Q. जनसंख्या नियंत्रण उपायों को सफलतापूर्वक लागू करने वाले राज्यों के राजनीतिक प्रतिनिधित्व पर जनसंख्या-आधारित परिसीमन दृष्टिकोण के निहितार्थों पर चर्चा कीजिए। क्या परिसीमन प्रक्रिया में आर्थिक योगदान और सामाजिक विकास जैसे कारकों पर विचार किया जाना चाहिए?​(15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • जनसंख्या आधारित परिसीमन के निहितार्थों पर चर्चा कीजिए।
  • परिसीमन प्रक्रिया में विचार किए जाने वाले आर्थिक योगदान और सामाजिक विकास जैसे कारकों का उल्लेख कीजिए।
  • जनसंख्या से परे कारकों का संक्षेप में, या सूक्ष्म आरेख के रूप में उल्लेख कीजिए।
  • परिसीमन दृष्टिकोण के लिए आगे की राह।

उत्तर

परिसीमन, सीमाओं को पुनः निर्धारित करने की प्रक्रिया है। हालाँकि, वर्ष 2026 में प्रतिबंध हटने के बाद प्रस्तावित विशुद्ध रूप से जनसंख्या-आधारित परिसीमन उन राज्यों के लिए समानता संबंधी चिंताएँ उत्पन्न करता है जिन्होंने जनसंख्या नियंत्रण उपायों को प्रभावी ढंग से लागू किया है।

जनसंख्या आधारित परिसीमन के निहितार्थ

  • जनसंख्या नियंत्रण सफलता को दंडित करना: केरल, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश जैसे राज्य जिन्होंने परिवार नियोजन को समय से लागू किया, की राजनीतिक प्राथमिकता कम हो सकती है।
    • उदाहरण के लिए: केरल की जनसंख्या में हिस्सेदारी घट रही है, फिर भी उत्तर प्रदेश जैसे तेजी से बढ़ते राज्यों के विपरीत, इसकी संसदीय सीटें सीमित हैं।
  • राजनीतिक शक्ति उच्च जनसंख्या वाले राज्यों की ओर स्थानांतरित होगी: उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान जैसे उत्तरी राज्यों में, जिनकी जनसंख्या वृद्धि अधिक है, वर्ष 2026 के बाद अधिक लोकसभा सीटें हासिल होने की संभावना है।
    • उदाहरण के लिए: अकेले उत्तर प्रदेश में 90 सीटों का आंकड़ा पार हो सकता है, जिससे राजनीतिक शक्ति का और अधिक केंद्रीकरण हो सकता है।
  • राजकोषीय संघवाद का विरूपण: यदि प्रतिनिधित्व गरीब, उच्च जनसंख्या वाले राज्यों के पक्ष में हो तो वित्त आयोग के माध्यम से संसाधनों का पुनर्वितरण विषम हो सकता है।
  • सहकारी संघवाद का क्षरण: कथित राजनीतिक वंचन के कारण केंद्र और दक्षिणी या पूर्वोत्तर राज्यों के बीच विश्वास और सहयोग कम हो सकता है।
    • उदाहरण के लिए: दक्षिणी मंत्रियों (जैसे, केरल, तमिलनाडु) ने संसद में “जनसांख्यिकीय अन्याय” के संबंध में चिंता व्यक्त की है।
  • शासन संबंधी प्रोत्साहनों को कमजोर करना: जनसंख्या नियंत्रण में सफल रहे राज्यों को नुक़सान होने से राज्यों को सामाजिक विकास और संधारणीय योजना में निवेश करने से हतोत्साहित करता है।

परिसीमन प्रक्रिया में आर्थिक योगदान और सामाजिक विकास जैसे कारकों पर विचार किया गया

