Q. भारत में विनियामक निकायों में स्वायत्तता के महत्त्व पर चर्चा कीजिए। विनियामक संस्थाओं के प्रमुख के रूप में सेवानिवृत्त सिविल सेवकों की नियुक्ति की प्रवृत्ति ने उनकी स्वतंत्रता और प्रभावशीलता को कैसे प्रभावित किया है? इस मुद्दे को संबोधित करने के लिए किन सुधारों की आवश्यकता है? (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • भारत के नियामक निकायों में स्वायत्तता के महत्त्व पर चर्चा कीजिए।
  • परीक्षण कीजिए कि विनियामक संस्थाओं के प्रमुख के रूप में सेवानिवृत्त सिविल सेवकों की नियुक्ति की प्रवृत्ति ने इन निकायों की स्वतंत्रता और प्रभावशीलता को किस प्रकार प्रभावित किया है।
  • इस मुद्दे के समाधान के लिए आवश्यक सुधारों पर प्रकाश डालिए।

उत्तर

विनियामक निकाय, वो स्वतंत्र संस्थाएँ हैं, जो विशिष्ट क्षेत्रों की देख-रेख करने, निष्पक्ष प्रतिस्पर्द्धा, उपभोक्ता संरक्षण और प्रणालीगत स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए स्थापित की जाती हैं। भारत में, SEBI, RBI और TRAI जैसी एजेंसियाँ शासन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। हालाँकि, राजनीतिक हस्तक्षेप और वित्तीय स्वतंत्रता की कमी से उनकी स्वायत्तता को खतरा होता है, जिससे नीति प्रभावशीलता और निवेशकों के विश्वास पर नकारात्मक असर पड़ता है

भारत के नियामक निकायों में स्वायत्तता का महत्त्व

  • राजनीतिक हस्तक्षेप को रोकना: कानूनों का निष्पक्ष प्रवर्तन सुनिश्चित करने के लिए नियामक निकायों को स्वतंत्र रूप से कार्य करना चाहिए ताकि अनुचित राजनीतिक या प्रशासनिक दबाव को रोका जा सके, जो नीति कार्यान्वयन में बाधा उत्पन्न कर सकता है।
    • उदाहरण के लिए: TRAI की स्वतंत्र भूमिका के कारण दूरसंचार क्षेत्र, मूल्य प्रतिस्पर्द्धात्मक हो गया, जिससे उपभोक्ताओं को लाभ हुआ और उद्योग का विकास हुआ।
  • बाजार की सत्यनिष्ठा सुनिश्चित करना: स्वायत्त नियामक निकाय, निष्पक्ष बाजार प्रथाओं को सुनिश्चित करते हैं व उद्योगों को एकाधिकारवादी प्रवृत्तियों से बचाते हैं तथा व्यवसायों के लिए समान अवसर सुनिश्चित करते हैं।
    • उदाहरण के लिए: शेयर बाजार धोखाधड़ी में SEBI के हस्तक्षेप से निवेशकों का विश्वास और बाजार स्थिरता बरकरार रही है।
  • जन विश्वास को मजबूत करना: एक स्वतंत्र नियामक ढाँचा, शासन में जनता के विश्वास को बढ़ाता है तथा नागरिकों को इस बात का आश्वासन देता है कि नीति क्रियान्वयन में निष्पक्षता और पारदर्शिता होगी।
    • उदाहरण के लिए: सीमेंट और दूरसंचार क्षेत्रों में प्रतिस्पर्द्धा विरोधी प्रथाओं के विरुद्ध CCI की कार्रवाई से उपभोक्ता हितों की रक्षा हुई।
  • कुशल नीति कार्यान्वयन को प्रोत्साहित करना: स्वायत्त नियामक निकाय, उद्योग की चुनौतियों का समाधान कर सकते हैं तथा प्रशासनिक देरी के बिना समय पर हस्तक्षेप सुनिश्चित कर सकते हैं।
    • उदाहरण के लिए: मौद्रिक नीति के संबंध में RBI की स्वायत्तता ने मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने और आर्थिक स्थिरता को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने में मदद की है।
  • सार्वजनिक हित की सुरक्षा: नियामक स्वतंत्रता यह सुनिश्चित करती है कि उपभोक्ता संरक्षण पर प्राथमिक ध्यान बना रहे, जिससे कॉरपोरेट या राजनीतिक संस्थाओं द्वारा नियामक अधिग्रहण (Regulatory Capture)  की समस्या को रोका जा सके।
    • उदाहरण के लिए: बीमा प्रीमियम पर IRDAI के विनियमन से वहनीयता और उचित क्लेम सेटलमेंट सुनिश्चित हुआ है।

विनियामक संस्थाओं में सेवानिवृत्त सिविल सेवकों की नियुक्ति की स्वतंत्रता और प्रभावशीलता पर प्रभाव

सकारात्मक प्रभाव नकारात्मक प्रभाव
प्रशासनिक विशेषज्ञता: प्रशासनिक अधिकारियों के पास शासन का अनुभव होता है, जिससे विनियामक दक्षता और कानूनी ढाँचे के अनुपालन में सहायता मिलती है।

  • उदाहरण के लिए: IRDAI के पूर्व IAS अधिकारियों ने बीमा नियमों को सुव्यवस्थित किया।
सरकारी प्रभाव: सिविल सेवक, उद्योग की आवश्यकताओं के बजाय सरकारी नीतियों को प्राथमिकता दे सकते हैं।

