प्रश्न की मुख्य माँग
- अमेरिका द्वारा भारत पर लगाए गए ऐसे टैरिफ अवरोधों से उत्पन्न प्रमुख चुनौतियों पर चर्चा कीजिए।
- भारत के निर्यात क्षेत्र की प्रत्यास्थता बढ़ाने के लिए नीतिगत उपाय सुझाइये।
- भारत के निर्यात क्षेत्र की प्रत्यास्थता बढ़ाने के लिए संरचनात्मक सुधारों का सुझाव दीजिए।
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उत्तर
भारत का निर्यात क्षेत्र, जो 28 करोड़ से अधिक लोगों को रोजगार देता है और वस्तु निर्यात में लगभग आधे (वित्त वर्ष 2025 में 45.79%) का योगदान देता है, अमेरिका द्वारा समुद्री खाद्य और वस्त्रों पर 25% का भारी शुल्क लगाने (जिसके 50% तक बढ़ने का ख़तरा है) के बाद एक गंभीर चुनौती का सामना कर रहा है। चूँकि भारत के समुद्री खाद्य और परिधान निर्यात में अमेरिका का लगभग एक-तिहाई हिस्सा है, इसलिए ये प्रतिबंध भारत की व्यापार निर्भरता में संरचनात्मक संवेदनशीलता को उजागर करते हैं और प्रत्यास्थ नीतियों व संरचनात्मक सुधारों की आवश्यकता को रेखांकित करते हैं।
टैरिफ बाधाओं से उत्पन्न चुनौतियाँ
- अमेरिकी बाजार पर अत्यधिक निर्भरता: भारत का निर्यात बास्केट अमेरिका पर अत्यधिक निर्भर है, जिससे शुल्क वृद्धि अत्यधिक विनाशकारी सिद्ध होती है।
- उदाहरण: भारत के समुद्री खाद्य और परिधान निर्यात का लगभग एक-तिहाई, प्रतिवर्ष अमेरिका को जाता है।
- वृहद् कार्यबल की आजीविका की असुरक्षा: शुल्क लगाने से बड़े पैमाने पर रोजगार प्रदान करने वाले श्रम-प्रधान उद्योग खतरे में पड़ जाते हैं, जिससे बेरोजगारी और ग्रामीण संकट दोनों बढ़ जाते हैं।
- उदाहरण: मत्स्य पालन 2.8 करोड़ लोगों को रोजगार देता है, जबकि मत्स्य पालन और वस्त्र उद्योग मिलकर लगभग 13.5 करोड़ लोगों को रोजगार देते हैं।
- MSME संवेदनशीलता: MSMEs में शुल्क-आधारित लागतों को सहने की वित्तीय सुदृढ़ता और प्रतिस्पर्धात्मकता का अभाव है।
- उदाहरण: वित्त वर्ष 2025 में MSMEs ने निर्यात में 45.79% का योगदान दिया, 28 करोड़ लोगों को रोज़गार दिया, लेकिन बढ़ती लागत और ऋण संबंधी चुनौतियों का भी सामना किया।
- द्विपक्षीय वार्ताओं में गतिरोध: भारत-अमेरिका व्यापार वार्ताएँ प्रायः निर्यातकों को समय पर राहत देने में विफल रही हैं।
- अल्पावधि में वैकल्पिक बाजारों की कमी: नए व्यापार नेटवर्क बनाने के लिए दीर्घकालिक संरचनात्मक प्रयासों की आवश्यकता होती है, जिससे तात्कालिक विविधीकरण के विकल्प सीमित हो जाते हैं।
- उदाहरण: यूरोपीय संघ की रूसी तेल पर निर्भरता जैसे वैश्विक उदाहरण, आपूर्ति श्रृंखलाओं में मार्ग-निर्भरता को दर्शाते हैं।
- निर्यात क्षेत्रों पर ऋण संकट: निर्यात क्षेत्र बढ़ते ऋण डिफॉल्ट का सामना करते हैं क्योंकि शुल्क दबाव में लाभप्रदता घटती है, जिससे तात्कालिक राहत की आवश्यकता होती है।
- बढ़ती क्षेत्रीय असमानता: इस तरह के शुल्क आर्थिक विषमताओं को और बढ़ाते हैं क्योंकि निर्यात पर निर्भर राज्यों को राजस्व और रोजगार में भारी नुकसान का सामना करना पड़ता है।
- उदाहरण के लिए: समुद्री खाद्य निर्यात पर निर्भर तटीय राज्यों को अंतर्देशीय राज्यों की तुलना में अधिक जोखिम का सामना करना पड़ रहा है।
प्रत्यास्थता के लिए नीतिगत उपाय
- निर्यात संवर्धन मिशन (EPM) में संशोधन: संवेदनशील क्षेत्रों को सस्ते निर्यात ऋण और जोखिम बीमा के साथ शामिल करने हेतु निर्यात संवर्द्धन मिशन (EPM) का विस्तार, ऐसे शुल्कों के विरुद्ध प्रत्यास्थता सुनिश्चित करता है।
- उदाहरण: केंद्रीय बजट 2025 में ₹2,250 करोड़ आवंटित किए गए; वस्त्र और मत्स्य पालन मंत्रालयों को इसमें शामिल करने पर बातचीत चल रही है।
