Q. भारत में धर्मांतरण विरोधी कानून धार्मिक स्वतंत्रता और धर्मनिरपेक्षता की संवैधानिक गारंटी को किस प्रकार चुनौती देते हैं? अंतर्धार्मिक विवाहों और अल्पसंख्यक समुदायों पर इसके प्रभाव पर चर्चा कीजिए? (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • धार्मिक स्वतंत्रता को चुनौती
  • धर्मनिरपेक्षता को चुनौती
  • अंतरधार्मिक विवाहों पर प्रभाव
  • अल्पसंख्यक समुदायों पर प्रभाव

उत्तर

भारत में धर्म-परिवर्तन विरोधी कानून का उद्देश्य बलपूर्वक या प्रलोभन द्वारा किए गए धर्मांतरण को रोकना है। हालाँकि, इन कानूनों में जटिल प्रक्रियात्मक प्रावधान, अस्पष्ट परिभाषाएँ और उल्टा साक्ष्य भार जैसे तत्त्व शामिल हैं, जो धर्म की स्वतंत्रता, धर्मनिरपेक्षता और अल्पसंख्यक व अंतरधार्मिक विवाहों के अधिकारों पर गंभीर प्रश्न उठाते हैं।

धर्म की स्वतंत्रता के लिए चुनौती 

  • स्वैच्छिक धर्मांतरण का अपराधीकरण:  “बल, प्रलोभन या अनुचित प्रभाव” से धर्मांतरण को दंडनीय बनाकर और साक्ष्य का भार आरोपी पर डालकर व्यक्ति की स्वतंत्र धार्मिक पसंद को सीमित किया गया है।
    • उदाहरण: उत्तर प्रदेश में जो व्यक्ति धर्मांतरण करना चाहता है, उसे जिलाधिकारी को दो माह पूर्व सूचना देनी होती है और राज्य यह सत्यापित करता है कि धर्मांतरण “वास्तविक” है या नहीं।
  • स्वैच्छिक धार्मिक निर्णय पर कानूनी उत्पीड़न: धार्मिक स्वतंत्रता का प्रयोग करने वाले लोगों के खिलाफ जाँच और एफआईआर दर्ज की जाती हैं, जिससे डर और असुरक्षा का वातावरण बनता है।
    • उदाहरण: उत्तर प्रदेश में धर्मांतरण विरोधी कानून के तहत 1,682 गिरफ्तारियों में से 12 से भी कम दोषसिद्धियाँ हुई हैं, यह दर्शाता है कि ज्यादातर मामले उत्पीड़न के उद्देश्य से दर्ज हुए।
  • अस्पष्ट परिभाषाएँ: “प्रलोभन” या “अनुचित प्रभाव” जैसे शब्द स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं हैं, जिससे अधिकारियों को निजी धार्मिक निर्णयों में हस्तक्षेप का अवसर मिलता है।
    • उदाहरण: स्वयंसेवकों द्वारा भोजन वितरण करने पर उन्हें धर्मांतरण के प्रलोभन का आरोपी बनाया गया यह कानून की अति-व्याख्या को दर्शाता है।

धर्मनिरपेक्षता के लिए चुनौती

  • राज्य का धार्मिक निर्णयों में हस्तक्षेप: धर्मांतरण को नियंत्रित करने से राज्य अप्रत्यक्ष रूप से बहुसंख्यक धर्म के पक्ष में झुकाव दिखाता है, जिससे धर्मनिरपेक्ष निष्पक्षता प्रभावित होती है।
    • उदाहरण: सिटिजन्स फॉर जस्टिस एंड पीस बनाम उत्तर प्रदेश राज्य  में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि ऐसे कानून “अत्यधिक बोझिल प्रक्रियाएँ” थोपते हैं, जो संविधानिक धर्मनिरपेक्षता पर प्रश्न उठाते हैं।
  • अल्पसंख्यकों को असमान रूप से निशाना बनाना: इन कानूनों का उपयोग अक्सर अल्पसंख्यक समुदायों के विरुद्ध होता है, जबकि बहुसंख्यक धर्मांतरण प्रायः अनदेखे रह जाते हैं।
    • उदाहरण: मुस्लिम पुरुषों और हिंदू महिलाओं के अंतर्धार्मिक विवाहों को “लव जिहाद” के आरोपों के तहत निशाना बनाया गया।
  • बहुलतावाद का क्षरण:  ऐसे कानून भय और अविश्वास का माहौल बनाते हैं, जिससे संवैधानिक सद्भाव और एकता कमजोर होती है।

अंतरधार्मिक विवाहों पर प्रभाव 

  • कानूनी असुरक्षा: अंतरधार्मिक विवाह करने वाले जोड़े, भले ही उनकी शादी पूर्ण सहमति से हुई हो, एफआईआर और जाँच का सामना करते हैं।
    • उदाहरण: उत्तर प्रदेश में कई अंतर्धार्मिक जोड़े “लव जिहाद” के आरोपों में गिरफ्तार हुए, जबकि जबरन धर्मांतरण के कोई प्रमाण नहीं मिले।
  • सामाजिक शत्रुता और उत्पीड़न: धर्मांतरण विरोधी कानून सामाजिक दबाव और भीड़-हिंसा को बढ़ावा देते हैं, जिससे अंतरधार्मिक विवाहों का वातावरण शत्रुतापूर्ण बनता है।
    • उदाहरण: पड़ोसी या राजनीतिक समूहों की शिकायत पर जोड़ों को निगरानी और भय में जीवन बिताना पड़ता है।
  • व्यक्तिगत स्वतंत्रता का उल्लंघन: धर्मांतरण की सत्यता सिद्ध करने का भार जोड़े पर ही डालना, संवैधानिक स्वायत्तता (Autonomy) और अनुच्छेद-21 का उल्लंघन है।

अल्पसंख्यक समुदायों पर प्रभाव

  • कानूनी निगरानी और जाँच:  अल्पसंख्यक समुदायों की धार्मिक गतिविधियों, चैरिटी या सामाजिक सेवाओं को भी धर्मांतरण के शक में जाँचा जाता है।
  • धार्मिक अभिव्यक्ति का दमन: समुदायों में भय और आत्म-सेंसरशिप बढ़ती है, जिससे धार्मिक स्वतंत्रता और सार्वजनिक सहभागिता कम होती है।
  • समान अधिकारों का ह्रास: झूठे आरोपों और सामाजिक कलंक के कारण अल्पसंख्यक समूह मुख्यधारा से अलग हो जाते हैं।

संवैधानिक स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए स्पष्ट परिभाषाओं के साथ धर्मांतरण विरोधी कानूनों को संशोधित करना, सुबूत के विपरीत बोझ को समाप्त करना और स्वैच्छिक धार्मिक विकल्पों की रक्षा करना आवश्यक है। संवाद को बढ़ावा देना, अंतरधार्मिक विवाहों की सुरक्षा करना तथा धर्मनिरपेक्ष तटस्थता को कायम रखना भारत में बहुलवाद, सामाजिक सद्भाव तथा सभी समुदायों के लिए समान अधिकारों को बढ़ावा दे सकता है।

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