प्रश्न की मुख्य माँग
- विखंडित पश्चिमी गठबंधन के बीच G-7 में भारत के लिए चुनौतियों पर प्रकाश डालिये।
- चर्चा कीजिए कि भारत किस प्रकार विखंडित पश्चिमी गठबंधन के बीच G-7 मंच पर अपने हितों की रक्षा और संवर्धन कर सकता है।
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उत्तर
कनाडा में G 7 शिखर सम्मेलन (जून 2025) में पर्यवेक्षक के रूप में भारत की भागीदारी एक खंडित पश्चिमी गठबंधन के बीच इसकी बढ़ती वैश्विक भागीदारी को दर्शाती है। G7 के भीतर आंतरिक दरार और प्रतिस्पर्धी प्राथमिकताओं के साथ, भारत को रणनीतिक स्वायत्तता को बढ़ावा देना चाहिए, ग्लोबल साउथ की चिंताओं को उजागर करना चाहिए और अपने भू-राजनीतिक प्रभाव को बढ़ाना चाहिए।
ग्रुप ऑफ सेवन (G7)
ग्रुप ऑफ सेवन (G 7) उन्नत औद्योगिक लोकतंत्रों का एक अनौपचारिक अंतर-सरकारी संगठन है जो वैश्विक आर्थिक नीति, सुरक्षा मुद्दों और भू-राजनीतिक रणनीतियों के समन्वय के लिए प्रतिवर्ष बैठक आयोजित करता है।
उत्पत्ति
G7 का गठन मूल रूप से वर्ष 1975 में G6 (फ्रांस, पश्चिम जर्मनी, इटली, जापान, UK और USA) के रूप में 1973 के तेल संकट और उसके बाद वैश्विक मंदी के जवाब में किया गया था। कनाडा वर्ष 1976 में इसमें शामिल हुआ, जिससे यह G7 बन गया। यूरोपीय संघ भी बैठकों में भाग लेता है, लेकिन औपचारिक सदस्य नहीं है।
वर्तमान सदस्य (वर्ष 2025)
- संयुक्त राज्य अमेरिका
- यूनाइटेड किंगडम
- कनाडा
- जर्मनी
- फ्रांस
- इटली
- जापान
G7 के लक्ष्य
- वैश्विक आर्थिक स्थिरता और सतत विकास को बढ़ावा देना।
- वित्तीय संकटों और व्यापार विवादों पर प्रतिक्रियाओं का समन्वय करना।
- जलवायु परिवर्तन, स्वास्थ्य महामारी और खाद्य सुरक्षा जैसे वैश्विक मुद्दों पर ध्यान देना।
- लोकतांत्रिक मूल्यों, मानवाधिकारों और नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को कायम रखना।
- रणनीतिक गठबंधनों और नीतिगत आम सहमति के माध्यम से उभरती शक्तियों का प्रतिसंतुलन बनाना।
नोट: G7 के पास कोई स्थायी सचिवालय या बाध्यकारी कानूनी प्राधिकार नहीं है, लेकिन वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (लगभग 45%) में सदस्यों की हिस्सेदारी और प्रौद्योगिकीय नेतृत्व के कारण इसका सामूहिक प्रभाव महत्त्वपूर्ण है। |
खंडित पश्चिम के बीच G-7 में भारत के लिए चुनौतियाँ
- G7 के भीतर राजनीतिक मतभेद: यूक्रेन, चीन और AI विनियमन जैसे मुद्दों पर G7 सदस्यों के बीच आंतरिक असहमति आम सहमति में बाधा डालती है, जिससे मंच की प्रभावशीलता सीमित हो जाती है।
- उदाहरण के लिए, संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोपीय संघ चीन और रूस से जुड़े प्रतिबंधों और व्यापार रणनीतियों पर भिन्न हैं।
- वैश्विक प्राथमिकताओं में बदलाव: ऊर्जा सुरक्षा, हरित परिवर्तन और क्षेत्रीय संघर्षों पर G-7 का जोर जलवायु वित्त या न्यायसंगत तकनीक पहुँच जैसे भारत-केंद्रित मुद्दों को नजरअंदाज कर सकता है।
- उदाहरण के लिए, वर्ष 2025 शिखर सम्मेलन के एजेंडे ने डिजिटल बुनियादी ढांचे और स्वच्छ तकनीक को प्राथमिकता दी, जिससे ग्लोबल साउथ की विकासात्मक ज़रूरतें दरकिनार हो गईं।
- G7-ब्रिक्स प्रतिद्वंद्विता: G7 और BRICS+ के बीच बढ़ती संस्थागत प्रतिद्वंद्विता भारत के संतुलन को चुनौती देती है, विशेष रूप से जब वह दोनों मंचों के साथ जुड़ता है।
- प्रवासी-प्रेरित व्यवधान: शिखर सम्मेलनों के दौरान प्रवासी समूहों द्वारा किए जाने वाले विरोध प्रदर्शन अक्सर भारत के आधिकारिक आख्यान के साथ संघर्ष करते हैं, जिससे अंतर्राष्ट्रीय मीडिया की जांच होती है।
