प्रश्न की मुख्य माँग
- भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सिद्धांत के लिए इस आधुनिक युद्ध के सकारात्मक निहितार्थों पर चर्चा कीजिये।
- बदलती युद्ध पद्धतियों के कारण भारत को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है?
- भारत इस बदलती युद्ध पद्धति के अनुकूल होने के लिए क्या कर सकता है?
|
उत्तर
वर्तमान समय में युद्धकला पारंपरिक लड़ाइयों से विकसित होकर तकनीक-आधारित संघर्षों में बदल गई है, जिनमें कृत्रिम बुद्धिमत्ता, ड्रोन और साइबर उपकरणों का उपयोग किया जाता है। आधुनिक युद्ध बहु-क्षेत्रीय होते हैं और सैनिकों पर कम निर्भर होते हैं। यूक्रेन, पश्चिम एशिया और वर्ष 2025 के भारत-पाकिस्तान संघर्षों ने इस बात पर बल दिया है कि आधुनिक युद्ध किस प्रकार भौतिक सीमाओं और क्षेत्रों से परे जाते हैं, और राष्ट्रों को पारंपरिक रक्षा प्रतिमानों पर पुनर्विचार करने के लिए बाध्य करते हैं।
भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सिद्धांत के लिए सकारात्मक निहितार्थ
- कम हताहतों के साथ सटीक हमले: आधुनिक युद्ध, जिसका उदाहरण भारत के वर्ष 2025 के सटीक हमले हैं, में सटीकता सुनिश्चित करने के लिए ड्रोन और AI-निर्देशित मिसाइलों का उपयोग किया जाता है, तथा साथ ही सैनिकों की हताहतों और संपार्श्विक क्षति को भी कम किया जाता है।
- उन्नत निगरानी और खुफिया जानकारी एकत्र करना: हाई एल्टीट्यूड वाले UAV और ड्रोन, सीमाओं व दुश्मन की गतिविधियों की रियलटाइम निगरानी करते हैं, जिससे तीव्र और सूचित सामरिक निर्णय लेने में मदद मिलती है।
- बहु-डोमेन और नेटवर्क-केंद्रित युद्ध की ओर बदलाव: भूमि, वायु, समुद्र, साइबर और अंतरिक्ष संचालन का एकीकरण भारत को सभी डोमेन में तेजी से और लचीले ढंग से प्रतिक्रिया करने की अनुमति देता है।
- भौतिक सैन्य तैनाती पर निर्भरता में कमी: दूर से संचालित प्रणालियां और स्वचालन जमीनी उपस्थिति की आवश्यकता को कम करते हैं, सैनिक जोखिम को कम करते हैं व तेजी से रणनीतिक कार्रवाई करने में सक्षम बनाते हैं।
- सामरिक प्रतिरोध में तकनीकी बढ़त: AI-संचालित प्लेटफॉर्म, हाइपरसोनिक मिसाइलें और स्वायत्त हथियार चीन और पाकिस्तान जैसे विरोधियों के खिलाफ भारत की प्रतिरोधात्मक क्षमता को बढ़ाते हैं।
आधुनिक युद्ध पद्धति को बदलने की चुनौतियाँ
- अप्रचलित रक्षा खरीद और योजना: पारंपरिक खरीद चक्र तकनीकी नवाचार की गति से मेल खाने के लिए संघर्ष करते हैं, जिससे भारत की युद्धक्षेत्र प्रासंगिकता खतरे में पड़ जाती है।
- स्वदेशी रक्षा क्षमताओं में पिछड़ना: भारत स्वदेशी AI, ड्रोन और हाइपरसोनिक प्रणालियाँ विकसित करने में चीन से पीछे है, जिससे आयात पर निर्भरता बढ़ रही है। ,\
- उदाहरण : तेजस LCA विमान माँग पूरी नहीं कर पा रहा है, उत्पादन में देरी हो रही है।
- साइबर और AI-आधारित हमलों के प्रति संवेदनशीलता: नेटवर्क-केंद्रित प्रणालियाँ साइबर घुसपैठ और द्वेषपूर्ण अभिकर्ताओं द्वारा एल्गोरिदम हेरफेर के प्रति संवेदनशील होती हैं।
- दो मोर्चों पर युद्ध का खतरा: तकनीकी समानता के बिना, भारत को चीन और पाकिस्तान के साथ एक साथ संघर्ष में, विशेष रूप से ड्रोन और साइबर युद्ध में, अत्यधिक तनाव का सामना करना पड़ेगा।
- सैद्धांतिक भ्रम और कार्यान्वयन में देरी: तीव्र तकनीकी बदलाव भारत के सैद्धांतिक अद्यतनों से आगे निकल गए हैं, जिससे रणनीतिक गलत आकलन और प्रतिक्रिया में विलम्ब का खतरा है।
बदलती युद्ध-प्रकृति के अनुकूल ढलने के लिए भारत को क्या करना होगा?
- सैन्य आधुनिकीकरण योजनाओं में सुधार: मौजूदा योजनाओं को AI, ड्रोन और मानवरहित प्रणालियों जैसी तकनीकी प्रगति के साथ संरेखित करने के लिए पूरी तरह से संशोधित किया जाना चाहिए।
- रक्षा खरीद प्राथमिकताओं का पुनर्मूल्यांकन: भारत जारी और प्रस्तावित निविदाओं की प्रासंगिकता का मूल्यांकन करना चाहिए, विशेष रूप से पुराने हथियार श्रेणियों के लिए।
- स्वदेशी रक्षा उत्पादन में तेजी लाना: राफेल जेट जैसे विदेशी आयात पर निर्भरता कम करने के लिए लड़ाकू जेट, मिसाइलों और उच्च तकनीक प्रणालियों के अनुसंधान एवं विकास तथा विनिर्माण को बढ़ावा देना।
- अगली पीढ़ी के लड़ाकू प्लेटफार्मों में निवेश करना: चीन की प्रगति (जैसे, J-20, आगामी छठी पीढ़ी के लड़ाकू विमान) से संरेखण लिए 5वीं और 6वीं पीढ़ी के लड़ाकू जेट, लंबी दूरी के ड्रोन और स्वायत्त हथियार प्रणालियों को विकसित करने पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।
- सैन्य हार्डवेयर में विविधता लाना: विभिन्न क्षेत्रों में क्षमता बढ़ाने के लिए आधुनिक हथियारों और प्लेटफार्मों का व्यापक मिश्रण सुनिश्चित करना- जो दो मोर्चों पर युद्ध की स्थिति में तैयारी के लिए महत्त्वपूर्ण है।
- हाई एल्टीट्यूड वाले दीर्घकालिक UAV को प्राथमिकता देना: ये आधुनिक निगरानी, युद्ध और संचार आवश्यकताओं के लिए आवश्यक हैं और इन्हें तेजी से आगे बढ़ाया जाना चाहिए।
भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सिद्धांत को AI, साइबर और अंतरिक्ष क्षमताओं को एकीकृत करके स्वयं को नया रूप देना होगा। स्वदेशीकरण, संयुक्त कमान और तेजी से तकनीक अपनाने पर ध्यान केंद्रित करना बेहद आवश्यक है। भविष्य की तैयारी रणनीतिक तैयारी और तकनीक-संचालित रक्षा प्रणालियों पर निर्भर करती है।
To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.
Latest Comments