प्रश्न की मुख्य माँग
- भारत में शहरी परिवहन प्रशासन के समक्ष आने वाली प्रमुख चुनौतियों पर चर्चा कीजिए।
- विश्लेषण कीजिये कि अखिल भारतीय शहरी परिवहन सेवा इन चुनौतियों का समाधान कैसे कर सकती है।
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उत्तर
भारत में शहरी परिवहन को अक्सर “संस्थागत और संवैधानिक अनाथ” कहा जाता है, क्योंकि इसके अधिकार क्षेत्र को लेकर कोई स्पष्ट संवैधानिक या संस्थागत प्रावधान नहीं है। उत्तरदायित्वों का विखंडन, विभिन्न हितधारकों के बीच समन्वय की कमी और अपर्याप्त दीर्घकालिक योजना के परिणामस्वरूप शासन में गंभीर अंतराल उत्पन्न हुए हैं, जिससे प्रभावी परिवहन अवसंरचना और सेवा वितरण प्रभावित हुआ है।
भारत में शहरी परिवहन प्रशासन की प्रमुख चुनौतियाँ
- संवैधानिक अस्पष्टता: नगरीय परिवहन का तीनों संवैधानिक सूचियों में स्पष्ट उल्लेख नहीं है, जिससे अधिकार क्षेत्र और शासन के संबंध में अनिश्चितता उत्पन्न होती है।
- उदाहरण: नगरीय नियोजन राज्य सूची का विषय है, जबकि राजमार्ग और रेलवे केंद्र के अधीन आते हैं; नगरीय परिवहन दोनों से जुड़ा हुआ है, जिससे उत्तरदायित्वों का अतिव्यापन होता है।
- संस्थागत विखंडन: अनेक संस्थायें समन्वय के बिना कार्य करती हैं। उनकी अक्सर परस्पर विरोधी प्राथमिकतायें होती हैं और उनमें कोई एकीकृत नेतृत्व संरचना नहीं होती।
- उदाहरण: नगर निगम, मेट्रो रेल निगम, राज्य परिवहन उपक्रम (STUs), क्षेत्रीय परिवहन संगठन (RTO), नगरीय परिवहन को स्वतंत्र रूप से संचालित करते हैं।
- विशेषज्ञ पेशेवर संवर्ग का अभाव: नगरीय परिवहन में निरंतरता और विशेषज्ञता सुनिश्चित करने के लिए कोई स्थायी प्रशासनिक ढाँचा उपलब्ध नहीं है।
- सीमित कार्यकाल और सामान्य प्रशासनिक पृष्ठभूमि: अल्पकालिक कार्यकाल वाले और सामान्य प्रशासनिक पृष्ठभूमि के पास प्रायः नगरीय परिवहन सुधार को संचालित करने की पर्याप्त क्षमता या निरंतरता नहीं होती।
- उदाहरण: IAS या IFS जैसी सेवाओं के विपरीत, नगरीय परिवहन नीति, वित्त या योजना के लिए कोई समर्पित संवर्ग नहीं है।
- एकीकृत महानगरीय परिवहन प्राधिकरणों (UMTA) की विफलता: यद्यपि कई राज्यों ने UMTA संबंधी कानून पारित किये हैं परंतु कानूनी अस्पष्टताओं और विभिन्न एजेंसियों के बीच समन्वय की कमी से उनका कार्यान्वयन कमजोर है।
- डेटा-आधारित और साक्ष्य-आधारित योजना का अभाव: विभिन्न परिवहन एजेंसियां असंबद्ध डेटासेट और पद्धतियों का उपयोग करती हैं, जिसके कारण नीतिगत असंतुलन और अकुशलताएँ उत्पन्न होती हैं।
- सीमित प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण: वर्तमान प्रशिक्षण प्रयास नगरीय परिवहन के लिए तकनीकी, वित्तीय एवं प्रबंधकीय कुशल पेशेवर तैयार करने में अपर्याप्त हैं।
अखिल भारतीय शहरी परिवहन सेवा इन चुनौतियों का समाधान कैसे कर सकती है
