Q. "भारत का शहरी परिवर्तन केवल जनसांख्यिकीय अनिवार्यता नहीं, बल्कि एक आर्थिक अनिवार्यता है।" भारत के शहरी परिवर्तन में आने वाली प्रमुख चुनौतियों पर चर्चा कीजिए। स्थायी शहरी शासन सुनिश्चित करने के लिए एक उपयुक्त रोडमैप सुझाइए। (10 अंक, 150 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • भारत के शहरी परिवर्तन में प्रमुख चुनौतियों पर चर्चा कीजिए।
  • संधारणीय शहरी शासन सुनिश्चित करने के लिए एक रोडमैप सुझाएँ।

उत्तर

अनुमान है कि वर्ष 2035 तक भारत की शहरी आबादी 67.5 करोड़ हो जाएगी और वर्ष 2045 तक हमारे शहरों में 7 करोड़ से ज्यादा नए निवासी आने की उम्मीद है, जिससे शहरी परिवर्तन आर्थिक विकास का एक प्रमुख चालक बन जाएगा। हालाँकि, इस तेज परिवर्तन के साथ नियोजन, वित्त, शासन और पर्यावरणीय लचीलेपन में संरचनात्मक कमियाँ भी जुड़ी हैं।

भारत के शहरी परिवर्तन में प्रमुख चुनौतियाँ

  • बुनियादी ढाँचे और सेवाओं में कमी: यातायात की भीड़, पानी की कमी, खराब स्वच्छता और कचरा संग्रहण न होने के कारण शहरी बुनियादी ढाँचा गंभीर दबाव में है। उदाहरण के लिए: एशियाई विकास बैंक का अनुमान है कि परिवहन में देरी और खराब बुनियादी ढाँचे के कारण भारत को सालाना 22 अरब डॉलर का नुकसान होता है।
  • कमजोर शहरी प्रशासन और संस्थागत विखंडन: एक ही कार्य में अतिव्यापी कई एजेंसियों के कारण योजना और क्रियान्वयन में समन्वय नहीं हो पाता। डिजिटल उपकरणों का सीमित उपयोग होता है और कोई एकीकृत जवाबदेही नहीं होती।
  • खराब शहरी-औद्योगिक एकीकरण: शहर अक्सर आर्थिक या औद्योगिक क्षेत्रों से अलग-थलग होकर विस्तार करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप अकुशल भूमि उपयोग और शहरी विस्तार होता है।
  • शहरी समाधानों में निजी क्षेत्र का कम उपयोग: जल, अपशिष्ट और बुनियादी  ढाँचे में सार्वजनिक निजी भागीदारी (PPP) उच्च जोखिम और सीमित प्रोत्साहन के कारण अविकसित बनी हुई है।
  • नगर निगमों पर वित्तीय दबाव और सीमित स्वायत्तता: शहरी स्थानीय निकायों को राजकोषीय घाटे का सामना करना पड़ता है और उनके पास स्वतंत्र राजस्व सृजन शक्तियों का अभाव होता है, जिससे बुनियादी ढाँचे तथा नवाचार में निवेश में बाधा आती है।

संधारणीय शहरी शासन सुनिश्चित करने के लिए रोडमैप

  • शहरी अवसंरचना को मुख्य राष्ट्रीय अवसंरचना के रूप में मानना: परिवहन, जल और अपशिष्ट प्रणालियों जैसी शहरी परिसंपत्तियों को राजमार्गों, बंदरगाहों या ऊर्जा ग्रिडों की तरह राष्ट्रीय योजना में एकीकृत किया जाना चाहिए।
  • शहरी विस्तार को औद्योगिक कॉरिडोर के साथ समन्वित करना: स्थानिक रूप से एकीकृत मॉडल अपनाना चाहिए, जो पारगमन, क्षेत्रीकरण और आर्थिक नियोजन को संयोजित कर कॉम्पैक्ट तथा कुशल शहरी-औद्योगिक क्षेत्र बनाते हैं।
  • एकीकृत, तकनीक-सक्षम शहरी शासन निकाय बनाना: निजी क्षेत्र के प्रतिनिधित्व और नागरिक भागीदारी के साथ सिंगल-विंडो, डेटा-संचालित संस्थान स्थापित करना चाहिए। 
    • उदाहरण के लिए: बंगलूरू एजेंडा टास्क फोर्स ने सहयोगात्मक, परिणाम-उन्मुख शहरी सुधार का उदाहरण प्रस्तुत किया।
  • स्वच्छता और अपशिष्ट प्रबंधन को आर्थिक प्रेरक के रूप में प्राथमिकता देना: स्वच्छता, चक्रीय अर्थव्यवस्था समाधानों और विकेंद्रीकृत अपशिष्ट प्रणालियों में बूट और PPP मॉडल को प्रोत्साहित करना चाहिए। 
    • उदाहरण: तिरुपुर का जल PPP दिखाता है कि निजी नेतृत्व कैसे विश्वसनीय शहरी सेवाएँ प्रदान कर सकता है।
  • नए प्रोत्साहनों के साथ PPP मॉडल को पुनः तैयार करना: पुराने और नए दोनों प्रकार के बुनियादी ढाँचे में निजी निवेश को जोखिम मुक्त करने के लिए व्यवहार्यता अंतर वित्तपोषण जैसे उपकरणों का उपयोग करना चाहिए। 
    • उदाहरण: बजट 2025-25 में ‘शहरों को विकास केंद्र’ बनाने के प्रस्तावों को लागू करने के लिए 1 लाख करोड़ रुपये के शहरी चुनौती कोष की घोषणा की गई थी।
  • शहरों के लिए डिजिटल आधार तैयार करना: पारदर्शिता और दक्षता बढ़ाने के लिए बुनियादी ढाँचे की योजना, परमिट स्वचालन, वास्तविक समय डैशबोर्ड और AI-आधारित निर्णय लेने के लिए डिजिटल उपकरणों का सह-विकास करना चाहिए।

निष्कर्ष

भारत का शहरीकरण केवल एक जनसांख्यिकीय बदलाव नहीं है, बल्कि एक रणनीतिक आर्थिक परिवर्तन है। नीति, प्रौद्योगिकी, निजी पूँजी और नागरिक भागीदारी को एकीकृत करने वाले सुधारों के साथ, भारतीय शहर राष्ट्रीय प्रगति और वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा के इंजन के रूप में विकसित हो सकते हैं तथा राष्ट्रीय प्रगति के सेतु बन सकते हैं।

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