Q. भारत में तेजी से बढ़ते शहरीकरण ने बुनियादी ढाँचे के विकास और कमजोर नगरपालिका प्रशासन को पीछे छोड़ दिया है। भारत में शहरी बुनियादी ढाँचे के समक्ष आने वाली प्रमुख चुनौतियों पर चर्चा कीजिए। सतत और सुशासित शहरों के लिए किन सुधारों की आवश्यकता है? (150 शब्द, 10 अंक)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • भारत में शहरी बुनियादी ढाँचे के सामने प्रमुख चुनौतियाँ।
  • स्थायी और सुशासित शहरों के लिए आवश्यक सुधार।

उत्तर

भारत का तीव्र शहरीकरण उन क्षमताओं से कहीं अधिक तेजी से बढ़ा है, जिनसे शहर स्वच्छ वायु, आवास, गतिशीलता और आवश्यक नगरीय सेवाएँ प्रदान कर सकें। प्रदूषण, अव्यवस्थित विस्तार और कमजोर नगर निकायों पर हालिया चर्चाएँ दर्शाती हैं कि शहरी अवनति का कारण केवल संसाधनों की कमी नहीं, बल्कि शासन की विफलताएँ भी हैं। इन चुनौतियों का समाधान जीवनयोग्य, सतत् एवं न्यायसंगत शहरों के निर्माण के लिए अनिवार्य है।

भारत में शहरी अवसंरचना के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ

  • गंभीर पर्यावरणीय ह्रास: प्रदूषण, कचरा प्रबंधन की कमजोरी और हरित क्षेत्रों की कमी के कारण शहरी वायु गुणवत्ता कमजोर हो रही है।
  • अव्यवस्थित और भ्रष्ट शहरी विस्तार: कमजोर निगरानी के कारण अवैध निर्माण, अव्यवस्थित फैलाव और जल–कचरा तंत्र की कमी बनी रहती है।
    • उदाहरण: नगरपालिका अधिकारी रिश्वत के कारण “अव्यवस्थित और अनियमित शहरी फैलाव” तथा झुग्गियों को बढ़ने देते हैं।
  • कमजोर नगर प्रशासन: सशक्त महापौरों के अभाव और मुख्यमंत्री-केंद्रित नियंत्रण से सेवा प्रदायन कमजोर होता है।
  • सस्ते आवास की कमी: प्रवासी श्रमिक ऊँचे किराए वहन नहीं कर पाते और भीड़भाड़ वाली झोपड़ियों में रहने को मजबूर होते हैं, जिससे शहरी गरीबी बढ़ती है।
  • जनसंख्या वृद्धि की तुलना में सार्वजनिक सेवाओं का पिछड़ना: कचरा प्रबंधन, सीवेज तंत्र, पार्क और परिवहन का विस्तार शहरीकरण की गति के अनुरूप नहीं होता।
    • उदाहरण: नियोजित शहरीकरण के लिए आवश्यक स्वच्छ जल, कचरा निपटान और हरित कोरिडोर शहरों में नहीं हैं।

सतत और सुशासित शहरों के लिए आवश्यक सुधार

  • निर्वाचित महापौरों को सशक्त करना और शासन का विकेंद्रीकरण: नगरपालिका सेवाओं का नियंत्रण मुख्यमंत्रियों से हटाकर जवाबदेह नगर नेतृत्व को सौंपना।
  • नगरपालिका जवाबदेही सुदृढ़ करना और भ्रष्टाचार रोकना: अवैध निर्माण और पद के दुरुपयोग पर सख्त दंड सुनिश्चित करना।
    • उदाहरण: व्यापक उल्लंघनों के बावजूद नगरपालिका अधिकारियों को झुग्गी झोपड़ी के विस्तार की अनुमति देने पर शायद ही कभी दंडित किया जाता है।
  • राष्‍ट्रीय स्तर पर शहरी पर्यावरण सुधार: शहरी अवनति को राष्ट्रीय प्राथमिकता घोषित कर स्वच्छ वायु, कचरा प्रबंधन और हरित क्षेत्रों को केंद्र में रखना।
  • सस्ते आवास का विस्तार: किराए के आवास, निम्न-लागत आवास क्षेत्र और प्रवासी श्रमिकों के लिए सार्वजनिक–निजी मॉडल को प्रोत्साहित करना।
  • मुख्य अवसंरचनाओं की बेहतर योजना: जल आपूर्ति, परिवहन, पार्क और कचरा तंत्र को दीर्घकालिक शहरी मास्टर प्लानों में समेकित करना।
    • उदाहरण: प्राचीन भारतीय नगरों में स्वच्छ जल और कचरा तंत्र था; वर्तमान उपेक्षा इससे तीव्र विरोधाभास दिखाती है।

निष्कर्ष

भारत की शहरी चुनौतियाँ केवल संसाधन कमी से नहीं, बल्कि व्यवस्थित शासन विफलताओं और अव्यवस्थित शहरी विस्तार से उत्पन्न होती हैं। सुधारों का आधार सशक्त स्थानीय सरकारें, पारदर्शी नगर प्रशासन और समावेशी अवसंरचना निर्माण होना चाहिए। तभी भारतीय शहर जीवनयोग्य, न्यायसंगत और आधुनिक राष्ट्र की वास्तविक पहचान प्रस्तुत कर सकेंगे।

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