Q. दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में भारत का उभरना बाजार के आकार को दर्शाता है, जरूरी नहीं कि वैश्विक प्रभाव को। भारत के आर्थिक प्रभाव को सीमित करने वाली संरचनात्मक चुनौतियों पर चर्चा कीजिए और वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं में इसकी स्थिति को मजबूत करने के लिए नीतिगत उपाय सुझाएँ। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • भारत के आर्थिक प्रभाव को सीमित करने वाली संरचनात्मक चुनौतियों पर चर्चा कीजिए।
  • वैश्विक मूल्य शृंखलाओं में भारत की स्थिति को मजबूत करने के लिए नीतिगत उपाय सुझाएँ।

उत्तर

वर्ष 2025 में लगभग 4 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की नाममात्र GDP के साथ दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में भारत का उदय इसके बाजार के आकार को दर्शाता है, लेकिन जरूरी नहीं कि वैश्विक प्रभाव को दर्शाता हो। इस वृद्धि के बावजूद, इसकी कम प्रति व्यक्ति जीडीपी, खंडित अर्थव्यवस्था एवं वैश्विक मूल्य शृंखलाओं (GVCs) में सीमित एकीकरण इसके वैश्विक आर्थिक कद को बाधित करते हैं।

भारत के आर्थिक प्रभाव को सीमित करने वाली संरचनात्मक चुनौतियाँ

  • प्रति व्यक्ति आय कम: भारत प्रति व्यक्ति नामिनल GDP में 136वें स्थान पर है एवं PPP के मामले में 119वें स्थान पर है, जो इसकी उपभोक्ता बाजार शक्ति को सीमित करता है।
    • उदाहरण के लिए, ग्रामीण भारत में औसत आय 3,000 अमेरिकी डॉलर से कम बनी हुई है, जो माँग संचालित प्रभाव को सीमित करती है।
  • विनिर्माण क्षेत्र में खराब हिस्सेदारी: औद्योगिक क्षेत्र सकल घरेलू उत्पाद में 17.5% से भी कम योगदान देता है, जो समकक्षों के 25-30% औसत से भी कम है। 
    • उदाहरण के लिए, भारत के विनिर्माण क्षेत्र में वैश्विक व्यापारिक वस्तुओं के निर्यात में केवल 1.8% की हिस्सेदारी है। 
  • खंडित आपूर्ति शृंखलाएँ: महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में मजबूत, निर्यात-केंद्रित विशेष आर्थिक क्षेत्रों (SEZs) की कमी GVC में भारत की भूमिका को कमजोर करती है। 
    • उदाहरण के लिए, मद्रास निर्यात प्रसंस्करण क्षेत्र स्थानीय स्तर पर उत्पादन को बढ़ावा देता है, लेकिन इसमें मापनीयता का अभाव है। 
  • कमजोर MSME एकीकरण: अधिकांश सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (MSMEs) की वैश्विक बाजारों तथा डिजिटल प्लेटफॉर्म तक पहुँच नहीं है। 
    • उदाहरण के लिए, वैश्विक GVC व्यापार में भारतीय MSME का हिस्सा 20% से भी कम है।
  • कम R&D खर्च: भारत R&D पर सकल घरेलू उत्पाद का केवल 0.6 -0.7% खर्च करता है, जबकि विश्व औसत 1.8%, चीन का 2.4% एवं अमेरिका का 3.8% है। 
  • अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा: खराब लॉजिस्टिक्स एवं परिवहन, निर्यात की अक्षमताओं तथा लागतों को बढ़ाते हैं। 
    • उदाहरण के लिए, विश्व बैंक के लॉजिस्टिक्स प्रदर्शन सूचकांक (Logistics Performance Index- LPI) वर्ष 2023 में, भारत 38वें स्थान पर है, जो आपूर्ति शृंखला दक्षता में सुधार की महत्त्वपूर्ण गुंजाइश को दर्शाता है। 
  • विनिर्माण में सीमित FDI: भारत ने वर्ष 2024-25 में US$80 बिलियन FDI आकर्षित किया, लेकिन फिर भी चीन से पीछे है। 
    • उदाहरण के लिए, Apple का केवल 15% उत्पादन भारत में होता है, जो कंपनी के वर्ष 2024 तक 25 प्रतिशत के लक्ष्य से कम है। 
  • असमान निर्यात बास्केट: निर्यात कम मूल्य वाले IT एवं सेवाओं की ओर झुका हुआ है, जबकि उच्च तकनीक क्षेत्रों में उपस्थिति कम है। 
    • उदाहरण के लिए, PLI प्रोत्साहनों के बावजूद, भारत सेमीकंडक्टर एवं महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों में कम प्रतिनिधित्व वाला बना हुआ है।

