Q. वैश्विक विनिर्माण केंद्र के रूप में उभरने की भारत की महत्वाकांक्षा तेजी से विदेशी रणनीतिक हितों से उलझती जा रही है। भारत के इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र से चीन द्वारा तकनीकी विशेषज्ञता वापस लेने के निहितार्थों पर चर्चा कीजिए। भारत को अपने मूल आर्थिक हितों की रक्षा और दीर्घकालिक औद्योगिक लचीलापन सुनिश्चित करने के लिए नीतिगत उपाय सुझाइए। (10 अंक, 150 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • भारत के इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र से चीन की तकनीकी विशेषज्ञता की वापसी के नकारात्मक और सकारात्मक निहितार्थों पर चर्चा कीजिए।
  • भारत को अपने मुख्य आर्थिक हितों को सुरक्षित रखने तथा दीर्घकालिक औद्योगिक प्रत्यास्थता सुनिश्चित करने के लिए नीतिगत उपाय अपनाने का सुझाव दीजिए।

उत्तर

परिचय

वैश्विक विनिर्माण केंद्र बनने की भारत की महत्त्वाकांक्षा उसकी आर्थिक रणनीति का केंद्र बिंदु है। हालाँकि, चीन द्वारा हाल ही में उठाए गए रणनीतिक कदम, विशेषकर उसके तकनीकी कर्मियों की वापसी और महत्त्वपूर्ण सामग्रियों व उपकरणों के निर्यात पर प्रतिबंध, यह दर्शाते हैं कि भारत की आकांक्षाएँ विदेशी निर्भरताओं के साथ कितनी गहराई से उलझी हुई हैं। इन कदमों का भारत की औद्योगिक प्रत्यास्थता पर गहरा प्रभाव पड़ेगा।

मुख्य भाग 

भारत के इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र से चीन की तकनीकी विशेषज्ञता की वापसी के निहितार्थ

  • प्रौद्योगिकी हस्तांतरण में रुकावट: आईफोन विनिर्माण इकाइयों से 300 से अधिक कुशल चीनी इंजीनियरों को वापस बुलाए जाने से भारत की विनिर्माण ज्ञान और परिचालन उत्कृष्टता तक पहुँच कमजोर हो गई है। उदाहरण: ये इंजीनियर तमिलनाडु और कर्नाटक में फॉक्सकॉन की आईफोन 17 प्रोडक्शन लाइनें स्थापित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका में थे।
  • इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण विस्तार में व्यवधान: उन्नत उत्पादन प्रणालियों के लिए विदेशी तकनीशियनों पर भारत की निर्भरता, उच्च तकनीक विनिर्माण के विस्तार में सुभेद्यताओं को उजागर करती है।
  • दुर्लभ मृदा निर्यात प्रतिबंधों के माध्यम से रणनीतिक लाभ: दुर्लभ मृदा तत्त्वों पर चीन का नियंत्रण और इसके निर्यात प्रतिबंधों का उद्देश्य इलेक्ट्रॉनिक्स और EV क्षेत्रों के लिए महत्त्वपूर्ण इनपुट तक भारत की पहुँच को रोकना करना है। उदाहरण: भारत को गैलियम, जर्मेनियम और ग्रेफाइट निर्यात पर कड़े प्रतिबंध लगाए जा रहे हैं, जिससे चिप और बैटरी उत्पादन प्रभावित हो रहा है।
  • अनौपचारिक व्यापार बाधाएँ परिचालन जोखिम को बढ़ा रही हैं: चीन पूँजीगत उपकरणों के निर्यात को प्रतिबंधित करने के लिए प्रशासनिक देरी और मौखिक प्रतिबंध जैसे अपारदर्शी साधनों का उपयोग करता है। उदाहरण: बोरिंग मशीनों और सौर पैनल उपकरणों सहित उच्च-स्तरीय मशीनरी को भारत में शिपमेंट करने हेतु अस्पष्टीकृत अस्वीकृति का सामना करना पड़ता है।
  • लागत वृद्धि और निवेश में झिझक: व्यवधानों के कारण लागत में वृद्धि होती है और विदेशी तथा घरेलू दोनों ही प्रकार के निवेशक भारतीय विनिर्माण में निवेश करने से कतराते हैं। उदाहरण: आपूर्ति शृंखला की अविश्वसनीयता ने चीन से स्थानांतरित होने वाले वैश्विक निर्माताओं के लिए भारत को कम आकर्षक बना दिया है।
  • चीनी निर्यात प्रभुत्व का संरक्षण: चीन, भारत को एक संभावित प्रतिस्पर्द्धी के रूप में देखता है और अपने व्यापार अधिशेष व विनिर्माण वर्चस्व को बनाए रखने के लिए कार्य कर रहा है।
    उदाहरण: चीन के 1 ट्रिलियन डॉलर के व्यापार अधिशेष की रक्षा, उच्च मूल्य वाले क्षेत्रों में भारत की वृद्धि को कम करके की जा रही है।
  • फ्रेंडशोरिंग आख्यान में रणनीतिक भेद्यता: आपूर्ति शृंखलाओं में विविधता लाने के पश्चिमी देशों के इरादे के बावजूद, भारतीय वस्तुओं पर हाल ही में लगाई गई अमेरिकी टैरिफ वृद्धि से पता चलता है कि भारत की भूमिका सुनिश्चित नहीं है। उदाहरण: भारतीय निर्यात पर 50% का अमेरिकी टैरिफ भारत की वैश्विक स्थिति को कमजोर करता है, जबकि चीन को 90 दिनों की छूट मिलती है।