  • प्रभावी जनसंख्या नियंत्रण के लिए राज्यों को पुरस्कृत करना: परिवार नियोजन और प्रजनन लक्ष्यों को पूरा करने वाले राज्यों के पास कम राजनीतिक शक्ति नहीं होनी चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: केरल और तमिलनाडु ने वर्ष 2000 के दशक के प्रारंभ में प्रतिस्थापन से कम प्रजनन क्षमता हासिल की, लेकिन यदि केवल जनसंख्या पर विचार किया जाए तो वर्ष 2026 के बाद उनकी सीटें खोने का खतरा है।
  • राष्ट्रीय विकास में आर्थिक योगदान को प्रतिबिम्बित करना: सकल घरेलू उत्पाद और करों में अधिक योगदान देने वाले राज्यों को राष्ट्रीय नीति निर्माण में अधिक अधिकार मिलना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: महाराष्ट्र भारत के सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 14% का योगदान देता है और कर्नाटक IT निर्यात में अग्रणी है, फिर भी विशुद्ध रूप से जनसंख्या-आधारित दृष्टिकोण के तहत दोनों का प्रतिनिधित्व कम हो सकता है।
  • सुशासन और विकास को प्रोत्साहित करना: सामाजिक विकास (शिक्षा, स्वास्थ्य, लिंग समानता) को मान्यता देने से राज्य मानव पूंजी में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित होंगे।
    • उदाहरण के लिए: मानव विकास सूचकांक (HDI) में केरल की शीर्ष रैंकिंग, सामाजिक क्षेत्रों में निरंतर निवेश को दर्शाती है।
  • संघीय शक्ति संतुलन को बनाए रखना: अधिक जनसंख्या वाले परंतु अविकसित राज्यों का अधिक प्रतिनिधित्व, राष्ट्रीय प्राथमिकताओं को प्रभावित कर सकता है तथा सहकारी संघवाद को कमजोर कर सकता है।
    • उदाहरण के लिए: उत्तर प्रदेश को 10-12 लोकसभा सीटें मिल सकती हैं, जिससे आर्थिक रूप से विकसित दक्षिणी राज्यों पर उसकी पकड़ मजबूत होगी।
  • अंतर-राज्यीय राजकोषीय समानता को संबोधित करना: बेहतर राजकोषीय प्रबंधन और कर संग्रह वाले राज्य राष्ट्रीय योजनाओं का अधिक समर्थन करते हैं और उनका आनुपातिक प्रभाव भी होना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: तमिलनाडु और गुजरात लगातार शीर्ष कर योगदान देने वाले राज्यों में शामिल हैं।

परिसीमन में जनसंख्या से परे अन्य कारकों पर भी विचार किया जाना चाहिए

  • राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद में आर्थिक योगदान: राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में अधिक योगदान देने वाले राज्यों का आनुपातिक राजनीतिक प्रभाव होना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: महाराष्ट्र (भारत के सकल घरेलू उत्पाद का 14%) और तमिलनाडु (9%) छोटी आबादी होने के बावजूद उत्तर प्रदेश (8%) की तुलना में कहीं अधिक योगदान देते हैं।
  • प्रति व्यक्ति कर राजस्व: उच्च प्रति व्यक्ति कर राजस्व उत्पन्न करने वाले राज्य राष्ट्रीय राजकोषीय स्वास्थ्य को समर्थन देते हैं तथा निर्णय लेने में अधिक सशक्त भूमिका के हकदार हैं।
    • उदाहरण के लिए: कर्नाटक और दिल्ली में प्रति व्यक्ति कर संग्रह सबसे अधिक है, लेकिन अधिक आबादी वाले राज्यों की तुलना में उनकी सीटें कम हैं।
  • मानव विकास संकेतक (HDI): स्वास्थ्य, शिक्षा और लैंगिक समानता में बेहतर परिणाम वाले राज्य मजबूत शासन और सामाजिक निवेश प्रदर्शित करते हैं।
    • उदाहरण के लिए: केरल, साक्षरता और जीवन प्रत्याशा में देश में सबसे आगे है, लेकिन यदि केवल जनसंख्या पर विचार किया जाए तो इसका प्रतिनिधित्व कम हो सकता है।
  • राष्ट्रीय जनसंख्या नीति लक्ष्यों का कार्यान्वयन: जिन राज्यों ने राष्ट्रीय लक्ष्यों के अनुरूप जनसंख्या वृद्धि को प्रभावी ढंग से नियंत्रित किया है, उन्हें पुरस्कृत किया जाना चाहिए, दंडित नहीं किया जाना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश ने अपने उत्तरी समकक्षों से काफी पहले प्रतिस्थापन स्तर की प्रजनन दर हासिल कर ली।
  • शहरीकरण और बुनियादी ढाँचे में योगदान: अत्यधिक शहरीकृत राज्य औद्योगीकरण, रोजगार और डिजिटल विकास में केंद्रीय भूमिका निभाते हैं।
    • उदाहरण के लिए: गुजरात और तेलंगाना भारत की निर्यात अर्थव्यवस्था को संचालित करते हैं, लेकिन केवल जनसंख्या-आधारित मॉडल के तहत इनका प्रतिनिधित्व स्थिर रह सकता है।
  • सामाजिक क्षेत्र में व्यय और कल्याण दक्षता: स्वास्थ्य, शिक्षा और कल्याण में अधिक निवेश करने वाले राज्यों को राष्ट्रीय नीति निर्माण में अधिक भागीदारी मिलनी चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: केरल अपने बजट का लगभग 40% सामाजिक क्षेत्रों पर खर्च करता है, जो प्रगतिशील शासन को दर्शाता है, जिसे अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है।
  • समावेशिता और अल्पसंख्यक प्रतिनिधित्व: जिन राज्यों ने हाशिए पर वंचित वर्गों के लिए समावेशी शासन और प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया है, उन्हें राजनीतिक रूप से सशक्त बनाया जाना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: सिक्किम और नागालैंड में जनजातीय समावेशन के लिए अनुकरणीय मॉडल हैं, लेकिन कम आबादी के कारण वहां राजनीतिक रूप से दरकिनार किए जाने का खतरा है।

