Q. भारत में खाद्यान्न संकट केवल एक आर्थिक समस्या नहीं है, बल्कि जलवायु परिवर्तन में एक महत्त्वपूर्ण योगदानकर्ता और अवसंरचनात्मक कमियों का प्रतिबिंब है। इस कथन के आलोक में, भारत में फसल कटाई के बाद खाद्यान्न हानि के बहुआयामी प्रभावों पर चर्चा कीजिए। इस चुनौती से निपटने के लिए एक बहुआयामी रणनीति सुझाइए, जिसमें प्रौद्योगिकी और नीतिगत हस्तक्षेपों की भूमिका पर जोर दिया जाए। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • भारत में कटाई के बाद खाद्यान्न हानि के बहुआयामी प्रभाव।
  • बहुआयामी रणनीति: प्रौद्योगिकी की भूमिका।
  • बहुआयामी रणनीति: नीतिगत हस्तक्षेपों की भूमिका।

उत्तर

29 सितंबर को अंतरराष्ट्रीय खाद्य हानि एवं अपव्यय जागरूकता दिवस (IDAFLW) ने यह रेखांकित किया कि विश्व में उत्पादित कुल खाद्य का लगभग एक-तिहाई हिस्सा या तो नष्ट हो जाता है अथवा बर्बाद हो जाता है। वैश्विक स्तर पर प्रतिवर्ष लगभग 1.3 अरब टन खाद्य हानि/अपव्यय होता है, जो ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का 8–10% है (FAO, वर्ष 2023)। भारत में भी फसल कटाई के बाद की हानियों के कारण खरबों रुपये की क्षति तथा धान से उत्पन्न मेथेन उत्सर्जन यह दर्शाता है कि खाद्य शृंखला की अक्षमताएँ न केवल किसान संकट को गहरा करती हैं, बल्कि जलवायु परिवर्तन को भी बढ़ाती हैं।

भारत में फसल कटाई के बाद खाद्य हानि का बहुआयामी प्रभाव

  • आर्थिक क्षति: फसल कटाई के बाद होने वाले नुकसान से भारत को लगभग ₹1.5 ट्रिलियन वार्षिक हानि होती है, जिससे किसानों की आय घटती है और कृषि GDP प्रभावित होती है।
  • पोषण असुरक्षा: प्रत्येक टन बर्बाद भोजन का अर्थ है पोषण की हानि, जबकि भारत में कुपोषण अब भी व्याप्त है।
    • उदाहरण: प्रतिवर्ष लाखों टन अनाज, फल और सब्जियाँ नष्ट हो जाती हैं, जिससे सस्ते भोजन तक पहुँच बाधित होती है।
  • पर्यावरणीय ह्रास: खाद्य हानि का अर्थ है उत्पादन में प्रयुक्त जल, ऊर्जा और भूमि संसाधनों की बर्बादी।
    • उदाहरण: धान और गेहूँ जैसी मुख्य फसलों की हानि का सीधा संबंध सिंचाई एवं श्रम संसाधनों की बर्बादी से है।
  • जलवायु परिवर्तन का बोझ: खाद्य हानि बड़े पैमाने पर ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन उत्पन्न करती है, जिससे भारत का कार्बन फुटप्रिंट और गंभीर होता है।
    • उदाहरण: 30 फसलों और पशुधन उत्पादों की हानि से प्रतिवर्ष 33 मिलियन टन CO2-समकक्ष उत्सर्जन होता है।
  • जल्दी खराब होने बाले उत्पादों की उच्च संसाधन तीव्रता: फल, सब्जियाँ एवं पशु-आधारित उत्पाद अधिक संवेदनशील और पारिस्थितिकी दृष्टि से महँगे होते हैं।
    • उदाहरण: केवल धान की हानि से ही लगभग 10 मिलियन टन CO2-समकक्ष उत्सर्जन मेथेन के रूप में होता है।
  • आपूर्ति शृंखला की अक्षमता: अधिकांश हानि हैंडलिंग, प्रोसेसिंग और वितरण में होती है, जो अवसंरचनात्मक एवं लॉजिस्टिक कमजोरियों को उजागर करती है।
    • उदाहरण: विकसित देशों के विपरीत भारत में हानियाँ उपभोक्ता स्तर पर नहीं, बल्कि आपूर्ति शृंखला के शुरुआती चरणों में होती हैं।
  • मूल्य अस्थिरता एवं उपलब्धता में कमी: हानियाँ कुल आपूर्ति घटाती हैं, जिससे दाम बढ़ते हैं और वहन क्षमता प्रभावित होती है।
    • उदाहरण: फल-सब्जियों में 10–15% तक बर्बादी बाजार उपलब्धता को बाधित करती है।
  • परिपत्र अर्थव्यवस्था में अवसरों की हानि: बर्बाद भोजन को खाद, पशु-चारा या बायोएनर्जी में परिवर्तित किया जा सकता है।
    • उदाहरण: वर्तमान में फूड बैंकों या वेस्ट-टू-एनर्जी संयंत्रों तक पुनर्वितरण की कमी से टालने योग्य हानियाँ बनी रहती हैं।