चीन की वापसी के सकारात्मक प्रभाव

  • आत्मनिर्भरता और स्वदेशी क्षमता निर्माण को बढ़ावा: चीनी विशेषज्ञों का देश से चले जाना, अति-निर्भरता को उजागर करता है और यह आत्मनिर्भर भारत के तहत घरेलू अनुसंधान एवं विकास, कौशल विकास और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को बढ़ावा दे सकता है।
  • आपूर्ति शृंखलाओं का विविधीकरण और रणनीतिक साझेदारियाँ: यह भारत को जापान, दक्षिण कोरिया, ताइवान और पश्चिम जैसे विश्वसनीय साझेदारों के साथ संबंधों को मजबूत करके आपूर्ति शृंखलाओं में विविधता लाने के लिए प्रेरित करता है।
  • इलेक्ट्रॉनिक्स में भारतीय स्टार्ट-अप और MSME को बढ़ावा: चीनी विशेषज्ञों के जाने से उत्पन्न हुई रिक्ति से स्थानीय स्टार्ट-अप्स, डिजाइन हाउस और MSMEs के लिए सेवाएँ प्रदान करने के अवसर खुल सकते हैं, जिससे पारिस्थितिकी तंत्र मजबूत होगा और रोजगार सृजन होगा।
  • सरकार और उद्योग सहयोग में तेजी: चीन के बाहर जाने से PLI योजनाओं और इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण के लिए सेमीकॉन इंडिया मिशन को तेजी से लागू करने के लिए सरकार तथा उद्योग के प्रयासों में तेजी आ सकती है।

मुख्य आर्थिक हितों की रक्षा करने और औद्योगिक प्रत्यास्थता निर्माण हेतु नीतिगत उपाय

  • स्वदेशी कौशल एवं प्रौद्योगिकी पारिस्थितिकी तंत्र में निवेश: भारत को अपने कुशल विनिर्माण तकनीशियनों और अनुसंधान एवं विकास क्षमताओं का विकास प्राथमिकता से करना चाहिए।
    उदाहरण: सेमीकंडक्टर और इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण में ‘सेंटर ऑफ एक्सीलेंस का विस्तार विदेशी विशेषज्ञों पर निर्भरता को कम कर सकता है।
  • विविधीकरण के माध्यम से रणनीतिक कच्चे माल को सुरक्षित करना: भारत को ऑस्ट्रेलिया, वियतनाम और अफ्रीका जैसे देशों से दुर्लभ मृदा तत्त्वों की आपूर्ति में विविधता लानी चाहिए।
  • घरेलू विनिर्माण क्षमताओं को सुदृढ़ करना: घटक विनिर्माण से लेकर अंतिम असेंबली तक ऊर्ध्वाधर एकीकृत आपूर्ति शृंखला बनाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
    उदाहरण: इलेक्ट्रॉनिक्स और सेमीकंडक्टर के लिए भारत की PLI योजनाओं का उद्देश्य आत्मनिर्भरता का निर्माण करना है।
  • रणनीतिक क्षेत्रों में संप्रभु नवाचार स्थापित करना: AI, EV और सेमीकंडक्टर जैसी महत्त्वपूर्ण तकनीक में, भारत को घरेलू नवाचार में तेजी लानी चाहिए।
    उदाहरण: सुपरकंप्यूटिंग और स्वदेशी चिप्स में C-DAC और DRDO के नेतृत्व वाली पहलों को वित्त पोषित किया जाना चाहिए तथा तेजी से आगे बढ़ाया जाना चाहिए।
  • रणनीतिक आर्थिक गठबंधन का निर्माण: भारत को चीन पर रणनीतिक निर्भरता कम करने के लिए समान विचारधारा वाले लोकतंत्रों के साथ व्यापार और आपूर्ति-शृंखला साझेदारी को मजबूत करना चाहिए।
    उदाहरण: जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ सप्लाई चेन रेजिलियंस इनीशिएटिव (SCRI) इस दिशा में एक कदम है।
  • औद्योगिक नीति के लिए द्वैध उपयोग की रणनीति अपनाना: प्रमुख क्षेत्रों को विदेशी दबाव से बचाने के लिए  राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक रणनीतियों को संरेखित किया जाना चाहिए।
    उदाहरण: गलवान के बाद संवेदनशील क्षेत्रों में चीनी FDI पर प्रतिबंध, बढ़ते आर्थिक-सुरक्षा अभिसरण को दर्शाता है।

निष्कर्ष

एक आश्रित आयातक से एक संभावित वैश्विक विनिर्माण नेतृत्वकर्ता बनने की भारत की यात्रा को जटिल रूप से बाह्य प्रतिरोध का सामना करना पड़ रहा है, विशेषकर चीन से। जैसा कि  हालिया घटनाओं से पता चलता है, औद्योगिक प्रत्यास्थता को अब रणनीतिक स्वायत्तता से अलग नहीं किया जा सकता। भारत को अब घरेलू नवाचार, जोखिम-मुक्त वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं और दृढ़ आर्थिक कूटनीति पर केंद्रित एक नया औद्योगिक रोडमैप तैयार करना होगा, जो न केवल आर्थिक शक्ति बल्कि राष्ट्रीय संप्रभुता का भी मार्ग प्रशस्त करे।

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