- ऋण राहत तंत्र: अस्थायी स्थगन और ब्याज सब्सिडी योजनाएँ शुल्क व्यवधानों के दौरान निर्यातकों के लिए नकदी संकट को कम कर सकती हैं।
- उदाहरण के लिए: मत्स्य पालन के लिए 240 दिनों की स्थगन की आवश्यकता है, वस्त्र उद्योग ब्याज सब्सिडी की माँग करता है।
- बाजार विविधीकरण अभियान: वैकल्पिक गंतव्यों की खोज से निर्यातकों की, अमेरिका जैसे एकल बड़े बाजार द्वारा लगाए जाने वाले इस तरह के उच्च शुल्कों के प्रति संवेदनशीलता कम हो जाती है।
- विदेशी जोखिमों के विरुद्ध बीमा: व्यापक निर्यात बीमा तंत्र, निर्यातकों को अचानक टैरिफ वृद्धि और भुगतान डिफॉल्ट से बचा सकता है।
- उदाहरण: EPM को स्पष्ट रूप से विदेशी खरीदारों से भुगतान का बीमा करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
- विश्व व्यापार संगठन आधारित विवाद समाधान: बहुपक्षीय व्यापार ढाँचों का सहारा लेना, अनुचित शुल्क थोपने का मुकाबला करने हेतु एक नियम-आधारित तंत्र उपलब्ध कराता है।
दीर्घकालिक प्रत्यास्थता के लिए संरचनात्मक सुधार
- निर्यात बास्केट का विविधीकरण: उच्च-मूल्य और प्रौद्योगिकी-संचालित निर्यातों का व्यापक मिश्रण भारत के क्षेत्रीय झटकों और टैरिफ वार के जोखिम को कम करता है।
- उदाहरण: वस्त्र और मत्स्य पालन पर भारत की अत्यधिक निर्भरता, सुभेद्यतायें उत्पन्न करती है जैसा कि हाल ही में अमेरिकी टैरिफ वृद्धि के दौरान देखा गया है।
- MSME की प्रतिस्पर्धात्मकता को मज़बूत करना: तकनीक, गुणवत्ता मानकों और ब्रांडिंग में MSMEs का उन्नयन, गैर-शुल्क बाधाओं का सामना कर रहे वैश्विक बाज़ारों में उनके अस्तित्व को बनाये रखता है।
- उदाहरण के लिए: कई भारतीय MSME यूरोपीय संघ के संधारणीयता और कार्बन फ़ुटप्रिंट मानदंडों का पालन करने में संघर्ष करते हैं, जिससे उनकी प्रतिस्पर्धात्मकता कम हो जाती है।
- आपूर्ति श्रृंखला एकीकरण: भारतीय कंपनियों का वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं में गहनता से शामिल होना, भारतीय निर्यातों को प्रतिस्थापित करना कठिन बनाकर, उनकी प्रत्यास्थता को बढ़ाता है।
- उदाहरण: दुर्लभ मृदा खनिजों के मामले में चीन का प्रभुत्व दर्शाता है कि आपूर्ति श्रृंखलाओं को रातोंरात कैसे समाप्त नहीं किया जा सकता, जो भारत के लिए भी इसी तरह के एकीकरण की आवश्यकता को दर्शाता है।
- बुनियादी ढाँचे और लॉजिस्टिक्स का उन्नयन: आधुनिक बंदरगाह, गोदाम और कोल्ड-स्टोरेज लेन-देन की लागत कम करते हैं और भारत की निर्यात प्रतिस्पर्धात्मकता में सुधार करते हैं।
- उदाहरण: भारत का मत्स्य निर्यात अपर्याप्त कोल्ड स्टोरेज और लॉजिस्टिक्स के कारण बाधित है, जिससे जापान और यूरोपीय संघ में इसका विस्तार सीमित हो रहा है।
- निर्यात वित्त गहनता: किफायती और सुलभ निर्यात ऋण वैश्विक मंदी और व्यापार व्यवधानों के दौरान निर्यातकों की तरलता सुनिश्चित करता है।
- उदाहरण: निर्यात संवर्धन मिशन (2023) का उद्देश्य अस्थिरता को कम करने के लिए MSMEs हेतु सस्ते ऋण की पहुँच का विस्तार करना है।
निष्कर्ष
अमेरिकी टैरिफ वृद्धि, बाजार पर निर्भरता, MSMEs की संवेदनशीलता और अवरूद्ध व्यापार वार्ताओं के कारण भारत की निर्यात सुभेद्यताओं को उजागर करती है। EPM और ऋण सहायता के माध्यम से अल्पकालिक राहत को दीर्घकालिक सुधारों, विविधीकरण, आपूर्ति श्रृंखला एकीकरण और क्षेत्रीय साझेदारियों के साथ एकीकृत किया जाना चाहिए ताकि 13.5 करोड़ लोगों की आजीविका की रक्षा की जा सके और आर्थिक संप्रभुता को सुदृढ़ किया जा सके।
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