आगे की राह 

  • भारित प्रतिनिधित्व मॉडल: जनसंख्या, विकास और आर्थिक प्रदर्शन को मिलाकर एक समग्र सूचकांक प्रस्तुत करना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: वित्त आयोग के हस्तांतरण फार्मूले में इसी प्रकार के मॉडल का उपयोग किया जाता है।
  • राज्य सभा की भूमिका में वृद्धि: राष्ट्रीय निर्णय लेने में राज्य सभा को अधिक महत्त्व  देकर संघीय सुरक्षा उपायों को मजबूत करना चाहिए।
  • संविधान संशोधन पर बहस: यदि आम सहमति बनती है, तो संसद विकासात्मक मानदंडों को शामिल करने के लिए अनुच्छेद 81 में संशोधन पर बहस कर सकती है।
  • संघीय चरित्र का संरक्षण: परिसीमन प्रक्रिया में सहकारी संघवाद की भावना का संरक्षण किया जाना चाहिए, न कि केवल इसके संरचनात्मक स्वरूप का।

जबकि जनसंख्या-आधारित परिसीमन सैद्धांतिक रूप में समान प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करता है, इसके परिणामस्वरूप राष्ट्रीय जनसंख्या नीतियों को बनाए रखने वाले प्रगतिशील राज्यों को नुक़सान भी उठाना पड़ सकता है। आर्थिक योगदान, शासन और विकास को एकीकृत करने वाला अधिक सूक्ष्म दृष्टिकोण वास्तव में संघीय लोकतंत्र में अधिक निष्पक्ष और अधिक समावेशी राजनीतिक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित कर सकता है।

To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.

Need help preparing for UPSC or State PSCs?

Connect with our experts to get free counselling & start preparing

Aiming for UPSC?

Download Our App

      
Quick Revise Now !
AVAILABLE FOR DOWNLOAD SOON
UDAAN PRELIMS WALLAH
Comprehensive coverage with a concise format
Integration of PYQ within the booklet
Designed as per recent trends of Prelims questions
हिंदी में भी उपलब्ध
Quick Revise Now !
UDAAN PRELIMS WALLAH
Comprehensive coverage with a concise format
Integration of PYQ within the booklet
Designed as per recent trends of Prelims questions
हिंदी में भी उपलब्ध

<div class="new-fform">






    </div>

    Subscribe our Newsletter
    Sign up now for our exclusive newsletter and be the first to know about our latest Initiatives, Quality Content, and much more.
    *Promise! We won't spam you.
    Yes! I want to Subscribe.