  • उदाहरण के लिए: मौद्रिक स्वतंत्रता के बजाय राजकोषीय नीतियों के साथ तालमेल बिठाने के लिए RBI को आलोचना का सामना करना पड़ा।
नीति निरंतरता: उनका अनुभव निर्बाध नीति परिवर्तन और स्थिर नियामक ढाँचे को सुनिश्चित करता है।

  • उदाहरण के लिए: SEBI के पूर्व अधिकारियों ने पूँजी बाजार सुधारों को बनाए रखा।
हित संघर्ष: सरकार के साथ घनिष्ठ संबंध, निष्पक्ष निर्णय लेने में बाधा उत्पन्न कर सकते हैं।

  • उदाहरण के लिए: सिविल सेवकों के नेतृत्व वाली नियामक संस्थाएँ अक्सर सार्वजनिक क्षेत्र की संस्थाओं के विरुद्ध सख्त कार्रवाई करने में हिचकिचाती रही हैं।
अंतर्विभागीय समन्वय: प्रशासनिक अधिकारियों  का नेटवर्क सरकारी एजेंसियों और नियामकों के बीच बेहतर समन्वय में मदद करता है।

  • उदाहरण के लिए: FSSAI को खाद्य सुरक्षा प्रवर्तन के लिए सिविल सेवकों के संपर्कों से लाभ मिला।
क्षेत्रीय विशेषज्ञता का अभाव: प्रशासनिक अधिकारियों के बीच  उद्योग के संबंध में गहन ज्ञान का अभाव हो सकता है, जिससे विनियमन की गुणवत्ता प्रभावित होती है।

  • उदाहरण के लिए: विद्युत क्षेत्र के नियामकों को अपर्याप्त तकनीकी सुधारों के लिए आलोचना का सामना करना पड़ा।
निर्णय लेने की क्षमता: प्रशासनिक अधिकारियों का संकट प्रबंधन कौशल, नियामक चुनौतियों का प्रभावी ढंग से समाधान करने में मदद करता है।

  • उदाहरण के लिए: पूर्व सिविल सेवकों ने NBFC तरलता संकट का  समाधान करने में अति महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
संस्थागत स्वायत्तता का कमजोर होना: सेवानिवृत्त सिविल सेवकों पर अत्यधिक निर्भरता, विनियमन और नीति-निर्माण के बीच की रेखाओं को धुँधला कर देती है। 

  • उदाहरण के लिए: CCI के निर्णय कभी-कभी सरकारी आर्थिक नीतियों से प्रभावित होते हैं।

विनियामक स्वायत्तता को मजबूत करने के लिए सुधार

  • विविधीकृत नियुक्ति प्रक्रिया: यह सुनिश्चित करना होगा कि उद्योग, शिक्षा और न्यायपालिका के विशेषज्ञों की नियुक्ति की जाए, जिससे सेवानिवृत्त सिविल सेवकों पर निर्भरता कम हो।
    • उदाहरण के लिए: CERC के प्रथम अध्यक्ष के रूप में एक अर्थशास्त्री की नियुक्ति से, संतुलित बिजली मूल्य निर्धारण सुनिश्चित हुआ।
  • निश्चित कूलिंग-ऑफ अवधि: हित-संघर्षों को रोकने के लिए नियामक पदों और सेवानिवृत्ति के बाद की सरकारी नियुक्तियों के बीच अंतराल अनिवार्य किया जाना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: RBI गवर्नरों को पारंपरिक रूप से कार्यकाल के तुरंत बाद सरकारी भूमिकाएँ ग्रहण करने से प्रतिबंधित किया गया था।
  • स्वतंत्र चयन समितियाँ: नियामक प्रमुखों की नियुक्ति द्विदलीय पैनल द्वारा की जानी चाहिए, जिससे पारदर्शी और योग्यता-आधारित चयन प्रक्रिया सुनिश्चित हो सके।
    • उदाहरण के लिए: चुनाव आयोग की चयन प्रक्रिया का उद्देश्य कार्यपालिका के प्रभाव को न्यूनतम करना है।
  • स्पष्ट रूप से परिभाषित भूमिकाएँ: ओवरलैप और सरकारी अतिक्रमण से बचने के लिए नीति निर्माण और विनियामक प्रवर्तन के बीच स्पष्ट अंतर स्थापित करना चाहिए।
    •  उदाहरण के लिए: SEBI, शेयर बाजार विनियमन में वित्त मंत्रालय से स्वतंत्र रूप से कार्य करता है।
  • प्रदर्शन आधारित जवाबदेही: उद्योग निरीक्षण और उपभोक्ता संरक्षण में नियामकों की प्रभावशीलता का आवधिक मूल्यांकन लागू करना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: बाजार प्रतिस्पर्द्धा की CCI की आवधिक समीक्षा के परिणामस्वरूप अविश्वास विरोधी उपाय अधिक उन्नत हुए हैं।

विनियामक निकायों में सच्ची स्वायत्तता सुनिश्चित करने के लिए योग्यता आधारित नियुक्तियाँ, निश्चित कार्यकाल और कम कार्यकारी हस्तक्षेप की आवश्यकता होती है। अधिक प्रभावशीलता के लिए सेवानिवृत्त सिविल सेवकों पर निर्भरता को डोमेन विशेषज्ञों के साथ संतुलित किया जाना चाहिए। संसदीय निगरानी, पारदर्शी चयन प्रक्रिया और प्रदर्शन लेखा परीक्षा को मजबूत करने से विनियामक संस्थानों में विश्वसनीयता, जवाबदेही और सार्वजनिक विश्वास को बढ़ावा मिलेगा।

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