- उदाहरणार्थ: शिखर सम्मेलन के दौरान कनाडा में खालिस्तान समर्थक प्रदर्शनों से भारत के लिए कूटनीतिक असुविधा उत्पन्न हो गई।
- सीमित संस्थागत प्रभाव: गैर-सदस्य अतिथि के रूप में, भारत के पास मतदान के अधिकार का अभाव है, जो G7 घोषणाओं या परिणामों को आकार देने में इसकी भूमिका को सीमित करता है।
- रणनीतिक संरेखण पर दबाव: भारत रूस, ईरान और चीन पर पश्चिमी आख्यानों के साथ तालमेल बिठाने के लिए दबाव का सामना कर रहा है , जिससे संभावित रूप से इसकी रणनीतिक स्वायत्तता से समझौता हो सकता है।
- उदाहरण के लिए, रूस पर व्यापक प्रतिबंधों के लिए G7 का आह्वान अप्रत्यक्ष रूप से मास्को के साथ भारत के ऊर्जा व्यापार को लक्षित करता है।
- G7 की प्रभावशीलता में गिरावट: बढ़ते आंतरिक मतभेदों और सीमित प्रवर्तन तंत्रों ने G7 के वैश्विक प्रभाव को कम कर दिया है, जिससे कूटनीतिक रूप से अधिक निवेश करने के लिए भारत का प्रोत्साहन कम हो गया है।
भारत G-7 में अपने हितों की सुरक्षा और संवर्धन कैसे कर सकता है
- बहुध्रुवीय शासन का समर्थन: भारत समावेशी वैश्विक शासन के लिए जोर दे सकता है, जिसमें ऋण पुनर्गठन, जलवायु न्याय और डिजिटल इक्विटी जैसे ग्लोबल साउथ के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया जा सकता है।
- उदाहरण के लिए, वर्ष 2023 में भारत की G20 अध्यक्षता ने G7 में न्यायसंगत वैश्विक नियमों की वकालत करने के लिए आधार तैयार किया।
- महत्त्वपूर्ण तकनीक और खनिज सहयोग का लाभ उठाएं: भारत अपनी PLI योजनाओं और डिजिटल विकास का उपयोग सेमीकंडक्टर, EV और दुर्लभ मृदा में G7 की जरूरतों के साथ संरेखित करने के लिए कर सकता है।
- उदाहरण: भारत-कनाडा वार्ता महत्त्वपूर्ण खनिज आपूर्ति श्रृंखलाओं के संयुक्त विकास पर केंद्रित रही।
- द्विपक्षीय साझेदारी को मजबूत करना: भारत व्यापार, रक्षा और प्रौद्योगिकी पर केंद्रित संवादों के माध्यम से G- 7 के अलग-अलग सदस्यों के साथ संबंधों को मजबूत कर सकता है।
- उदाहरण के लिए, शिखर सम्मेलन के दौरान, भारत ने डिजिटल मानकों और स्वच्छ ऊर्जा पर जर्मनी और जापान के साथ समझौतों को आगे बढ़ाया।
- रणनीतिक मध्यस्थ के रूप में कार्य करना: भारत का संतुलित रुख उसे G7 विभाजनों, विशेष रूप से रूस और चीन के संबंध में मध्यस्थता करने की अनुमति देता है, जिससे वह खुद को एक तटस्थ समस्या समाधानकर्ता के रूप में पेश करता है।
- उदाहरण के लिए, एकतरफा प्रतिबंधों का समर्थन करने से भारत के इनकार ने उसकी गुटनिरपेक्ष कूटनीति को मजबूत किया ।
- डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (DPI) को बढ़ावा देना: भारत UPI और आधार जैसे अपने DPI मॉडल का वैश्वीकरण कर सकता है तथा खुले, संप्रभु डिजिटल ढाँचे की वकालत कर सकता है।
- जलवायु लक्ष्यों के साथ ISA को एकीकृत करना: अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन के नेतृत्वकर्ता के रूप में भारत G7 के स्वच्छ ऊर्जा वित्तपोषण और वैश्विक डीकार्बोनाइजेशन प्रयासों पर सहयोग कर सकता है।
- कनेक्टिविटी विकल्पों का विस्तार: भारत, चीन के बेल्ट एंड रोड के लिए G7 समर्थित विकल्प के रूप में भारत-मध्य पूर्व-यूरोप कॉरिडोर (IMEC) को बढ़ावा दे सकता है।
G-7 में भारत की भागीदारी वैश्विक महत्त्वाकांक्षाओं के साथ रणनीतिक साझेदारी को संतुलित करने का अवसर प्रदान करती है। समावेशी शासन की वकालत करके, डिजिटल और जलवायु नवाचारों को बढ़ावा देकर और रणनीतिक स्वायत्तता को संरक्षित करके, भारत तेजी से विभाजित वैश्विक व्यवस्था में एक संतुलन ला सकता है।
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