बहु-आयामी रणनीति: तकनीक की भूमिका

  • कोल्ड चेन एवं भंडारण का सुदृढ़ीकरण: प्री-कूलिंग, रेफ्रिजरेटेड ट्रांसपोर्ट एवं आधुनिक भंडारण का विस्तार खराबी को घटा सकता है।
    • उदाहरण: PMKSY के अंतर्गत कोल्ड चेन अवसंरचना के आधुनिकीकरण पर कार्य हो रहा है।
  • लघु एवं सीमांत किसानों हेतु किफायती तकनीकें: सोलर कोल्ड स्टोरेज, कम लागत वाले शीतलन कक्ष, क्रेट्स एवं अनाज साइलो हानियाँ कम कर सकते हैं।
    • उदाहरण: नमीरोधी साइलो का उपयोग खेत स्तर पर अनाज को ख़राब होने से बचाता है।
  • डिजिटल निगरानी एवं पूर्वानुमान: IoT सेंसर, AI-आधारित पूर्वानुमान, मोबाइल उपकरण हानियों का पता लगाने और रोकने में सहायक है।
    • उदाहरण: FAO का फूड लॉस ऐप (FLAPP), 2023 में लॉन्च किया गया, जो 30 से अधिक देशों में हानि ट्रैकिंग के लिए उपयोग हो रहा है।
  • कचरे का चक्रीय प्रयोग: अपरिहार्य बर्बादी को खाद, पशु-चारा, बायोएनर्जी में परिवर्तित कर संसाधन हानि रोकी जा सकती है।
    • उदाहरण: खुदरा स्तर पर अतिरिक्त भोजन को फूड बैंक और सामुदायिक रसोई तक पहुँचाया जा सकता है।

बहु-आयामी रणनीति: नीतिगत हस्तक्षेप की भूमिका

  • जलवायु एवं खाद्य सुरक्षा रणनीतियों में एकीकरण: खाद्य हानि में कमी को SDGs एवं भारत के जलवायु लक्ष्यों के लिए केंद्रीय माना जाए।
    • उदाहरण: SDG संकेतक 12.3.1 को राष्ट्रीय संकेतक ढाँचे (National Indicator Framework) में पहले से शामिल किया गया है।
  • लक्षित निवेश एवं सब्सिडी: कोल्ड चेन, आधुनिक लॉजिस्टिक्स एवं लघु तकनीकों हेतु नीतिगत समर्थन अपनाने की गति बढ़ा सकता है।
  • संस्थागत ढाँचे का सुदृढ़ीकरण: नियमित सर्वेक्षण, निगरानी एवं वैश्विक संस्थाओं के साथ सहयोग से साक्ष्य-आधारित कार्रवाई को बढ़ावा देना।
  • निजी क्षेत्र एवं सिविल सोसायटी की भागीदारी: परिपत्र मॉडल, पुनर्वितरण और जागरूकता अभियानों को बढ़ावा देने वाली नीतियाँ प्रभाव को विस्तार दे सकती हैं।
    • उदाहरण: फूड बैंकों एवं सामुदायिक रसोई के साथ साझेदारी से अधिशेष भोजन को जरूरतमंदों तक पहुँचाया जा सकता है।

निष्कर्ष

इस संकट का समाधान आंशिक सुधारों से नहीं, बल्कि प्रणालीगत सुधारों से संभव है। कोल्ड चेन को सुदृढ़ करना, किफायती भंडारण का विस्तार और AI एवं FLAPP जैसे डिजिटल उपकरणों का प्रयोग नीतिगत व वित्तीय समर्थन के साथ अनिवार्य है। SDG 12.3 एवं जलवायु लक्ष्यों के साथ खाद्य हानि में कमी को जोड़ना न केवल किसानों की आय बढ़ाएगा बल्कि खाद्य सुरक्षा एवं सतत् विकास को भी सुदृढ़ करेगा।

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