करता है। ये दोनों मिलकर भारत के रिपेयर क्षेत्र को मजबूत बनाते हैं व स्थायित्व और प्रत्यास्थता को बढ़ावा देते हैं। वैश्विक स्तर पर, यह आंदोलन गति पकड़ रहा है क्योंकि यूरोपीय संघ नें निर्माताओं को मरम्मत संसाधन उपलब्ध कराना अनिवार्य किया है। भारत में, उपभोक्ता मामलों के विभाग ने वर्ष 2022 में “राईट टू रिपेयर” की रूपरेखा प्रस्तुत की और वर्ष 2023 में एक राष्ट्रीय पोर्टल लॉन्च किया।

राईट टू रिमेम्बर आंतरिक रूप से “राईट टू रिपेयर से जुड़ा हुआ है

  • स्मृति-आधारित ज्ञान में निहित नवाचार: अनौपचारिक रिपेयर करने वाले लोग सीमित संसाधनों के साथ नवाचार करते हैं, जो दीर्घकालिक प्रयोग और सुधार तकनीकों से विकसित कौशल है। 
    • उदाहरण: संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्य 12, उत्तरदायी उपभोग के एक अंग के रूप में रिपेयर को बढ़ावा देता है।
  • अनौपचारिक विशेषज्ञता का संरक्षण, सर्कुलर इकोनॉमी को बढ़ावा देता है: परंपरागत रिपेयर पद्धतियों को याद रखने से उपकरणों की मरम्मत तब भी की जा सकती है जब आधिकारिक पुर्जे या मैनुअल उपलब्ध न हों, जिससे ई-अपशिष्ट कम होता है। 
    • उदाहरण: भारत ने वर्ष 2021-22 में 1.6 मिलियन टन ई-अपशिष्ट उत्पन्न किया (CPCB), अनौपचारिक रिपेयर करने वाले लोग उत्पाद का जीवनकाल बढ़ाते हैं, जिससे कचरा कम होता है।
  • रिपेयर एक सांस्कृतिक विरासत है, सिर्फ कौशल नहीं: पारंपरिक रिपेयर कौशल व्यावहारिक विशेषज्ञता पर आधारित है जो पीढ़ियों से मौखिक परंपरा में संजोई गई है। इस स्मृति-आधारित ज्ञान की सुरक्षा के बिना ‘रिपेयर का अधिकार’ निष्प्राण हो जाता है।
  • रिपेयर का अधिकार स्थानीय निदानात्मक अंतर्ज्ञान पर निर्भर करता है: भारत में रिपेयर के अधिकार को लागू करने के लिए स्थानीय रिपेयर करने वाले लोगों के अद्वितीय निदानात्मक कौशल को समझना आवश्यक है। 
    • उदाहरण: iFixit की वर्ष 2023 की रिपोर्ट से पता चलता है कि एशिया में केवल 23% फोन ही आसानी से रिपेयर योग्य हैं, फिर भी भारतीय रिपेयर करने वाले लोग स्वदेशी उपायों से कार्य करते हैं।
  • रिपेयर न्याय के लिए स्मृति की मान्यता अनिवार्य है: पुर्जों और मैनुअल के कानूनी अधिकारों के लिए रिपेयर की सांस्कृतिक स्मृति का होना आवश्यक है, इसके बिना, पहुँच प्रभावी कार्रवाई में तब्दील नहीं होगी। 
    • उदाहरण: प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY) में पूर्व शिक्षा की मान्यता (RPL) शामिल है, जो पारंपरिक रिपेयर कार्य सहित औपचारिक शिक्षा के बाहर अर्जित कौशल को मान्य करती है।

भारत की नवाचार और मितव्ययिता की अनूठी संस्कृति को संरक्षित करने के लिए “राईट टू रिमेम्बर” की अनिवार्यता

नवाचार की संस्कृति का संरक्षण

  • विकेन्द्रीकृत, कम लागत वाले नवाचार को प्रोत्साहन: भारत की रिपेयर अर्थव्यवस्था भारी आधारभूत संरचना या औपचारिक शिक्षा के बिना ग्रामीण और छोटे शहरों में नवाचार को बढ़ावा देती है।
  • औपचारिक प्रशिक्षण द्वारा उपेक्षित ज्ञान परिवेश का संरक्षण: “राईट टू रिपेयर” उन कौशलों का संरक्षण करता है, जो कौशल विकास योजनाओं में शामिल नहीं होते हैं, परंतु अर्थव्यवस्था और स्थायित्व के लिए महत्त्वपूर्ण हैं। 
    • उदाहरण: PMKVY औद्योगिक प्रशिक्षण प्रदान करता है, लेकिन रियल वर्ल्ड के रिपेयर कार्य के लिए आवश्यक तात्कालिक कौशल को इसमें शामिल नहीं किया गया है।
  • आधुनिक उपकरणों की नियोजित अप्रचलन प्रवृत्ति का प्रतिरोध: रिपेयर का अधिकार, रिपेयर योग्य उत्पाद डिज़ाइन को अनिवार्य बना सकता है, और निर्माता-प्रेरित अप्रचलन को चुनौती दे सकता है। 
    • उदाहरण के लिए, भारत की “राइट टू रिपेयर”  ढाँचा वर्ष 2022, स्पेयर पार्ट्स और रिपेयर संबंधी जानकारी तक पहुँच को अनिवार्य बनाकर उपभोक्ताओं और रिपेयर करने वालों को सशक्त बनाता है।

मितव्ययिता की संस्कृति का संरक्षण

  • आयात पर निर्भरता कम करता है और आत्मनिर्भर भारत को बल देता है: स्थानीय रिपेयर को सक्षम करके, भारत विदेशी पुर्जों पर निर्भरता कम करता है और राष्ट्रीय आत्मनिर्भरता लक्ष्यों के साथ संरेखित होता है। 
    • उदाहरण: इलेक्ट्रॉनिक्स की स्थानीय रिपेयर से विदेशी पुर्जों की आवश्यकता कम हो रही है, जिससे PLI योजनाओं और आत्मनिर्भर भारत अभियान को बल मिल रहा है।
  • डिवाइस की आयुवृद्धि के जरिए संधारणीयता को बढ़ावा देता है: रिपेयर को सशक्त बनाने से प्रतिस्थापन की आवश्यकता कम हो जाती है, जो पुन: उपयोग के पर्यावरणीय लक्ष्यों के साथ संरेखित होता है। 
    • उदाहरण: ई-अपशिष्ट नियम (वर्ष 2022) पुनर्चक्रण को प्रोत्साहित करते हैं, लेकिन रिपेयर के माध्यम से रोकथाम सस्ती और अधिक प्रभावी है।
  • प्रौद्योगिकी पर घरेलू व्यय को न्यूनतम करता है: “राईट टू रिपेयर” रखरखाव लागत को कम करता है, जिससे महंगे नए उपकरणों की आवश्यकता कम होती है।

निष्कर्ष

“राईट टू रिपेयर” उन कौशलों, मितव्ययिता और नवाचार को बनाए रखता है जो रिपेयर के अधिकार को वास्तव में प्रभावी बनाते हैं। मिशन LiFE के अनुरूप भारत के रिपेयर ज्ञान को संरक्षित करके, कानूनी अधिकारों को सांस्कृतिक क्षमता के साथ जोड़ा जा सकता है, जिससे रिपेयर, रीयूज और रिड्यूस पर आधारित एक नवोन्मेषी, कुशल, संधारणीय और समतापूर्ण भविष्य की आधारशिला रखी जा सकेगी।

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