Q. भारत की प्रवेश परीक्षाएँ तीव्र प्रतिस्पर्धा और महत्त्वपूर्ण मनोवैज्ञानिक एवं सामाजिक लागतों से भरी होती हैं। स्नातक प्रवेश परीक्षाओं की वर्तमान संरचना में प्रमुख चुनौतियों पर चर्चा कीजिए और वैश्विक प्रथाओं से सीख लेते हुए सुधारों का सुझाव दीजिए। (10 अंक, 150 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • भारत में स्नातक प्रवेश परीक्षाओं की वर्तमान संरचना में प्रमुख चुनौतियों पर चर्चा कीजिए।
  • वैश्विक प्रथाओं से सबक लेते हुए सुधारों का सुझाव दीजिये।

उत्तर

भारत में प्रतिवर्ष लगभग 70 लाख छात्र स्नातक सीटों के लिए JEE, NEET, CUET तथा CLAT जैसी परीक्षाओं के माध्यम से प्रतिस्पर्धा करते हैं। केवल JEE में ही 15 लाख अभ्यर्थी लगभग 18,000 IIT सीटों के लिए प्रयासरत रहते हैं। यह तीव्र प्रतिस्पर्धा कोचिंग उद्योग को बढ़ावा देती है, छात्र आत्महत्या की घटनाओं को जन्म देती है तथा असमानताओं को स्थायी बनाती है, जिससे न्यायसंगतता, समता और मनोवैज्ञानिक कल्याण पर गंभीर प्रश्न खड़े होते हैं।

स्नातक प्रवेश परीक्षाओं की वर्तमान संरचना में प्रमुख चुनौतियाँ

  • अत्यधिक प्रतिस्पर्धा और मनोवैज्ञानिक तनाव: तीव्र प्रतिस्पर्धा किशोरों में चिंता, अवसाद और अलगाव को बढ़ावा देती है।
    • उदाहरण: कोटा (वर्ष 2023-24) में छात्रों की आत्महत्या की रिपोर्टें JEE/NEET परीक्षा उत्तीर्ण करने के दबाव को दर्शाती हैं।
  • महंगे कोचिंग उद्योग का विस्तार: निजी कोचिंग ने औपचारिक विद्यालयी शिक्षा को पीछे धकेल दिया है तथा परिवारों पर भारी वित्तीय बोझ डाला है। दो-वर्षीय कार्यक्रमों की लागत आवास को छोड़कर ही ₹6–7 लाख तक पहुँच जाती है।
  • शहरी-ग्रामीण और सामाजिक-आर्थिक असमानताएं: प्रवेश की प्रक्रिया शहरी एवं सम्पन्न परिवारों के पक्ष में झुकी रहती है, जबकि ग्रामीण एवं निम्न-आय वर्ग पीछे छूट जाते हैं।
    • उदाहरण के लिए: JEE एडवांस्ड के अधिकांश टॉपर प्रीमियम कोचिंग केंद्रों वाले मेट्रो शहरों से आते हैं।
  • योग्यता में विकृति और अति-योग्यता: इन परीक्षाओं में अत्यधिक उच्च अंक की अपेक्षा की जाती है, जिससे छात्रों का चयन तंत्र B.Tech जैसे पाठ्यक्रमों की वास्तविक आवश्यकताओं से परे चला जाता है।
  • समग्र विकास का हाशिए पर होना: छात्र 14 वर्ष की आयु से ही गहन तैयारी शुरू करने के लिए खेल, कला और साथियों के साथ संबंधों का त्याग कर देते हैं।

सुधार और रणनीतियाँ

  • प्रवेश के लिए वेटेड लॉटरी (Weighted Lottery):  PCM में 80% जैसी सीमा को पूरा करने वाले पात्र छात्रों के लिए लॉटरी अपनाना, जिससे अनियमित रैंकिंग में कमी आएगी।
    • उदाहरण के लिए: ऐसे छात्रों के लिए, जिन्होंने एक न्यूनतम मानक (जैसे PCM में 80%) प्राप्त किया हो, लॉटरी आधारित प्रणाली अपनाई जा सकती है। इसमें उच्च अंक प्राप्त करने वाले छात्रों की संभावना अधिक होगी। यह पद्धति पक्षपात को कम करती है, विविधता को बढ़ावा देती है तथा अनुचित और महंगे मूल्यांकन मानकों से उत्पन्न दबाव को घटाती है।
  • कोचिंग का विनियमन या राष्ट्रीयकरण: लाभ-उन्मुख कोचिंग संस्थानों पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है या उन्हें राज्य-नियंत्रित, किफ़ायती तैयारी प्लेटफ़ॉर्म में परिवर्तित किया जा सकता है।
    • उदाहरण के लिए: चीन की “Double Reduction Policy” (वर्ष 2021) ने मुख्य विषयों में लाभकारी ट्यूशन पर प्रतिबंध लगाया।
  • उन्नत क्षेत्रीय एवं सामाजिक प्रतिनिधित्व: मौजूदा ढाँचों के भीतर ग्रामीण, लैंगिक तथा क्षेत्रीय समता सुनिश्चित करने हेतु ऊर्ध्वाधर आरक्षण (vertical reservations) लागू किया जा सकता है, जैसा कि डच सरकार के मॉडल में है।
    • उदाहरण के लिए: IIT सीटों का 50% सरकारी विद्यालयों के छात्रों हेतु आरक्षित करने का प्रस्ताव, जिससे सामाजिक गतिशीलता और समानता को बढ़ावा मिले।
  • निःशुल्क एवं मुक्त-प्रवेश शिक्षण संसाधन: क्षेत्र को समतल करने के लिए राष्ट्रीय स्तर की ऑनलाइन अध्ययन सामग्री और रिकॉर्ड किए गए व्याख्यान प्रदान करना चाहिए।
  • कोचिंग फीस को सीमित और विनियमित करना: कोचिंग संस्थानों की फ़ीस पर अधिकतम सीमा (cap) तथा पारदर्शिता मानदंड लागू किए जाने चाहिए, जिससे शोषण कम हो।
    • उदाहरण के लिए: बढ़ती आत्महत्याओं को रोकने के लिए 2023 में राजस्थान कोचिंग विनियमन अधिनियम पेश किया गया।

निष्कर्ष

राष्ट्रीय शिक्षा नीति (वर्ष 2020) तथा नेशनल टेस्टिंग एजेंसी रिव्यु पैनल (वर्ष 2022) ने ओवर टेस्टिंग (over-testing) को कम करने, विद्यालय-आधारित मूल्यांकन को सुदृढ़ करने तथा समग्र अधिगम को बढ़ावा देने की अनुशंसा की है। भारत को वेटेड लॉटरी, कोचिंग के सख़्त नियमन, पारदर्शी आवंटन तथा समानता-आधारित सीट वितरण की ओर अग्रसर होना चाहिए, ताकि मानसिक स्वास्थ्य अथवा सामाजिक न्याय से समझौता किए बिना न्यायपूर्ण प्रतिस्पर्धा सुनिश्चित हो सके।

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