वैश्विक मूल्य शृंखलाओं में एकीकरण को बढ़ावा देने के लिए नीतिगत उपाय

  • PLI योजनाओं का विस्तार करना: सेमीकंडक्टर, EV एवं ग्रीन टेक जैसे उच्च-मूल्य वाले क्षेत्रों को प्रोत्साहित करना।
    • उदाहरण के लिए, इलेक्ट्रॉनिक्स एवं फार्मा के लिए वर्ष 2020 में शुरू की गई PLI योजनाओं ने निवेश तथा उत्पादन में वृद्धि की है।
  • श्रम कानूनों को सरल बनाना: लचीलेपन एवं अनुपालन में सुधार के लिए समान श्रम सुधारों को लागू करना।
    • उदाहरण के लिए, वर्ष 2024 के श्रम संहिता संशोधनों ने मध्यम आकार के कारखानों के लिए विनियामक बोझ को कम किया।
  • SEZ एवं EPZ इन्फ्रास्ट्रक्चर विकसित करना: पूरे भारत में कोचीन SEZ जैसे सफल मॉडल का विस्तार करना।
    • उदाहरण के लिए, कोच्चि में CSEZ 160 इकाइयों में 15,000 से अधिक श्रमिकों को रोजगार देता है।
  • MSMEs को वैश्विक फर्मों से जोड़ना: भारतीय MSMEs एवं MNC या क्षेत्रीय प्रमुख फर्मों के बीच साझेदारी को प्रोत्साहित करना।
    • उदाहरण के लिए, भारत मूल्य शृंखला जोखिम को बेहतर बनाने के लिए MSMEs को आसियान उत्पादन नेटवर्क में एकीकृत कर रहा है।
  • सीमा शुल्क निकासी को सुव्यवस्थित करना: निर्यात में देरी को कम करने के लिए सीमा शुल्क प्रक्रियाओं को डिजिटल करना।
    • उदाहरण के लिए, राष्ट्रीय रसद नीति ने डिजिटल सीमा शुल्क को सक्षम किया, जिससे निकासी का समय 30% कम हो गया।
  • बुनियादी ढाँचे में निवेश को बढ़ावा देना: निर्यात को समर्थन देने के लिए भौतिक एवं डिजिटल व्यापार बुनियादी ढाँचे को बढ़ाना।
    • उदाहरण के लिए, गुजरात के GIFT सिटी IFSC का लक्ष्य वैश्विक वित्तीय केंद्र बनना है।
  • FDI एवं कर मानदंडों को आसान बनाना: विदेशी निवेशकों के लिए निवेश की सीमा कम करना एवं कर प्रणाली को सरल बनाना।
    • उदाहरण के लिए, वर्ष 2025 में, केंद्रीय बजट ने भारत के भीतर अपना पूरा प्रीमियम निवेश करने वाली बीमा कंपनियों के लिए FDI सीमा को 74% से बढ़ाकर 100% करने का प्रस्ताव रखा।

भारत का 4 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था के रूप में उभरना महत्त्वपूर्ण है, लेकिन संरचनात्मक मुद्दों को संबोधित किए बिना चीन ($19.5 ट्रिलियन) एवं USA ($30 ट्रिलियन) के साथ अंतर को पाटने के लिए अपर्याप्त है। वर्ष 2047 तक विकसित भारत के विजन को प्राप्त करने के लिए नवाचार, कुशल कार्यबल, गुणवत्तापूर्ण विकास एवं बुनियादी ढाँचे पर ध्यान केंद्रित करना महत्त्वपूर्ण है।

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