Q. कोलंबो सुरक्षा सम्मेलन (CSC) हिंद महासागर क्षेत्र में सुरक्षा सहयोग के लिए एक महत्वपूर्ण मंच के रूप में उभरा है। चर्चा कीजिए कि कोलंबो सुरक्षा सम्मेलन में भारत का नेतृत्व उसके समुद्री सुरक्षा हितों और क्षेत्रीय रणनीतिक उद्देश्यों को कैसे आगे बढ़ाता है, और इस सहयोग को बनाए रखने में आने वाली प्रमुख चुनौतियों का परीक्षण कीजिए। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • भारत के नेतृत्व द्वारा समुद्री सुरक्षा और रणनीतिक उद्देश्यों को आगे बढ़ाना। 
  • कोलंबो सुरक्षा सम्मेलन (CSC) सहयोग को बनाए रखने में प्रमुख चुनौतियाँ। 
  • चुनौतियों का समाधान करने के उपाय। 

उत्तर

कोलंबो सुरक्षा सम्मेलन (CSC) एक त्रिपक्षीय समुद्री सुरक्षा मंच है जिसमें भारत, श्रीलंका और मालदीव शामिल हैं। इसका उद्देश्य क्षेत्रीय सुरक्षा को सुदृढ़ करना, समुद्री अपराधों का मुकाबला करना, और हिंद महासागर में सहयोगात्मक तंत्रों में वृद्धि करना है, जिससे साझा रणनीतिक हितों के साथ जटिल भू-रणनीतिक वातावरण में स्थिरता को बढ़ावा मिले।

मुख्य भाग

भारत के नेतृत्व द्वारा समुद्री सुरक्षा और रणनीतिक उद्देश्यों को आगे बढ़ाना

  • उन्नत समुद्री क्षेत्र जागरूकता: भारत समुद्री डकैती, अवैध मत्स्यन और तस्करी पर जानकारी साझा करने का नेतृत्व करता है ताकि महत्त्वपूर्ण समुद्री मार्ग सुरक्षित रहें।
    • उदाहरण: कोलंबो सुरक्षा सम्मेलन (CSC) ने  वर्ष 2023 में श्रीलंका और मालदीव के साथ संदिग्ध जहाजों की निगरानी करने के लिए समन्वित अभ्यास किए।
  • दस्युता-निरोधी अभ्यास: संयुक्त गश्त और समन्वित प्रतिक्रियाएँ वाणिज्यिक और रणनीतिक समुद्री मार्गों की सुरक्षा में सुधार करती हैं।
    • उदाहरण: भारतीय नौसेना के INS सुमेधा ने वर्ष 2022 में कोलंबो सुरक्षा सम्मेलन (CSC) पहलों के तहत मालदीव के विशेष आर्थिक क्षेत्र में गश्त की।
  • आतंकवाद-निरोध हेतु सहयोग: कोलंबो सुरक्षा सम्मेलन (CSC) समुद्री आतंकवाद का मुकाबला करने और अंतरराष्ट्रीय अपराधों को रोकने के लिए खुफिया आदान-प्रदान को सुगम बनाता है।
  • क्षेत्रीय प्रभाव को मजबूत करना: भारत की सक्रिय भूमिका हिंद महासागर क्षेत्र में उसकी रणनीतिक उपस्थिति और प्रभाव सुनिश्चित करती है।
  • साझेदार देशों की क्षमता निर्माण: भारत प्रशिक्षण, नौसैनिक अभ्यास और तकनीकी समर्थन प्रदान करता है ताकि साझेदार देशों की समुद्री क्षमताएँ मजबूत हों।

कोलंबो सुरक्षा सम्मेलन (CSC) सहयोग को बनाए रखने में प्रमुख चुनौतियाँ

  • विभिन्न राष्ट्रीय हित: प्रत्येक देश की रणनीतिक प्राथमिकताएँ अलग-अलग होती हैं, जिससे संयुक्त कार्रवाइयों पर सर्वसम्मति बनाना जटिल हो जाता है।
  • संसाधन सीमाएँ: छोटे साझेदारों के पास सीमित नौसैनिक और निगरानी क्षमताएँ होती हैं, जिससे कोलंबो सुरक्षा सम्मेलन (CSC) की पहलों का पूर्ण कार्यान्वयन कठिन हो जाता है।
  • समुद्री सीमा विवाद: अतिक्रमण EEZ दावे और संप्रभुता से जुड़ी संवेदनशीलताएँ संयुक्त अभियानों में देरी कर सकती हैं।
  • भारतीय नेतृत्व पर निर्भरता: भारत पर अत्यधिक निर्भरता साझेदार देशों की स्वायत्तता को सीमित कर सकती है और संबंधों में तनाव पैदा कर सकती है।
  • बाहरी भू-राजनीतिक दबाव: चीन और अन्य बाहरी शक्तियों की बढ़ती उपस्थिति कोलंबो सुरक्षा सम्मेलन (CSC) की एकजुटता और क्षेत्रीय समुद्री प्रभुत्व के लिए चुनौती उत्पन्न करती है।
    • उदाहरण: मालदीव में चीनी नौसैनिक यात्राओं ने कभी-कभी हिंद महासागर में संयुक्त गश्त को जटिल बना दिया है।

चुनौतियों का समाधान करने के उपाय

  • साझा रणनीतिक दृष्टिकोण में वृद्धि: नियमित संवाद और कार्यशालाएँ राष्ट्रीय प्राथमिकताओं को सामंजस्यपूर्ण बनाने में सहायता करती हैं।
  • क्षमता-निर्माण सहायता: छोटे साझेदारों को पोत, प्रशिक्षण और निगरानी तकनीक प्रदान की जानी चाहिए।
    • उदाहरण: भारत ने वर्ष 2023 में मालदीव और श्रीलंका को तटीय रडार प्रणाली उपहार में दी।
  • संयुक्त अभियानों के लिए प्रोटोकॉल का संस्थानीकरण: मानक संचालन प्रक्रियाएँ संप्रभुता से जुड़ी विभिन्न चिंताओं से उत्पन्न गतिरोध को कम करती हैं।
  • बहुपक्षीय विश्वास-निर्माण में सहभागिता: बाहरी दबावों को कम करने के लिए अन्य क्षेत्रीय अभिकर्ताओं के साथ संवाद का विस्तार किया जाए।
    • उदाहरण: भारत, कोलंबो सुरक्षा सम्मेलन (CSC) के साथ-साथ हिंदमहासागर रिम एसोसिएशन (IORA) साझेदारों के साथ जुड़कर विश्वास और सहयोग को बढ़ावा देता है।
  • नेतृत्व और जिम्मेदारियों का परिवर्तन : नेतृत्व और संचालन भूमिकाओं को साझा करना साझेदारी के साथ स्वामित्व और समावेशिता में वृद्धि करता है।

निष्कर्ष

कोलंबो सुरक्षा सम्मेलन (CSC) में भारत का नेतृत्व समुद्री सुरक्षा और रणनीतिक प्रभाव को मजबूत करता है, लेकिन सहयोग बनाए रखने के लिए साझेदार देशों की क्षमता की कमी, संप्रभुता से जुड़ी संवेदनशीलताओं, और बाहरी दबावों का समाधान करना भी आवश्यक है। संस्थागत प्रोटोकॉल, क्षमता-निर्माण, और बहुपक्षीय सहभागिता दीर्घकालिक क्षेत्रीय स्थिरता के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।

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