- विषय विशेषज्ञता वाले एक पेशेवर संवर्ग की स्थापना: भारतीय वन सेवा या भारतीय सांख्यिकी सेवा की तरह, एक समर्पित संवर्ग नगरीय परिवहन क्षेत्र में तकनीकी और प्रबंधकीय विशेषज्ञता ला सकता है।
- उदाहरण: परिवहन नीति, वित्त, नियोजन और अवसंरचना में प्रशिक्षित अधिकारी नगर स्तर पर रणनीति निर्माण और कार्यान्वयन का दायित्व संभाल सकते हैं।
- बेहतर समन्वय और निरंतरता: एक स्थायी संवर्ग, विभिन्न परिवहन एजेंसियों को एक साझा प्रशासनिक छत्र के अंतर्गत लाकर समन्वय संबंधी विफलताओं को दूर कर सकता है।
- उदाहरण: अधिकारी UMTAs के संचालन में मदद कर दिल्ली परिवहन निगम (DTC), दिल्ली मेट्रो रेल निगम (DMRC), राज्य परिवहन उपक्रम और नगर निकायों के काम को एक दिशा में संरेखित कर सकते हैं।
- दीर्घकालिक योजना और रणनीति का संस्थानीकरण: समर्पित अधिकारी नीति की निरंतरता सुनिश्चित कर सकते हैं, दीर्घकालिक लक्ष्यों की निगरानी कर सकते हैं तथा बदलती नगरीय परिस्थितियों के अनुरूप कार्य कर सकते हैं।
- उदाहरण: राष्ट्रीय नगरीय परिवहन नीति (वर्ष 2006) और मेट्रो नीति (वर्ष 2017) का बेहतर क्रियान्वयन प्रशिक्षित और स्थिर नेतृत्व के माध्यम से संभव हो सकता है।
- राज्य क्षमता और नीति कार्यान्वयन को सुदृढ़ करना: विशेषज्ञ अधिकारियों की नियुक्ति के माध्यम से यह सेवा राज्यों और नगर सरकारों की जटिल परिवहन परियोजनाओं को लागू करने की क्षमता बढ़ा सकती है।
- वैश्विक अनुभव का स्थानीय अनुकूलन: पेशेवर रूप से प्रशिक्षित अधिकारी वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं से सीख सकते हैं और उन्हें भारतीय नगरीय संदर्भों में संवेदनशीलता के साथ लागू कर सकते हैं।
- उदाहरण: लंदन की ‘ट्रांसपोर्ट फॉर लंदन (TFL) एक सफल एकीकृत एजेंसी है, भारत में प्रस्तावित अखिल भारतीय नगरीय परिवहन सेवा भी ऐसे मॉडल को भारतीय नगरों में स्थानीय आवश्यकताओं के अनुरूप ढाल सकती है।
- प्रशासनिक सुधार और नियामकीय प्रक्रिया का सरलीकरण: अधिकारी प्रशासनिक अड़चनों को दूर कर, अनुमोदनों को सरल बनाकर नगर सुधारों में सहायता कर सकते हैं।
- उदाहरण: वे परिवहन मामलों में नगरीय स्थानीय निकायों को सशक्त बनाकर 74वें संविधान संशोधन का प्रभावी कार्यान्वयन सुनिश्चित कर सकते हैं।
निष्कर्ष
भारत में नगरीय परिवहन शासन संस्थागत विखंडन, संवैधानिक स्पष्टता के अभाव और अपर्याप्त व्यावसायिक विशेषज्ञता से ग्रस्त है। शहरी नियोजन पर उच्च-स्तरीय समिति (वर्ष 2023) द्वारा अनुशंसित अखिल भारतीय नगरीय परिवहन सेवा, इन चुनौतियों से निपटने के लिए आवश्यक संरचनात्मक सुधार प्रदान कर सकती है। यद्यपि यह कोई प्रभावी समाधान नहीं है, फिर भी यह अधिक समन्वित, उत्तरदायी और कुशल नगरीय गतिशीलता प्रणाली की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण आधारभूत कदम हो सकता है।
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